रविवार, 18 अगस्त 2024

विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की सशक्त नींव

डॉ. विपिन कुमार

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में मंकीपॉक्स को अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया गया। इसी विषय को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने भी मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करते हुए, मंकीपॉक्स की स्थिति और तैयारियों की विस्तृत समीक्षा की। हालाँकि, भारत में अब तक मंकीपॉक्स का कोई मामला सामने नहीं आया है।

इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि पूर्ण रूप से सावधानी बरतने के लिए कुछ विशेष उपाय, जैसे कि सभी हवाई अड्डों, बंदरगाहों और ग्राउंड क्रॉसिंग पर स्वास्थ्य इकाइयों को संवेदनशील बनाना; परीक्षण प्रयोगशालाओं को तैयार करना; किसी भी मामले का पता लगाना, उसे आइसोलेट करना और उसका प्रबंधन करने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को तैयार करना, आदि किए जाएं। भविष्य में किसी भी संभावित खतरे को न्यूनतम रखने की दिशा में स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की यह तत्परता वास्तव में प्रशंसा के योग्य है।

 

हमने कुछ समय पूर्व ही कोरोना वैश्विक महामारी की विभीषिका देखी। इस महामारी ने दुनिया में करोड़ों लोगों के जीवन का अंत कर दिया। यह एक ऐसी घटना थी, जिसने दुनिया के समस्त देशों को अपनी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर नए सिरे से सोचने के लिए विवश किया। भारत में भी इस महामारी का व्यापक असर देखने के लिए मिला।

लेकिन, हमने पीएम मोदी के कुशल नेतृत्व में इससे तेजी से उबरने में सफलता हासिल की है। ध्यान देने वाली बात यह है कि योग हो चाहे आयुर्वेद, पीएम मोदी ने पहली बार सत्ता में आते ही स्वास्थ्य और स्वच्छता को लेकर सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर कार्य किया। तब शायद कोई संपूर्ण मानवजाति को खतरे में डालने वाले इस वायरस के बारे में सोच भी नहीं रहा था।

बेशक, भारत ने आजादी के बाद, आर्थिक मोर्चों पर काफी सफलता हासिल की थी। लेकिन निरंकुशता के कारण, संसाधनों पर सिर्फ संपन्न लोगों को वर्चस्व हासिल था। इस वजह से समाज में अमीर और गरीब के बीच एक गहरी खाई थी। नतीजन, गरीब और बेसहारा लोगों को मूल स्वास्थ्य सुविधाएं भी नसीब नहीं हो पाती थीं।

पूर्ववर्ती सरकारों की जन-स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति संवेदनशीलता को इसी बात से समझा जा सकता है कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भी, देश में सिर्फ 7 एम्स और 387 मेडिकल कॉलेज थे, जिसमें 82 हजार छात्रों के पढ़ाई की व्यवस्था थी।

 

लेकिन पीएम मोदी ने 2014 में सत्ता में आते ही, स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लोगों में एक नए विमर्श को जन्म दिया और उनके कार्यकाल में अभी तक 15 एम्स स्वीकृत हो चुके हैं। वहीं, आज़ादी के बाद साल 2014 तक जहाँ देश में केवल 380 मेडिकल कॉलेज बनाए गए, भाजपा सरकार ने बीते एक दशक में ही 300 मेडिकल कॉलेज बना दिए गए।

पीएम मोदी ने देश के तमाम स्वास्थ्य उपकेंद्रों, प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों, और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को ढ़ांचागत रूप से काफी मजबूत करते हुए, आयुष्मान भारत और पीएम जन औषधि जैसे महत्वाकांक्षी योजनाओं की भी शुरुआत की। ताकि आम लोगों को भी अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सके।

इसके अलावा, उन्होंने अपने कार्यकाल में योग को भी एक अंतरराष्ट्रीय पहचान देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, जिससे लोगों को कई बीमारियों से बिना किसी खर्च से राहत पाने में मदद मिल रही है।

उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने अपनी आचार संहिता में बड़ा बदलाव करते हुए, पहली बारआधुनिक चिकित्साको परिभाषित किया है। इस मसौदे के अनुसार, अब पंजीकृत पेशेवर अपने नाम से पहलेमेडिकल डॉक्टरजोड़ सकते हैं।

इतना ही नहीं, इस मसौदे के अनुसार, अब सभी पंजीकृत चिकित्सा पेशेवरों को बीते 5 वर्षों की कमाई के संबंध में हलफनामा देने की भी व्यवस्था है। इस मसौदे में, उनके सम्मान की रक्षा के लिए यह प्रस्ताव दिया गया है कि यदि किसी मरीज के रिश्तेदार उनके साथ गाली-गलौच या दुर्व्यवहार करते हैं, तो उन्हें मरीज का इलाज करें की अनुमति होगी।

आज डॉक्टरों द्वारा मरीजों से मनमाने तरीके से पैसे वसूलने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। लेकिन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने इस पर भी नकेल कसने की तैयारी शुरू कर दी है।

इस मसौदे के अनुसार, अब डॉक्टरों को महंगी दवा बेचने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा उनके दुकान खोलने और मेडिकल उपकरणों को भी बेचने पर सख़्ती बरती गई है।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के इन प्रावधानों का सीधा लाभ दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को है। क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि छोटे शहरों में अपना क्लिनिक चलाने वाले डॉक्टर खुद ही अपनी दवाई की दुकान खोल लेते हैं और मरीजों को काफी महंगी दवाइयां बेचते हैं। इससे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर इलाज का खर्च काफी बढ़ जाता है और उन्हें अपने घर को चलाने में कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा हाल ही में सभी मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों के लिए एक परामर्श ज़ारी किया है, जिसमें सभी कॉलेजों और अस्पताल परिसरों में संकाय, छात्रों और रेजिडेंट डॉक्टरों सहित सभी कर्मचारियों के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण के लिए नीति विकसित करने का आग्रह किया गया है। यह परामर्श कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ कथित बलात्कार और हत्या के विरोध में देश भर के कई अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने के मद्देनजर ज़ारी किया गया है।

बहरहाल, एलौपेथी के अलावा, पीएम मोदी के कार्यकाल में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को भी काफी प्रोत्साहित किया गया है। बता दें कि भारत में आयुर्वेद का इतिहास, सभ्यता के आरंभ से जुड़ा हुआ है।

यह एक ऐसी पद्धति है, जो किसी भी बीमारी को जड़ से ही मिटा देती है। यही कारण है कि भारत में इसका स्थान कोई और पद्धति नहीं ले पाई है। आज बीमारियों के इलाज औक महामारी विज्ञान के नए-नए आयामों में आयुर्वेद की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए सभी हितधारकों को साथ आने की जरूरत है।

साथ ही, मेडिकल की पढ़ाई के लिए आज एक ऐसे पाठ्यक्रम को विकसित करने की जरूरत है, जिसमें आयुर्वेद और एलोपैथी, दोनों का ज्ञान समाहित हो और लोगों को सस्ती और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिले। हमें पूर्ण विश्वास है कि बीते एक दशक में हमने भारत में एक विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवा को विकसित करने की जो बुनियाद रखी है, पीएम मोदी और जेपी नड्डा की अगुवाई में तकनीक, परंपरा और अनुशासन की मदद से अगले 5 वर्षों में उसे एक नई उँचाई मिलेगी।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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