गुरुवार, 18 जुलाई 2024

आखिर ब्राह्मण हर काम में शीर्ष पर क्यों हैं

बसंत कुमार

कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर किसी खान सर का एक वीडियो खूब चर्चा में आया जिसमें शिक्षा के महत्व को समझाते हुए शोषितों, वंचितों और पिछड़ों को शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए कहा गया कि ये वर्ग अपने सैकड़ों वर्ष के शोषण और दुर्दशा के लिए हर समय ब्राह्मणों को दोष देता है और उन्हे मनुवादी, पाखंडी और लोगों को अंधकार एवं अंधविश्वास में झोकने के लिए उत्तरदायी मानते हैं और यह बात कुछ हद तक ठीक भी हो सकती हैं पर अपने आप को बाबा साहेब डा. अम्बेडकर का अनुयायी कहने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि उनके पिछड़ेपन का मुख्य कारण उनकी अशिक्षा है और अशिक्षा से मुक्ति पाने के लिए सदियों पूर्व से ज्योति बा फुले, सावित्री बाई फुले और बाबा साहेब अम्बेडकर ने बताया कि शोषण से उनकी मुक्ति का रास्ता सिर्फ शिक्षा के द्वारा ही निकल सकता है पर उन महापुरुषों की यह बात इनके जेहन में नहीं उतरी और बार-बार ये यही आरोप लगाते हैं कि देश में 15% लोग 85% लोगों पर राज कर रहे हैं और देश में अधिकांश उच्च पदों पर सवर्ण विशेषकर ब्राह्मण ही बैठे हुए हैं।

यह आरोप लगाते हुए लोग यह भूल जाते है कि शादियों पूर्व से ही ब्राह्मणों ने शिक्षा के महत्व समझा और अपने बच्चो को शिक्षा दी! ब्राह्मण चाहे जितना ही गरीब हो, भिक्षा मांग कर गुजारा कर रहा पर उसने अपने बच्चों को शिक्षा अवश्य दी है! चाहे वैदिक काल रहा हो या आधुनिक भारत ब्राह्मणों ने भूखे पेट रहकर भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए अवश्य भेजा है और अपनी शिक्षा के कारण ही हर युग में ब्राह्मण शीर्ष स्थानों पर विराजमान रहे है और इसी कारण सरकार और प्रशासन में सभी उच्च स्थानों पर 90% से अधिक ब्राह्मण ही है और समाज के अन्य वर्गो को ब्राह्मणों में शिक्षा के प्रति लगन और रुचि के विषय में सीखने की अवश्यकता है।

कुछ लोग कहते है कि ब्राह्मण बुद्धिमान और प्रतिभाशाली होते हैं और मेरे विचार में यह कुछ सत्य भी है और इसका मुख्य कारण यह है कि यदि किसी कार्य को व्यक्ति के धर्म और जाति से जोड़ दिया जाता है तो इसका असर व्यक्ति की मानसिकता और क्षमता पर अवश्य पड़ता है और ब्राह्मण को यह बात बचपन से सिखाई जाती हैं कि पढाई लिखाई तो उसका धार्मिक कर्तव्य हैं और यही बात उन्हे शिक्षा के प्रति उत्साहित करती हैं, यह कुछ ऐसा ही है कि अफगानिस्तान में पख़्तून लडाकों को बचपन से ही यही सिखाया जाता है कि खून खराबा उनका कर्तव्य है और उनके बच्चे बड़े होकर खून खराबा ही करते है, कुछ ऐसी स्थिति देश में ब्राह्मणों की है कि शिक्षा को अपने धार्मिक कर्तव्य से जुड़े होने के कारण उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है इसलिए किसी विश्व विद्यालय में प्रोफेसर से लेकर से प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने वालो में ब्राह्मणों की संख्या अधिक पाई जाती हैं और शिक्षण के क्षेत्र में ब्राह्मणों की संख्या अधिक होने के कारण सरकार, प्रशासन न्यायपालिका में ब्राह्मणों की संख्या अधिक है और अन्य वर्ग के लोगों को यह बात मान लेनी चाहिए कि यदि उन्हे ब्राह्मणों की भांति सरकार में हर जगह अपना स्थान बनाना है तो ब्राह्मणों की भाति अपने बच्चों को शिक्षित अवश्य करें।

परन्तु हमारे देश में स्थित बड़ी विचित्र है जहां ब्राह्मण अपने बच्चों को शिक्षित करने पर जोर देते है वही अन्य जातीया अपने पुरखों के द्वारा किये गए कार्यों का बखान करते और उन पर आगे चलने का प्रयास करते है चाहे अब उसकी सार्थकता हो या न हो जैसे आज का क्षत्रीय अभी भी बप्पा रावल और महाराणा प्रताप की तलवार की धार से प्रेरित होकर अभी भी समाज में सर्वोच्च होने की बात करता है और प्रतिभाशाली होते हुए भी शिक्षा को अपनी प्राथमिकाता में नहीं रखता और यादव, जाट, गुर्जर आदि पिछड़ी जातियाँ आर्थिक रूप से मजबूत होने के बावजूद अपने बच्चों को शरीरिक रूप से सबल बनाने के लिए पहलवानी कराना पसंद कराती हैं और अन्य निम्न पिछड़ी जातियों के लोग अपने बच्चों को या तो अपने पुश्तैनी धंधे में डाल देते हैं या फिर कांवड़ ढोने या मन्दिर में घंटा बजाने में लगा देते है। यह प्राय: यह देखा गया है कि मन्दिर का पुजारी तो ब्राह्मण होता है पर श्रद्धालु अधिकतर पिछड़े और दलित होते हैं और सात दशक से अधिक समय से आरक्षण होने के बावजूद ये आज भी समाज की मुख्य धारा से कोसो दूर है और इनको मिलने वाले आरक्षण का लाभ उठाकर इनके समाज के धनाड्य लोग और धनाड्य होते जा रहे है और समाज के गरीब लोग अपने बच्चो को पढाने के बजाय अंध भक्त बना रहे है।

देश के आजाद होने के बाद संविधान ने सभी वर्गों, धर्मों और जातियों के लिए शिक्षा के द्वार खोले और मुफ्त/ सस्ती शिक्षा दिलाने के लिए सरकारी स्कूल खोले परंतु आज आलम यह है कि सरकारी स्कूलों के अध्यापक बच्चों को पढ़ाने के बजाय निम्न कामों में व्यस्त रहते हैं

1- सबका आधार सत्यापित करो और आनलाइन करो और जिनका आधार नहीं बना है उसे बनवाओ।

2- मिड डे मील में खाना बनवाकर खिलवाओ और इसके लिए बाजार से सब्जी भाजी लाओ।

3- बच्चो को पोलियो ड्रॉप पिलवाओ।

4- जनगणना करो

5- चुनाव में ड्यूटी करो और चुनाव की गणना में ड्यूटी करो।

6- स्कूल में अगर सफाई कर्मी नहीं है तो स्कूल के टायलेट की सफाई करवाओ।

7- अगर स्कूल की इमारत में टूट-फूट हुई है तो उसकी मरम्मत करवाओ।

इसके बाद समय बचता है तो बच्चों को पढ़ाओं यानि सरकारी स्कूलों के अध्यापक उस मल्टी टास्किंग स्टाफ को जो अपने बचे समय से पार्ट टाइम टीचर की तरह काम करता है, तो आप कैसे कह सकते है कि गरीब और वंचित समाज के लोगों के बच्चे उच्च वर्ग और धनाड्य परिवारों के बच्चों साथ कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे।

वंचित और पिछड़े वर्गों के लोगों से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे अपने बच्चों को अंधविश्वास और ढकोसले बाजी से दूर रखें और अपनी सैकड़ों वर्षों की गुलामी के लिए ब्राह्मणों को कोसने के बजाय उनसे शिक्षा के प्रति उनकी रुचि को अपनाएं और उनसे यह सीखे की तमाम आर्थिक मजबूरियों के बावजूद अपने बच्चों को पढ़ाएं अवश्य। जिस दिन वंचित, दलित और पिछड़े समाज के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करने लगेंगे, वे बगैर आरक्षण के सरकार और प्रशासन में उच्च पदों पर जा सकेंगे। सरकार को भी चाहिए कि देशी में बारहवीं कक्षा की शिक्षा मुफ्त और आवश्यक कर दें और जो लोग अपने बच्चो को स्कूल नहीं भेजते उन्हें किसी भी सरकारी लाभ से वंचित कर दिया जाए। तभी देश से जातिवाद और छुआ छुत समाप्त हो सकेगा।

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