शनिवार, 16 जुलाई 2016

पाकिस्तान के इस रवैये पर आश्चर्य कैसा

 

अवधेश कुमार

पाकिस्तान जिस तरह से पिछले कुछ दिनों में कश्मीर को लेकर हरकतें कर रहा है उससे पूरे भारत में स्वाभाविक ही गुस्से का माहौल है। प्रधनमंत्री नवाज शरीफ ने जिस तरह मंत्रिमंडल की विशेष बैठक बुलाकर मृत आतंकवादी को शहीद का दर्जा दिया एवं काला दिवस मनाने का फैसला किया वह भारत के आंतरिक मामले में स्पष्ट हस्क्षेप है। पाकिस्तान के इस रवैये पर हैरत का कोई कारण नहीं है। इसके एक दिन पहले ही पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में जम्मू कश्मीर का मामला उठाया था। वैसे तो संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत सैयद अकबरुददीन ने पाकिस्तानी राजदूत मलीहा लोदी की बातों का जिस तरह से जवाब दिया उससे पाकिस्तान की मुहिम वहीं फिस्स हो गई। लेकिन आप देखेंगे कि हिजबुल मुजाहिदीन के कुख्यात आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के साथ ही पाकिस्तान की आवंछित हरकतें आरंभ हो गई थीं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने स्वयं बुरहान वानी की मौत पर प्रतिक्रिया दी, पाक विदेश मंत्रालय ने इस्लामाबाद स्थित हमारे उच्चायुक्त को वहां तलब किया गया तथा उसके एक दिन बाद पाक विदेश सचिव ने सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों के राजदूतों के सामने अपने नजरिए से कश्मीर की स्थिति को रखा वह उसकी मंशा को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त था। संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर मुद्दे को उठाना और भारत को आरोपित करना उसका अगला कदम था। हो सकता है शहीद का दर्जा देने के बाद पाकिस्तान कुछ और हरकत करे। एक ओर तो नवाज शरीफ और उनकी सरकार का बयान यह होता है कि हम आतंकवाद के किसी स्वरुप का विरोध करते हैं और दूसरी ओर वे आतंकवादी के मारे जाने को मुद्दा बनाते हैं। इसका अर्थ क्या है? इससे तो भारत का यह आरोप सही साबित होता है कि जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पूरी तरह पाकिस्तान प्रयोजित है। इस प्रकार कह सकते हैं कि पाकिस्तान ने स्वयं को ही निर्वस्त्र किया है।

 नवाज शरीफ हाल ही में लंदन में ओपन हार्ट सर्जरी कराकर पाकिस्तान लौटे हैं। वे बुरहान वानी की मौत से इतने आहत थे कि उन्होंने रविवार यानी 10 जुलाई की देर रात में बयान जारी किया। उनके कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि कश्मीरी नेता बुरहान वानी और अन्य लोगों की मौत पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने गहरा शोक व्यक्त किया है। वह इस बात से बेहद दुखी है कि जम्मू-कश्मीर में निर्दाेष नागरिकों पर गैरकानूनी तरीके से बल प्रयोग किया जा रहा है।... इस तरह के दमनकारी कदमों से जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनके जनमत संग्रह के अधिकार से विमुख नहीं किया जा सकता है। भारत को कश्मीरियों के मानवाधिकारों का ख्याल रखना चाहिए और इस बारे में अपनी अंतरराष्ट्रीय वचनबद्धता का अनुपालन करना चाहिए। हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदीन का प्रमुख सैयद सलाउद्दीन ने यदि बुरहान वानी की मौत पर पाक अधिकृत कश्मीर में रैली की तो यह समझ में आने वाली बात है। बुरहान हिजबुल मुजाहिद्दीन का कमांडर था। उसके मरने से सलाहुद्दीन कमजोर हुआ है और उसको धक्का पहुंचा होगा। हाफिज सईद जो कि भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने का समर्थक है और उसके लिए हर तरह का प्रयास करता रहता है उसकी भूमिका से किसी को आश्चर्य नहीं हो सकता। हाफिज सईद ने कहा कि पाकिस्तान सरकार को बुरहान वानी की मौत का पूरा लाभ उठाना चाहिए। क्या लाभ उठाना चाहिए? यानी माहौल गर्म है उसमें पेट्रौल डालो। और आतंकवादियों को वहां भेजो ताकि वे अस्थिरता पैदा करे तथा दूसरी ओर इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाओ। कश्मीर मुद्दे को पूरी तरह उबाल पर लाकर इसे 1990 के दशक में पहुंचा दो। तो क्या नवाज शरीफ सरकार हाफिज सईद जैसे आतंकवादी के सुझाव पर अमल कर रही हैं? क्या हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकवादी संगठन का उनको समर्थन है? ये दोनों सवाल उठेंगे।

एक तर्क यह भी है हाल के दिनों में भारत के साथ दोस्ती की बात करने से नवाज शरीफ को अपने देश में इतनी आलोचनाएं झेलनी पड़ीं हैं कि वो दबाव में हैं। यह भी संभव है सेना और राजनीतिक प्रतिष्ठान के बीच प्रतिस्पर्धा हो कि कौन कश्मीर पर ज्यादा आक्रामक है। वे अतिवाद की सीमा तक चले गए। प्रधानमंत्री द्वारा फिर संयुक्त राष्ट्र के राजदूत द्वारा एक आतंकवादी को नेता कहना विश्व बिरादरी के बीच क्या संदेश देता है? हमारे उच्चायुक्त को तलब करना तो राजनय की सीमा का भी अतिक्रमण था। पाकिस्तान के विदेश सचिव ने 11 जुलाई की रात इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त गौतम बम्बावले को तलब किया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में हो रही मौतें रुकनी चाहिए और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। भारत की ओर कई स्तरों पाकिस्तान को सख्त जवाब मिल गया है। पहले गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि पाकिस्तान अपने देश में हो रहे मानव अधिकार उल्लंघन की फिक्र करे। हमारे अंदरूनी मामलों में दखल न दे। दूसरी ओर विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि हमने भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर के हालात पर पाकिस्तान के बयान देखे हैं। ये बताते हैं कि पाकिस्तान का आतंकवाद से जुड़ाव जारी है और वह राज्य की नीति यानी स्टेट पॉलिसी के तौर पर इसका इस्तेमाल करता है। हम पाक को सलाह देते हैं कि वो अपने पड़ोसियों के अंदरूनी मामलों में दखल देने से बचे। सैयद अकबरुद्दीन ने तो पाकिस्तान को लताड़ ही लगाई।

इस वर्ष के छः महीने में करीब 60 आतंकवादी मारे गए है। कभी प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा वक्तव्य आतंकवादी के मरने पर नहीं आया था और न उसके बाद की हरकतें हुईं थी। यह तो साफ है कि पाकिस्तान की हरकतों से भारत प्रभावित होने वाला नहीं है। आतंकवादियों के साथ रक्त और लौह की नीति से निपटा जाएगा। आतंकवादियों का समर्थन करने वाले हिंसा करेंगे तो सुरक्षा बल उनका उचित तरीके से जवाब देंगे। भारत या कोई देश यह नहीं कर सकता कि आतंकवादियों को खून बहाने का मौका दे, उनके समर्थकों को अलगाववाद फैलाने का भी मौका दे और उसकी पूरी सुरक्षा एजेंसियां वहां मूक दर्शक बनी रहें। मानवाधिकार उनका भी है जिन पर आतंकवादी गोलियां चलाते हैं। वैसे भी पाकिस्तान की दुनिया में कोई सुनने वाला नही। सुरक्षा परिषद का कोई सदस्य एक बयान तक देने नहीं आया। यहां तक पाकिस्तान का दोस्त चीन भी इस मामले में पड़ने से बचता है। अमेरिका ने तो साफ कह दिया कि यह भारत का अंदरुनी मामला। तो पाकिस्तान इस मामले में मुंह की खा चुका है।

 किंतु नवाज शरीफ से तो यह पूछा जाना चाहिए कि 22 वर्ष का बुरहान वानी नेता कैसे हो गया? उसने एक साथ तीन पुलिसवालों की हत्या की। उसके बाद तीन सीमा सुरक्षा बल के जवानों के साथ फिर तीन पुलिसवालों की हत्या की। उस पर 12 प्राथमिकियां दर्ज हैं। उसके नेतृत्व की प्रेरणा से कितने हमले हुए। यह तो भारत का दुर्भाग्य है कि बिना जाने कुछ पत्रकार यह मान रहे हैं कि बुरहान तो केवल सोशल मीडिया पर सक्रिय था और हिंसा में उसकी अंतर्लिप्तता नहीं थी। वो कर्नल राय की शहादत भूल गए है जिनकी कवरेज स्वयं उन्हीं मीडिया के पुरोधाआंे ने की थी और उनकी बेटी को पिता को सेल्यूट करते दिखाया था। आज उसी बेटी ने सुरक्षा जवानों को सैल्यूट किया, क्योंकि उसे लगा कि उसके पिता का हत्यारा मारा गया। एक आतंकवादी जो हथियारों के साथ अपनी तस्वीरें, वीडियो वायरल कराता है...युवाओं को बंदूक उठाने की अपील करता है और युवा उसकी ओर खींचते भी हैं उसको यदि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नेता कहते हैं तो फिर आतंकवादी किसे कहेंगे?यह प्रकरण भारत के लिए पहले से ज्यादा सचेत होने का संदेश दे रहा है। नवाज शरीफ का आतंकवादी के समर्थन में, अलगाववादियों के समर्थन में इस तरह से उतरना पाकिस्तान की नीतियों का प्रकटीकरण है जो आगे और कई आयाम ग्रहण कर सकता है। अलगाववादियों एंव आतंकवादियों को केवल पाकिस्तान का सरेआम समर्थन ही तो चाहिए अराजकता और हिंसा पैदा करने के लिए।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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