शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

क्या कहती है हंदवाड़ा गोलीकांड के बाद कश्मीर की अशांति

 

अवधेश कुमार

कश्मीर घाटी फिर अशांत एवं हिंसक हो रही है। श्रीनगर के अलावा कुपवाड़ा, गांदरबल, हंदवाड़ा, पुलवामा समेत कई जिलों में लोक आक्रामक एवं हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन क्यों? पहली नजर में देखने से ऐसा लगता है कि यदि सेना की गोलीबाड़ी में चार नवजवान मारे गए हैं तो लोगों का गुस्सा बिल्कुल स्वाभाविक है। यकीनन उन चारों नवजवानों की जीवन लीला बेवजह समाप्त हुई। किंतु इसके लिए क्या सेना को दोषी ठहराया जा सकता है? कतई नहीं। कुछ लोगों ने साजिश करके जानबूझकर ऐसी विकट स्थिति पैदा की जिसमें सेना के पास गोली चलाने के अलावा आत्मरक्षा का कोई उपाय ही नहीं था। भारी संख्या में आक्रोशित लोग सेना पर हमला कर रहे थे, उन पर पत्थर फेंक रहे थे और स्थिति की कल्पना आप खुद कर सकते हैं। सेना को लोगों को तितर-बितर करने के लिए गोली चलानी पड़ी और दुर्भाग्य से चार नवजवान मारे गए। दो वहीं मारे गए और दो बाद में अस्पताल में। सवाल है कि लोगों ने सेना पर उतना उग्र हमला क्यों किया?

इसी प्रश्न के उत्तर से यह पता चल जाता है कि कश्मीर घाटी में ऐसी शक्तियां सक्रिय हैं जो वहां हिंसा, अशांति एवं अस्थिरता पैदा करने के लिए किसी घटना को गलत मोड़ दे देतीं हैं। अफवाह फैलाया गया कि सेना ने एक छात्रा के साथ छेड़छाड़ किया है। उस छात्रा ने साफ कर दिया है कि उसके साथ एक स्थानीय व्यक्ति ने छेड़छाड़ किया और उसे पीटा। यहां तक कि पुलिस के सामने भी उसने पीटा। तो फिर यह झूठ किसने फैलाया और किसने लोगों को सेना पर हमले के लिए उत्तेजित किया? मेहबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार दिल्ली आईं थी प्रधानमंत्री सहित कुछ मंत्रियों से मुलाकात करने। उन्होंने रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर से भी मुलाकात की। मुलाकात के बाद दिल्ली में उन्होंने एक ही बयान दिया कि जो घटना हुई है मैंने रक्षा मंत्री से उसकी जांच की मांग की है और मंत्री ने उन्हें निष्पक्ष जांच तथा दोषियों पर कार्रवाई का भरोसा दिलाया है। यही नहीं मेहबूबा ने वहां के सेना के कमांडर से भी बातचीत कर ली। उन्होंने मारे गए लोगों को उचित मुआवजे तथा दोबारा ऐसी घटना न हो इसकी व्यवस्था करने की भी बात की।

बहुत अच्छा मेहबूबा जी। आपने अपनी राजनीति कर ली। एक राजनीति आपने एनआईटी मामले में पूर्ण चुप्पी के साथ भी की। घाटी में आपकी यही राजनीति हो सकती है। आपकी पार्टी ने सेना की निंदा करके उसका विरोध करके चुनाव जीता है। सेना को खलनायक बनाया है। आपकी मांग सेना के लिए विशेष कानून अफस्फा हटाने की है। लेकिन वहां मुख्यमंत्री के नाते आपको ही जांच करानी चाहिए और जांच का विषय यह होना चाहिए कि भीड़ उग्र क्यों हुई? जब सेना ने लड़की के साथ छेड़छाड़ किया ही नही तो फिर इस तरह की अफवाह फैलाने वाले कौन थे और उनका इरादा क्या था? जांच इस बात की होनी चाहिए कि जब सेना पर हमला हुआ तो स्थानीय पुलिस क्या कर रही थी? पुलिस को तब तक पता चल चुका था कि सेना ने लड़की को नहीं छेड़ा है। सरकार ने बस एक सहायक उप निरीक्षक को निलंबित कर कर्तव्यों की इतिश्री समझ लिया है। यह बिल्कुल अस्वीकार्य है। पूरे घटनाक्रम को देखा जाए तो इसमें सेना की भूमिका की जांच की आवश्यकता ही नहीं है।

राज्य सरकार ने मोबाइल इंटरनेट सेवा पर तत्काल बंदिशें लगा दी हैं। इसका मकसद असामाजिक तत्वों द्वारा अफवाह फैलाने पर रोक लगाना है। लेकिन उनका क्या करें जो घाटी में बंद का आह्वान कर आग में पेट्रोल डाल रहे हैं। सैयद अली शाह गिलानी से लेकर यासिन मलिक, मीरवायज उमर फारुख... आदि सबको मानो अशांति पैदा करने के लिए मुंहमांगा अवसर मिल गया है। सवाल है कि ये लोग किसके खिलाफ बंद का आह्वान कर रहे हैं? सेना का, जिसके पास अपनी रक्षा के लिए एक ही रास्ता बचा था, गोली चलाना। यह काम पुलिस का था जिसने नहीं किया। पुलिस चाहती तो लाउडस्पीकार से घोषणा कर सकती थी कि सेना ने लड़की के साथ छेड़छाड़ नहीं किया है। इस घोषणा के साथ वह सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था कर देती तो लोग संभवतः इतने हिंसक नहीं होते तथा सेना पर हमले की स्थिति पैदा नहीं होती। अलगाववादी नेताओं को तो प्रायश्चित करना चाहिए कि जो जहर इनने कश्मीर में बोया है उसमें कोई भी अफवाह सुरक्षा बलों पर हमले, पत्थरबाजी में बदलती है और कभी-कभी गोली चालन में उनके बीच के निर्दोषों की जाने जातीं हैं। घाटी को इस समय इनके ही अपराध की सजा मिली है। किंतु ये अभी भी सेना को ही खलनायक बना रहे हैं। इनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या सेना स्वयं अपने को समर्पित कर देती कि हमने भले नहीं कुछ किया लेकिन आपको गुस्सा है तो हमीं पर उतार दो?

गृहमंत्रालय मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती के पास है। कानून व्यवस्था बनाए रखना उनकी जिम्मेवारी है। इसमें कानून व्यवस्था की विफलता साफ दिखती है। तो वो किसे दोषी मानतीं हैं जिसके बारे में कह रहीं हैं कि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो इसका उपाय होना चाहिए? लोग सेना पर हमला करेंगे तो सेना मूकदर्शक बनी नहीं रहेगी। अनावश्यक लोग सेना से न उलझें, कोई अफवाह न फैला सके और ऐसी नौबत पैदा न हो ...यह जिम्मेवारी कानून व्यवस्था की एजेंसियों का ही है। जांच तो मुख्यमंत्री मेहबूबा को उनके खिलाफ करानी चाहिए। पुलिस ने अपनी भूमिका अदा क्यों नहीं की इस प्रश्न का उत्तर तलाशा जाना चाहिए? अफवाह फैलाने वाला कौन था या कौन थे इसका पता लगाकर उन्हें कानून की गिरफ्त में लाना चाहिए। मेहबूबा ऐसा करेंगी नहीं। इससे उनका वोट बैंक कमजोर होगा। किंतु कम से कम केन्द्र सरकार को तो उनके सामने स्पष्ट बात करनी चाहिए थी। रक्षा मंत्री तो बता सकते थे कि अफवाह फैलाने से लेकर सेना पर हमला करने तक पुलिस वहां बिल्कुल मूकदर्शक की तरह रही और जिम्मेवारी उसके सिर पर जाती है आप उसकी जांच कराएं। केन्द्र सरकार को इस तरह साफ बात करने में क्या समस्या थी? क्या इससे उनकी मिलीजुली सरकार चली जाती? सरकार की जरुरत केवल भाजपा को नहीं पीडीपी को भी है यह भाजपा को समझना चाहिए। मेहबूबा से तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि यही सक्रियता आपकी एनआईटी कांड के समय कहां थी। वहां भी आपकी पुलिस ने उन छात्रों पर कहर बरसाया जो पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद को विरोध कर रहे थे एवं भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। ध्यान रखिए मेहबूबा का उस घटना पर सार्वजनिक बयान एक बार भी नहीं आया। उनके बारे में जो कहा गया वह केन्द्रीय गृहमंत्री एवं मानव संसाधन विकास मंत्री के हवाले से। हंदवाड़ा मामले पर तो उनको बयान देने में मिनट भी नहीं लगा। इसका अर्थ आप स्वयं लगाइए और निष्कर्ष निकालिए की कश्मीर किस दिशा में जा रहा है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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