गुरुवार, 27 जून 2024

पाक सेना कदम दर कदम अपना खोया वर्चस्व हासिल कर रही है

आर सी गंजू
आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के नाम पर पाक सेना ने एक नई आतंकवाद नीति तैयार की और नागरिक प्रतिष्ठान से अंतिम मुहर लगवाई।संघीय मंत्रिमंडल ने 25 जून, 2024 को ऑपरेशन अजम-ए-इस्तेहकम सहित राष्ट्रीय कार्य योजना की केंद्रीय शीर्ष समिति द्वारा लिए गए निर्णयों को मंजूरी दी। इसमें कहा गया कि ऑपरेशन अजम-ए-इस्तेहकम पाकिस्तान में स्थायी स्थिरता के लिए एक बहु-क्षेत्रीय, बहु-एजेंसी, संपूर्ण-प्रणाली राष्ट्रीय दृष्टिकोण है।
लेकिन, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई), जमीयत-ए-उलेमा इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ), अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और अन्य विपक्षी दलों ने सैन्य अभियान पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने मांग की कि संसद को इस तरह का कोई भी गंभीर निर्णय लेने से पहले विश्वास में लेना चाहिए था।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने नेशनल असेंबली (एनए) में अज्म-ए-इस्तेहकाम ऑपरेशन की आलोचना करते हुए कहा कि 2010 से सैन्य अभियानों ने केवल अस्थिरता को जन्म दिया है। उन्होंने कहा, "हम 2010 से ऑपरेशन की आड़ में पीड़ित हैं। यह स्थिरता नहीं है, हम यह चीन के लिए कर रहे हैं।" उन्होंने आगे सरकार के गलत निर्णय को उजागर किया कि 25,000 से 30,000 अफगान अपने देश लौट गए, लेकिन 40,000 से 50,000 पाकिस्तान वापस आ गए। 
पूर्व सेना प्रमुख जनरल बाजवा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवादियों को प्रवेश करने से रोकने के लिए एक बाड़ लगाई गई थी और अब इसे हटा दिया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान की नई पहल, ऑपरेशन अज्म-ए-इस्तेहकाम का भी समर्थन किया है, जिसका उद्देश्य उग्रवाद का मुकाबला करना है अपने नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा इस तरह से करना जो कानून के शासन और मानवाधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा दे, और सुरक्षा के मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ हमारी साझेदारी में हमारे उच्च स्तरीय आतंकवाद विरोधी वार्ता शामिल है, जिसमें मजबूत आतंकवाद विरोधी क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को वित्तपोषित करना और यूएस-पाकिस्तान सैन्य-से-सैन्य जुड़ावों की एक श्रृंखला का समर्थन करना शामिल है"। इस, अमेरिकी समर्थन ने पाक सेना की छवि को और बढ़ा दिया है और आतंक के खिलाफ युद्ध के नाम पर वित्तीय सहायता प्राप्त करने में मदद की है।
विभिन्न सैन्य अभियानों के बावजूद, आतंकवाद का खतरा अधिक उग्रता के साथ लौट आया है। आतंकवाद विरोधी (सीटी) अभियानों की एक श्रृंखला के बाद अल-मिज़ान (2002), ज़लज़ला (2008) शेर दिल, राह-ए-हक और राह-ए-रास्त (2007-2009), राह-ए-निजात (2009), ज़र्ब-ए-अज़्ब (2014) और रद्दुल फ़साद (2017) 2001 में जनरल परवेज मुशर्रफ की सैन्य नेतृत्व वाली सरकार ने अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण के मद्देनजर पूर्व जनजातीय क्षेत्रों में तथाकथित ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम शुरू किया था। 2024 की पहली छमाही में हालात और भी खराब हो गए, खासकर केपी और बलूचिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में तेजी से वृद्धि हुई। उग्रवाद का फिर से उभरना सीटी की रणनीति में गंभीर खामियों को उजागर करता है। 
आतंकवाद की ताजा लहर ने वास्तविक खतरे से निपटने के लिए एक सुसंगत नीति की अनुपस्थिति को उजागर किया है। सबसे खतरनाक उभरता परिदृश्य यह चिंता बढ़ रही है कि ऑपरेशन एक विशेष जातीय समूह को लक्षित करेगा। यह भी एक कारण रहा है कि केपी में सभी प्रमुख राजनीतिक दल, जिनमें सत्तारूढ़ पीटीआई और केंद्र में गठबंधन सरकार का समर्थन करने वाले लोग शामिल हैं, ऑपरेशन पर सवाल उठा रहे हैं। यह सभी हितधारकों के बीच आम सहमति के प्रधानमंत्री के दावे का खंडन करता है। ऐसा लगता है कि मौजूदा शासकों ने पिछली नीतिगत विफलताओं से कोई सबक नहीं सीखा है।

नीट सहित अहम प्रतियोगिताओं में पेपर लीक मामले दुर्भाग्यपूर्ण

 बसंत कुमार

अभी आम चुनावो से कुछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक का मामला थमा ही नहीं था कि पूरे देश में मेडिकल की पढ़ाई के लिए प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा नीट में भारी गड़बड़ी और पेपर लीक के मामले ने पूरे देश में मेडिकल में प्रवेश के इच्छुक छात्रों के मन में निराशा और अशांति फैला दी है। पेपर लीक की समस्या सिर्फ उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे पिछड़ा समझे जाने वाले राज्यों तक ही सीमित ही नहीं है। पेपर लीक की समस्या एक महामारी की तरह एक संगठित रूप से संचालित मशीनरी की तरह काम कर रही है, जिसमे छात्र माफिया, कोचिंग सेंटर, प्रिंसिपल और अधिकारी तक शामिल है। जम्मू से लेकर उत्तर प्रदेश, कर्नाटक से लेकर गुजरात और अरुणाचल प्रदेश तक पिछले 5 वर्षो में पेपर लीक के 41 मामलो की आधिकारिक मामलो में पुष्टि हुई है। महामारी की तरह फैली हुई इस बीमारी को रोकने में शिक्षा बोर्ड, कर्मचारी चयन आयोग और अन्य भर्ती एजेंसिया पूरी तरह से असफल हुई है।

पता चला है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अध्यादेश की जरिये इन मामलों को रोकने के लिए आजीवन कारावास समेत एक करोड़ रुपए तक के फाइन का प्रावधान कर दिया है, अब देखना है कि इतनी सख्त सजा के प्रावधान के बावजूद परीक्षाओं के पेपर लीक के मामलो में कमी आयेगी या नहीं। अब यह समस्या एक सामाजिक समस्या बन गई है, चुनाव के समय हर राजनीतिक दल अपने अपने समर्थको को मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषण करता है जिससे उन्हें वोट मिल सके। पर कोई भी दल युवाओ को इस तरह का आश्वासन देने की हिम्मत नहीं करता कि हम देश में युवाओ को प्रतियोगी परीक्षाओं में निष्पक्ष पारदर्शिता पूर्ण परीक्षा दे पायेंगे। इस मामले में संघ लोक सेवा आयोग को छोड़कर सारे भर्ती बोर्ड या भर्ती एजेंसियां असफल रहे हैं। वर्ष 2022 में राजस्थान में धोखाधड़ी विरोधी कानून भी पारित किया गया और इसमे सजा के तौर पर आजीवन कारावास के प्रावधान को शामिल किया गया। भारतीय संसद द्वारा फरवरी 2024 में इसी तरह का कानून पारित करने के बावजूद आज भी इस अपराध में सैकड़ों लोग गिरफ्तार किए गए है।

युवाओं के लिए पेपर लीक की घटनाएं पीड़ादायक और विनाशकारी है, यह जिंदगी में रुकावट, तनाव पूर्ण परिवार और तार तार हो जाने वाले को जन्म देती है और राज्य की निष्पक्ष रूप में भर्ती परीक्षा आयोजित करने में असमर्थता प्रदर्षित करती हैं और ये राज्य की सेवा में आयी अक्षमता भी दर्शाती है। जब केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सांसद के रूप में शपथ लेने जा रहे थे तो पूरे विपक्ष में नीट नीट के नारे लगाकर उन्हें हूट किया, जो उचित नहीं है। यह सच है कि सिविल सर्विस और आईआईटी के पश्चात् नीट देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा मानी जाती है और इसके पेपर लीक होना और कुछ सेलेक्टेड लोगों को ग्रेस मार्क देना बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है।

इस समस्या के प्रति सभी दलों को पार्टी लाइन से हटकर संजीदगी से रोकने की आवश्यकता है क्योंकि एक दूसरे पर दोषारोपण से इस समस्या से छुटकारा नहीं मिलने वाला। विपक्षी गठबंधन इंडिया की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि पिछले पांच वर्षो में राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस के कार्य काल में सबसे अधिक पेपर लीक हुए और उसी कांग्रेस के सांसद शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को नीट नीट करके हूट कर रहे थे, वहीं इंडिया गठबंधन के सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल के तीन वरिष्ठ नेता लालू यादव, तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी पर लैंड फॉर जाब स्कैम्प् में चार्ज शीट दाखिल हो चुकी है। ऐसी घटनाओ से व शिक्षित युवा जिनके पास न पैसा है न जुगाड़ है, निराश और हताश होकर आत्म हत्त्या जैसे कदम उठाते है।

एक समय लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियो के लिए पदोन्नति में आरक्षण के लिए बहस चल रही थी और इस बिल के विरोध में बोलते हुए समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा कि यदि प्रमोशन में भी आरक्षण दिया गया तो हमे कुशल और दक्ष सचिव और कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारी नहीं मिलेंगे और मेरे विचार में श्री मुलायम सिंह यादव के विचारों पर बहस या चर्चा की जा सकती है और आरक्षण का विरोध करने वाले यह भी तर्क देते है कि यदि 30% अंक प्राप्त करने वाले डॉक्टर बनेंगे तो मरीजो का इलाज कैसे होगा। पर कोई माई का लाल इस बात पर प्रश्न खड़ा नहीं करता कि पैसे और रसूक् के बल पर निकम्मे लोग पेपर लीक कराकर डॉक्टर, पुलिस कर्मी और रेल कर्मी बन जायेंगे तो मेरिट का रोना रोने वालो का क्या होगा और तब हमारे पुलिस और प्रशासन की दक्षता पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा। यदि हमें पुलिस और प्रशासन को दक्ष बनाना है तो प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक और सोल्वर गैंग को जड़ से उखाड़ देना होगा, इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को अपने मतभेद भुलाकर इस समस्या का हल निकालना होगा। जहां आज हमने पूरे विश्व के समक्ष एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में सफलता पाई है पर वहीं हम सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए आयोजित परीक्षाओं में पूरी निष्पक्षता और पारदर्षिता स्थापित करने में पूरी तरह से असफल रहे है और यही हमारा दुर्भाग्य है।

देश में शिक्षित युवा सरकार द्वारा आउट सोर्सिंग के नाम पर संविदा के आधार पर भर्ती किए गए कर्मचारियों से काम चला रही प्रैक्टिस से हताश और निराश है और दूसरी ओर पेपर लीक और पेपर सोल्वर् गैंग के कारण वे बेहद निराशा जनक हाल में पहुँच गए हैं, आखिर विकास का ढोल पीटने वाली सरकार इन युवाओ के लिए कब सोचेगी।

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