श्याम कुमार
विगत अनेक वर्षों से लखनऊ नगर निगम पर मानो राहु की छाया
पड़ी हुई है। वहां जो मुखिया तैनात हो रहे हैं, उनकी ताकत के
आगे पूरा नगर बौना प्रतीत होता है। पिछली बार मायावती पूर्ण बहुमत लेकर जब
मुख्यमन्त्री बनीं तो उनके दाहिने हाथ सतीश चन्द्र मिश्र की तूती बोलने लगी थी।
सतीश चन्द्र मिश्र के सहपाठी रह चुके शैलेश कुमार सिंह लखनऊ नगर निगम के नगर
आयुक्त बनाए गए। चूंकि वह सतीश चन्द्र मिश्र के सहपाठी रह चुके थे, इसलिए सतीश चन्द्र मिश्र की ताकत का शैलेश कुमार सिंह में भी समावेश हो गया।
उस समय उनके जलवों का कोई जवाब नहीं था। आम नागरिकों की तो उन तक पहुंच थी ही नहीं, बड़े-बडे़ दिग्गज भी उनके आगे पानी भरते थे। वह कभी नगर निगम के मुख्य कार्यालय
में नहीं बैठते थे। उनकी ताकत देखकर महापौर डॉ. दिनेश शर्मा भी
अपनी इज्जत अपने हाथ में बचाकर रखते थे। शैलेश कुमार सिंह के बारे में जगजाहिर था
कि वह केवल मुख्यमन्त्री, शशांक शेखर सिंह, सतीश चन्द्र
मिश्र व नगर विकास मन्त्री नकुल दुबे के फोन उठाते थे। एक बार पंचम तल के एक
शक्तिशाली अधिकारी ने शैलेश कुमार सिंह को फोन मिलवाया तो आदत के अनुसार उन्होंने
नहीं उठाया। पंचम तल के अधिकारी के निजी सचिव ने कई बार फोन मिलाया, किन्तु फोन नहीं उठा। जब निजी सचिव ने अपने अधिकारी को यह बात बताई तो
उन्होंने निर्देश दिया कि एक व्यक्ति को फोन मिलाने के लिए बिठा दो और वह तब तक
फोन मिलाता रहे, जब तक कि शैलेश कुमार सिंह फोन न उठा लें। जब उन
अधिकारी को शैलेश कुमार सिंह की ताकत का पता लगा तो उन्होंने चुप्पी साधने में
गनीमत समझी।
मायावती के मुख्यमन्त्रित्व काल में प्रायः हर विभाग से
धन-दोहन की क्रिया होती थी। लखनऊ नगर निगम भी उस क्रिया का शिकार हुआ और उसका सारा
धन जैसे चलनी में छनता गया। यहां तक कि हजरतगंज के सुन्दरीकरण की जो योजना बनी, उसमें भी जमकर भ्रष्टाचार हुआ। लखनऊ नगर निगम के अनेक विभागों के लोग खूब
‘धन्य’ हुए। एक वरिष्ठ अभियन्ता के बारे में तो आम चर्चा थी कि उन्होंने करोड़ों
कमाए। नतीजा यह था कि लखनऊ के केवल अतिविशिष्ट इलाकों में काम होते थे, शेश पूरे लखनऊ में ऊबड़-खाबड़ सड़कें, जर्जर विद्युत-व्यवस्था, बजबजाते नाले
आदि नागरिकों को खून के आंसू रुलाते रहे।
अखिलेश-सरकार के आने पर प्रदेश में जो खुशी की लहर दौड़ी, उसमें लखनऊ नगर निगम का उद्धार होने की भी यहां के नागरिकों में आशा जगी थी।
किन्तु कमाल फिर हुआ और बाद में नगर आयुक्त पद पर ऐसे व्यक्ति आसीन हो गए, जिनकी ताकत शैलेश कुमार सिंह-जैसी मानी जा रही है। न उनसे कभी बात हो पाती है
और न भेजे गए पत्रों पर वह कोई कार्रवाई करते हैं। शहर पहले ही-जैसा दुर्दशाग्रस्त
है। सड़कें, नाले, विद्युत-व्यवस्था आदि की जर्जर स्थिति नागरिकों को पूर्व की भांति खून के आंसू
रुला रही है। बेचारी जनता की न कहीं कोई सुनवाई है, न कहीं कोई
सुनने वाला है।
(श्याम कुमार)
सम्पादक, समाचारवार्ता
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