शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

लोकतंत्र के मन्दिर में अमर्यादित शब्दों की पार होती सीमा

 

बसंत कुमार

वर्ष 2014 में जब श्री नरेंद्र मोदी जी पहली बार सांसद बन कर आये तो लोकसभा में प्रवेश करते समय सीढ़ियों पर दंडवत प्रणाम करके यह आभास दे दिया कि देश के लोकतंत्र का यह मन्दिर श्रद्धा का स्थान है और इस वजह से एक उम्मीद यह जगी थी कि लोकतंत्र के इस मंदिर में अब वाद-विवाद और परिचर्चा का स्तर पुरानी बुलंदियों को छूने लगेगा क्योंकि विगत कुछ वर्षो में संसद में परिचर्चा का स्तर काफी गिर गया था। हम सभी जानते हैं कि पं. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में सदन में परिचर्चा का स्तर बहुत उच्च कोटि का हुआ करता था, पर सभी का भ्रम उस समय टूट गया जब देश के सूचना मंत्री अनुराग ठाकुर को एक सभा में अल्पसंख्यक समाज के विरुद्ध यह नारा लगाते हुए सुना गया "देश के इन गद्दारों को गोली मारो सालों को" अब प्रश्न यह है कि देश में यदि कोई गद्दार है तो उसके लिए पुलिस और न्यायालय है उसके लिए मंत्री को गला फाड़ने की जरूरत क्या है। देश की राजनीति में अटल जी, आडवाणी जी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज अरुण जेटली जैसे नेता थे जिन्होंने दशकों तक विपक्ष की राजनीति की पर कभी भी किसी नेता के विरुद्ध अमर्यादित टिप्पणी नहीं की।

यहां तक कि एक बार एक युवा सांसद अटल बिहारी ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कटु आलोचना की पर पंडित नेहरू युवा सांसद की इस आलोचना से नाराज नहीं हुए अपितु अटल जी के पास जाकर उनकी पीठ थपथपाकर शाबासी देते हुए कहा कि तुम एक दिन इस देश के प्रधानमंत्री अवश्य बनोगे और पंडित नेहरू की भविष्यवाणी चार दशक बाद सही हुई। इसी तरह संसद में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और अटल जी के साथ खूब नोक-झोक होती थी पर कई बार ऐसे अवसर आये जब इंदिरा जी ने देश हित में संसद को सुचारू रूप में चलाने हेतु अटल जी से सहयोग मांगा और अटल जी ने पूरा सहयोग किया पर आजकल जब हमारी सेना दुश्मन के क्षेत्र से सर्जिकल स्ट्राइक करती है तो विपक्ष इसके सबूत मांगता है इससे देश के बाहर देश की छवि धूमिल होती है।

अभी कुछ दिन पूर्व महिला आरक्षण बिल के लिए संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया गया और सभी दलों के समर्थन से यह बिल पारित भी हो गया पर इसी बीच लोकसभा में घटी घटना ने सभी को हदप्रद कर दिया, लोकसभा में बोलते हुए दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी ने एक मुस्लिम सांसद को मुल्ले आतंकवादी न जाने क्या क्या कह दिया, हो सकता है कि देश में कुछ मुस्लिम आतंकवादी हो सकते हैं पर एक मुस्लिम सांसद को आतंकवादी कहना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है। अगर सभी मुस्लिम आतंकवादी हैं तो कलाम साहब, बिस्मिल्ला खां, अब्दुल हमीद, इकबाल आदि को क्या कहेंगे, हमारे लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा में वाद-विवाद, परिचर्चा की उच्च परम्परा रही है। हमारे नेताओं ने जीवन में उच्च आदर्श स्थापित किए हैं, इस कारण सुभाष चन्द्र बोस के नाम के सामने नेताजी विशेषण लगाया जाता था पर अब हम यदि किसी के नाम के आगे नेता शब्द लगाएं तो इसे कटाक्ष माना जाता है इसलिए जो लोकसभा में हुआ उस पर अफसोस किया जाना चाहिए।

जाति और सम्प्रदाय को लेकर संसद के अंदर जहर उगलने की घटना यह पहली बार नहीं हुई है, वर्ष 1987 में केन्द्र में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी और उनके एक मंत्री प्रो. के. के. तिवारी ने सदन में बहस के दौरान वरिष्ठ दलित सांसद राम धन को चमार की औलाद कहा और इनके इस कथन पर कांग्रेस ने तिवारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। मनबढ़ तिवारी ने तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के विषय में आपत्तिजनक शब्द कह दिए वह बात अलग है कि ज्ञानी जैल सिंह के रुख के कारण के. के. तिवारी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया। जाति और धर्म की राजनीति अपनी जड़ें इतनी गहरी जमा चुकी है कि क्षेत्रीय दल तो दूर अब राष्ट्रीय पार्टियां भी इससे अछूती नहीं रह गई हैं। इस घटना में जिस सांसद ने एक मुस्लिम सांसद के लिए आतंकवादी जैसे शब्द का उल्लेख किया उसे सजा देने के बजाय राजस्थान विधानसभा में गुर्जर समुदाय के वोटों के खातिर विशेष टास्क दिया गया है, प्रश्न यह है की दौसा क्षेत्र में सचिन पायलट जो कि एक प्रभावशाली गुर्जर नेता हैं, उनकी टक्कर का भाजपा के पास और कोई गुर्जर नेता नहीं है जो सौम्य और शालीन हो। वैसे भी भाजपा (पूर्व में जनसंघ) का इतिहास रहा है कि यह अपनी राष्ट्रवादी नीतियों और रीतियों के बल पर सत्ता में आने का प्रयास करती रही है।

वर्ष 1965-66 में उप्र की जनपद जौनपुर की संसदीय सीट पर चुनाव हो रहे थे और वहां से जनसंघ के टिकट पर जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष व एकात्म वाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय चुनाव लड़ रहे थे और उनके प्रतिद्वंदी के रूप में कांग्रेस के राजदेव सिंह थे। एक दिन उनके चुनाव का कार्यभार संभाल रहे राजा यादवेंद्र दत्त दुबे ने पं. दीनदयाल उपाध्याय जी को सलाह दी कि जौनपुर ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है आप एक बार ब्राह्मणों की एक सभा कर लें और जाति के नाम पर वोट मांग लें आप यह चुनाव जीत जाएंगे। इस पर पंडित जी बोले ऐसा करके मैं चुनाव तो अवश्य जीत जाऊंगा पर मेरा सिद्धांत सदैव के लिए हार जाएगा और परिणाम यह हुआ कि वे चुनाव हार गए और वे कभी लोकसभा सांसद नहीं बन पाए पर उनका सिद्धांत आज भी अमर है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हीं के दल के एक सांसद ने मजहब को लेकर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया कि पूरा संसद सन्न रह गया। आश्चर्य की बात है कि इनके पीछे बैठे पूर्व मंत्री डॉ. हर्षवर्धन उन्हें चुप कराने के बजाय हंस रहे थे।

21वी शताब्दी में हमारी एक बड़ी उपलब्धि रही है कि हमने पुराने संसद भवन के स्थान पर एक नए संसद भवन का निर्माण कर लिया है पर हम क्या पुराने संसद भवन में वर्षों तक हुई शालीनता भरी परिचर्चा, वाद- विवाद के स्थान पर नए संसद भवन में इस प्रकार की निम्न स्तरीय परिचर्चा और वाद-विवाद की शुरुआत कर देंगे। संसद में वाद-विवाद और परिचर्चा के गिरते हुए स्तर पर सभी राजनीतिक दलों को सोचना होगा।

(लेखक भारत सरकार के पूर्व उप सचिव हैं।) M-9718335683

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