गुरुवार, 17 अगस्त 2023

अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष बनाम सरकार

अवधेश कुमार 

लोकसभा में तीन दिनों तक चले अविश्वास प्रस्ताव पर बहस ने आगामी 2024 लोकसभा चुनाव तक की राजनीतिक ध्वनियों की दिशा तय कर दी है। राजनीति में सामान्य रुचि रखने वालों में से भी शायद ही कोई हो जिसने अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा अवसर मिलने पर लाइव न देखी या सुनी हो। पार्टियों और नेताओं के लिए यह केवल एक दूसरे को घेरने, उत्तर देने, व्यंग्य और कटाक्ष करने का ही अवसर नहीं होता, बल्कि नेताओं -कार्यकर्ताओं -समर्थकों को बोलने व तर्क करने के लिए विषय-वस्तु, शब्दावलियां भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है। कम से कम भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने बोलते समय इस पहलू का अवश्य ध्यान रखा। बावजूद यह संभवतः पहला अविश्वास प्रस्ताव था जिसमें सरकार की ओर से बोलने वालों को विपक्ष के तथ्यों ,तर्कों व आरोपी की काट के लिए  शोध या छानबीन कर विषयवस्तु लाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। विपक्ष चाहे जितनी अपनी वाहवाही करे कि उसने प्रधानमंत्री को बोलने के लिए विवश कर दिया, सच यह है कि उनकी तैयारी ऐसी नहीं थी जिससे सरकार को घेरा जा सके। विपक्ष के नेताओं का एक भी भाषण नहीं जिसे सुनने के बाद लगे कि सरकार के लिए इसका उत्तर देना कठिन या असंभव होगा या वह निरुत्तर हो जाएंगे। आप आरोप लगाएं, हमले करें और उनमें अधिकृत तथ्य नहीं हो तो संसद की बहस में उसके मायने नहीं होते। सच कहा जाए तो सरकार की ओर से विशेषकर गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण या प्रधानमंत्री तक ने अपनी ओर से ही संबंधित विषय रखे ताकि वह सब संसद के रिकॉर्ड में आ जाए और रुचि रखने वालों को उपलब्ध हो।

आईएनडीआईए के गठन के बाद 26 दलों के संगठित विपक्षी समूह के लिए यह नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल का सबसे बड़ा अवसर था जिसमें वह स्वयं की क्षमता प्रमाणित कर सकते थे। वे साबित कर सकते थे कि हमारे पास इतनी योग्यता है जिससे हम सरकार को उन्हीं के तथ्यों और तर्कों से कटघरे में खड़ा कर सकते हैं, देश के भविष्य को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समानांतर हर विषय पर हमारे पास ऐसी रूपरेखा और सोच के साथ व्यक्तित्व भी हैं जो बेहतर सरकार चला सकते हैं। क्या कोई स्वीकार करेगा कि आईएनडीआईए इन कसौटियों पर स्वयं को खरा उतारने में सफल हो सका? कांग्रेस की ओर से तरुण गोगोई ने अवश्य अपने भाषण में विषयवस्तु रखें, लेकिन वह इतना प्रभावी नहीं था जिनसे सरकार को उत्तर देने में कठिनाइयां पैदा हो। राहुल गांधी जब दूसरे दिन बोलने के लिए खड़े हुए तो सोचा गया कि भारत जोड़ो यात्रा तथा सजा के कारण चार महीने से ज्यादा समय तक लोकसभा सदस्यता से वंचित रहने के बाद उनके भाषण में अवश्य तथ्यों के साथ कटाक्ष एवं आक्रमण होंगे। आखिर आईएनडीआईए की सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष सक्रिय नेता होने के कारण संसद में आगे बढ़कर अपने वक्तव्य से उन्हें ही नेतृत्व संभालना था। जब आप 37 मिनट के भाषण में 15 मिनट से ज्यादा भारतयात्रा पर बोलेंगे और शेष सरकार को देशद्रोही से लेकर भारत माता की हत्या करने वाले बाबा बताने में ही समय लगा देंगे तो आपके पास मणिपुर से लेकर आर्थिक, सांस्कृतिक, रक्षा, विदेश नीति, आंतरिक सुरक्षा आदि पर बोलने के लिए समय कहां रहेगा। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी का वक्ताओं में नाम भी नहीं था। ऐसा लगता है जब गृह मंत्री अमित शाह ने तंज कसा तो नाम शामिल किया गया। ऐसा लगा जैसे वे प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक, अशोभनीय शब्दों और तुलनाओं की पोटली लेकर उपस्थित हुए हो। परिणामत: भाजपा के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त से उनकी भीड़ंत होते-होते बची। वीरेंद्र सिंह ने सदन में अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांग लिया पर अधीर रंजन इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्हें न केवल निलंबन झेलना पड़ा बल्कि मामला विशेषाधिकार समिति के पास चला गया है।

सरकार की ओर दृष्टि डालिए तो दो भाषणों पर सबसे ज्यादा ध्यान था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह। संसद के अंदर गृह मंत्री अमित शाह ने अभी तक के भाषणों से योग्यता और क्षमता को बार-बार प्रमाणित किया है। भाजपा के विरोधी टिप्पणीकार भी कह रहे हैं कि उनका भाषण सबसे प्रभावी था क्योंकि उसमें हर उन पहलुओं से संबंधित तथ्यात्मक विवरण और तर्क थे, हर ऐसे प्रश्न के उत्तर थे जो विरोधी लगातार उठाते । इसके साथ उन्होंने अपनी ओर से और ऐसी बातें रख दीं जिनसे सरकार का पक्ष मजबूत होता हो और भाजपा के नेताओं - कार्यकर्ताओं को तो बोलने के लिए विषय वस्तु मिलते ही हो देश के आम लोगों को भी लगे लगे कि वाकई सरकार ने हर स्तर पर काम किया है और आगे भी कर रही है। मणिपुर पर उन्होंने करीब आधा घंटा बोला जिसमें उत्तर-पूर्व की कुछ और कुछ बातें भी थीं। वे अपने भाषण से यह संदेश देने में सफल रहे कि विपक्ष के सारे आरोप निराधार व राजनीति से प्रेरित हैं। मणिपुर में हिंसा भड़कने के 24 घंटे के अंदर ही सरकार ने वे सारे कदम उठाएं और अभी भी सक्रिय है ताकि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो।

अधीर रंजन चौधरी का भाषण उनके अगले दिन था। वे गृज्ह मंत्री के भाषण पर फोकस कर विपक्ष की दृष्टि से अपनी बात रखते तो लगता कि वाकई विपक्ष का कोई नेता सरकार को उसके तथ्यों के आईने में घेरने के लिए तैयारी किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषण कला पर कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। पूरे अविश्वास प्रस्ताव का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है कि प्रधानमंत्री ने अपने व्यंग्य, हास्य व कटाक्षों के साथ उपमा,अलंकारों आदि का प्रयोग कर यह साबित किया कि कठोर से कठोर बातें और तीखे हमले के लिए उग्र होकर गुस्सैल शब्दावलियों का प्रयोग करना हमेशा आवश्यक नहीं होता। उन्होंने विपक्ष विशेषकर कांग्रेस की बखिया उधेड़ दी किंतु बोलने की शैली ऐसी थी जिसमें हंगामा व विरोध का अवसर नहीं मिला। समर्थक हो या विरोधी प्रधानमंत्री को सुनते समय बार-बार हंसी आती थी। उदाहरण के लिए उन्होंने आईएनडीआईए नाम को लेकर यही कहा कि आपने इसके लिए भी एनडीए चुरा लिया तथा आपका इंडिया घमंडइयआ है ,जिसमें दो आई एक हम और दूसरा परिवार के लिए है। यह सुनने में सरल लगता है लेकिन ऐसे कटाक्ष के लिए भी काफी सोचना पड़ा होगा। उन्होंने यूपीए की जगह आईएनडीआईए रखने पर भी तंज कसा कि आपने यूपीए का क्रिया कर्म और श्राद्ध कर दिया जिस पर मैं थोड़ी देर से संवेदना प्रकट कर रहा हूं। लेकिन आप खंडहर पर प्लास्टर चढ़ा कर जश्न मना रहे हैं। इंडिया नाम रखने से आप इंडिया नहीं हो सकते हैं और इसके लिए उन्होंने दो पंक्तियां सुनाई –'दूर‌ युद्ध से भागते नाम रखा रणधीर, भाग्यचंद की आज तक सोई है तकदीर।' इस पर ठहाके तो लगने थे।  

अविश्वास प्रस्ताव का उपहास उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि आपको मैंने 2018 में काम दिया था और मैं आभारी हूं कि आपने उसे पूरा किया। यानी आपने मेरे कहने पर 2023 में अविश्वास प्रस्ताव लाया लेकिन थोड़ी तैयारी करके तो लाते, अब मैं फिर आपको काम दे रहा हूं कि 2028 में आप लाइए लेकिन थोड़ी तैयारी करके लाइए। इस आपा खोने की शैली में हमला किया जा सकता था, लेकिन इस शैली का प्रभाव लंबे समय तक रहेगा। हालांकि उन्होंने समय-समय पर आक्रामकता भी प्रदर्शित की, पर अपने पद और उत्तरदायित्व का ध्यान रखा। देश को यह कहते हुए संबोधित किया कि यह कालखंड महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत और विश्व में आर्थिक महाशक्ति बनकर उठकर खड़ा हो रहा है तथा ऐसी कई स्थितियां हैं जिनसे अगले 1000 सालों का आधार बनेगा। इस कारण सबको अपने-अपने दायित्व का पालन करना है। विपक्ष ने सबसे बड़ी गलती बहिर्गमन में जल्दबाजी करके किया। प्रधानमंत्री मणिपुर पर नहीं बोल रहे हैं तो इसी का बहाना बनाकर निकल जाओ। उसके बाद प्रधानमंत्री ने मणिपुर और पूर्वोत्तर पर भी बोला। यह विश्वास दिलाते हुए कि मणिपुर में भी शांति का सूरज चमकेगा और मिलकर वहां इसके लिए प्रयास करने की अपील की।

उन्होंने मणिपुर के लोगों से भी अपील की। इस तरह प्रधानमंत्री का अविश्वास प्रस्ताव पर उत्तर देश के नेता का उत्तर था जिसमें विपक्ष की आलोचना थी, राजनीति में संसद के अंदर और बाहर तनाव और उग्र हिंसाजनक शब्दों को देखते हुए उसे व्यंग्य और हास्य से ठंडा करने की कोशिश थी तो देश के अंदर आत्मविश्वास पैदा करने का भाव भी। चूंकी विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर भी मैदान खाली छोड़ दिया था इसलिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री एवं दो-तीन दूसरे नेताओं के लिए अपने तरीके से बात रखने का पूरा अवसर था। आईएनडीआईए  गठबंधन के बाद अगर अविश्वास प्रस्ताव को लेकर नेताओं की बैठक होती और नेताओं को अलग -अलग विषय बोलने के लिए दिए जाते तो स्थिति दूसरी होती। विपक्ष के व्यवहार से यही संदेश निकला  कि राजनीतिक विवशताओं के चलते वे साथ आ गये, पर उनके बीच सरकार से मुकाबले के लिए भी समन्वय और सामंजस्य का अभाव है। हालांकि सरकार की ओर से भी कई वक्ताओं के भाषण प्रभावी और स्तरीय नहीं थे, पर कुल मिलाकर समन्वय और सामंजस्य के साथ परिश्रम और तैयारी की पूरी झलक थी।

पता- अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल 98911027208



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