रविवार, 30 अप्रैल 2023

अपराधियों का महिमामण्डन - रुग्ण समाज की निशानी

तनवीर जाफ़री
गैंगस्टर एवं नेता ब्रदर्स अतीक़ व अशरफ़ अहमद की इलाहाबाद के एक अस्पताल परिसर में गत 15 अप्रैल की रात पुलिस हिरासत में मीडिया से बातचीत के दौरान तीन हमलावरों ने नज़दीक से गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकाण्ड के बाद उनके महिमामण्डन की कई ख़बरें सामने आई हैं। अतीक़-अशरफ़ की हत्या जिन परिस्थितियों में की गयी उसकी आलोचना सर्वत्र की जा रही है। स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ इस घटनाक्रम पर तुरंत सक्रिय हुये व पुलिस की लापरवाही पर उनकी नाराज़गी की ख़बरें भी आयीं। परन्तु उन दोनों भाइयों की हत्या तथा इससे दो दिन पहले ही अतीक़ के एक बेटे असद की पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ के बाद जिसतरह कुछ ख़बरें इन गैंगस्टर्स के महिमामण्डन को लेकर सुनाई दीं वह चौंकाने वाली थीं। ख़ासतौर पर  धर्म के आधार पर अपराधियों का महिमामण्डन किया जाना तो किसी भी क़ीमत पर मुनासिब नहीं कहा जा सकता। अतीक़ मुसलमानों का कितना बड़ा हितैषी था इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस पर पर दर्ज हुये 20 सबसे संगीन अपराधों में दायर 13 मामले पीड़ित मुसलमानों द्वारा ही दर्ज कराए गये थे। वैसे भी प्रायः गैंगस्टर्स का धर्म जाति से कोई वास्ता नहीं होता। इनके गैंग में सभी धर्मों और जातियों के लोग शामिल होते हैं और इनसे पीड़ित लोग भी किसी भी धर्म जाति के हो सकते हैं। 
इन वास्तविकताओं के बावजूद अतीक़-अशरफ़ की हत्या के बाद उनका महिमामण्डन करने,उन्हें मुसलमानों के हीरो के रूप में पेश करने यहाँ तक कि शहीद बताने तक की ख़बरें कई जगहों से प्राप्त हुईं। एक मौलवी तो बाक़ायदा नमाज़ के बाद दुआओं में अतीक़ ब्रदर्स को शहीद बताता नज़र आया और उसने उन्हें जन्नत भेजने की दुआएं भी दे डालीं।  प्राप्त समाचारों के अनुसार पटना में जामा मस्जिद के बाहर अलविदा की नमाज़ के बाद अतीक़ ब्रदर्स  के समर्थन में नारेबाज़ी की गई और 'अतीक़ अहमद अमर रहें' के नारे लगाए । देश में और भी कई जगह से अतीक़ के समर्थन व उसे महिमामंडित करने के समाचार प्राप्त हुए। विदेशी मीडिया ने तो अतीक़ को रोबिन हुड के रूप में पेश करने की कोशिश की। बेशक उनकी हत्या के तरीक़ों,पुलिस की लापरवाही,सुरक्षा में चूक पर ऊँगली उठना या इनकी आलोचना अपनी जगह पर सही है परन्तु उन्हें महिमामंडित करना क़तई उचित नहीं इसलिये कि किसी अपराधी को महिमामंडित करने का दूसरा अर्थ है उसके द्वारा किये गए अपराधों को नज़र अंदाज़ करना। 
अतीक़ को महिमामंडित करने के विरोध में कई पेशेवर अति उत्साही लेखकों ने तो कई आलेख लिख डाले। बिहार के भाजपा विधायक विधायक हरी भूषण ठाकुर को तो यहां तक कहने का अवसर मिल गया कि -'अतीक़ के समर्थन में नारेबाज़ी करने वालों का एनकाउंटर कर देना चाहिये।' साम्प्रदायिकता को हवा देकर तमाम लोग सरकार से 'रेवड़ी ' हासिल करने की फ़िराक़ में न जाने क्या क्या लिखते रहते हैं। परन्तु इनसे यह सवाल तो ज़रूर पूछा जाना चाहिये कि इन्होंने उस समय क्या प्रतिक्रिया दी थी जब शंभु रैगर नामक एक युवक द्वारा 6 दिसंबर 2017 को राजस्थान में एक बंगाली मज़दूर अफ़राज़ुल शेख़ की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी गयी थी और उसे जला दिया गया था।  इतना ही नहीं बल्कि इस जघन्य हत्याकाण्ड का वीडियो भी स्वयं हत्यारे ही द्वारा फ़ेसबुक पर लाइव टेलीकास्ट किया गया था । वही हत्यारा जेल गया तो जेल से भी वीडियो बनाकर डालता रहा। और जब वह ज़मानत पर बाहर आया तो उसके समर्थन में हज़ारों लोगों ने  जुलूस निकाला था। उसके समर्थन में नारे लगाये गये। यहाँ तक कि उत्पाती साम्प्रदायिक भीड़ द्वारा अदालत की छत पर चढ़ कर भगवा झंडा लहरा दिया गया था ? और धार्मिक जुलूस में उसके नाम की चौकी सजा कर निकाली गयी थी । क्या किसी बेगुनाह व्यक्ति को कुल्हाड़ियों से काटकर उसे जलाये जाने जैसा घृणित अपराध करने वाले का महिमामण्डन करना सही है ?
जघन्य अपराधियों,बलात्कारियों,हत्यारों को महिमामंडित करने उन्हें हीरो बनाने जैसा घृणित कार्य तो गोया अब परंपरा का रूप लेता जा रहा है। किसी घटना को साम्प्रदायिक या जातिवादी मोड़ दे दिये जाने पर तो गोया अपराधियों का महिमामण्डन अनिवार्य सा हो गया है। देश में ऐसी दर्जनों मिसालें मौजूद हैं। हाथरस बलात्कार काण्ड में बलात्कारियों के पक्ष में पंचायत बुलाई गयी। 2018 में जम्मू के कठुवा में एक ग़रीब मज़दूर की 8 वर्षीय बेटी असिफ़ा का अपहरण कर उसके साथ गैंग रेप किया गया व उसकी निर्मम हत्या कर उसकी लाश जंगल में फेंकने जैसी वारदात अंजाम दी गयी। और उसके बाद बलात्कारियों व हत्यारों के पक्ष में राज्य के भाजपा मंत्रियों व विधायकों का खड़ा होना व उन्हें बचाने के लिये जुलूस प्रदर्शन धरना  करना क्या देश कभी भूल सकेगा ? बिल्क़ीस के बलात्कारियों,दंगाइयों की सुगम रिहाई और बाद में राजनैतिक मंच पर उस अपराधी का महिमामण्डन,क्या अपराधियों के हौसले नहीं बढ़ाता ? 2019 में शाहजहांपुर के स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय जिसे स्वामी चिन्मयानंद का ट्रस्ट चलाता है यहां पढ़ने वाली एलएलएम की एक छात्रा ने स्वामी चिन्मयानंद पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे। उन्हें एम पी एम एल ए अदालत बा इज़्ज़त बरी कर देती है। जामिया में धरने पर बैठे लोगों की तरफ़ जो अनजान युवक तमंचे से गोलियां चलाता है वह आज महिमामंडित होकर साम्प्रदायिकतावादियों का आइकॉन बन चुका है। भाजपा नेता जयंत सिन्हा झारखण्ड में मॉब लिंचिंग के हत्यारे दोषियों को जेल से छूटने के बाद माला पहनाते व उनके साथ फ़ोटो सेशन करते देखे जाते हैं। 2015 में नोएडा के निकट दादरी में अख़लाक़ नमक 50 वर्षीय व्यक्ति की भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दी थी। अख़लाक़ का बेटा भारतीय वायुसेना में अधिकारी है। उस समय भी तत्कालीन सांसद योगी आदित्य नाथ सहित तमाम बड़े भाजपा नेता मंत्री सांसद व विधायक हत्यारों की हौसला अफ़ज़ाई करते उन्हें बचाते व उनके पक्ष में पंचायतें करते दिखाई दिए थे। 
लगभग वही सिलसिला अतीक़ व अशरफ़ की हत्या के बाद भी नज़र आया। हत्यारों,बलात्कारियों या किसी भी अपराध में संलिप्त लोगों को धर्म या जाति के आधार पर समर्थन देना एक ख़तरनाक सिलसिले को बढ़ावा देना है। कहना ग़लत नहीं होगा कि अपराधियों का महिमामण्डन न केवल न्याय व्यवस्था को प्रभावित करने की कोशिश है बल्कि यह रुग्ण समाज की भी निशानी है।
098962-19228

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

गांधीनगर के विधायक अनिल बाजपेई ने आजाद नगर वार्ड के वेस्ट कांतिनगर की जनता को दिया नई सीवर लाइन का तोहफ़ा

आज गांधीनगर के विधायक अनिल कुमार बाजपेई ने वेस्ट कांति नगर निवासियों के लिए लगभग 17 लाख रुपए की लागत से नई सीवर लाइन का उदघाटन स्वास्थ्य कमेटी की पूर्व चेयरमैन व पूर्व निगम पार्षद कंचन माहेश्वरी के हाथों कराया।

ज्ञात हो कि वेस्ट कांति नगर आरडब्लूए और प्रबुद्घ लोगों के एक शिष्टमंडल ने विधायक अनिल कुमार बाजपेई जी से उनके कार्यालय में आकर सीवर जाम  की शिकायत की थी जिसको विधायक जी ने  तुरंत दिल्ली जल बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियो से बात कर इस काम की शीघ्रता से शुरुआत कराई।

विधायक श्री अनिल बाजपेई जी ने बताया कि ये सीवर लाइन कांतिनगर पॉलोक्लिनिक से शुरू होकर भूतेश्वर मंदिर कांतिनगर तक डाली जाएगी जिससे यहां के सभी निवासियों को सीवर जाम से आ रही समस्या से काफी राहत मिलेगी।

इस अवसर पर स्वास्थ्य कमेटी की पूर्व चेयरमैन व पूर्व निगम पार्षद कंचन माहेश्वरी, डॉक्टर वीरपाल कश्यप, आरडब्लूए अध्यक्ष अमित कश्यप, पूर्व प्रत्याशी वंदना रानी, सुश्री इंदू सेन, सुनील तिवारी, दीपक जैन, अरूण मिश्रा, देवदत्त शर्मा, हरीश चंद्र शर्मा, संजय गुप्ता, दीपक गुप्ता, गौरव जैन, नितिन जैन समेत काफी संख्या में लोग उपस्थित थे।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

ब्रिटेन में आई रिपोर्ट ने हिंदूफोबिया की भयावह स्थिति को उजागर किया

अवधेश कुमार

दुनिया के अलग-अलग स्थानों से हिंदूफोबिया यानी हिंदू विरोधी नफरत एवं हिंसा की बढ़ती घटनाएं गंभीर चिंता का विषय है। हम कई देशों में हिंदुओं, हिंदू प्रतीकों, हिंदू धर्मस्थलों आदि पर हमले के साथ-साथ हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार अभियानों को देख रहे हैं। ब्रिटेन की द हेनरी जैक्सन सोसाइटी द्वारा जारी अध्ययन रिपोर्ट ने इस बात को फिर से साबित किया है कि हिंदू समाज के लिए यह कठिन चुनौती का समय है। रिपोर्ट का शीर्षक है, एंटी हिंदू हेट इन स्कूल्स। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि ब्रिटेन के स्कूलों में हिंदू विरोधी घृणा चरम पर है और हिंदू बच्चों को अनेक देवी - देवताओं के पूजन, गाय को पवित्र मानने, जाति व्यवस्था आदि के आधार पर चिढ़ाया जाता है, अपमानित किया जाता है और उन्हें मुस्लिम बच्चे काफिर पुकारते हैं।  

•इसमें 998 हिंदू अभिभावकों से बातचीत की गई है। 51% अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों ने हिंदू विरोधी घृणा का सामना किया है। केवल 19% अभिभावकों ने कहा कि शिक्षण संस्थान इसकी पहचान कर ठीक करेगा। 

•यह ब्रिटेन में अपने किस्म की हिंदू विरोधी घृणा पर पहली अध्ययन रिपोर्ट है जो पिछले साल हुए लीसेस्टर में हिंदू विरोधी दंगों की रिपोर्ट के बाद आई है। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंसा का एक प्रमुख कारण हिंदू विरोधी दुष्प्रचार ही था। 

रिपोर्ट के कुछ अंश देखिए 

•निरामिष होने का मजाक उड़ाते हुए एक बच्ची पर गाय का मांस फेंका गया और कहा गया कि तू इस्लाम ग्रहण कर लो तो हम परेशान करना बंद कर देंगे।

 •  एक छात्र को कहा गया कि हिंदू धर्म की पढ़ाई करना मूर्खता है क्योंकि यह 33 करोड़ देवताओं के साथ हाथी, बंदर और मूर्ति की पूजा करते हैं। 

• एक ईसाई ने हिंदू बच्चे को कहा कि हमारा यीशु तुम्हारे सारे देवताओं को नर्क में भेजेगा ।  

•हिंदू धर्म में स्वास्तिक जैसे प्रतीक को हिटलर के प्रतीक से तुलना कर उसी तरह हिंदू बच्चों को निशाना बनाने की घटनाएं हुई जैसे एक समय यहूदियों के साथ होता था। 

रिपोर्ट में हिंदू बच्चों द्वारा इस्लाम या ईसाइयत के विरुद्ध टिप्पणी करने की बात नहीं है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि मुस्लिम या ईसाई छात्र और शिक्षक आदि प्रतिक्रिया में ऐसा कर रहे हैं।


 वास्तव में यूरोप अमेरिका सहित अनेक देशों में चल रहे हिंदूफोबिया यानी हिंदुओं के विरुद्ध अभियान और हिंसा का छोटा अंश इस रिपोर्ट में आया है। धर्मों व नस्लों के विरुद्ध घृणा पर शोध करने वाली अमेरिकी संस्था नेटवर्क कंटैजियन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अध्ययन में बताया है कि पिछले कुछ समय में हिंदू विरोधी टिप्पणियों में 1000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। व्हाइट सुपरमेसिस्ट (नस्लभेदी श्वेत समुदाय) और मुसलमानों को हिंदू विरोधी दुष्प्रचार और हिंसा में सबसे आगे बताया गया है। अध्ययन के अनुसार हिंदुओं और भारतीयों के विरुद्ध घृणा फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका भी बहुत बड़ी है। पाकिस्तान से हर दिन हिंदुओं के विरुद्ध हजारों नफरत फैलाने वाले ट्वीट किए जाते हैं। अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं का एक समूह इसे अभियान के रूप में चलाता दिखा है तो ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नेताओं में भी ऐसे लोगों की संख्या है जो अपनी तथाकथित वामपंथी प्रोग्रेसिव सोच तथा कट्टरपंथी मुस्लिमों के प्रभाव में हिंदू धर्म, और रीति-रिवाजों का उपहास उड़ाने को  कर्तव्य मानते हैं।


दूसरे देशों की समस्या यह है कि वे अपने रिलीजन या मजहब के दृष्टिकोण से हिंदू धर्म और समाज की व्याख्या करते हैं। ब्रिटिश अध्ययन में छात्र - छात्राओं के अभिभावकों ने बताया कि पाठ्यपुस्तकों में हिंदू धर्म का उल्लेख वस्तुतः उसका मजाक उड़ाने वाला है। इसलिए इसका अध्ययन छात्र-छात्राओं के अंदर हिंदू धर्म और हिंदुओं के बारे में गलत धारणा पैदा करता है। अब्राह्मिक रिलिजन के आईने में हिंदू धर्म की व्याख्या हो ही नहीं सकती।  पर समस्या इतनी भर होती तो हिंदू संगठन, अलग-अलग पंथ, संप्रदाय से लेकर योग, अध्यात्म, दर्शन आदि पर काम करने वाली संस्थाएं बड़े पैमाने पर अनेक देशों में सक्रिय है उनमें रुचि लेकर समझने की कोशिश की जाती। जहां तक ईसाइयों के व्यवहार का प्रश्न है तो भारत सहित एशिया, अफ्रीका पर शासन करने वाले अंग्रेजों ने ह्वाइटूसमेन बर्डेन सिद्धांत दिया जिसका अर्थ था कि इन देशों के लोगों को सभ्य बनाने की जिम्मेवारी हमारी है और इसी कारण हम शासन कर रहे हैं। श्रेष्ठतर सभ्यता-संस्कृति का यह भाव खत्म नहीं हुआ है। इस कारण इन देशों  में भी हम धार्मिक -सांस्कृतिक श्रेष्ठतावाद समूह और ईसाई उग्रवाद देख रहे हैं। मुस्लिमों के रवैये की व्याख्या इनसे नहीं हो सकती। मुस्लिम कट्टरवाद ऐसा मजहबी श्रेष्ठतावाद है जो मानता है कि एकमात्र इस्लाम ही मजहब है और अन्य मजहब का अस्तित्व इस्लाम विरोधी है। इसलिए हर मजहब उनके निशाने पर हैं । भारत के बाहर के हिंदू उन्हें अपना शिकार लगते हैं क्योंकि अन्य कोई देश हिंदू बहुमत वाला नहीं है। 

हालांकि यह स्थिति पहले से थी लेकिन हिंदुओं के विरुद्ध दुष्प्रचार, नफरत एवं हिंसा में वृद्धि हाल के कुछ वर्षों में हुई है। तो क्यों?

  हिंदू संगठनों द्वारा व्यापक पैमाने पर दुनिया भर में काम करना है। इनके कारण हिंदू जहां भी है अनेक सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, बौद्धिक रचनात्मक गतिविधियां चला रहे हैं। इनका प्रभाव भी बढा है । दुनिया भर में भारतवंशियों की संख्या करीब 3.5 करोड़ है जिनमें हिंदू सबसे ज्यादा हैं। ये अनेक देशों में शीर्ष पदों पर ही नहीं कारोबार, विज्ञान,संस्कृति, अकादमी मीडिया आदि में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद छोटे देशों में भी भारतवंशियों को संबोधित कर उनके अंदर अपनी संस्कृति व सभ्यता के प्रति गर्व का भाव तथा भारत के प्रति भावनात्मक लगाव पैदा करने की कोशिश की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अनेक संगठन लंबे समय से काम कर रहे हैं, इसलिए उन सभाओं का व्यापक असर हुआ। हमारे उत्सव और धार्मिक दिवसों से लेकर भारत के स्वतंत्रता दिवस आदि अलग-अलग देशों में भी धूमधाम से मनाए जाते हैं। भारतीय एवं भारतवंशी हिंदू संकोच और हिचक त्याग कर अपनी संस्कृति, सभ्यता और अध्यात्म को लेकर मुखर हुए हैं। भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के कारण उनका आत्मविश्वास बढ़ा है।

 कोई भी समुदाय इस तरह उठकर खड़ा होगा तो स्वयं को श्रेष्ठ मानने वालों को समस्यायें पैदा होगी।  हालांकि हिंदू प्रतिक्रिया में गुस्से में आ सकता है, किसी मजहब, पंथ या समुदाय से घृणा या उसके विरुद्ध हिंसा हिंदुओं के स्वभाव में नहीं। किंतु पाकिस्तान और उससे प्रभावित मुसलमानों के समूह ने हिंदूफोबिया को यह कहते हुए बढ़ाया है कि संघ तथा नरेंद्र मोदी सरकार की विचारधारा दूसरे मजहब को कुचलने वाली है, मुस्लिमों पर जुल्म हो रहे हैं ,उनकी मजहबी गतिविधियां बाधित की जा रही हैं। इंग्लैंड के मस्जिदों से ऐसी तकरीरें सामने आती हैं। यही स्थिति अमेरिका एवं अन्य देशों की भी हैं। प्रश्न है कि इसका सामना कैसे किया जाए? भारत ने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ में इस विषय को दो बार उठाया । इससे संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य देशों तक विषय पहुंचा है तथा भारत की कोशिश है कि विश्व संस्था अपने विमर्श और प्रस्ताव में इसे शामिल करे। सरकार से परे हिंदूफोबिया के हकीकत बनने के बाद सतर्क हिंदू और हिंदू संगठनों ने भी समानांतर सकारात्मक अभियान चलाया है। इसका परिणाम पिछले महीने अमेरिका के जॉर्जिया में हिंदूफोबिया के विरुद्ध पारित प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव में न केवल हिंदू धर्म, सभ्यता व संस्कृति की सच्चाई प्रकट की गई बल्कि अमेरिका में हिंदुओं का योगदान स्वीकार करते हुए हिंदूफोबिया फैलाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की भी बात की गई है । हिंदू संगठन हिंदू धर्म और हिंदू समुदाय की सच्चाई से अवगत कराने के लिए लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं जिनका असर हुआ है। 

तो निष्कर्ष यह कि विपरीत परिस्थितियों को अवसर मानकर सतर्क सक्रिय हिंदू समुदाय और संगठन अपनी धर्म संस्कृति, भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा आदि को लेकर व्यापक प्रचार प्रसार करें, दुनियाभर में हिंदुओं के अंदर आत्मविश्वास पैदा हो तो इस सांस्कृतिक एवं भौतिक हमले का न केवल मुकाबला किया जा सकता है बल्कि हिंदू धर्म, सभ्यता और संस्कृति की स्वीकार्यता भी बढ़ाई जा सकती है। हिंदू धर्म का टकराव किसी अन्य रिलीजन, मजहब या पंथ से हो ही नहीं सकता क्योंकि  सर्वधर्म समभाव इसका मूल है।  इस्लामी चरमपंथ ने अपनी भूमिका से संपूर्ण विश्व को डराया है। ब्रिटेन में ही काफी संख्या में ईसाई लोगों ने जेलों में इस्लामिक हमलों से ईसाइयों की सुरक्षा के विरुद्ध कानूनी लड़ाई आरंभ किया है। यह स्थिति अनेक देशों में है। इसमें हिंदू समुदाय अपने धर्म, संस्कृति के आधार पर ऐसी भूमिका निभा सकता है जिससे संपूर्ण विश्व समुदाय के अंदर हिंदूधर्म के सर्वधर्म समभाव जैसे मूल व्यवहार अपनाने की संभावना बलवती होगी।

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

अतीक की हत्या के मायने

अवधेश कुमार

सहसा इस समाचार पर विश्वास करना कठिन था कि अतीक अहमद और अरशद अहमद को गोलियों से भून दिया गया है। आखिर पुलिस की सुरक्षा में गिरफ्तार इतने बड़े माफिया अपराधी की हत्यारे इतनी सरलता से हत्या कर देंगे इसकी कल्पना की ही नहीं जा सकती थी। आम धारणा यही थी कि अतीक की सुरक्षा व्यवस्था इतनी सशक्त है कि कोई उसमें घुसने की सोच ही नहीं सकता। साबरमती से प्रयागराज लाने, फिर न्यायालय में ले जाने आदि के बीच जैसी सुरक्षा व्यवस्था दिखी थी उसमें घुसकर दोनों भाइयों की हत्या कर दे इसकी संभावना कोई व्यक्त नहीं कर सकता था। बावजूद उसकी हत्या हुई। साफ है कि सुरक्षा व्यवस्था में कमी थी।  जाहिर है, पूरी जांच के बाद ही स्थिति ज्यादा स्पष्ट होगी कि आखिर सुरक्षा चूक कहां हुई कैसे हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में अगर अतीक अहमद को मिट्टी में मिलाने की घोषणा की थी तो पुलिस का दायित्व था कि वह कानूनी तरीके से उसके उसको पूरा करने के उत्तरदायित्व का सतर्कतापूर्वक निर्वहन करे। अतीक अहमद और उत्तर प्रदेश के अन्य बड़े अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई लंबे समय से राजनीतिक विवाद का विषय रहा है। इसलिए विरोधी दलों की प्रतिक्रियाओं को हम अस्वाभाविक नहीं मान सकते। पूछताछ के लिए पुलिस ने न्यायालय से अनुमति ली थी तो उसकी सुरक्षा का दायित्व पुलिस का था। विरोधी प्रश्न उठाएंगे ही। किंतु इसमें सुरक्षा चूक के साथ कई ऐसे महत्वपूर्ण पहलू निहित हैं जिन पर गहराई से विचार करके ही हम सही निष्कर्ष तक पहुंच सकते हैं।

किसी भी हत्या में चार पहलू होते हैं, हत्या का तरीका, हत्यारे, परिस्थितियां और मकसद। हत्या का तरीका देखिए तो तीनों हत्यारों के पास एक मीडिया संस्थान का परिचय पत्र था, एक टीवी चैनल के लोगो वाला माइक भी। जाहिर है, इसके पीछे ज्यादा चालाक दिमाग लगा और सारी व्यवस्था की गई। यह सब नहीं हुआ है। दो हत्यारों ने निकट से गोली चलाई जबकि तीसरा थोड़ी दूर से चला रहा था। अभी तक की जानकारी में उनका एक गोली भी व्यर्थ नहीं गया। यानी ये पूरी तरह प्रशिक्षित शूटर हैं। तीनों के अपराधिक रिकॉर्ड भी सामने आ गए हैं। हत्या में इस्तेमाल पिस्टल सामान्य नहीं है। यह तुर्कीये से आता है और भारत में प्रतिबंधित है। इसकी कीमत भी काफी है। हत्यारों को पता था कि अतीक अहमद और अशरफ को कानूनी प्रक्रिया के तहत मेडिकल जांच के लिए अरविंद हॉस्पिटल लाया जाना है। इसका मतलब है कि रेकी की गई। उस जगह का पूरा मुआयना हुआ और फिर उन्होंने हमले के लिए अपने स्थान तय किए होंगे। इन निष्कर्ष यही है कि यह सुनियोजित गोलीबारी है जिसके पीछे काफी गहरा विचार विमर्श हुआ होगा। निश्चय ही इसमें और भी कई लोगों की भूमिका होगी। यह कहानी आसानी से गले नहीं उतरती कि तीनों हत्यारों ने जेल में विचार किया कि हम छोटे-छोटे अपराध करके आपराधिक दुनिया का बड़ा नाम नहीं हो सकते और इसलिए उन्होंने अतीक की हत्या करने का निश्चय किया। यद्यपि अपराध की दुनिया में बड़ी हस्ती या बड़े माफिया की हत्या कर रोमांचित होने और ग्लैमर प्राप्त करने की कहानी हमारे सामने हैं । परंतु यह मामला इतना आसान नहीं लगता । इस हत्या में काफी संसाधनों का ब्याह हुआ है। हत्यारों की किसी तरह का निजी दुश्मनी का कोई पहलू सामने नहीं है। इन तीनों अपराधियों की थोड़ी कहानी जानने के बाद ऐसा लगता ही नहीं कि पति की हत्या करने के पीछे इनका कोई स्वीकार्य मकसद हो सकता है। तो हत्या करने के पीछे इरादा क्या हो सकता है?

यहीं पर परिस्थितियों और मकसद जैसे पहलुओं पर गौर करना होगा। अतीक अहमद लंबे समय से अपराध की दुनिया में था तो वह केवल अपने लिए ही ऐसा नहीं करता था। वह अपराधी नेता था।  पांच बार विधायक और एक बार सांसद बना। राजनीति के अपराधीकरण के दौर में नेता, राजनीतिक पार्टियां किस तरह चुनाव जीतने के लिए इनका उपयोग करती थी यह जाना हुआ तथ्य है। स्पष्ट है कि उसने अनेक लोगों के लिए अपराध किया होगा जिनमें राजनीति ,प्रशासन, व्यापार आदि सभी क्षेत्र के सम्मानित लोग भी शामिल होंगे। अतीक जिस तरह पुलिस के सामने आसानी से सब कुछ बता रहा था निश्चय ही अनेक ऐसे लोगों की असलियत सामने आ जाती। संभव है इनमें से कुछ लोग हत्या के पीछे होंगे ताकि उनका राज राज बना रहे। यह भी ध्यान रखने की बात है कि अतीक पर एक सौ मुकदमे दर्ज है। इसके अलावा भी उनकी उसके सैकड़ों अपराध होंगे। उसकी दुश्मनी कितने लोगों से होगी, कितने उससे प्रतिशोध लेने के लिए अंदर ही अंदर तैयारी कर रहे होंगे इसका अनुमान लगा सकते हैं। यह भी संभव है कि भाजपा और योगी आदित्यनाथ सरकार की छवि खराब करने के लिए भी उसकी हत्या हुई हो। आखिर योगी आदित्यनाथ की मुख्य यूएसपी कानून और व्यवस्था है तथा 2022 विधानसभा चुनाव में उनकी जीत के पीछे यह सबसे बड़ा तत्व था। अतीक अहमद के बारे में उन्होंने विधानसभा में आक्रामक भाव में कहा था कि इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। उत्तर प्रदेश में वैसे भी सांप्रदायिक हिंसा और दंगा पैदा करने के अनेक षड्यंत्र समय-समय पर सामने आए हैं। तो हम इसके पीछे षड्यंत्र के कारणों को नकार नहीं सकते। योगी सरकार द्वारा कानून और व्यवस्था के दावे की धज्जियां उड़ाने का इरादा हो सकता है। आखिर विरोधी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था खत्म हो चुकी है और मुख्यमंत्री को त्यागपत्र दे देना चाहिए। हत्या के बाद हत्यारों ने जय श्रीराम का नारा लगाया। संभव है इसमें हिंदू मुस्लिम संघर्ष कराने की भी सोच हो। हम किसी भी पहलू को खारिज नहीं कर सकते।

इस समय सरकार और पुलिस कम से कम अतीक अहमद को इस तरह मारना नहीं चाहिए। आतीक की सारी हेकड़ी खत्म थी। उसने कहा था कि हम मिट्टी में मिल चुके हैं और अब तो रगड़ा जा रहा है। उसकी और उससे जुड़े लोगों की हजारों करोड़ की अवैध संपत्ति बुलडोजर द्वारा ध्वस्त हो चुकी है, कुछ जब्त किए जा चुके हैं। उसके पूरे गिरोह को खत्म करने में भी काफी हद तक सफलता मिली है। साबरमती से प्रयागराज लाकर उसके अंदर हर क्षण डर पैदा कर उसे अंदर से कमजोर किया जा चुका है। वह लगातार अपने अपराध के बारे में पुलिस को जानकारियां देने लगा था। कहां से हथियार आता है , कहां से पैसे आते हैं ,कहां-कहां संपर्क है इस दिशा में वह काफी कुछ बता चुका था। यह भी समाचार आया कि उसने पाकिस्तान के अपने संबंधों के बारे में भी पुलिस को बताया। इस नाते सरकार के लिए उसका जिंदा रहना आवश्यक था। सबसे ज्यादा समय सपा में बिताया। अगर वह अपराध के पीछे उस पार्टी के कुछ नेताओं का नाम बताता तो यह भाजपा के लिए मुंह मांगे वरदान की तरह होता। इसमें उसे मारने का कोई कारण नहीं है। जाहिर है, सुरक्षा चूक का लाभ उठाते हुए इसे अंजाम दिया गया है।

इस दृष्टि से देखें तो यह पुलिस प्रशासन के लिए क्षति है। वह एक-एक क्षण जेल में काटता या न्यायालय फांसी की सजा देती तो उसका संदेश कुछ और होता। सपा विपक्ष होने के नाते सरकार को घेरे ,उसकी आलोचना करे, किंतु उसे भी इस बात का जवाब देना होगा कि उसके अपराध के बारे में पूरी जानकारी होते हुए सपा ने उसे पार्टी का विधायक और सांसद क्यों बनाया? आज अगर उसकी हत्या हुई है तो इसी कारण क्योंकि वह अपराधी था। उत्तर प्रदेश में अपराध तंत्र के लिए आवश्यक आधारभूत संरचना इतनी सशक्त रही है कि किसी बड़े अपराधी का आसानी से अंत करना संभव नहीं था। जिन पार्टियों के शासनकाल में अपराधियों को अपराध करने के सारे आधारभूत ढांचे उपलब्ध हुए क्या उन्हें हम अतीक अहमद के अपराध और राजनीति की दुनिया में इतने ऊपर उठने तथा इस पर ने तो तक आने की क्या की जिम्मेवारी से पूरी तरह मुक्त कर देंगे? अपराध का आधारभूत ढांचा है तभी तो ये तीन अपराधी आकर उसे मारने में सफल हो गए। पहले इंडियन नेशनल लोकदल और बाद में सपा ने उसे विधायक क्यों बनाया? उसकी सारी योग्यता विशेषज्ञता अपराधी होने की ही थी। पार्टी और सत्ता द्वारा उसे संरक्षण मिलने के कारण न केवल उसका अपना गैंग फैला बल्कि दूसरे विरोधी गैंग भी उत्तर प्रदेश में पैदा होते गए। उनकी जेल में जाने के साथ खत्म हो गया हो ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। आखिर पंजाब में सिद्धूमूसेवाला की हत्या भी नए युवाओं ने की और लॉरेंस बिश्नोई जेल से  ही अंजाम दिलात रहा। इसलिए विपक्ष पुलिस सुरक्षा व्यवस्था में हत्या होने की आलोचना करें पर वह स्वयं भी कटघरे में खड़ा है।

अवधेश कुमार, ई- 30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -1100 92, मोबाइल -98110 27208

मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

सिलेबस में हल्के बदलाव पर बेवजह हंगामा

अवधेश कुमार

सिलेबस के कुछ अंशों में संशोधन या बदलाव पर मचाया जा रहा हंगामा असामान्य नहीं है। भाजपा के शासनकाल में सिलेबस संबंधी निर्णय हमेशा विवाद के विषय बनाए जाते रहे हैं । हमने अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान यही देखा और अब नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में भी। इसी तरह इसकी राज्य सरकारें भी शिक्षा संबंधी निर्णय को लेकर एक वर्ग के निशाने पर रहती हैं । इस समय राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी की ओर से 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए कुछ विषयों में किए गए बदलाव इसका ही प्रकटीकरण है है। यह विरोध ऐसा है जिसमें लगता ही नहीं कि कोई सच समझने और देखने की कोशिश भी करना चाहता है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार तथा राज्यों की भाजपा सरकारों पर वैसे भी शिक्षा के भगवाकरण, हिंदूकरण, फासिस्टीकरण आदि का आरोप नया नहीं है।  सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में किए गए परिवर्तन को तो हमारे देश का एक बड़ा समूह किसी सूरत में यह मानने के लिए तैयार नहीं हो सकता कि इनके पीछे सच्ची तार्किकता भी है। तो क्या है वर्तमान विवाद का कारण? 


एनसीईआरटी ने 10वीं, 11वीं, 12वीं की इतिहास, नागरिक शास्त्र- राजनीति शास्त्र और साहित्य में कुछ संशोधन और बदलाव किए है। इतिहास की पुस्तकों से राजाओं और उनके इतिहास से संबंधित अध्यायों  को हटा दिया है। नए पाठ्यक्रम के तहत इतिहास की किताब थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री-पार्ट-2 से द मुगल कोर्ट्स (16वीं और 17वीं सदी) को हटाया है। 12वीं की इतिहास की किताबों से छात्रों को अकबरनामा और बादशाहनामा, मुगल शासकों और उनके साम्राज्य, पांडुलिपियों की रचना, रंग चित्रण, आदर्श राज्य, राजधानियां और दरबार, उपाधियां और उपहारों, शाही परिवार, शाही नौकरशाही, मुगल अभिजात वर्ग, साम्राज्य और सीमाओं के बारे में भी पढ़ने को नहीं मिलेगा। 11वीं की पाठ्यपुस्तक से थीम्स इन वल्र्ड हिस्ट्री, सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स, संस्कृतियों का टकराव और औद्योगिक क्रांति जैसे अध्याय हटा दिए गए हैं। नागरिक शास्त्र संबंधी बारहवीं कक्षा की  किताब से 'लोकप्रिय आंदोलनों का उदय' और 'एक दलीय प्रभुत्व का युग' जैसे अध्याय हटे हैं। 10वीं की किताब डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स-2 से लोकतंत्र और विविधता, लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन, लोकतंत्र की चुनौतियां जैसे पाठ भी हटा दिए गए हैं। विश्व राजनीति में अमेरिकी आधिपत्य और द कोल्ड वॉर एरा जैसे अध्यायों को भी 12वीं की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया है। 12वीं की किताब पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस से राइज ऑफ पॉपुलर मूवमेंट्स और एरा ऑफ वन पार्टी डोमिनेंस को भी हटा दिया गया है। इनमें कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के प्रभुत्व के बारे में बताया गया था। 

प्रश्न है कि इन में ऐसा क्या है जिसे जिस पर इतना हंगामा होना चाहिए? वैसे तो एनसीईआरटी ने स्पष्टीकरण दे दिया है। उसका कहना है कि कोरोना काल में छात्रों पर से पाठ्यपुस्तकों का बोझ कम करने की दृष्टि से कुछ अध्याय हटाने की सिफारिश की गई थी। छात्रों से पाठ्यपुस्तकों का बोझ कम हो इसका सुझाव शिक्षाशास्त्री और समाजशास्त्री हमेशा देते रहे हैं।  एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने स्पष्ट किया है कि मुगलों के बारे में अध्याय नहीं हटाए गए हैं। उनके अनुसार पिछले साल एक रेशनलाइजेशन प्रोसेस थी क्योंकि कोरोना के कारण हर जगह छात्रों पर दबाव था। विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की कि यदि इन अध्यायों को हटा दिया जाता है, तो इससे बच्चों के ज्ञान पर कोई असर नहीं पड़ेगा और एक अनावश्यक बोझ को हटाया जा सकता है।  इसके बारे भी गहराई से सोचिए की मध्यकाल क्या केवल मुगल काल और सल्तनत काल ही है? क्या अभी तक मध्यएशिया या भारत में इस्लाम के उदय के बारे में जो कुछ कहा जाता रहा वही सच है? इतिहास के मध्यकालीन भारत में उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम अनेक राजे राजवाड़े, व्यक्तित्व थे जिन्होंने शासन व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, अध्यात्म, ज्ञान विज्ञान,वास्तुकला, संगीत आदि से लेकर पराकर्म और शौर्य में अपना लोहा मनवाया। उन सबको इतिहास की पुस्तकों में उनकी भूमिका के अनुरूप स्थान न देना वास्तव में  भारत के सच्चे इतिहास से वंचित करने का षड्यंत्र रहा है। कोई भी सरकार इसे दूर कर पूरी सच्चाई सामने लाती है उसका धन्यवाद किया जाना चाहिए। मुगल इस देश में आए और उन्होंने शासन किया तो उन्हें इतिहास से हटाया नहीं जा सकता। हटाया भी नहीं जाना चाहिए। किंतु इतिहास का जितना जैसा और जो सच है उसे सामने रखना ही किसी शिक्षा व्यवस्था का मूल कर्तव्य हो सकता है। इसी तरह राजनीति से जो अध्याय हटाए गए हैं बहुत आवश्यकता उनकी नहीं थी। साथ ही वे सारे अध्याय एकपक्षीय तरीके से लिखे गए थे। लोकप्रिय आंदोलनों बाले अध्याय में ही वैसे आंदोलन जिन्होंने पूरे देश में आलोड़न पैदा किया जिनसे भारत की राजनीति बदली उन सबको आंदोलन की श्रेणी में रखा ही नहीं गया। कुछ ही विशेष संगठनों या विचारधाराओं को को ही आंदोलनों में स्थान दिया गया। राजनीतिक दलों के उदय या ऐसे अन्य अध्यायों में भी शैक्षणिक गैर ईमानदारी भरी हुई थी।

यही नहीं 12वीं की वर्तमान राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक के अंतिम अध्याय  पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस में दंगों की चर्चा थी। इसमें 2002 के गुजरात दंगों की उसी तरह चर्चा है जैसे हमारी राजनीति में भाजपा विरोधी दल पिछले 20 वर्षों से कर रहे हैं । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ‘राज धर्म‘ टिप्पणी को उद्धृत करते हुए यह बताने की कोशिश की गई कि वे भी तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से असंतुष्ट थे। बाजपेई जी के उस वक्तव्य के की प्रतिक्रिया में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि साहब वही तो कर रहे हैं और बाजपेई जी ने भी बोला कि मुझे उम्मीद है मुख्यमंत्री वैसा ही कर रहे हैं । इसे शामिल नहीं किया गया था। इस तरह की बातें हाई स्कूल के छात्रों की पुस्तकों में डालने का क्या लक्ष्य हो सकता है? इसी तरह पाठ्य पुस्तकों में हिंदू चरमपंथियों की गांधी के प्रति नफरत, महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगे प्रतिबंध जैसे अंश सकारात्मक ज्ञान के पर्याय तो नहीं माने जा सकते। इसलिए इन्हें हटाया जाना सर्वथा उचित है। इस तरह के अध्याय क्यों डाले गए और इनसे छात्रों का कितना कल्याण होता रहा होगा इसकी कल्पना आप कर सकते हैं । जहां तक साहित्य का प्रश्न है तो उत्तर प्रदेश के इंटरमीडिएट में चलने वाली ‘आरोह भाग दो’ में परिवर्तन किए गए हैं। इसमें फिराक गोरखपुरी गजल और ‘अंतरा भाग दो’ से सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की ‘गीत गाने दो मुझे’, विष्णु खरे की एक काम और सत्य तथा ‘चार्ली चैपलिन यानी हम सब’ भी निकाल दिए गए हैं । इससे क्या अंतर आ जाएगा? वैसे भी महाकवि निराला भारतीय संस्कृति,  अध्यात्म और राष्ट्रवाद के प्रखर स्वर हैं। भाजपा या संघ को इनसे तो समस्या हो ही नहीं सकती। लेकिन जिन्हें विरोध करना है वह विरोध करेंगे। सच्चाई यह है कि पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार ने शिक्षा को पूरा महत्व देते हुए नई शिक्षा नीति तैयार की है। राजनीति को छोड़ दें तो इसका समर्थन सारे शिक्षाविद कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति बनी है तो उनके अनुसार धीरे-धीरे सिलेबस और पुस्तकें भी बदलेंगे। सब कुछ पहले ही जैसा चलने देना है तो फिर नई शिक्षा नीति की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए थी।

अवधेश कुमार, ई-30 ,गणेश नगर पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल- 98110 27208

मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

यह परिणति जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी

अवधेश कुमार

कई बार हमारे सामने जो कुछ घटित होता है उसके महत्व को नहीं समझ पाते। बड़ी - बड़ी घटनाएं भी हमें सामान्य लगती है। अतीक अहमद को प्रयागराज के सांसद विधायक न्यायालय द्वारा दी गई उम्र कैद की सजा आज सामान्य लग सकता है। उसने अपराध किया और उसकी सजा हुई। जिन्होंने 80 और 90 के दशक के उत्तर प्रदेश में अतीक और उसके पूरे गैंग या जुड़े हुए लोगों के कारनामे देखे हैं उनके लिए यह कल्पना करना भी कठिन था कि उसके विरुद्ध पुलिस की कोई बड़ी कार्रवाई हो सकती है। जिस व्यक्ति के विरुद्ध थाने में प्राथमिकी लिखवाने का अर्थ अपने साथ परिवार और रिश्तेदारों के नष्ट हो जाने का खतरा मोल लेना था उसकी ऐसी दशा होगी इसकी कल्पना की भी नहीं जा सकती थी। जो मामले पुलिस नहीं सुलझा सकती थी वह भी अतीक के पास जाता था। उसके पास दूसरे को अपने अनुसार बोलने, काम करने को विवश करने के लिए पूरी प्रणाली थी। फोन पर आदेश देकर बुलाना, न आने पर उठा लेना, टॉर्चर करना, मनमाने तरीके से जहां चाहो हस्ताक्षर करवाना और जो चाहो बुलवा लेना अतीक अहमद के तंत्र का सामान्य क्रियाकलाप था। अतीक को साबरमती जेल से प्रयागराज लाने या बुलडोजर की कार्रवाई उसे वापस ले जाने सहित अन्य घटनाक्रमों पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं देख लीजिए। इस पर एक ही प्रतिक्रिया होनी चाहिए थी कि दुर्दांत अपराधी, जिसने पूरे प्रदेश की सत्ता तक को उंगलियों पर रखा उसके और उससे जुड़े लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए। इसकी जगह आपको इतने किंतु परंतु मिलेंगे , संविधान कानून का हवाला दिया जाएगा कि ऐसा लगता है मानो अतीक और उसके लोगों के साथ उपयुक्त व्यवहार नहीं हो रहा और योगी आदित्यनाथ की सरकार ही अन्यायी और अपराधी है।

इसका पहला निष्कर्ष तो यही है कि प्रदेश में यदि योगी सरकार नहीं होती तो अतीक को सजा दिलाना या बुलडोजर से संपत्तियों को ध्वस्त करना तो छोड़िए इतने लंबे समय तक जेल में रखना संभव नहीं होता। सपा के नेता- प्रवक्ता चाहे जितने गुस्से का प्रदर्शन करें सच यही है अतीक अहमद अपने जीवन का 21 वर्ष उसी पार्टी में रहा और सामान्य सदस्य के रूप में नहीं। उसे पांच बार विधायक एवं एक बार सांसद समाजवादी पार्टी ने ही बनाया। क्या सपा के नेतृत्व को अतीक के आपराधिक साम्राज्य का पता नहीं था? सब कुछ जानते हुए उसे विधानसभा और लोकसभा में लाकर आम लोगों का नियति निर्धारक बनाना क्या साबित करता है? 

ध्यान रखिए, उसके विरुद्ध पहला मुकदमा 1979 में दर्ज हुआ । इस तरह उसे सजा तक लाने में 44 वर्ष लगे हैं। उस पर 100 मुकदमे दर्ज होने के आंकड़े हैं। इस समय करीब 50 मामले न्यायालय में चल रहे हैं। इनमें हर प्रकार के जघन्य अपराध शामिल हैं। जो पुलिस प्रशासन अतीक के विरुद्ध आक्रामक होकर कानूनी सीमाओं में इस स्तर की कार्रवाई कर रहा है वही पहले उसके सामने नतमस्तक क्यों था? जो लोग भी भय और भ्रष्टाचार से मुक्त राज व्यवस्था व समाज की कामना करते हैं उन्हें राजनीतिक विचारधारा या समर्थन विरोध से परे हटकर इस प्रश्न का उत्तर तलाशना चाहिए। जिन लोगों ने साहस करके मुकदमा दर्ज किया उनकी दशा क्या हुई इसकी छानबीन करेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। जिस उमेश पाल अपहरण कांड में अतीक को उम्रकैद की सजा हुई उसमें उसके वकील खान सौलत हनीफ को भी उम्र कैद मिली है। ऐसे मामले विरले होते हैं जिसमें मुख्य आरोपी के साथ उसका वकील भी उतना ही बड़ा अपराधी साबित हुआ हो। उमेशपाल का अपहरण कर लाया गया तो वह पूरे कागजात तैयार करके रखा था जिस पर उसे हस्ताक्षर करना था और यही बयान उसे पुलिस और न्यायालय के समक्ष देना था। ध्यान रखिए, तब सपा का कार्यकाल था और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। उमेशपाल ने अतीक के पक्ष में बयान दिया। कल्पना करिए, जिस उमेशपाल ने मित्र राजूपाल की हत्या की कानूनी लड़ाई का संकल्प किया और उसी में उसकी जान भी गई उसने किन परिस्थितियों में अतीक के पक्ष में गवाही दी होगी! जब मायावती 2007 में मुख्यमंत्री बनी तभी उसके विरुद्ध कार्रवाई नए सिरे से आरंभ हुई। उमेशपाल ने प्राथमिकी दर्ज कराई तथा विरुद्ध बयान दिया। हालांकि मायावती भी अपने शासनकाल में अतीक के विरुद्ध कानूनी प्रक्रिया को मुकाम तक नहीं ले जा सकीं क्योंकि उनके विधायकों और मंत्रियों में भी उससे संपर्क- संबंध रखने वाले थे और जिनका स्वयं भ्रष्टाचार और अपराध का अतीत था। उनके बाद अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार में तो कोई उसे स्पर्श करने की सोच भी नहीं सकता था। उस दौरान उसके विरुद्ध मायावती शासन काल में मुकदमा दर्ज करने वालों की हालत क्या रही होगी इसकी कल्पना भी आसानी से की जा सकती है। वह केवल 1999 से 2003 तक अपना दल में रहा। 2004 में सपा ने ही उसे पंडित जवाहरलाल नेहरू के क्षेत्र फूलपुर से उम्मीदवार बनाकर लोकसभा भेज दिया। यह समय केंद्र में यूपीए सरकार का कार्यकाल था। प्रदेश में 3 वर्ष तक मुलायम सिंह यादव की सरकार रहेगी। 2014 में भी अगर नरेंद्र मोदी की लहर नहीं होती तो अतिक्रमण लोकसभा पहुंच जाता।

 चाहे कोई कितना बड़ा अपराधी बाहुबली माफिया हो अगर वह माननीय बन गया तो  विशेषाधिकार हो जाते हैं और सामान्यतः पुलिस प्रशासन उसके विरुद्ध मुकदमे लेने, कार्रवाई करने से तब तक बचता है जब तक राजनीतिक नेतृत्व प्रत्यक्ष परोक्ष हरी झंडी नहीं दे देता। योगी आदित्यनाथ सरकार में भी आरंभ में उसके विरुद्ध कार्रवाई की गति अत्यंत धीमी रही। लंबे समय तक प्रदेश में ऐसे अपराधियों माफियाओं और अंडरवर्ल्ड के लिए हर स्तर का इंफ्रास्ट्रक्चर यानी आधारभूत संरचना सशक्त हो गया। इन सबको तलाश कर ध्वस्त करना आसान नहीं है। सरकार के समक्ष समस्या कानून और उसकी प्रक्रियाओं के पालन करते हुए कार्रवाई की होती है जबकि माफियाओं और अपराधियों के समक्ष अपनी तथा तंत्र की रक्षा करने -छिपाने के लिए कोई बाध्यता नहीं। बावजूद योगी आदित्यनाथ सरकार की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने इतने बड़े माफिया को इस स्थिति में ला दिया कि केवल आदेश पर हत्या और अपहरण कराने वाले की पत्नी और बच्चे को भी स्वयं हत्या करने के लिए सामने आना पड़ा। उनके सामने अब बचने का कोई चारा नहीं है। यानी पूरे परिवार के कानूनी रूप से खत्म होने की आधारभूमि। विधानसभा में जब मुख्यमंत्री ने इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे की घोषणा की उसी समय अतीक और उसके साम्राज्य के अंत का संकेत मिल गया। 

लोग प्रश्न उठा रहे हैं कि आखिर सड़क से उसे इतनी दूर प्रयागराज लाने की आवश्यकता क्या थी? निस्संदेह, उसे हवाई जहाज या रेल से भी लाया जा सकता था। सड़क से लाने की घोषणा के साथ ही देश भर में चर्चा होने लगी कि या तो गाड़ी पलटेगी या उसको मुठभेड़ में मार दिया जाएगा। यह भय पूरे रास्ते आने और लौटने तक अतीक के अंतर्मन में रहा होगा, उसके परिवार और रिश्तेदार एवं समर्थक भी हर क्षण इसी चिंता में डूबे रहे होंगे कि पता नहीं कब उसका अंत कर दिया जाए। यह कानूनी भी सही है और इससे अपराध करने वाले के अंदर यह एहसास हुआ होगा कि अगर उसने न किया होता तो ऐसी स्थिति नहीं होती। इससे दूसरे अपराधियों -आतंकवादियों -माफियाओं के अंदर भी संदेश गया होगा कि तुम्हारी भी दुर्दशा ऐसी ही होगी। अपराध उन्मूलन या नियंत्रण के क्षेत्र में डेटरेंट यानी भय निवारक शब्द का प्रयोग होता है। इसका अर्थ है कि ऐसी कार्रवाई करें जिसे देखकर भय से दूसरे अपराधी अपराध करना छोड़ दें और नए अपराधी तैयार नहीं हो हो। उम्मीद करनी चाहिए साबरमती जेल से नैनी जेल लाने और  यहां से ले जाने के प्रसंग का ऐसा ही असर हुआ होगा। न जाने ऐसे लोगों के कितनी संख्या होगी जिन्हें अतीक के कारण परिवार, रिश्तेदार, दोस्त की जान गंवानी पड़ी होगी, संपत्तियां छोड़नी पड़ी होगी या भय से पलायन कर चुप कर रहना पड़ा होगा। इन सबके साथ सही न्याय की शुरुआत हो गई है। इसमें बिना लाग लपेट  कहा जा सकता है कि उमेशपाल हत्याकांड की कानूनी परिणति भी वही होगी जो होनी चाहिए। 

अवधेश कुमार, ई-30,गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल 9811027208

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

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