शुक्रवार, 10 मई 2019

आपदा प्रबंधन की मिसाल

 अवधेश कुमार

दुनिया भारत को आश्चर्यमिश्रित नजरों से देख रही है। वास्तव में इस बार चक्रदात के प्रकोप को भारत ने जिस तत्परता के साथ मुकाबला किया और जनधन की क्षति को न्यूनतम किया वह दुनिया के लिए मिशाल बन गई है। भीषण चक्रवाती तूफान फोणि के आने की जैसे ही भविष्यवाणी हुई, उड़ीसा में तो भय की लहर पैदा हुई ही, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश के तटीय इलाकों में भी लोग अनहोनी के साये में जीने लगे और स्वाभाविक ही पूरा देश चिंतित हो गया। आखिर इन चक्रवातों का भारत में भारी तबाही मचाने का रिकॉर्ड तो है ही। 20 साल पहले आए ऐसे ही तूफान से उड़ीस तबाह हो गया था। लगभग 10 हजार लोग मारे गए। तूफान के बीच और जाने के बाद के दृश्य भयावह थे। कहीं लोगों के शव घरों के मलबे में दबे मिलते थे, कई लोगों की लाशें तो उनके घर से मीलों दूर मिलीं। बहुत शव मिले ही नहीं। अनेक घरों के नामोनिशान तक नहीं रहे। फोणि चक्रवात भी  अपने पूरे प्रकोपकारी ताकत क साथ ही आया। 240 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रहीं हवाएं और भारी बारिश क्या कर सकतीं थीं इसकी कल्पना करिए। सड़को और बस्तियों में उनका कहर दिखता भी है। पेड़ो से लेकर टावर तक, बिजली के खंभों से लेकर पानी की टंकी तक, सामान्य घरों से लेकर दूकान और वाहन तक जो रास्ते में आया उखाड़ फेंका। तूफान के बाद तबाही का मंजर राज्य की सड़कों पर साफ दिखाई देने लगा। हालांकि प. बंगाल और आंध्रप्रदेश तो बच गया। हां, हमारे पड़ोसी और निकटतम मित्र देश बांग्लादेश को अवश्य तबाही का सामना करना पड़ा है। किंतु इतने भीषण चक्रवात और उसके द्वारा मचाई गई तबाही के बावजूद भारत जन और धन के महवाविनाश से बच गया और यह पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। वास्तव में आपदा प्रबंधन में आपदा आने के पूर्व विनाश को कम करने के लिए उठाए गए कदम, आपदा के बीच उसका सामना करना तथा आपदा चले जाने के बाद राहत, बचाव और पुनर्वास...तीन बातें आतीं हैं। पुनर्वास तो आगे की बात है लेकिन अन्य मामलों में भारत ने आपदा प्रबंधन की मिसाल पेश किया है और दुनिया इसकी वाहवाही कर रही है।

फोणि के आने की सूचना के साथ ही सारी दुनिया की नजर लग गई थी कि तबाही कितनी ज्यादा होती है। सब आश्चर्यमिश्रित नजरों से देख रहे हैं कि यह कैसा भारत है जिसने प्रकृति के ऐसे तांडव का भी बिल्कुल सफलतापूर्वक सामना कर लिया। भारत आपदा प्रबंधन के मामले में पिछड़ा देश माना जाता था। संयुक्त राष्ट्र भारत के प्रयासों की जमकर तारीफ कर रहा है। आपदा के खतरे में कमी लाने वाली डिजास्टर रिस्क रिडक्शन फॉर यूनाइटेड नेशंस महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और जिनेवा स्थित यूएन ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनआईएसडीआर) की प्रमुख मामी मिजोटरी ने कहा कि भारत का कम से कम नुकसान के दृष्टिकोण ने तबाही में काफी कमी ला पाने में सफलता पाई। उन्होंने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की फोणि के बारे में सटीक चेतावनी की भी जमकर तारीफ की है। सच है कि मौसम विभाग की सटीक चेतावनी की वजह से ही उड़ीसा के तूफान में जनहानि कम हुई, क्योंकि हमने लोगों को पहले ही शिविरों और शेल्टर होमों में शिफ्ट कर दिया। जो गए वे अपने साथ बहुत सारा सामाने भी ले गए, इसलिए अगर उनका घर सुरक्षित हैतो उनको वापस आकर सामान्य जिन्दगी जीने में बड़ी समस्या नहीं है। हां, फसल तबाह हो गए, सामान्य दूकानदारों की दूकानें खत्म हो गईं, हजारों घर उड़ गए या पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और उनको फिर से पुरानी अवयथा में लाने में समय लगेगा लेकिन जिस तरह पूर्व तैयारी के कारण युद्धस्तर पर काम हो रहा है तथा केन्द्र एवं राज्य के बीच अद्भुत समन्वय है उसे देखते हुए आश्वस्त हुआ जा सकता है।

वास्तव में केन्द्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल, समय पूर्व एक-एक पहलू का पूर्वानुमान करते हुए उसके अनुरुप योजना तथा क्रियान्वयन पर फोकस ने ऐसे भयंकर चक्रवात के विनाश को न के बराबर कर दिया। संयुक्त राष्ट्रसंघ की ईकाई यूएनआईएसडीआर जेनेवा में इस पर चर्चा करने वाला है ताकि दूसरे देशों को भी इसका लाभ मिल सके। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत को इसके पूर्व कभी विश्व स्तर पर प्रशंसा शायद ही मिली हो। यह बताता है कि हमारे पास क्षमतायें हैं और नहीं हैं उनको विकसित करने का माद्दा भी है, आवश्यकता केवल उसमें बदलाव के लिए काम करने का है। आखिर वही मौसम विभाग, जिसका उपहास उड़ाया जाता था इतना कैसे बदल गया? मौसम विभाग के नए क्षेत्रीय तूफान मॉडल (रीजनल हरिकेन मॉडल) जो भारत की चक्रवातों में जीरो कैजुएलिटी (हादसा शून्य) का हिस्सा है उसकी मदद से हजारों लोगों की जान बचाने में मदद मिली। इसने दिखाया है कि कैसे 1999 से अब सटीक ट्रैकिंग और पूर्वानुमान लगाने की दिशा में प्रगति हुई है। देश ने निर्णय किया कि ऐसे तूफानों से एक भी व्यक्ति के मौत न होने की अवस्था को पाना है। एक बार लक्ष्य बन गया तो उसके अनुरुप सारी व्यवस्थायें। मौसम विभाग का लगभग कायाकल्प हो चुका है। सूचना के साथ मौसम विभाग ने स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए लोगों को जागरूक करना आरंभ कर दिया था।  तूफान आने से पहले ही केन्द्र सरकार ने आरंभिक 14 हजार करोड़ की राशि निर्गत कर दी। ओडिशा में स्थानीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दल या एनडीआरएफ की टीमें सक्रिय हो गई थीं। एनडीआरएफ ने 65 टीमें उतारीं, जो किसी क्षेत्र में अभी तक की सबसे बड़ी तैनाती है। एक टीम में 45 लोग शामिल थे। तूफान के दिन से लेकर अब तक उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और बंगाल सड़कें दुरुस्त करने, कानून-व्यवस्था और भोजन की व्यवस्था के लिए अतिरिक्त टीमें लगाई गईं हैं। फोणि से निपटने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी थी। पुरी के गोपालपुर में सेना की तीन टुकड़ियां स्टैंडबाय पर थीं और पनागर में इंजिनियरिंग टास्क फोर्स थी। भारतीय वायुसेना ने दो सी -17, दो सी-130 और चार एएन-32 को स्टैंडबाय पर रखा था। नौसेना ने राहत कार्यों के लिए 6 जहाजों को तैनात किया। मेडिकल और डाइविंग टीम अलर्ट पर थीं।

देश में साधनहीनता का रोना रोने वाले नहीं समझेंगे और वे इनमें से भी मीनमेख निकालेंगे। पर देख लीजिए, न राज्य सरकार ने केन्द्र की कोई शिकायत की और न केन्द्र ने किसी तरह राज्य सरकार को लपेटने की कोशिश, जबकि चुनाव चल रहा है। एक ओर प्रधानमंत्री अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री अपने यहां और दोनों के बीच भी कॉन्फ्रेंस हो रहा है। यही व्यवहार अपेक्षित है। राजनीति अपनी जगह देश का काम अपनी जगह। राज्य एवं केन्द्र की मशीनरी के बीच तालमेल का अभाव भी ऐसी विपदा में चुनौतियां बनता था। इस बार ऐसा नं था, न है। उड़ीसा सरकार ने लोगों को सचेत करने में और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में पूरी मशीनरी झोंक दी थी और केन्द्र की टीमें वहां उनके अनुसार सहयोग में लगीं थीं। तूफान से पहले करीब 26 लाख टेक्स्ट मैसेज भेजे गए, टीवी पर विज्ञापन, तटीय इलाकों में लगे साइरन, बसें, पुलिस अधिकारी और सार्वजनिक घोषणा जैसे तमाम उपाय राज्य सरकार ने किए। क्या आप कल्पना कर सकते थे कि बिना किसी हो-हल्ला के 12 लाख से ज्यादा लोग बस्तिया खाली कर शेल्टरहोमों या शिविरों में चले जाएंगे? उड़ीसा तो भारत का एक पिछड़ा राज्य है। अगर वहां यह चमत्कार हो सकता है तो अन्य जगह क्यों नहीं हो सकता। 1999 के अनुभवों से सीख लेकर समुद्र तटीय इलाकों से कुछ किमी की दूरी पर शेल्टर होम बनाए गए थे। आईआईटी खड़गपुर के विशेषज्ञों द्वारा डिजाइन की गई ये इमारतें चक्रवाती तूफानों को झेलने में सक्षम हैं। 1999 में रेड क्रॉस के 23 साइक्लोन शेल्टर थे जिनमें 42 हजार लोगों को आश्रय मिला था। उससे प्रेरणा लेकर पर्याप्त शेल्टर होम बनाए गए और ध्यान रखा गया कि गांववालों को शेल्टर तक पहुंचने के लिए सवा दो किमी से ज्यादा न चलना पड़े। आज राज्य में 879 मल्टीपरपज साइक्लोन शेल्टर हैं। बहरहाल, केन्द्र की बिजली और संचार सेवा बहाली पर तीव्र गति से काम चल रहा है। बिजली सेवा तुरंत शुरू करने के लिए बिजली के पोल, डीजल जेनेरेटर और वर्कर मुहैया कराए जा रहे हैं। नौसेना प्रभावित इलाकों में खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य सेवाएं, कपड़े, पुनर्वास सामग्री पहुंचाने और पेड़ों को हटाने पर लगी हुई है। ओडिशा में तैनात आईएनएनस चिल्का में टॉर्च और बैट्रियां भी भेजी जा रही हैं। नौसेना के प्रभारी अधिकारी इन सामग्रियों को वितरण का काम देख रहे हैं। सार्वजनिक रसोइयों की व्यवस्था की जा रही है। नौसेना का पूर्वी बेड़ा भी राहत और बचाव कार्यों में लगा है। यहां नौसेना के जहाज रणविजय, ऐरावत और कदमत राहत अभियानों के लिए तैनात किए गए हैं। इनके अलावा तीन हेलिकॉप्टरों के जरिए भी नजर रखी जा रही है। आप देख सकते हैं कि मुख्य सड़कों से पेंड़ और पोल कितनी तेजी से हटा दिए गए। आवागमन लगभग आरंभ। यह है आपदा प्रबंधन है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

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