गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

बिहार की चुनावी तस्वीर स्पष्ट हो रही है

अवधेश कुमार

बिहार चुनाव अभियानों के प्रचंड शोर से के बीच से निकलने वाले संकेतों को आप समझ सकते हैं । दोनों प्रमुख गठबंधनों तथा तीसरी शक्ति के रूप में खड़ा होने की कोशिश कर रही जन सुराज व उम्मीदवारों तक ने अपने मुद्दे भी घोषित कर दिए। मतदाताओं के सामने मुख्य प्रश्न यही है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की नीतीश कुमार सरकार को कायम रखनी है या बदलने के लिए विपक्षी गठबंधन को सत्ता में लाना है ? प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र और भाजपा ने राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने कार्यों , वक्तव्यों तथा व्यवहारों से स्थायी एवं तात्कालिक मुद्दे लगातार बनाए रखें है। छोटे से छोटे चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा एक प्रबल कारक की भूमिका निभाते हैं । इसमें चुनावी आकलन की मुख्य वस्तुनिष्ठ कसौटियां क्या हो सकतीं हैं? एकमात्र कसौटी यही होगी कि आखिर सामने दिखने वाले तीनों प्रमुख धाराओं के चुनाव में उद्देश्य क्या हैं? जब हम उद्देश्यों पर विचार करेंगे तो यह भी प्रश्न उभरेगा कि क्या उनकी संपूर्ण भूमिका उन उद्देश्यों के अनुरूप हैं? इन्हीं के अगले चरण में आपको चुनावी संभावनाओं  के भावी दृश्य भी धीरे-धीरे स्पष्ट हो जाएंगे।

पहले दोनों मुख्य गठबंधनों यानी सत्तारुढ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन या राजग तथा दूसरी ओर जिसे महागठबंधन कहते हैं उनकी चर्चा। हालांकि विपक्ष को महागठबंधन तब कहा गया था जब नीतीश कुमार जदयू के साथ इस ओर आ गए थे। जब नीतीश कुमार इससे निकल चुके हैं तो यह महागठबंधन नहीं है। दोनों ओर सामान्य गठबंधन है। विपक्षी गठबंधन के सामने सीधा लक्ष्य महाराष्ट्र, हरियाणा तथा दिल्ली में भाजपा के विजय अभियान को रोक कर लोकसभा चुनाव में दिए गए धक्के को फिर सतह पर लाना है। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर हमला करते हुए यही कहा कि  वोट चोरी नहीं होती तो भाजपा की सीटें घट जातीं और उनकी सरकार नहीं बनती। यह स्पष्ट है कि 2014 से हिंदुत्व, हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रवाद के साथ सामाजिक न्याय एवं विकास आदि के आधार पर भाजपा का स्थिर ठोस वोट आधार कायम हो चुका है। भाजपा चाहे चुनाव जीते या हारे इसकी शुरुआत उस निश्चित वोट प्रतिशत से ही होती है। इस नाते विपक्ष का पहला लक्ष्य हर हाल में उम्मीदवारों, राजनीतिक मुद्दों और चुनाव अभियानों में सशक्त एकजुटता प्रदर्शित करनी चाहिए थी। इससे मतदाताओं के बीच संदेश जाता कि वाकई ये विचार और मुद्दों के आधार पर भाजपा का विरोध करते हैं केवल सत्ता पाने के लिए इनका साथ नहीं है। राहुल गांधी, वम दल, स्वयं तेजस्वी यादव आदि सेक्युलरिज्म आदि के आधार पर भाजपा से विचारधारा का टकराव घोषित करते हैं। क्या इनका आचरण इसके अनुरूप रहा?

23 अक्टूबर की संयुक्त प्रेस वार्ता के पहले विपक्षी गठबंधन के शीर्ष नेताओं की एक भी बैठक नहीं हुई।

इसके उलट जब लालू प्रसाद यादव , राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव दिल्ली में अपने मुकदमों के लिए न्यायालय में उपस्थित होने आए थे तो माना गया था कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं साथ उनकी बैठक होगी।  केवल यह समाचार आया कि लालू यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से फोन पर बातचीत की। यानी तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की बैठक नहीं हो सकी। सभी पार्टियों ने स्वयं ही उम्मीदवारों की घोषणा की है। इसका  संदेश यही है कि चूंकि इनको मालूम है कि आपस में लड़ने पर हम चुनाव नहीं जीत पाएंगे इसलिए इन्होंने एक दूसरे की सीट से कुछ उम्मीदवार हटाए और या उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। बावजूद 11 स्थानों पर गठबंधन के उम्मीदवार एक दूसरे के विरुद्ध लड़ रहे हैं और अनेक स्थानों पर बिना पार्टी चुनाव चिन्ह के निर्दलीय खड़े हैं । क्या चुनाव पर इसका असर नहीं होगा? गठबंधन में पार्टियों द्वारा अधिक से अधिक सीटों की चाहत अस्वाभाविक नहीं है। किंतु कांग्रेस का रवैया गठबंधन धर्म के विपरीत रहा। कांग्रेस का तर्क था कि पिछले चुनाव में 70 सीटों पर केवल 19 पर ही जीत इसलिए मिली क्योंकि ये स्थान हमारे अनुकूल नहीं थे। दरअसल, कांग्रेस मान रही है कि राहुल गांधी सेकुलरिज्म के सबसे बड़े चेहरे हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा, संघ और हिंदुत्व विचार पर लगातार आक्रमण किया और चुनाव आयोग तक को भाजपा समर्थक घोषित करने के लिए अभियान चलाया इस कारण उनकी लोकप्रियता विपक्ष  के सभी नेताओं से ज्यादा है। इसीलिए गठबंधन या सीटों के बंटवारे में आत्मविश्वास और समानता से हमें व्यवहार करना है। कांग्रेस राजद को ब्लैंक चेक देने के मूड में नहीं रही और इसी कारण तेजस्वी यादव गठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने में काफी विलम्ब हुआ। ऐसा लगा कि कुछ विरोधियों तथा विश्लेषकों द्वारा लगातार  इस पहलू को उठाने के बाद चुनावी क्षति का भय पैदा हुआ और फिर ये तेजस्वी यादव को नेता घोषित करने को बाध्य हो गए।

 स्वयं कांग्रेस के अंदर टिकटों को लेकर पटना सदाकत आश्रम कार्यालय में मारपीट, गाली-  गलौज तथा प्रदेश अध्यक्ष, विधानसभा में विपक्ष के नेता एवं प्रभारी के हवाई अड्डे पर उतरने के बाद कार्यकर्ताओं के गुस्से वाले दृश्य ने बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया। झारखंड मुक्ति मोर्चा पहले गठबंधन का भाग हुई लेकिन नाराज होकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने घोषणा कर दिया कि उनकी पार्टी बिहार में चुनाव नहीं लड़ेगी और झारखंड उपचुनाव में भी अकेले उतरेगी। इससे तो राष्ट्रीय स्तर पर आईएनडीआईए का अवशेष भी प्रश्नों के घेरे में आ गया।

दूसरी ओर भाजपा जद-यू के समान वर्चस्व वाले राजग के नेताओं ने बार-बार स्पष्ट किया कि वे नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ रहे हैं। सीटों के बंटवारे पर भी स्पष्ट वक्तव्य जारी किया। यहां भी सीटों पर मतभेद थे तथा रालोमो प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और हम के जीतन राम मांझी ने इसे सार्वजनिक प्रकट भी किया।  गहराई से देखेंगे तो समस्या चिराग पासवान की लोजपा को 29 सीटें देने के कारण पैदा हुई। उनके खाते कुछ सीटें ऐसी जिनमें कुछ क्षेत्रों से रालोमो और हम के साथ भाजपा प्रदेश नेतृत्व भी अपना उम्मीदवार लडाना चाहता था। इसीलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजगीर और सोनबरसा में अपने उम्मीदवार को चुनाव चिन्ह देकर नामांकन करवा दिया। ऐसा होने के बावजूद नीतीश कुमार ने हर पार्टी के लिए अपना चुनाव प्रचार जारी रखा, सभी ने एक स्वर से एकजुट होने  के बयान जारी किए। आज की स्थिति में राजग के सभी घटक एकजूट चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टियों के अंदर उम्मीदवारों को लेकर असंतोष हैं ।स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में हम और लोजपा नेतृत्व द्वारा अपने परिवार रिश्तेदारों तथा कुछ गलत लोगों के टिकट देने का भी विरोध है। इनका थोड़ा असर चुनाव परिणाम पर पड़ता है।

मुद्दों की दृष्टि से राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर भाजपा के लिए वोट चोरी करने का आरोप लगाते हुए वोट अधिकार यात्रा निकाली और इसे बिहार सहित आगामी सभी चुनाव के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की रणनीति अपनाई। वास्तव में जानबूझकर किसी मतदाता का नाम हटा नहीं इसलिए यह मुद्दा बन ही नहीं सका। तेजस्वी यादव और उनके रणनीतिकारों को इसका आभास हुआ तो उन्होंने राहुल की यात्रा के बाद बिहार अधिकार यात्रा शुरू कर दी। आप देखेंगे कि चुनाव में राजद या अन्य घटक यह मुद्दा नहीं उठा रहे थे। इतना शोर वाले मुद्दा ही निराधार हो तो मतदाताओं के मनोविज्ञान पर इसका असर नकारात्मक ही होता है। दूसर ओर भाजपा और जदयू लगातार लालू राबड़ी काल के कुशासन व‌ जंगल राज को शीर्ष पर ला रही है तथा अपने काल में बिहार में आधारभूत संरचनाओं से लेकर स्वास्थ्य आदि के विकास की तस्वीर प्रस्तुत करते हुए मतदाताओं के सामने दोनों के बीच तुलना का विकल्प दे रहे हैं। जब विपक्ष एकजुट नहीं होगा तो सरकार के विरुद्ध प्रभावी तरीके से मुद्दे भी नहीं बनाये जा सकते। यही बिहार चुनाव में दिख रहा है।

 प्रशांत किशोर ने पिछले दो वर्ष में बिहार से जुड़े मुद्दे उठाए। किंतु मुद्दे उठाने और राजनीतिक नेतृत्व का चेहरा बनने में मौलिक अंतर है। बिहार में तीसरी शक्ति को मत तीन स्थितियों में ही मिल सकता है। एक , जब मतदाताओं के अंदर सरकार के विरुद्ध इतना व्यापक असंतोष हो कि वे उसे उखाड़ फेंकना चाहें। दो , यह मान लें कि वर्तमान विपक्ष भाजपा जदयू कि मुकाबला करने में बिल्कुल सक्षम नहीं है। और तीन , सामने तीसरा विकल्प इन दोनों से बेहतर चेहरों मुद्दों और रणनीति के साथ सामने है। ये तीनों स्थितियों बिहार में नहीं हैं। इसके बाद आप निष्कर्ष निकालिए कि आखिर चुनाव की अंतिम तस्वीर क्या होगी?

12 वार्डों में मतदान, किस पार्टी के पास थी कौन-सी सीट, चुनाव आयोग ने 7 लाख मतदाताओं के लिए बनाए 580 मतदान केंद्र


संवाददाता

नई दिल्ली। दिल्ली नगर निगम (MCD) के 12 वार्डों में खाली पड़ी सीटों को भरने के लिए चुनावी बिगुल बज चुका है. स्टेट इलेक्शन कमिशन ने मंगलवार (28 अक्टूबर) को उपचुनाव की घोषणा करते हुए मतदान की तारीख 30 नवंबर तय की है. सुबह 7:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक मतदान होगा और इसके साथ ही इन वार्डों में आचार संहिता भी लागू कर दी गई है. 

स्टेट इलेक्शन कमिशन (दिल्ली) के अनुसार, एमसीडी के 250 वार्डों में से 12 वार्डों में उपचुनाव 30 नवंबर को होंगे. चुनाव का नोटिफिकेशन 3 नवंबर से जारी होगा और इसी दिन नामांकन प्रक्रिया भी शुरू होगी. नामांकन भरने की अंतिम तारीख 10 नवंबर और नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख 15 नवंबर तय की गई है. 

चुनाव आयोग ने 7 डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर (DEO), 11 रिटर्निंग ऑफिसर (RO), 11 इलेक्शन ऑब्जर्वर और एक्रेडिटेड ऑब्जर्वर की नियुक्ति कर दी है. 12 वार्डों में से 6 सामान्य वर्ग, 5 महिला और 1 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं.

प्रत्याशी अधिकतम 8 लाख तक कर सकेंगे खर्च - चुनाव आयोग के अनुसार सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों को नामांकन के समय 5,000 रुपये और अनुसूचित जाति वर्ग के प्रत्याशियों को 2,500 रुपये सिक्योरिटी मनी के रूप में जमा करनी होगी. प्रत्येक प्रत्याशी को प्रचार-प्रसार पर अधिकतम 8 लाख रुपये तक खर्च करने की अनुमति होगी.

करीब सात लाख मतदाता डालेंगे वोट - उपचुनाव में कुल 6,98,751 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. इनमें से 3,74,988 पुरुष, 3,23,710 महिलाएं, 53 थर्ड जेंडर वोटर, 60 दिव्यांग मतदाता, 14,529 वरिष्ठ नागरिक (80 वर्ष से ऊपर) और 4,458 युवा (18 वर्ष) शामिल हैं. 

मतदान के लिए कुल 580 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं. सबसे अधिक पोलिंग स्टेशन (55) मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के पूर्व वार्ड शालीमार बाग-बी में बनाए जाएंगे.

महिला-पुरुष मतदाताओं में मामूली अंतर - आयोग के आंकड़ों के अनुसार तीन वार्डों में महिला और पुरुष मतदाताओं की संख्या में बहुत कम अंतर है. दिलचस्प बात यह है कि 80 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाता (2.07%) की संख्या 18 वर्ष के युवाओं (0.63%) से अधिक है, जो चुनाव में वरिष्ठ नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है.

वार्ड वाइज वोटर्स की संख्या

• मुंडका (सामान्य) – 54,525

• शालीमार बाग-बी (महिला) – 66,391

• अशोक विहार (महिला) – 56,697

• चांदनी चौक (सामान्य) – 44,166

• चांदनी महल (सामान्य) – 46,237

• द्वारका-बी (महिला) – 66,184

• दिचाऊं कलां (महिला) – 72,396

• नारायणा (सामान्य) – 59,340

• संगम विहार-ए (सामान्य) – 59,365

• दक्षिणपुरी (अनुसूचित जाति) – 61,636

• ग्रेटर कैलाश (महिला) – 49,624

• विनोद नगर (सामान्य) – 62,190

क्यों खाली हुईं ये सीटें - इन 12 में से 11 सीटें पार्षदों के विधायक बनने के बाद रिक्त हुईं, जबकि द्वारका-बी सीट पिछले वर्ष मई में सांसद कमलजीत सहरावत के लोकसभा सदस्य बनने से खाली हुई थी. इन्हीं में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की विधायक निर्वाचित होने से खाली हुई शालीमार बाग की सीट भी शामिल है.

किस पार्टी के पास थीं कौन-सी सीटें - इन 12 वार्डों में से तीन सीटें — चांदनी महल, चांदनी चौक और दक्षिणपुरी पहले आम आदमी पार्टी (आप) के पास थीं. जबकि नौ सीटें — शालीमार बाग, द्वारका बी, ग्रेटर कैलाश, दिचाऊं कलां, नारायणा, संगम विहार, विनोद नगर, अशोक विहार और मुंडका भाजपा के कब्जे में थीं.

एमसीडी की वर्तमान स्थिति और राजनीतिक समीकरण - वर्ष 2022 में तीनों एमसीडी का एकीकरण किया गया था, जिसमें 250 सीटों पर चुनाव हुए थे. तब आप को 134, भाजपा को 104, कांग्रेस को 8 और 3 निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली थी. इसके बाद, 2024–25 में कई आप पार्षद भाजपा में शामिल हो गए और 16 पार्षदों ने नया दल इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी (IVP) बना लिया. इस बदले राजनीतिक समीकरण में अप्रैल 2025 में हुए महापौर चुनाव में भाजपा ने बहुमत के आधार पर जीत हासिल की थी.

वर्तमान में एमसीडी की कुल 250 सीटों में से 12 रिक्त हैं. बाकी सीटों पर पार्टीवार स्थिति इस प्रकार है:

● बीजेपी – 116 सीटें

● आप – 98 सीटें

● कांग्रेस – 8 सीटें

● इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी – 15 सीटें

तीनों दलों की निगाहें इन 12 सीटों पर - भाजपा, आप और कांग्रेस — तीनों ही दल इन उपचुनावों को बेहद अहम मान रहे हैं. भाजपा इसे निगम में अपना वर्चस्व मजबूत करने के अवसर के तौर पर देख रही है, तो वहीं आम आदमी पार्टी अपनी खोई हुई सीटें वापस पाने के प्रयास में जुटी है. जबकि कांग्रेस भी इस चुनावों में वापसी की उम्मीद कर रही है. दिलचस्प बात यह है कि सभी दलों का दावा है कि वे सभी 12 सीटों पर जीत दर्ज करेंगे.

वोटिंग और नतीजों की तारीखें

◆ नामांकन शुरू: 3 नवंबर

◆ नामांकन की अंतिम तारीख: 10 नवंबर

◆ नामांकन वापसी की अंतिम तारीख: 15 नवंबर

◆ मतदान: 30 नवंबर (सुबह 7:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक)

◆ नतीजों की घोषणा: 3 दिसंबर

कांग्रेस ने की उम्मीदवार चयन की तैयारी - दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने आज राजीव भवन में एक अहम बैठक बुलाई. इसमें एमसीडी के 12 वार्डों में होने वाले उपचुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन पर चर्चा हुई. इस दौरान देवेंद्र यादव ने कहा कि पिछले 9 महीनों में बीजेपी की रेखा गुप्ता सरकार हर क्षेत्र में नाकाम साबित हुई है. लोग अब बदलाव की बाट जोह रहे हैं. दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ गुस्सा साफ दिख रहा है और कांग्रेस को इन उपचुनावों में बड़ी जीत का मौका मिल सकता है.

भाजपा पर हमला, आप से तुलना - देवेंद्र यादव ने तंज कसा कि रेखा गुप्ता की सरकार पिछली भ्रष्ट आम आदमी पार्टी की सरकार से भी बदतर निकली. विधानसभा चुनाव में किए वादे- बिजली-पानी की दिक्कतें दूर करना, सफाई और प्रदूषण पर काबू, सड़कें ठीक करना, घरों को गिराने का मसला सुलझाना और हर महिला को 2500 रुपये मासिक मानदेय देना- सब अधर में लटक गए.

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