शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को एफ 16 विमान देने का मतलब

 

अवधेश कुमार

अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने पाकिस्तान को आठ एफ-16 फाइटर जेट बेचने के सौद पर मुहर लगा दी है। 70 करोड़ डॉलर के इस सौदे के तहत पाकिस्तान को लॉकहीड मार्टिन ग्रुप के इन जहाजों के अलावा रडार और बाकी उपकरण भी मिलेंगे। ये जहाज हर तरह के मौसम में हमला कर सकते हैं। अमेरिका से दूसरे देशों को हथियार बेचने का काम देखने वाली पेंटागन की डिफेंस सिक्युरिटी को-ऑपरेशन एजेंसी ने इस डील को मंजूरीे दी है। एजेंसी ने कहा कि हम ये फाइटर जेट इसलिए दे रहे हैं, ताकि पाकिस्तान की खुद की हिफाजत करने की ताकत बढ़े। वह काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन्स यानी आतंकवाद विरोधी अभियान को भी मजबूती से अंजाम दे सके। अमेरिका का यह फैसला इसलिए ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है क्योंकि रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों ही दलों के प्रभावशाली सांसदों के बढ़ते विरोध के बावजूद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कांग्रेस को अधिसूचित किया है कि वह पाकिस्तान सरकार को एफ-16 ब्लॉक 52 विमान, उपकरण, प्रशिक्षण और साजोसामान से जुड़े सहयोग वाली विदेशी सैन्य बिक्री करने को मंजूरी दे रहा है।

जाहिर है, ओबामा प्रशासन का यह बहुत बड़ा फैसला है। हालांकि इससे पहले अप्रैल महीने में अमेरिकी विदेश विभाग ने एक अरब डॉलर की लागत वाले सैन्य हार्डवेयर और उपकरण पाकिस्तान को देने की स्वीकृति दी थी। लेकिन वहां के माहौल को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि पाकिस्तान के साथ इस सौदे को अमेरिका शायद मंजूर न करे। सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष सीनेटर बॉब कोर्कर ने ओबामा प्रशासन से पहले कहा था कि वे पाकिस्तान को जेट बेचने के लिए अमेरिकी फंड का इस्तेमाल नहीं होने देंगे। पाकिस्तान अगर विमान चाहता है तो वह खुद के बूते खरीदे। अमेरिका इस सौदे का 46 प्रतिशत व्यय नहीं उठाएगा। पाकिस्तान के पास 8 एफ-16 में से चार जहाज, रडार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम खरीदने लायक भी कोष नहीं हैं। सीनेटर कोर्कर ने अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन कैरी को पत्र लिखकर कहा था कि पाकिस्तान के रिश्ते हक्कानी नेटवर्क से हैं। इस वजह से पाकिस्तान को कोई हथियार नहीं बेचा जाना चाहिए। यही नहीं अमेरिकी सांसदों ने पिछले साल मांग की थी कि अमेरिका पाकिस्तान जैसे चुगलखोर और मुखबिरी करने वाले देश को हथियार न बेचे। सांसदों ने ये भी कहा कि पाकिस्तान लगातार आतंकियों का समर्थन कर रहा है, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। सांसद टेड पोए ने ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद में मार गिराए जाने की घटना का जिक्र करते हए कहा था कि अगर उस वक्त अमेरिका ने पाकिस्तान को यह बताया होता कि वह लादेन पर कार्रवाई करने वाला है तो पाक ने यह बात लादेन तक पहुंचा दी होती। एक सांसद डाना रोहाब्राशर ने पाकिस्तान को धोखेबाज बताते हुए उसे बेनेडिक्ट अर्नाल्ड कहा था। बता दें कि 17वीं सदी में बेनेडिक्ट एक अमेरिकी जनरल था, जिसने अपनी ही फौज को धोखा देते हुए ब्रिटेन की मदद की थी। एड रायस ने कहा था कि अमेरिका सैन बर्नार्डिनो के हमले में शामिल तश्फीन मलिक के पाकिस्तान से रिश्तों पर किसी को शक नहीं हो सकता। वह पाकिस्तान के ही एक स्कूल में पढ़ी और उसने कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया। पाकिस्तान का रिकॉर्ड खराब है। उसे हथियार न बेचे जाएं।

साफ है कि ओबामा प्रशासन ने इन सारे विरोधों को नजरअंदाज करके अलोकप्रियता का जोखिम उठाते हुए अगर फैसला किया है तो उसके कुछ कारण होंगे। तो क्या हो सकते हैं कारण? ध्यान रखिए इस सौदे से दो दिनों पहले ही अमेरिका ने पाकिस्तान को मोटी राशि की भी मदद दी है। इसके पक्ष में बोलते हुए विदेश मंत्री जौन कैरी ने कहा कि इससे पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने में मदद मिलेगी तथा भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने में भूमिका निभाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इससे अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका को पाकिस्तान सहयोग कर सकेगा। इस तर्क से हम आप सहमत हों या न हों, अमेरिका का अपना मत है और इसी मत से लाख विरोध करते, कई बार न चाहते हुए भी अमेरिका पाकिस्तान को धन एवं हथियार मुहैया कराता है। पाकिस्तान को अमेरिका ने पिछले 14 साल में यानी जबसे आतंकवाद विरोध युद्ध आरंभ हुआ, 1820 अरब रुपए की मदद दी है।  आरोप है कि पाकिस्तान ने ज्यादातर मदद का इस्तेमाल भारत के खिलाफ ताकत बढ़ाने में और सरकारी खर्चे निकालने में किया। उदाहरण के लिए पिछले साल अमेरिका से मिले 50 करोड़ रुपए सरकार ने बिलों का भुगतान करने और विदेशी मेहमानों को तोहफे देने में खर्च कर दिए।  अमेरिका इन सूचनाओं को नजरअंदाज करता है।

एफ 16 देने संबंधी उसका तर्क देखिए। यह प्रस्तावित बिक्री दक्षिण एशिया में एक रणनीतिक सहयोगी की सुरक्षा में सुधार में मदद करके अमेरिकी विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के लक्ष्यों में अपना योगदान देती है। प्रश्न है कि अमेरिकी विदेश नीति का दक्षिण एशिया में लक्ष्य क्या है? अगर पाकिस्तान उसका रणनीतिक सहयोगी है तो भारत भी रणनीतिक सहयोगी है। ओबामा प्रशासन के इस फैसले के बाद भारत ने दिल्ली में मौजूद अमेरिकी राजदूत को तलब किया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान का रिकॉर्ड बताता है कि वह हथियार बेचे जाने लायक देश नहीं है। हम ओबामा प्रशासन के फैसले से निराश हैं। राजदूत को तलब करना सामान्य बात नहीं है। स्पष्ट है कि भारत ने अपनी नाखुशी प्रभावी तरीके से पहुंचा दी है। लेकिन पेंटागन ने बयान में कहा कि इससे क्षेत्र में सामान्य सैन्य संतुलन प्रभावित नहीं होगा। प्रस्तावित बिक्री मौजूदा और भविष्य के सुरक्षा से जुड़े खतरों से निपटने में पाकिस्तान की क्षमता में सुधार लाती है। इसके अनुसार ये अतिरिक्त एफ-16 विमान हर मौसम में, दिन-रात अभियान चलाने में मदद करेंगे, आत्म-रक्षा क्षमता प्रदान करेंगे और उग्रवाद रोधी एवं आतंकवाद रोधी अभियान चलाने की पाकिस्तान की क्षमता को बढ़ाएंगे। पाकिस्तान के पास हथियारों की कमी है ऐसा नहीं माना जा सकता। पाकिस्तान के पास अभी 70 से ज्यादा एफ-16 लड़ाकू जेट हैं। उसकी वायुसेना के पास फ्रांसीसी और चीनी मारक एयरक्राफ्ट्स भी हैं।

पाकिस्तान को आत्मरक्षा किससे चाहिए? क्या भारत से? चलिए इस प्रश्न के जवाब का इंतजार करें। इन एफ-16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किए जाने से जुड़ी भारत की आशंकाओं के बारे में पूछे जाने पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, मुझे स्पष्ट तौर पर बता लेने दीजिए, किसी भी हथियार के हस्तांतरण से पहले हम क्षेत्रीय सुरक्षा और कुछ अन्य कारकों को ध्यान में रखते हैं। हमारा मानना है कि हमारी सुरक्षा मदद एक ज्यादा स्थायी और सुरक्षित क्षेत्र के लिए योगदान देती है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, अमेरिका क्षेत्र में अपने सुरक्षा सहयोग को किसी के लाभ और किसी के नुकसान के आधार पर नहीं देखता। पाकिस्तान, भारत और अफगानिस्तान के साथ हमारे सुरक्षा संबंध अलग-अलग हैं लेकिन हर संबंध अमेरिकी हित और क्षेत्रीय स्थिरता को आगे बढ़ाता है। अमेरिका की ओर से कहा गया है कि ये अभियान पाकिस्तानी क्षेत्र का इस्तेमाल आतंकवाद की शरणस्थली और अफगानिस्तान में उग्रवाद को बढ़ावा देने वाले आधार के तौर पर किए जाने की आतंकियों की क्षमता को कम करते हैं। अधिकारी ने कहा कि ये अभियान पाकिस्तान और अमेरिका दोनों के राष्ट्र हित में हैं। इसके साथ-साथ यह पूरे क्षेत्र के हित में हैं। तो यह है अमेरिका का जवाब। इसे हम जिस रुप में लें। आखिर क्षेत्र में अमेरिकी हित क्या है? क्षेत्रीय स्थिरता की उसकी सोच क्या है?  आतंकवाद विरोधी अभियान चलाने में वह कितना मदद करता है यह भी देखना होगा। यह उसका विश्लेषण है और हमें देखना होगा कि क्या वाकई नवाज शरीफ सरकार इतनी बदल गई है कि इसका इस्तेमाल वह पाकिस्तान में आतंकवाद के खात्मे एवं अफगानिस्तान मे आतकवाद विरोधी युद्व में करेगा। लेकिन अमेरिका कुछ भी कहे इससे भारत की चिंता तो बढ़ेगी जिसे उसने स्पष्ट कर दिया है। स्वयं अमेरिका ने कहा है कि पाकिस्तान द्वारा लगातार अपने नाभिकीय अस्त्रों में वृद्धि चिंता पैदा करता है। तो क्या अमेरिका ने उसके सामने कम से कम यह शर्त रखा है कि वह अपने नाभिकीय अस्त्रों में बढ़ोत्तरी न करे तथा उसकी पुख्ता सुरक्षा का प्रमाण दे? इसकी जानकारी उसे भारत को अवश्य देना चाहिए।

अवधेश कुमार, ई.ः30,गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

 

 

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