मंगलवार, 4 जून 2013

दाऊद-छोटा राजन: दोस्त कैसे बने दुश्मन?

हैदर अली 

दाऊद इब्राहिम के अपराध की दुनिया में डॉन बनने के सफर में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसमें से बहुत कुछ लिखा जा चुका है पर इसके आगे बढऩे से पहले छोटा राजन पर चर्चा कर लेना जरूरी है। क्योंकि छोटा राजन अपराध की दुनिया में दाऊद का वो हमराज है जिसका जिक्र किए बिना दाऊद का अपराधिक इतिहास पूरा होना नामुमकिन है। 
छोटा राजन यानि राजेन्द्र सदाशिव निखलजे का जन्म 1956 में मुंबई के पूर्वी उपनगर चेंबूर में स्थित तिलक नगर हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाले एक मध्यमवर्गीय दलित परिवार में हुआ । उसके पिता नगर निगम में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। बचपन से ही दादागिरी के शौक और बुरी संगत के शिकार राजेन्द्र ने पढऩे-लिखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली इसलिए वह बारहवीं जमात से आगे न पढ़ सका। राजेन्द्र ने मुंबई शहर में तेजी से बढ़ रहे दादागिरी के कारोबार और हाजी मस्तान, करीम लाला और वरदा भाई की बढ़ती ताकतों से प्रेरणा लेकर दादागिरी में कदम रख दिया।
चेंबूर और घाटकोपर उन दिनों वरदा भाई के सहायक और मिल मजदूर नेता रहे राजन नायर के प्रभाव वाले इलाके थे। गली कूंचों में मारपीट और दो नंबर के छोटे मोटे अपराध करते-करते राजेन्द्र 'बड़ा राजन यानि राजन नायर के गिरोह के लिये सिनेमा टिकट ब्लैक करने लगा।
राजेन्द्र की दिलेरी और बहादुरी बड़ा राजन के कानों तक पहुंची तो उन्होंने निखल्जे को अपने करीब लाते हुए वरदा भाई के स्वर्ण तस्करी के धंधे से जोड़ दिया निखल्जे को चेंबूर व घाटकोपर में गिरोह के सामान्य कार्यों की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई।
बड़ा राजन के वरदहस्त के कारण निखल्जे को 'छोटा राजन कहा जाने लगा। 80 का दशक शुरू होते होते राजन सुपारी लेकर हत्या करने के धंधे में आ गया। यही वह समय था जब मुंबई पुलिस की कड़ी कार्यवाही के बाद वरदा भाई का सफाया हो यगा था। हाजी मस्तान और करीम लाला के सितारे भी गर्दिश में थे और हाजी मस्तान की सत्ता संभालने वाले दाऊद की करीम लाला के वारिसों से जबरदस्त गैंगवार छिड़ी हुई थी। ऐसे में अपनी अलग सत्ता चला रहे बड़ा राजन ने जब दाऊद का साथ लेकर पठानों के खिलाफ जेहाद छेड़ा तो बड़ा राजन को जान गंवानी पड़ी।
गरू की हत्या के बाद छोटा राजन को एक विश्वसनीय और ताकतवर सहारे की तलाश थी जो उसे दाऊद के रूप में मिल गया। दाऊद से गहरी दोस्ती के पीछे सिर्फ यहीं वजह नही थी कि वह अपराध की दुनिया में तेजी से उभर रहा था वरन एक वजह ये भी थी कि उसके साथ राजन का भावनात्मक लगाव हो गया था।
दरअसल छोटा राजन तिलक नगर की जिस बिल्डिंग में रहता था उसी की बगल वाली बिल्डिंग में रहती थी सुजाता। राजन की बचपन की इस प्रेयसी को 1988 में राजन के साथ शादी होने से पूर्व ही दाऊद ने अपनी मुंह बोली बहन बना लिया था। राजन की पत्नी सुजाता दाऊद को राखी बांधने
लगी। पत्नी और दोस्त के बीच बंधी पवित्र रिश्ते की इसी डोर ने राजन और दाऊद को इतना करीब ला दिया था कि 1988 में जब दाऊद को पुलिस के दबाव में दुबई भागना पड़ा तो उसने मुंबई में फैले अपने तमाम अपराधिक साम्राज्य का कमांडर बना दिया।
इस दौरान मुबई में एक और माफिया सरगना अरूण गवली सिर उठाने लगा था। उसके साथ अमर नाईक, दशरथ रोहणे और तान्या कोली के गिरोह थे। इन गिरोहों का काम हफ्ता वसूली, अपहरण और ठेके पर हत्याये करना था। दरअसल दाऊद के मुस्लिम होने के कारण अरूण गवली व साथी गिरोह दाऊद के साथ राजन की भी जान के दुश्मन बन गए थे। इसी के चलते दोनों गिरोह की खूनी गैंगवार में कई दर्जन छोटे बड़े अपराधी मारे गए।
1992 के आते-आते दाऊद और छोटा राजन में भी मतभेद गहराने लगे। इसके कई कारण थे। दरअसल दाऊद जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह जरूर बन गया था। मगर एक डर उसे हमेशा सताता रहता था वो था अपनो से मात खाने का डर। उसके आधिपत्य में पलने वाले गिरोह व उसके सरगना कहीं इतने ताकतवर न बन जांए कि भविष्य में उसके लिए चुनौती खड़ी कर दें। इसी के चलते दाऊद एक सोची समझी रणनीति के तहत अपने अधीन सभी गिरोंहो को आपस में भिड़वाकर रखता था। 
अपनी इसी योजना के तहत दाऊद ने दुबई में बैठे मुंबई में शिवसेना पार्षद व गिरोह बाज खीम बहादुर थापा की हत्या करवा दी। थापा छोटा राजन का करीबी था। छोटा राजन को इसकी जानकारी मिली कि थापा की हत्या में दाऊद के नेपाल में बसे शूटर सुनील सांवत उर्फ सौत्या का हाथ है।
एक और ऐसी घटना हुई जिसने दाऊद और राजन के बीच खाई पैदा कर दी। हुआ यूं कि राजन के एक बेहद करीबी तैय्यब भाई को दाऊद के शूटरों ने मार डाला। छोटा राजन लगातार हो रही घटनाओं से बेहद चिंतित था, लिहाजा वह भाई से बात करने स्वयं दुबई पहुंचा और अठारह मंजिली पर्ल बिल्डिंग के ग्यारहवें तल पर बने डी. कंपनी के आलीशान ऑफिस में दाऊद भाई से मिला तो भाई ने बताया कि तैय्यब की लापरवाही और मुखबिरी के कारण उसके करोड़ों के सोने से लदे दो जहाज कस्टम वालों ने पकड़ लिये।
दाऊद ने सभी राजन के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वह मुंबई छोड़कर उसके दुबई कारोबार को संभाल ले मगर राजन ने यह प्रसताव ठुकरा दिया और वापस मुंबई आ गया। दरअसल बाबरी मस्जिद ध्वस्त हो जाने के बाद दाऊद की पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आइ. से निकटता बढ़ गयी। और वह आई एस आई की साजिश का खिलौना बनकर इसके बदले में मुंबई बम विस्फोट की योजना बना रहा था।
ऐसे में जरूरी था कि मुंबई से दाऊद का एरिया कमांडर कोई कट्टर मुस्लिम हो, न कि छोटा राजन जैसा कोई हिन्दूवादी डॉन। यही कारण था कि राजन को किनारे कर अबू सलेम, मेमन बंधुओं को मुंबई में दाऊद भाई ने अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी थीं। छोटा राजन को स्पष्ट लगने लगा कि बहुत जल्द कोई बड़ा हादसा होने वाला है क्योकि खुद को किनारे किए जाने की दाऊद की रणनीति उसकी समझ में आने लगी थी। लेकिन मुंबई बम कांड से पहले ही एक ऐसी घटना हो गयी जिसने छोटा राजन और दाऊद के बीच दुश्मनी का बीज और गहरा बो दिया।
छोटा राजन लगातार अपने साथियों की हत्या से इस बदर बौखला गया कि उसने खबर मिलते ही दाऊद के विश्वासपात्र समझे जाने वाले पांच साथियों की मुंबई में एक ही दिन में हत्वा करवा दी। मुंबई समेत देश के कोने कोनें में फैले अपने साथियों अज्ञैर देश से बाहर के सूत्रों को तत्काल 'आपरेशन दाऊद पर काम बंद करके खुद के लिये काम करने के आदेश जारी कर दिये।
दाऊद और राजन दोनों की अटूट मित्रता रही थी । दोनों की एक दूसरे की कमजोरियों को बखूबी जानते थे। दाऊद जहां आदमियों के भरोसे काम चलाता है,वहीं राजन खुद एक शार्प शूटर तथा जिद्दी इंसान है। राजन ने मुंबई में अपना कमांडेट रोहित वर्मा को नियुक्त किया और खुद अपना ठिकाना मलेशिया के कुआलालमपुर में बनाकर वही से सैटेलाइट फोन के माध्यम से अपना कारोबार संचालित करना शुरू कर दिया।
इधर छोटा राजन ने दाऊद के शूटर सुनील सांवत से प्रतिशोध लेने के लिए सांवत की हत्या की सुपारी दे दी। सांवत दुबई में है,यह पता चलते ही राजन गिरोह ने सुनील सांवत को दिन दहाड़े हयात रिजेंसी होटल के सामने गोलियों से भून दिया। संयोग से उस समय दाऊद करांची में था जहां बेहद गोपनीय और सुरक्षित स्थान डिफेंस कालोनी में उसने अपना मुख्यालय बना लिया था। वहीं पर वह अपने परिजनों के साथ रह रहा था। उसे यंहा पर निजी अपराधियों के साथ आईएसआई का सुरक्षा कवच भी हासिल था। 
इधर 1993का घटनाचक्र बहुत तेजी के साथ घटा। आईएसआई के इशारे पर दाऊद ने मेमन बंधुओ,अबू सलेम और अपने गुर्गो की मदद से मुंबई में कई जगह ब्लास्ट करवा दिए जिसमें सैकड़ो लोग मारे गए। ब्लास्ट के बाद सक्रिय हुई खुफिया एजेंसियों के कारण मुंबई में दाऊद समेत सभी गिरोहों की अपराधिक गतिविधियां करीब एक साल तक बंद रही। इस बीच मुंबई का समूचा अंडरवल्र्ड साम्प्रदायिक आधार पर बंट गया था। अरूण गवली,अमर नाइक और छोटा राजन हिन्दूवादी डॉन के रूप में उभरकर सामने आये तो दाऊद की छवि आईएसआई के इशारे पर चलने वाले पाक परस्त मुस्लिम डॉन के रूप में उभरी। छोटा राजन के बारे में तो यह बात भी फैलने लगी कि उसने मुंबई ब्लास्ट के लिए दाऊद को सबक सिखाने के लिए भारतीय खुफिया एजेंसियों रॉ और आईबी को मदद करनी शुरू कर दी। माना जाता है कि राजन ने दाऊद के बारे में अक्सर कई महत्वपूर्ण सूचनाएं खुफिया एजेंसियों को मुहैय्या करवाई। छाटा राजन दाऊद का किस हद तक दुश्मन बन चुका था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने मुंबई ब्लास्ट को अंजाम देने वाले दाऊद और उसके समूचे गिरोह का खात्मा करने की सौंगध खा ली। छोटा राजन ने अपनी इस सौंगध का निभाया भी। दो साल के भीतर राजन ने दाऊद गिरोह के सत्रह लोगों की हत्या करवा दी। इन सभी के मुंबई ब्लास्ट में शामिल होने का शक था।
बहरहाल मुंबई ब्लास्ट के बाद दाऊद ने फिर से मायानगरी में अपना अपराधिक साम्राज्य फैलाना शुरू किया और इस बार उसने मुंबई का लेफ्टिनेंट बनाया अपने दाएं हाथ छोटा शकील को। लेकिन छोटा राजन के साथी रोहित वर्मा और शूटर गुरू सॉटम दाऊद गिरोह पर भारी पड़ते रहे। 1997 में उन्होंने बंगलौर में दाऊद के एक साथी थकीउद्दीन वाहिद की हत्या कर दी। दरअसल थकीउद्दीन वाहिद दाउद की ईस्ट-वेस्ट एयरलांइस का डाइरेक्टर था। उसकी हत्या से दाऊद का बडा झटका लगा। दाऊद की कमर तोडऩे के लिए छोटा राजन ने यहीं पर बस नही किया। उसके शुटरों रोहित वर्मा और गुरू सॉटम ने नेपाल में बसे वहां के सांसद मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या करवा दी। सांसद मिर्जा दिलशाद बेग ने सिर्फ नेपाल में दाऊद गिरोह को पनाह दिलवाता था वरन आईएसआई की आतंकवादी गतिविधियों और हथियार तस्करी का खास माध्यम भी बन गया था।
एक के बाद एक अहम लोगों की हत्या से दाऊद की कमर टूट गई थी। मुंबई बम कांड के एक और अभियुक्त पीलू खान की राजन गिरोह द्वारा हत्या के बाद छोटा शकील इस कदर बौखला गया कि पहले उसने पीलू खान के हत्यारे मंगेश पवार और फिर मुंबई में राजन के फाइनेंसर तथा भवन निर्माता ओम प्रकाश कुकरेजा की हत्या करवा दी। दरअसल राजन और दाऊद गिरोह में अब यह खूनी गैंगवार वर्चस्व की लड़़ाई को लेकर चल रही थी। मुंबई से हर वर्ष होने वाले 400 करोड़ के हफ्ता वसूली, शराब वेश्यावृत्ति जुएखाने और ठेके पर हत्याओं के कारोबार पर कब्जे के लिये दोनों गिरोह एक दूसरे को कमजोर करने में लगे हैं। तस्करी और जमीन पर कब्जे का धंधा ही दोनों गिरोह की रंजिश का मुख्य कारण है।
1993 में मुबई शहर में श्रृंखलावद्ध कम विस्फोट करवाकर सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले और खुद को अपराध जगत का सबसे बड़ा डॉन कहलवाने वाले दाऊद इब्राहिम के अपराधिक साम्राज्य को छोटा राजन के सात सालों में छिन्न-भिन्न कर दिया और उसके विश्वास पात्र खतरनाक साथियों को चुन-चुन कर खत्म करने का अभियान छेड़ा। इसी छोटा राजन के डर से आई.एस.आई के हाथों का खिलौना बने डॉन दाऊद इब्राहिम ने अब अपना मुख्यालय दुबई से हटाकर करांची पाकिस्तान में बना लिया था। मौत यानि छोटा राजन नाम की सिर पर लटकती तलवार को हटाने के लिये दाऊद इब्राहिम के इशारे पर उसके सबसे करीबी साथी छोटा शकील ने 14 सितम्बर 2000 को बैंकाक में हमले की साजिश रची। शकील ने इस हमले को बहुत ही सुनियोजित ढंग से अंजाम दिया। पर असफलता ही हाथ लगी। वह इस हमले से एक साथ कई शिकार करना चाहता था पर किस्मत ने साथ नहीं दिया और छोटा राजन बाल-बाल बच गया। हुआ यूं की बैंकाक के संभ्रात इलाके के कूटनीतिक एंक्लेव में बने चरनकोर्ट अपाट्मेंट में रोहित वर्मा के घर पर 14 सितम्बर 2000 की रात साढ़े नौ बजे जब शकील के आदमियों ने हमला किया तब छोटा राजन घर में मौजूद था। मगर इस दाऊद का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा के इस हमले में रोहित वर्मा व तीन अन्य लोग (पत्नी बेटी व नौकरानी) मारे गये जबकि छोटा राजन मात्र घायल हुआ और बच निकला। थाई पुलिस ने मात्र तीन दिनों के भीतर चार हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से एक थाई हमलावर 51 वर्षीय चवालित उर्फ रफीक अरूकियत समेत तीन पाकिस्तानी शूटर थे जिनमें 33 वर्षीय मोहम्मद सलीम, 36 वर्षीय शेरखान और 45 वर्षीय मोहम्मद युसुफ ने पूछताछ के बाद न सिर्फ अपना अपराध कबूल किया वरन इस बात पर अफसोस जताया कि छोटा राजन जिंदा बच गया। इसी के बाद से दाऊद और छोटा राजन के बीच एक-दूसरे का खात्मा करने की जंग चल रही हैं। यह जंग उसी वक्त खत्म हो सकती है जब दोनों में से किसी एक सरगना का अंत हो जाएं।
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