शुक्रवार, 14 मई 2021

महाआपदा में निःस्वार्थ सहायता का आचरण उम्मीद पैदा करता है

अवधेश कुमार 

कोरोना महाआपदा में नकारात्मक सूचनाओं का ऐसा अंबार है कि हमारे चारों ओर घट रहीं सकारात्मक घटनायें उनमें दब गईं हैं। वास्तव में चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं और उनसे उत्पन्न डर और हताशा के बीच ऐसे समाचार और दृश्य सामने आ रहे हैं जो फिर यह उम्मीद पैदा करते हैं कि विकट परिस्थितियों में देश के लोगों, संस्थाओं संगठनों आदि का बड़ा समूह भारी जोखिम उठाकर भी समर्पण और संकल्प के साथ सेवा भाव से काम करने को तत्पर है। कोई भी आपदा अकेले केवल सरकारों के लिए चुनौतियां खड़ी नहीं करती, समाज के लिए भी करती है। अगर समाज का बड़ा समूह इसे समझता है तो वह अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार खड़ा होता है, आगे आता है और उन चुनौतियों को दूर करने या कम करने की यथासंभव कोशिश करता है। एक संवेदनशील सतर्क और सक्रिय समाज का यही लक्षण है। तमाम हाहाकार और कोहराम के बीच हमारे सामने मने ऐसी खबरें लगातार आ रहीं है जिसमें धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सेवा संगठन-समूह या कुछ निजी लोग भी अपने-अपने तरीकों से पीड़ित व प्रभावित लोगों की सहायता कर रहे हैं। गाजियाबाद से एक समाचार ने पूरे देश का ध्यान खींचा जहां एक गुरुद्वारे ने घोषणा की कि कोई भी मरीज अगर ऑक्सीजन के बिना छटापटा रहा है तो आप हमारे पास ले आइए, हम उनको तब तक ऑक्सीजन देते रहेंगे जब तक या तो किसरी अस्पताल में उनको जगह नहीं मिल जाती या वे इस स्थिति में नहीं आ जाते कि घर लौटक आइसोलेट होकर चिकित्सा करा सकें। लगातार कोरना पीड़ित वहां जा रहे हैं, उनको ऑक्सीजन मिल रहा है। वहां पर अस्पतालों को फोन किया जा रहा है और अनेक मरीज कुछ घंटे  ऑक्सीजन के बाद स्थिति सुधरने पर अपने घर वापस आ गए। 

ऐसे कुछ और समाचारों पर नजर डालेंगे तो इनके विस्तार और प्रभाव का अहसास हो जाएगा। जोधपुर से खबर आई कि वहां के कुछ व्यापारियों ने मिलकर ऑक्सीजन बैंक शुरू किया है। ब्लड बैंक की तर्ज पर चलने वाला यह ऑक्सीजन बैंक केवल कोरोना में ही नहीं हर विकट परिस्थिति में स्थायी रुप से अस्पतालों को, व्यक्तियों को ऑक्सीजन मुहैया कराएगा। शायद हममें से किसी को आश्चर्य हो कि दो-तीन दिनों के अंदर ही करोड़ों रुपए इसके लिए इकट्ठे हो गए और ऑक्सीजन बैंक चालू होने की स्थिति में है। हम उन औद्योगिक घरानों की चर्चा नहीं करेंगे जो भारी मात्रा में ऑक्सीजन के साथ अन्य सहायता के साथ आगे आएं हैं। हालांकि आने वाले कुछ दिनों में ऑक्सीजन की आपूर्ति मांग के अनुरूप हो जाएगी लेकिन विकट परिस्थिति में जब चारों ओर हाहाकार हो तब इस ढंग की संस्थाएं उम्मीद जगातीं है। ये दों तो केवल उदाहरण हैंए देशभर में अलग-अलग न जाने कितनी संस्थाओं, गुरुद्वारों, मंदिरों, व्यापारिक समूहों, राजनीतिक दलों तथा निजी लोगों ने अपनी ओर से ऑक्सीजन मुहैया कराना शुरु किया और जितना संभव है करा रहे हैं। हमारे देश के बुद्धिजीवियों में धार्मिक संस्थाओं की आलोचना करने का फैशन है। वे भी आगे आकर काम कर रहे हैं।  धार्मिक संस्थाओं की ओर से देश भर में कोविड केयर सेंटर बनाए गए हैं और बनाए जा रहे हैं। निरंकारी मिशन, राधास्स्वामी सत्संग, सावन कृपाल रूहानी मिशन, चिन्मय मिशन, स्वामीनारायण मंदिर, रामकृष्ण मिशन आदि तो वो नाम हैं जिनके कोविड केयर केन्द्रों के समाचार और तस्वीरें राष्ट्रीय मीडिया में स्थान पा रहीं हैं। क्षेत्रीय स्थानीय मीडिया में छोटी - बड़ी धार्मिक संस्थाओं की कोरोना मरीजों के उपचार, उनकी देखभाल तथा अन्य गतिविधियों के समाचार प्रतिदिन आ रहे हैं। सच यह है कि जिस धार्मिक संस्था की भी थोड़ी क्षमता है वो किसी न किसी रुप में सेवा कर रहा है। यहां तक कि मंदिर, मठ, गुरुद्वारे और मस्जिदों ने भी कोविड केयर के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। आरंभ में मुंबई के एक जैन मंदिर को चिकित्सा की सभी व्यवस्था के साथ कोविड केयर सेंटर में तब्दील करने की खबर आई। उसके बाद देशभर से ऐसी खबरें आने लगीं। इसी तरह पहले वडोदरा की जहांगीरपुरा मस्जिद द्वारा कोरोना मरीजों के लिए अपने परिसर में बेड का इंतजाम करने की खबर आई। उसके बाद कई जगहों से मस्जिद परिसर में कोरोना मरीजों के इलाज के इंतजाम किए जाने की सूचना आ रही है। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने व्यवस्थित तरीके से सेवा अभियान चलाने के लिए सभी राज्यों के प्रभारियों की नियुक्ति कर दी। उससे जुड़े संगठन अपनी क्षमता के अनुसार कई तरीकों से काम कर रहे हैं। जगह-जगह पूरे देश में इनका कार्यक्रम चल रहा है।  कुछ संगठन से जुड़ कर कर रहे हैं तो निजी स्तर पर भी, सेवा भारती, वनवासी कल्याण केंद्र, विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद आदि के कार्यकर्ता अपने-अपने स्थानों पर छोटे-बड़े समूह बनाकर कई तरीकों से सहायता  कर रहे हैं। कोई टीकाकरण अभियान में सहयोग कर रहा है, छोटे-बड़े कोविड केयर या आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं, एंबुलेंस की व्यवस्था कर रहे हैं, दवाइयां और ऑक्सीजन की उपलब्धता में भी लगे हैं.. मरीज को भर्ती करानने में सहयोग  कर रहे हैं, भोजन उपलब्ध करा रहे हैं...। इन सबके लिए नंबर भी जारी किए है।ं कई जगह हेल्प सेंटर बने हैं । कहीं-कहीं निश्चित समय पर फोन नंबर पर डॉक्टर डॉक्टर उपलब्ध कराए गए हैं जो बचाव या कोविड-19 संक्रमितों के इलाज के लिए सुझाव देते हैं।

 इसी तरह राजनीतिक दलों में भी अकेले भाजपा नहीं, कांग्रेस और दूसरे दल भी अपने-अपने क्षेत्रों में सेवा सहायता में लगे हैं। दिल्ली में ही युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मिलकर भोजनालय शुरू किया है जिससे अस्पतालों में मरीजों के रिश्तेदारों को भोजन कराया जा रहा है।   व्हाट्सएप से लेकर सोशल मीडिया पर अनेक लोगों के नंबर आपको मिले हैं जहां फोन करने पर आपको भोजन उपलब्ध हो सकता है। कोरोना आपदा के समय खासकर लॉकडाउन में केवल अस्पतालों और मरीज वाले परिवारों में ही नहीं, अनेक घरों में भी ंखाने की समस्याएं पैदा होतीं हैं। आप फोन पर बताते हैं और उतनी संख्या में भोजन के पैकेट आप तक पहुंच जाते हैं। गुरुद्वारों, मंदिरों और धार्मिक संस्थाओं से लेकर अनेक सेवा संस्थाएं, एनजीओ, निजी समूह आदि दिन रात इसमें लगे हैं। कहीं-कहीं भोजन यान चल रहा है जो बिना पूर्व सूचना के लोगों तक घूम-घूमकर भोजन पहुंचा रहे हैं। राजधानी दिल्ली के इर्द-गिर्द कई जगहों से खबर आई कि सोसायटी के लोगों ने अपने अपार्टमेंट के अंदर के कम्युनिटी हॉल, क्लब रूम आदि को ही कोविड-19 सेंटर में बदल दिया। वहां सामान्य तौर पर आवश्यकता पड़ने वाली औषधियों से लेकर डॉक्टर और नर्स तक की व्यवस्था है। कुछ लोगों ने भी समूह बनाए हैं जिनके व्हाट्सएप नंबरों पर मेसेज से आपकी कई समस्याएं हल हो जातीं हैं। मसलन, कुछ समूह दवा उपलब्ध कराता है। आपने किसी दवा की मांग की तो उनका समूह यह पता करता है कि दवा कहां उपलब्ध है और वहां से वो मंगाकर पहुंचा रहे हैं। 

वास्तव में इस तरह की गतिविधियों को आप लिखने लगें तो पन्ने भरते जाएंगे लेकिन सिलसिला खत्म नहीं होगा।यही भाव और आचरण उम्मीद पैदा करतीहै कि चाहे संकट कितना भी बड़ा हो हम उसका सफलतापूर्वक सामना करेंगे और विजीत भी होंगे। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश और समाज की जैसी निराशाजनक तस्वीरें बनाई जा रहीं वैसा है नहीं। वाकई सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। लोगों के अंदर आज भी बिना सरकारी सहायता के निस्वार्थ भाव से अपना खर्च करके दुखी-पीड़ित लोगों की सेवा व हरसंभव सहायता करते हुए संकट का मुकाबला करने का जज्बा कायम है। जिस देश में धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व गैर राजनीतिक संगठन ही नहीं राजनीतिक दल और निजी लोग संकट में अपने संसाधनों के साथ हाथ बंटाने निकल जाएंगे उस देश का भविष्य कभी भी अंधकारमय नहीं हो सकता। इससे यह भी साबित हुआ है कि हमारे राजनीतिक वैचारिक मतभेद जितने गहरे हों, एक दूसरे की हम भले जितनी आलोचना करें, अंततः आपदा का सामना करने के लिए सब काम करेंगे। ऐसे भाव और व्यवहार वाले जनसमूह का सरकारी-गैर सरकारी तंत्रों पर प्रभाव भी पड़ता है। आखिर 2-3 दिनों में ऑक्सीजन पैदा करने वाले प्लांट इसी देश में तैयार हो रहे हैं। जिस तंत्र की हम आलोचना करते हैं और सही करते हैं वही इस काम को भी अंजाम दे रहा है। सामाजिक दूरी और अपनी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए लोगों द्वारा उसमें भी यथासंभव सहयोग करने की तस्वीरें आ रहीं हैं। तो कामना करिए और उम्मीद भी रखिए कि इसी तरह का सामूहिक आचरण देश का बना रहेगा। हां, ऐसे व्यवहार केवल आपदा, विपत्ति और संकट के समय तक ही सीमित न रहे, सामान्य दिनों में भी दिखे। पहले आपदा से निपटें और फिर इस चरित्र को स्थाई भाव बनाने के लिए काम करें।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः11009, मोबाइलः9811027208, 8178547992

 

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