बुधवार, 16 सितंबर 2015

प्रधानमंत्री का कांग्रेस पर तीखे हमले का अर्थ

अवधेश कुमार

चुनावी सभाओं को छोड़ दें तो प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहला अवसर है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगातार कांग्रेस पर करारा हमला किया है। प्रधानमंत्री के भाषणों से ऐसा लगता है मानो उनने कांग्रेस से आरपार की लड़ाई आरंभ कर दिया है। प्रधानमंत्री के ऐसे वक्तव्य का अर्थ यह भाजपा के लिए सूत्र वाक्य एवं दिशाा निर्देश हो गया। भोपाल से लेकर चण्डीगढ़, सहारनपुर एवं ऋषिकेश तक प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कांग्रेस को हवालाबाज कहने से लेकर नकारात्मक राजनीति कर किसी तरह सरकार को काम न करने देने का रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने नाम भले न लिया लेकिन मां और बेटा बोलकर सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी की भी तीखी आलोचना की है। जाहिर है, हम यहां से कांग्रेस बनाम सरकार या भाजपा के नए टकराव की शुरुआत देख सकते हैं। किंतु प्रश्न है कि आखिर प्रधानमंत्री ने इस तरह का आक्रामक रुख क्यों अपनाया है? क्या इसे अनावश्यक मान लिया जाए या फिर इसके पीछे कुछ न्यायसंगत कारण भी हैं?

इसका उत्तर इस बात पर निर्भर करेगा कि हम ललित मोदी प्रकरण से लेकर व्यापम एवं संसद के मानसून सत्र के दौरान तथा उसके बाद कांग्रेस के अति हमलावर रवैये को किस तरह देखते हैं। विपक्ष के नाते कांग्रेस को सरकार की आलोचना करने, उसे घेरने, उससे प्रश्न पूछने का अधिकार है और उसका यह दायित्व भी है। लेकिन संसदीय लोकतंत्र में इस अधिकार और दायित्व की कुछ मर्यादाएं हैं। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाध्ंाी ने कांग्रेस कार्यसमिति में सरकार को और नाम न लेते हुए नरेन्द्र मोदी को हवाबाज कहा। कांग्रेस कह रही है कि प्रधानमंत्री को भाषा में गरिमा का पालन करना चाहिए। प्रधानमंत्री को हवाबाज कहना कौन सी गरिमा का पालन है? इसके जवाब में मोदी ने उसी शैली में भोपाल में कांग्रेस का नाम लिए बिना हवालाबाज कह दिया। सरकार में होने और खासकर राज्य सभा में अल्पमत में होने के कारण संसद के संचालन और कई विधेयकों को पारित कराने के लिए विपक्ष से सहयोग आवश्यक है, इसलिए अंदर से न चाहते हुए भी वाणी और व्यवहार में संयमित रहना पड़ता है। किंतु एक समय के बाद यह सीमा और संयम टूटता है।

प्रधानमंत्री के बयान के तीन अर्थ हैं। एक, उन्हें यह अहसास हो गया है कि कांग्रेस किसी सूरत में अपने विरोध और संसद को बाधित करने के रास्ते से नहीं हटेगी। तो उसको कठघरे में खड़ा करने की शुरुआत उन्होेंने कर दी है। यह कांग्रेस को दबाव में लाने की रणनीति हो सकती है। भोपाल में उन्होंने कहा कि हमने जो काला धन पर कड़े कानून बनाए हैं उससे हवालेबाज डर गए हैं। उन्हें पैरों के नीचे धरती खिसकती नजर आ रही है। इसलिए ये हवालाबाजों की जमात लोकतंत्र में रुकावटें पैदा करने का प्रयास कर रही है। इसके द्वारा मोदी ने यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि कांग्रेस उनसे पूछती है कि कालाधन विदेश से लाने का जो वायदा था उसका क्या हुआ? तो हमला सबसे बड़ा बचाव है की तर्ज पर कांग्रेस को हवालाबाज कहकर यह संदेश दिया कि कालाधन जमा करने वाले तो ये ही हैं, और हमारे कड़े कानून से डर गए हैं इसलिए वो हमें काम करने नहीं दे रहे। यह सामान्य आरोप नहीं है। प्रधानमंत्री अगर कांग्रेस को हवालाबाज कह रहे हैं तो उनके पास कुछ नेताओं या फिर उनके निकट के लोगों के विदेशों में कालाधन के बारे में सूचनाएं आईं होंगी और उसकी पुष्टि के बाद उनका नाम भी सामने आ सकता है। इसलिए इसे केवल शब्दावली बनाम शब्दावली नहीं कह सकते।

दूसरे, सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाने पर विचार कर रही है। कांग्रेस का रवैया बदलने वाला नहीं लग रहा है। तो फिर उस पर तीखे हमले से इतना आरोपित करो कि कम से दूसरे कुछ दल तो विधायी कार्यों में सरकार का साथ दें या संसद चलाने में सहयोग करें। वैसे भी संसद को बाधित करने में विपक्षी एकता के कारण ही अनेक नेता व पार्टियां कांग्रेस के साथ थीं, लेकिन इस तरह स्थायी रुप से संसद चलने देने के पक्ष में वामदलों को छोड़कर शायद ही कोई होगा। नरेन्द्र मोदी की राजनीति और काम करने की अपनी शैली है। वो बहुत ज्यादा कोरी भावुकता में काम नहीं करते। कांग्रेस का रुख उनकी समझ में आ गया है। इसलिए उन्होने विषय को जनता के न्यायालय में डालने की रणनीति अपनाई है। मसलन,ऋषिकेश में उन्होंने कहा कि इनको जनता ने पराजित किया तो ये जनता से बदला ले रहे हैं, जनता के विकास का काम नहीं होने दे रहे। हमको जनता जनार्दन ने चुनकर बहुमत की सरकार चलाने का आदेश दिया है तो हमारा काम जनता जनार्दन की सेवा करनी है। कांग्रेस उसे करने नहीं दे रही। इस तरह कांग्रेस को जन विरोधी साबित करने के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा हमला है।

उन्होंने भोपाल में कहा कि आज देश की जनता के सामने कहना पड़ रहा है कि संसद का सत्र हमने समाप्त नहीं किया था। हम समझते थे कि वे (विरोधी) जनता की भावना को समझेंगे। अगर जनता ने पराजय किया है तो पांच साल तक फैसले का सत्कार करेंगे। हम आशा करते थे कि कुछ बाद माहौल शांत होगा तो संसद चल पड़ेगी, महत्वपूर्ण निर्णय हो जाएंगे। मैं सार्वजनिक रूप से जिनको पराजय मिली है, जनता ने जिन्हें नकारा है उनसे आग्रह करता हूं कि हम लोकतंत्र के गौरव के लिए, आर्थिक संकट में हिंदुस्तान अकेले टिका हुआ है और भारत के पास आगे बढ़ने का जो अवसर मिला है उसे हाथ से न जाने दिया जाना चाहिए। संसद में निर्णय को आगे बढ़ने दें। लेकिन हमारी बात नहीं मानी जा रही है। बड़े भारी मन से, दुखी मन से संसद समाप्त करना पड़ा। तो यह जनता के बीच मामले को ले जाना है कि देखिए जो अवसर हमारे सामने है उसे नष्ट करने पर कांग्रेस इसलिए तुली हैक्योंकि वह पराजय पचा नहीं पा रही है। उन्होंने तो यहां तक कहा कि कांग्रेस मानती ही नहीं कि एक वंश के अलावा किसी को शासन करने का अधिकार है,इसलिए वह हमें बरदाश्त नहीं कर रही। यह हमला सीधा-सीधा सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी पर है। यानी वे बता रहे हैं कि ये माता पुत्र ही समस्या की जड़ हैं और कांग्रेस इनकी इच्छा के अनुसार ही चल रही है। जनता इसे किस तरह लेती है इसे देखना होगा, लेकिन कांग्रेस ने इसके विरुद्व प्रधानमंत्री पर तीखा हमला बोल दिया है और उनके लिए हवाबाज के बाद दगाबाज शब्द प्रयोग किया है।

प्रधानमंत्री की आक्रामकता का तीसरा कारण जो समझ में आता है वह है बिहार का चुनाव। बिहार के चुनाव के समय इस तरह की बातों का जवाब न देना सही राजनीतिक रणनीति नहीं हो सकती है। सोनिया गांधी ने 30 अगस्त की गांधी मैदान की सभा में अपना पूरा भाषण मोदी एवं सरकार पर केन्द्रित किया था। तो उसका भी जवाब प्रधानमंत्री को देना था। वैसे भी अगर किसी शब्दावली पर आप चुप रह जाएं तो उसे कांग्रेस के लोग हाथों-हाथ लपककर चलाने लगते हैं। एक बार राहुल गांधी ने सूटबूट की सरकार कह दिया जिसका कोई तार्किक अर्थ नहीं था तो आज तक कांग्रेस के लोग सूटबूट की सरकार कह रहे हैं। अब सोनिया गांधी ने हवाबाज कहा और यह शब्दावली भी चल गई। मोदी के लिए आवश्यक था कि वे अपने कार्यकर्ताओं को उसके जवाब में कोई शब्दावली दें और उन्होंने हवालाबाज दे दिया। वैसे भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाध्ंाी यदि हवाबाज कह रहीं थीं तो उनको या कांग्रेस को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि इसका जवाब नहीं दिया जाएगा। अगर कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता कोई बात कहतीं हैं तो उनका निशाना जिस पर है वह भाजपा का सबसे बड़ा नेता है तो जवाब उसके द्वारा देने से मामला जरा बराबर का हो जाता है। सोनिया गांधी कह रही हैं कि मोदी को मध्यप्रदेश, राजस्थान और विदेश मंत्री के मुद्दे पर जवाब देना चाहिए।

जैसा आरंभ में कहा गया आरोप लगाने, सरकार को घेरने जवाब लेने की भूमिका विपक्ष की है लेकिन वह संसद को बाधित करके इससे क्या पाएगी? सुषमा स्वराज को जवाब देने में संसद का सत्र निकल गया। लोकसभा अध्यक्ष को 3 अगस्त को एक साथ 25 कांग्रेसी सांसदों को निलंबित करने का अभूतपर्व कदम उठाना पड़ा।  उसके बाद कांग्रेस लोकसभा अध्यक्ष तक पर आरोप लगाने लगी। राज्य सभा में जिस दिन नव गणतंत्र भूटान के सांसद आए थे उस दिन भी कांग्रेस ने संसद चलने देने की अपील नहीं मानी। यह तो संभव नहीं है कि आप विपक्ष में हैं तो जैसे चाहिए सरकार के विरोध में बोलिए,सबको कठघरे में खड़ा करिए और आपको कोई कुछ जवाब ही न दें। हालांकि मोदी ने कुछ और बातें कहीं हैं। उदाहरण के लिए  उन्होेने कहा कि लोकतंत्र में हर राजनीतिक दल का काम होता है अगर विजय मिली है तो जनता के लिए खप जाना और पराजय मिली है तो उसे सबक लेकर व्यवहार करना। इन सबमें हमें लोकतंत्र को मजबूत करने का काम करना होता है।

बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने मोर्चा खोल दिया है। अब मान मनौव्वल का समय गया। आप जिस भाषा में बात करते हैं उसी में आपको जवाब दिया जाएगा। अब देखना होगा यह टकराव कहां तक जाता है। लेकिन देश के लिए यह दुखद और चिंताजनक स्थिति होगी। देश की सबसे पुरानी और संसद में अभी भी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी को यह निर्णय करना है कि वह स्थायी टकराव में ससंद को बाधित करती रहेगी या फिर संसद को चलने देकर सरकार के विरुद्ध जहां संघर्ष करना होगा वहां सड़कों पर यह कार्य करेगी। मोदी ने उसके सामने अब पहले की तरह बातचीत का विकल्प छोड़ा नहीं है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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