अवधेश कुमार
अल कायदा के वर्तमान प्रमुख अयमान अल जवाहिरी के बयान के बाद ऐसा लगता है जैसे देश के लिए यह मुद्दा ही न हो। आरंभ में भारत सरकार का सतर्क व सक्रिय होना, गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, आईबी और रॉ प्रमुखों के साथ बैठक व विचार विमर्श करना एवं सतर्कता संबंधी अन्य निर्देश अस्वाभाविक नहीं था। अगर 55 मिनट के वीडियो में जवाहिरी कह रहा हैै कि अल कायदा की नई शाखा इस्लामी राज को बढ़ावा देगी और भारतीय उपमहाद्वीप में जिहाद का झंडा बुलंद करेगी तो हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। उसके अनुसार अल कायदा की नई शाखा बर्मा (म्यांमार), बांग्लादेश, असम, गुजरात, अहमदाबाद और कश्मीर में मुसलमानों को गर्व के साथ जोड़ेगा। पहली नजर में ऐसा लगता है कि अल कायदा नये सिरे से इस क्षेत्र में जेहाद और इस्लामी राज के नाम पर आतंकवाद को गति और शक्ति देने की योजना पर काम करने लगा है। उसने अफगानिस्तान मेें मुल्ला उमर को पूर्ण समर्थन देने का भी ऐलान किया है। यानी जो स्थिति 2001 अक्टूबर के पहले अफगानिस्तान में थी उसकी स्थापना। जाहिर है, अगर इसका पहला निष्कर्ष निकाला जाए तो यही कहना होगा कि हमारे लिए यह ऐसी चुनौती है जिसका सामना करने के लिए हमें पूर्व तैयारी करनी होगी।
इस बयान एवं इससे जुड़े तथ्यों के चार पक्ष हैं। सबसे पहला है, बयान की सत्यता। यह टेप अल कायदा की आधिकारिक मीडिया वेबसाइट अस-सहाब पर आया है, इसलिए इसकी सत्यता पर प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता। दूसरे, इसमें भारतीय उपमहाद्वीप में शाखा का नाम कायदात अल जिहाद तथा इसके नेता के रुप में पाक आतंकी आसिम उमर का नाम घोषित किया गया है। तीसरे, यू ट्यूब, सोशल मीडिया पर मौजूद जवाहिरी के विडियो को जांच के बाद एजेंसियों ने सही पाया। दूसरा पक्ष है, इसका अर्थ जिसका कुछ अंश हमने आरंभ मंे स्पष्ट किया। ध्यान रखिए जवाहिरी ने अपने संदेश में सभी लड़ाकों को एक होने और आपसी कलह से दूर रहने की हिदायत दी है। जवाहिरी ने कहा, अगर आप कहते हो कि मुस्लिमों को पवित्र रखने के लिए जेहाद जरूरी है, तो आपको पैसे और सम्मान के लिए उनके खिलाफ नहीं जाना चाहिए। कलह एक अभिशाप और पीड़ा है। उसने आगे कहा कि यदि आप कहते हो कि आपके जिहाद से अल्लाह खुश नहीं होता तो आप नेतृत्व का पहला मौका ही खो देते हो। यहां कलह, जेहाद का अर्थ आदि शब्द को प्रयोग क्यों किया गया है?
वस्तुतः इसका पहला कारण तो यह माना जा रहा है कि अल कायदा की ही एक पूर्व शाखा आईएसआईएस के विस्तार और उसकी उग्र प्रचंडता ने जिस तरह दुनिया भर में जेहादी मानसिकता वालों को अपनी ओर आकर्षित किया है, उसकी शक्ति बढ़ी है उससे अल कायदा के सामने अपने को मुख्य जेहादी संगठन केन्द्र के रुप में बनाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। आईएसआईएस इराक में अल-कायदा के तौर पर ही जाना जाता था। 2006 में अमेरिकी और स्थानीय सहयोगी सेना ने मिलकर इसके नेता अल-जरकावी को मार डाला एवं संगठन को लगभग ध्वस्त कर दिया। 2011 में यह समूह फिर उठ खड़ा हुआ और बाद में संगठन ने अल बगदादी के नेतृत्व में अप्रैल 2013 में अल-कायदा की छत्रछाया से निकलते हुए अलग आईएसआईएस कायम कर लिया। जवाहिरी ने आईएसआईएस को सिर्फ़ इराक़ पर ध्यान केंद्रित और सीरिया को अल-नसरा के हवाले छोड़ने को कहा था। बग़दादी और उनके लड़ाकों ने अल-क़ायदा मुखिया की अपील का खुलेआम उल्लंघन किया, जिसके कारण इस्लामी चरमपंथियों में उनकी रुतबा अब बढ़ गया है। बगदादी स्वयं को ओसामा बिन लादेन का सच्चा वारिस साबित करने पर तुला है। तो जवाहिरी एवं अल बगदादी के बीच एक प्रकार की प्रतिद्वंद्विता है और दोनों के विचारों में भी अंतर है। आईएसआईएस ने सीरिया और इराक में खुद को काफी मजबूत कर लिया है। 1700 इराकी सैनिकों की हत्या ने उसकी बर्बरता को विश्व भर में प्रसिद्ध कर दिया। इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा करते हुए उसने इस्लामिक स्टेट घोषित कर दिया और अबु बक्र अल-बगदादी ने खुद को इस्लामिक स्टेट का खलीफा घोषित कर दिया और पूरी दुनिया के मुस्लिमों को उसके प्रति वफादार रहने को कहा। आज कुल मिलाकर इंगलैण्ड के समान क्षेत्र पर उसका कब्जा है।
अल-कायदा और आईएसआईएस का लक्ष्य लगभग एक ही है पर आईएसआईएस दूसरे संगठनों को कमजोर कर अपने समूह को मजबूत करना चाहता है। पूरी दुनिया में इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों पर प्रभाव जमाने की दिशा में आईएसआईएस और अल-कायदा के बीच होड़ है। अभी यह कहना मुश्किल है कि कौन बड़ा है, पर जेहादी लड़कों का आकर्षण आईएसआईएस की ओर ज्यादा है यह सच है। अमेरिका आधारित इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वार (आईएसडब्ल्यू) के मुताबिक, आईएसआईएस एक आतंकवादी नेटवर्क की तुलना में सैनिक संगठन की तरह काम करता है। सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स का दावा है कि अकेले जुलाई महीने में 6,000 लड़ाकों ने चरमपंथी समूह का दामन थामा। इसके पास 14 हजार करोड़ रुपये नकदी की बात कही जा रही है। इसके अलावा तेल कुंओं तक पर इसका कब्जा है। आईएसआईएस यानी इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया (इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड दी लीवेंट भी कहते हैं) वैसे तो मुख्यतः इराक और सीरिया के सुन्नी इलाकों को इस्लामिक स्टेट बनाने पर काम कर रहा है, पर लीवेंट दक्षिणी तुर्की से लेकर मिस्र तक के क्षेत्र का पारंपरिक नाम है। संगठन दावा करता है कि उसमें अरब क्षेत्र के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और कई यूरोपियन देशों के लड़ाके शामिल हैं।
इसमें जवाहिरी के पास इस तरह का संदेश अपरिहार्य हो गया था। हालांकि पाकिस्तान, अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका में अल-क़ायदा की व्यापक मौजूदगी है, यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस में भी उसकी ओर लड़ाके आए हैं। यानी अल कायदा एवं जवाहिरी अभी भी एक बड़ी ताकत है। नाइजीरिया का बोको हरम, अरब क्षेत्र का अलु सैयफ, इस्लामिक मूवमेंट आफ उज्बेकिस्तान, ईस्त तुर्कमेनिस्तान इस्लामिक मूवमेंट, अल शबाब, जोमाह इस्लामिया, इस्लामिक फं्रट के साथ हमारे पड़ोस पाकिस्तान में तहरीक ए तालिबान, लश्कर ऐ तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अफगानिस्तान का तालिबान, बंगलादेश में हरकत उल जेहाद उल इस्लामी बंगालदेश ....आदि संगठन उससे सीधे जुड़े हैं और अन्य संगठन उसकी प्रेरणा से काम कर रहे हैं। लेकिन बग़दादी द्वारा सुन्नी इस्लामिक राज्य की घोषणा और स्वयं को खलीफा बनाने तथा उसे सुदृढ़ करने के लिए संगठित होकर युद्ध करते रहने के करण् युवा जिहादियों में आईएसआईएस के प्रति ज़्यादा आकर्षण हो रहा है। देखना होगा कि दोनों के वर्चस्व में कौन जीतता है। पर इसका प्रभाव जेहादी आतंकवाद पर पड़ना है।
जहां तक भारत का प्रश्न है तो जवाहिरी या अल कायदा ने पहली बार हमें निशाना नहीं बनाया है। ओसामा बिन लादेन ने 11 सितंबर 2001 के अमेरिका पर हमले के पूर्व ही जिन देशों का नाम लिया उसमें भारत और विशेषकर कश्मीर शामिल था। उसके बाद उसके कई टेपों में ये बातें आईं। जवाहिरी ने पिछले वर्ष 17 सितंबर को जो ऐलान किया था उसमें भी कश्मीर का जिक्र था। उसने कहा था कि इजरायल और अमेरिका तो हमारे मुख्य लक्ष्य है ही, कश्मीर से लेकर रूस के कॉकेकस तक और इजरायल से लेकर चीन के शिनजियांग तक जिहादियों को संघर्ष करना चाहिये। जवाहिरी ने यमन, इराक, अफगानिस्तान, सीरिया और सोमालिया में भी आतंकियों से लड़ने की अपील की। लेकिन वर्तमान ऐलान का महत्व इस दृष्टि से है कि इसने संभवतः आईएसआईएस के समान भारतीय उपमहाद्वीप के लिए सैनिक चरित्र वाले संगठन की कल्पना की है। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद वह फिर से मुल्ला उमर के नेतृत्व में वहां तालिबानों को इस्लामिक राज्य कायम करना चाहेगा ताकि बगदादी को नकार सके। यह खतरनाक है। असम, गुजरात, अहमदाबाद आदि का नाम लेने के पीछे का उद्देश्य भी समझना आसान है। गुजरात दंगों की अतिरंजित कथाओं के द्वारा अल कायदा या उससे जुड़े संगठनों ने पहले भी हमारे यहां आतंकवादी गतिविधियां चलाई हैं। असम के दंगों के बाद यह साफ हो गया है कि वहां भी जेहादी तत्व उपस्थित हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि जिस तरह आईएसआईएस में भारतीय लड़ाकू बडी संख्या में हैं वैसे ही अल कायदा में भी हैं।
आईएसआईएस ने जिस इस्लामिक वर्चस्व वाली दुनिया की तस्वीर है, उसका एक हिस्सा भारत भी है। संगठन की ओर से जारी नक्शे में भारत के उत्तर पश्चिमी हिस्से जिसमें गुजरात भी शामिल है, को इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरेसान का हिस्सा बताया गया है। जाहिर है इसके समानांतर अल कायदा को भी कुछ करना था। आईएसआईएस की योजना में बाद में वे लड़ाके लौटेंगे तथा पश्चिम एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच लिंक का काम करेंगे। सीरिया और इराक में उनकी कामयाबी वैसे यहां कई लोगों के लिए प्रेरणा देने का काम कर रही है। तो हमारे लिए खतरा और चुनौतियां दोनों ओर से है और इसलिए भविष्य का ध्यान रखते हुए सुरक्षोपाय के साथ वैचारिक युद्ध छेड़ने की आवश्यकता है ताकि हमारे यहां के नवजवान उन मजहबी उन्मादियों के भ्रम में फंसने और जेहादी होने से बचें।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208