शनिवार, 28 दिसंबर 2019

जनता के बीच भाजपा का महाअभियान

 

अवधेश कुमार

तो भाजपा अब नागरिकता कानून के समर्थन में जनता के बीच उतर गई है। हर जिले में रैली, 10 दिनों में तीन करोड़ घरों तक नागरिकता कानून समझाने के लिए पहुंचना तथा 250 पत्रकार वार्तायें। यह कोई छोटा अभियान नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि अगर घोषणा के अनुसार नीचे स्तर तक कार्यकर्ताओं ने काम किया तो देश में जहां तक भाजपा का संगठन है वहां कोई परिवार नागरिकता कानून पर उनके विचार की पहुंच से नहीं छुट सकता। जो बच जाएंगे उनको रैलियों के माध्यम से संबोधित किया जाएगा। उससे भी जो छूटेंगे उन तक पत्रकार वार्ता करके मीडिया के द्वारा पहुंचा जाएगा। वास्तव में जिस तरह का विरोध इस कानून को लेकर हो रहा है, लोगों के अंदर भ्रम और गलतफहमी पैदा की जा रही है, असामाजिक एवं उपद्रवी तत्व जैसी हिंसा कर रहे हैं तथा विरोधी राजनीतिक पार्टियां इसका पूरा लाभ उठाने की रणनीति पर काम कर रहीं हैं उसमें भाजपा का पार्टी के स्तर पर औपचारिक रुप से सक्रिय न होना हैरत में डालने वाला था। लोग यह प्रश्न उठा रहे थे कि आखिर भाजपा इतना होने तक भी केवल टीवी बहसों या मीडिया में कुछ बयान देने तक सीमित क्यों है? पार्टी इनके समानांतर सड़कों पर उतर क्यों नहीं रही है?

 ये प्रश्न अस्वाभाविक नहीं थे। विरोधी पार्टियां भारत बंद बुला रहीं हैं तो कहीं राज्य बंद तो कहीं धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। उनका लोकतांत्रिक तरीके से राजनीतिक प्रत्युत्तर न देने से कई प्रकार के भ्रम कायम हो रहे थे। एक साथ विरोध के सभी पहलुओं को मिला दें तो तस्वीर यह बन रही थी कि नागरिकता संशोधन कानून का देश में समर्थन है ही नहीं। यह संदेश भी निकल रहा था कि भाजपा ने जानबूझकर देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमानों के खिलाफ कानून बना दिया है और भविष्य में उनके लिए और समस्यायंे पैदा करने जा रही है। अभी एनआरसी आया नहीं लेकिन कोई कह रहा था कि भारतीय मुसलमानांे में भी जिनके पास कोई परिचय पत्र नहीं होगा ़उनको नागरिक नहीं मानकर पहले डिटेंशन कैंप में रखा जाएगा फिर देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। राजनीतिक दुराग्रह से परे होकर निष्पक्षता से विचार करने वाला कोई भी इसे स्वीकार नहीं कर सकता। लेकिन एक बार जब झूठ और अफवाह बल पकड़ लेता है तो उसका सामना कठिन हो जाता है। इसी बीच ममता बनर्जी जैसी नेत्री ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस मामले पर जनमत संग्रह तक की नासमझी भरी मांग कर दी। परिणाम यह हुआ कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुआटेरस को बयान देना पड़ा। कांग्रेस की विदेशी शाखाओं ने कई जगह विदेश स्थित भारतीय उच्चायोगों-दूतावासों के सामने प्रदर्शन किया। यह भी सच है कि भारत में राजनीतिक दलों से परे एक बड़ा वर्ग जिनमें पत्रकार, बुद्धिजीवी, एनजीओ, एक्टििविस्ट, वकील, अकादमीशियन, लेखक... आदि नरेन्द्र मोदी सरकार का घोर विरोधी है। उन्हें भी मौका मिल गया। इस कारण यह देश से विदेश तक बड़ा मुद्दा बन चुका है। अमेरिका में 2-2 की वार्ता तक में यह मुद्दा उठ गया।

इससे सरकार के लिए चुनौतियां बढ़ गईं। हालांकि मामला एकदम सरल और मानवीय है तथा सरकार का कदम सही है। विभाजन के बाद जो गैर मुस्लिम पाकिस्तान में रह गए वो किसी न किसी उम्मीद से ही रुके होंगे। जब वो उम्मीदें पूरी नहीं हुईं यानी उनके लिए धर्म, परंपरा, संस्कृति का पालन करना असंभव हो गया, धार्मिक आधार पर उनके खिलाफ अत्याचार होने लगे, जीना मुहाल हो गया, लाखों को अपना धर्म छोड़ने को विवश होना पड़ा तो वे वहां से यह सोचकर कि उनका देश तो भारत ही है भाग कर आने लगे। पाकिस्तान बंटने के बावजूद बांग्लादेश से भी यह प्रक्रिया रुकी नहीं। ऐसे लोगों के प्रति भारत का स्वाभाविक दायित्व बनता था कि हम उनको गले लगाएं। नागरिकता कानून में संशोधन द्वारा यही हुआ है। जो काम वर्षों पहले होना चाहिए था और एक क्रम के रुप में जारी रहना चाहिए था वह काफी देर से हुआ। जो लोग इसके लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे थे उनको कल्पना ही नहीं थी कि इसका विरोध भी हो सकता है। जाहिर है, जो विरोध हुआ उसमें कुछ भ्रम और गलतफहमी से उकसाए गए निर्दोष लोग सड़कों पर उतरे, तो कुछ प्रायोजित थे और लंबे समय से विरोध के लिए छटपटा रहे कुछ सांप्रदायिक, असामाजिक एवं उपद्रवी तत्व इसका लाभ उठा रहे हैं।

इसमें सत्तारुढ़ पार्टी से एक साथ कई प्रकार की भूमिका अपेक्षित थी। सत्ता में होने के कारण उसकी प्राथमिक जिम्मेवारी देश में शांति और सद्भावना कायम करने की है। इसके लिए भी कई स्तरों पर काम करना था। इसमें प्राथमिकता भयानक रुप से भंग हो चुके कानून व्यवस्था को कायम करना है। आरंभिक उहापोह के बाद इस दिशा में कमर कसा गया। कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है लेकिन जहां भाजपा का शासन है वहां जिम्मेवारी इसी की है। तो कार्रवाई हो रही है। गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों को एडवायजरी जारी की गई। दूसरी भूमिका लोगों का भ्रम और गलतफहमी दूर करने की है। सरकार ने इसके लिए समाचार माध्यमों में नागरिकता संशोधन कानून से संबंधित विज्ञापन दिए। प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री ने अपनी जनसभाओं में भ्रम और गलतफहमी दूर करने के वक्तव्य दिए। फिर गृहमंत्रालय की ओर से नागरिकता संशोधन कानून और भावी एनआरसी को लेकर विस्तृत जानकारी सार्वजनिक की। किंतु जितने व्यापक पैमाने पर भ्रम फैल चुका है उसके सामने यह पर्याप्त नहीं है। भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष ने सभी सांसदों को पत्र लिखकर अपने क्षेत्र में ऐसे शरणार्थियों की सभाएं करवाने, स्वयं विचार गोष्ठियां आदि आयोजित करने को कहा। सभी सांसदों एवं मंत्रियों को सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने को भी कहा गया। इस लेखक को जो जानकारी मिली उसके अनुसार भाजपा की सोच यह थी कि ऐेसे माहौल में पार्टी को सड़कों पर उतार दिया गया तो लाख हिदायतों के बावजूद अगर असामाजिक तत्वों ने उत्तेजित करने की कोशिश की और कार्यकर्ताओं का धैर्य जवाब दे गया तो कुछ भी हो सकता है। इसलिए पहले कानून और व्यवस्था को ठीक करो, असामाजिक, सांप्रदायिक, उग्रवादी तत्वों पर शिकंजा कसो, जितना संभव है लोगों का भ्रम दूर करो, थोड़ी शांति स्थापित हो जाए तो फिर इसके बाद पार्टी को तैयारी के साथ उतरा जाए।

लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि बिना पार्टी को उतारे आम जनता तक पहुंचने तथा राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक लाभ उठाने की रणनीति के तहत चलाए जा रहे अभियानों का सामना नहीं किया जा सकेगा तो फिर पूरी शक्ति से पार्टी को उतार दिया गया है। भाजपा 18 करोड़ सदस्य संख्या होने का दावा करती है। इसमें यदि संघ परिवार के अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं को जोड़ देें तो यह संख्या काफी बड़ी हो जाती है। यदि विरोध करने वालों के समानांतर एक साथ भाजपा नेतृत्व यह कह देता कि हमारे लोग भी सड़कों पर उतर जाएं तो फिर कैसा दृश्य पैदा होता इसकी आसानी से कल्पना की जा सकती है। तो जनता तक पहुंचने तथा राजनीतिक पार्टियों और विरोधियों से सीधा आमने-सामने के टकराव से बचते हुए उनको करारा जवाब देने का अभियान हमारे सामने है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली में अपने भाषण द्वारा नागरिकता कानून के बारे में अपना मत स्पष्ट करके संदेश दे दिया कि इस अभियान में कितनी प्रखरता है। उसमें अपने कदम को सही ठहराते तथा उस पर अड़े रहने का संकेत देते हुए मुसलमानों का भ्रम और गलतफहमी दूर करने के जितने तथ्य और तर्क हो सकते थे, उनका विश्वास पाने के लिए जो कुछ कहा जा सकता था सब कुछ प्रधानमंत्री ने दिए और कहा। विरोधियों पर तीखा हमला किया एवं कानून व्यवस्था भंग करने वालों को समझाया भी और उनको भड़काने वालों को लताड़ा भी। नागरिकता कानून की बात रखते ही जिस तरह पूरे मैदान में हलचल मची वह इस बात का प्रमाण है कि इसे व्यापक समर्थन है।

चूंकि संघ अलग से नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जनता तक जाने का कार्यक्रम चला रहा है, इसलिए यह माना जा सकता है कि यह अभियान पूरे संगठन परिवार का कार्यक्रम हो गया है। इस तरह के देशव्यापी अभियान का असर होना निश्चित है। हां, मोदी, अमित शाह, भाजपा एवं संघ को लेकर कायम वातावरण को देखते हुए कितना असर होगा यह कहना जरा मुश्किल है। किंतु, जैसे पहले मामला एकपक्षीय हो गया था वैसा नहीं रहेगा। रैलियों में उमड़ते जन समूह से यह संदेश सामने आने लगा है कि नागरिकता संशोधन कानून के पक्ष में ज्यादा लोग हैं। इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भागकर आए लोगों के अंदर जो डर पैदा हुआ होगा वह भी दूर होगा। हालांकि शासकीय पार्टी होेने के कारण भाजपा के कार्यकर्ताओं को ध्यान रखना होगा कि वो ऐसा कुछ भी न बोलें या करें जिनसे शांति और सद्भाव कायम रखने के लक्ष्य पर असर पड़े।

अवधेश कुमार, ईः30,गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208 

मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

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