गुरुवार, 24 नवंबर 2022

राहुल गांधी ने सावरकर की आलोचना कर कांग्रेस के लिए ही समस्याएं खड़ी की

अवधेश कुमार
राहुल गांधी द्वारा भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के दो स्थानों पर वीर सावरकर के विरुद्ध दिए गए बयान पर खड़ा बवंडर स्वाभाविक है। राहुल ने पहले वाशिम जिले में आयोजित रैली में  सावरकर जी की निंदा की और जब इसका विरोध हुआ तो अकोला जिले के वाडेगांव में पत्रकार वार्ता में माफीनामे की एक प्रति दिखाते हुए उन्हें डरपोक तथा महात्मा गांधी और उस वक्त के नेताओं के साथ धोखा करने वाला बता दिया। राहुल  के बयान और उसके प्रभावों के दो भाग हैं। पहला है इसका राजनीतिक असर और दूसरा उनके दावों की सच्चाई। राजनीतिक असर देखिए । 

एक,राहुल के बयान से उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की राकांपा दोनों असहज हो गए। दोनों को खुलकर इससे अपने को अलग करना पड़ा।

दो, संजय राउत ने यहां तक कह दिया कि इसका असर महाविकास अघाडी पर पड़ सकता है। 

तीन,महाराष्ट्र में भारत जोड़ो यात्रा में जो लोग आ रहे थे उनमें उद्धव शिवसेना और राकांपा के साथ उन संगठनों और समूहों के थे जो भाजपा आरएसएस के विरुद्ध हैं।

चार, महाराष्ट्र में वीर सावरकर के प्रति श्रद्धा और सम्मान समाज के हर वर्ग में है। इनमें भाजपा और संघ के विरोधी भी शामिल हैं। इन सबके लिए राहुल गांधी ने समस्याएं पैदा कर दी।

 पाच,आम लोगों में भी इसके विरुद्ध प्रतिक्रिया है। भाजपा विरोधियों के लिए इस यात्रा का राजनीतिक लाभ उठाने की संभावनाएं धूमिल हो गई हैं। 

और छह, राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों की यह भूल कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र में महंगी साबित होगी।

राहुल जो बोल रहे हैं वह सच्चाई का एक पक्ष है। सावरकर जी और माफीनामे के संबंध में सच्चाई को देखें।

एक,सावरकर 11 जुलाई ,1911 को अंडमान जेल गए और  6 जनवरी, 1924 को रिहा हुए। उनको करीब साढे 12 वर्ष काला पानी में बिताना पड़ा।

दो, सावरकर जी ने 1911 से 1920 के बीच 6 बार रिहाई के लिए अर्जी दिया।

तीन,वे सभी अस्वीकृत हो गए।

चार,  राहुल गांधी कह रहे हैं कि महात्मा गांधी को उन्होंने धोखा दिया जबकि उनकी छठी याचिका महात्मा गांधी के कहने पर ही डाली गई । गांधी जी ने स्वयं उनकी पैरवी की और यंग इंडिया में रिहाई के समर्थन में लिखा ।  प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 में जॉर्ज  पंचम के आदेश पर भारतीय कैदियों की सजा माफ करने की घोषणा की गई। उनमें अंडमान के सेल्यूलर जेल से भी काफी कैदी छोड़े गए। इनमें सावरकर बंधुओं  विनायक दामोदर सावरकर और इनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर शामिल नहीं थे। उनके छोटे भाई नारायणराव सावरकर ने महात्मा गांधी को पत्र लिखकर सहयोग मांगा था। गांधी जी ने क्या किया इसे देखिए।

• 25 जनवरी, 1920 को गांधी जी ने उत्तर दिया, ‘प्रिय डॉ. सावरकर, ….मेरी राय है कि आप एक विस्तृत याचिका तैयार कराएं जिसमें मामले से जुड़े तथ्यों का जिक्र हो कि आपके भाइयों द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह राजनीतिक था।…. मैं इस मामले को अपने स्तर पर भी उठा रहा हूं। 


•गांधी जी ने 26 मई, 1920 को यंग इंडिया में लिखा, …. कई कैदियों को शाही माफी का लाभ मिला है। लेकिन कई प्रमुख राजनीतिक अपराधी हैं जिन्‍हें अब तक रिहा नहीं किया गया है। मैं इनमें सावरकर बंधुओं को गिनता हूं। वे उसी तरह के राजनीतिक अपराधी हैं जैसे पंजाब में रिहा किए गए हैं और घोषणा के प्रकाशन के पांच महीने बाद भी इन दो भाइयों को अपनी आजादी नहीं मिली है।' 

• एक और पत्र (कलेक्‍टेड वर्क्‍स ऑफ गांधी, वॉल्‍यूम 38, पृष्ठ 138) में गांधी जी ने लिखा, 'मैं राजनीतिक बंदियों के लिए जो कर सकता हूं, वो करूंगा। … राजनीतिक बंदियों के संबंध में, जो हत्‍या के अपराध में जेल में हैं, उनके लिए कुछ भी करना मैं उचित नहीं समझूंगा। हां, मैं भाई विनायक सावरकर के लिए जो बन पड़ेगा, वो करूंगा।' 

•गांधी जी ने सावरकर बंधुओं की रिहाई के मुहिम में सारे तर्क दिए जो एक देशभक्त के पक्ष में दिया जा सकता है।  

•सावरकर जी की प्रशंसा में भी गांधीजी ने लिखा ।  इसके कुछ अंश देखिए- 

'अगर देश समय पर नहीं जागता है तो भारत के लिए अपने दो वफादार बेटों को खोने का खतरा है। दोनों भाइयों में से विनायक दामोदर सावरकर को मैं अच्छी तरह जानता हूं। मेरी उनसे लंदन में मुलाकात हुई थी। वो बहादुर हैं, चतुर हैं, देशभक्त हैं और स्पष्ट रूप से हुए क्रांतिकारी थे। उन्होंने सरकार की वर्तमान व्यवस्था में छिपी बुराई को मुझसे काफी पहले देख लिया था। भारत को बहुत प्यार करने के कारण वे काला पानी की सजा भुगत रहे हैं। '

राहुल गांधी के सलाहकारों ने उन्हें नहीं बताया कि गांधीजी सावरकर जी से 1906 एवं 1909 में लंदन में मिल चुके थे। तब सावरकर इंडिया हाउस में रहकर वहां बैरिस्टर की पढ़ाई करने के साथ भारत के स्वतंत्रता के लिए भी सक्रिय थे। उनका नाम रहा होगा तभी गांधीजी उनसे मिलने गए। माना जाता है कि गांधी जी ने अपनी पहली पुस्तक हिंद स्वराज लिखी जिसमें सावरकर से हुई बहस का बड़ा योगदान है। 

जब सावरकर जी का नाम हो चुका था उस समय महात्मा गांधी के राजनीतिक जीवन की ठीक से शुरुआत नहीं हुई थी।

 ठीक है कि सावरकर जी गांधी जी के अनेक विचारों से असहमत थे और कांग्रेस के आलोचक थे। यह बिलकुल स्वाभाविक है। किंतु,उन्हें माफी मांगने वाला कायर, अंग्रेजों का पिट्ठू और स्वतंत्रता आंदोलन का विरोधी कहना एक महान देशभक्त, क्रांतिकारी , त्यागी, समाज सुधारक, जिसने संपूर्ण जीवन केवल भारत के लिए समर्पित कर दिया उसके प्रति कृतघ्नता होगी। कुछ और तथ्य देखिए।

• ऐसा प्रस्तुत किया जाता है मानो दया अर्जी डालने वाले सावरकर अकेले थे । •स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी संख्या है जो नियम के अनुसार माफीनामा आवेदन भरकर बाहर आए।

•महान क्रांतिकारी सचिंद्र नाथ सान्याल ने अपनी पुस्तक बंदी जीवन में लिखा कि सेल्यूलर जेल में सावरकर के कहने पर ही उन्होंने दया याचिका डाली और रिहा हुए। उन्होंने लिखा है कि सावरकर ने भी तो अपनी चिट्ठी में वैसी ही भावना प्रकट की थी जैसे कि मैंने की। तो फिर सावरकर को क्यों नहीं छोड़ा गया और मुझे क्यों छोड़ा गया?

महाराष्ट्र में उनका सम्मान इस कारण भी है कि कालापानी से आने के बाद उन्होंने छुआछूत और जातपात के विरुद्ध लंबा अभियान चलाया। अछूतों और दलितों के मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन किया और कराया। इस पर खुलकर लिखा। मुंबई की पतित पावनी मंदिर, जहां आज अनेक नेता जाते हैं उन्हीं की कृति है। इस कारण महाराष्ट्र के दलित नेताओं के अंदर उनके प्रति गहरा सम्मान है। इनमें बाबा साहब भीमराव अंबेडकर भी शामिल थे। बाबा साहब और सावरकर जी के बीच हुए पत्र व्यवहार आज भी सुरक्षित हैं। बाबासाहेब ने सावरकर जी का नाम हमेशा सम्मान से लिया। कांग्रेस ने वर्षों तक उनकी देशभक्ति पर अधिकृत रूप से सवाल नहीं उठाया। राहुल गांधी की दादी स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते उन पर डाक टिकट जारी किया तथा फिल्म डिवीजन विभाग को उन पर अच्छी फिल्म बनाने का आदेश दिया और यह बना भी। दुर्भाग्य से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ऐसे अतिवादी बुद्धिजीवियों और नेताओं के प्रभाव में आ गई जिनके लिए हिंदुत्व, उसकी विचारधारा के नेता और संगठन दुश्मन और नफरत के पात्र हैं। भारत जोड़ो यात्रा के मुख्य सलाहकार और रणनीतिकार यही लोग हैं। राहुल गांधी कहते हैं कि एक ओर आरएसएस और सावरकर की विचारधारा है तो दूसरी ओर कांग्रेस की। यह भी कि भाजपा और आरएसएस के प्रतीक सावरकर हैं।

सच यह है कि वीर सावरकर संघ के प्रशंसक नहीं रहे। बावजूद संघ और भाजपा उनके बलिदान, त्याग, देश भक्ति, उनकी रचनाएं और हिंदू समाज की एकजुटता के लिए किए गए उनके कामों को लेकर सम्मान करती है। सावरकर जैसे महान व्यक्तित्वों के मानमर्दन के विरुद्ध पूरे भारत में प्रतिक्रिया है। इसी कारण लोग कांग्रेस और नेहरु जी से जुड़े उन अध्यायों को सामने ला रहे हैं जिनका जवाब देना राहुल और उनके सलाहकारों के लिए कठिन है। कुल मिलाकर राहुल गांधी ने बयान से कांग्रेस के लिए ही समस्याएं पैदा की है।  

अवधेश कुमार,ई- 30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल 98110 27208

शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

ऐसी क्रूरता आती कहां से है

अवधेश कुमार 

आफताब अमीन पूनावाला एक प्रशिक्षित बावर्ची (शेफ) है। एक शेफ को कई काम आते हैं। मछलियां, मुर्गों व अन्य मांस देने वाले पशुओं के अंग आदि को काटकर उसे बोटी - बोटी करने भी आता है। हालांकी कोई शेफ सामान्यतः उस तरह किसी मनुष्य शरीर के 35 टुकड़े काटने की कल्पना नहीं कर सकता। आफताब ने जिस तरह उसके साथ लिव इन में रह रही  श्रद्धा वाकर की हत्या कर टुकड़े - टुकड़े काट डाला वह अपराध की दुनिया में भी अकल्पनीय है। इस घटना से अनेक जघन्य अपराधियों के अंदर भी सिहरन पैदा हो गई होगी। आखिर कोई व्यक्ति इतना भयंकर अपराध कैसे कर सकता है? स्पष्ट है कि इसके पीछे की सोच और उसके अनुसार व्यक्ति के चरित्र को समझना होगा। अभी तक की सूचना इतनी ही है कि श्रद्धा ने जब उसे शादी करने का दबाव बनाया तो उसने उसे मार डाला। इस कहानी पर सहसा विश्वास करना जरा कठिन लगता है। लिव-इन में रह रही लड़की अपने साथी पर शादी के लिए दबाव डालती है और नहीं स्वीकारने पर कोर्ट में जाती है या फिर अलग हो जाती है। शादी करने के लिए कहने में ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आफताब को उसकी हत्या करने की सीमा तक चला गया?

आप किसी भी दृष्टिकोण से विचार करिए इसका तार्किक और सर्वमान्य उत्तर नहीं मिल सकता। हत्या करने के बाद टुकड़े-टुकड़े काटना, उसे रखने के लिए 300 लीटर वाली फ्रिज लाना और फिर एक-एक टुकड़े को दिल्ली के महरौली के जंगलों में देर रात जाकर फेंकते रहना यह सब किसी सामान्य व्यक्ति की कारगुजारी नहीं हो सकती। आप उसे असंतुलित मस्तिष्क का व्यक्ति कह कर मामले को एक मोड़ दे सकते हैं। जब भी कोई असामान्य क्रूर अपराध होता है सामान्यतः अपराधी को असामान्य या मानसिक व्याधि से ग्रसित घोषित कर दिया जाता है। निश्चित रूप से असामान्य मानसिक व्याधियों को वर्तमान मनोविज्ञान में व्यापक आयाम दे दिए हैं और उसमें आज सभी प्रकार के व्यवहार और विचार समाहित हो जाते हैं। किंतु आम भाषा में हम इसे ऐसे स्वीकार नहीं कर सकते। विचार यह करना होगा कि आखिर और सामान्य मानसिक स्थिति क्या थी? जो थी वह क्यों पैदा हुई ? 


जरा इस घटना में अभी तक आई जानकारी के दूसरे पहलू को भी देखिए। 

यह भी कहा गया है कि टुकड़े टुकड़े काटकर जंगलों में फेंकने की प्रेरणा उसे अमेरिकी टीवी सीरीज डेक्सटर से मिली। जाहिर है, एक दिन में उसके अंदर यह विचार घर नहीं किया होगा। श्रद्धा की हत्या कर उसके अंगों को काटकर वह फ्रिज में रखे हुए हैं और दूसरी लड़कियों से डेटिंग कर रहा है, उन्हें घर में बुलाकर उनके साथ मौज मस्ती कर रहा है। जिसे किसी से प्रेम होगा वह पहले तो उसकी हत्या नहीं करेगा और अगर गुस्से में कुछ हो गया तो फिर वह उसके दुख से जल्दी बाहर नहीं निकल पाएगा। यहां तो वह आराम से उसके टुकड़े काटता है, घर में रखे हुए है और दूसरी लड़कियों के साथ संबंध बनाता है। उसके जाने का उसे बिल्कुल दुख नहीं है बल्कि उसके व्यवहार से लगता है जैसे वाह मानता हो कि उसने वही किया जो उसे करना चाहिए था। यानी उसने श्रद्धा की हत्या कर अपना कर्तव्य पूरा किया है। इसका मतलब है कि श्रद्धा वाकर के साथ उसका प्रेम केवल दिखावा ही रहा होगा। पूछताछ से यह भी स्पष्ट हो जाएगा। बिल्कुल संभव है कि उसने योजनापूर्वक श्रद्धा को फंसाया होगा। डेटिंग एप पर श्रद्धा से उसकी मुलाकात हुई और नजदीकियां इतनी बढी कि दोनों साथ रहने लगे। मुंबई से दिल्ली आए। सामान्यतः हमारे देश में पढ़े लिखे लोगों का एक बड़ा तबका लव जिहाद के दृष्टिकोण को ही खारिज करता है। आप इस शब्द को कुछ समय के लिए छोड़ दीजिए। किंतु ऐसी घटनाएं बड़ी संख्या में हो रहीं हैं जहां एक मुस्लिम युवक हिंदू लड़कियों को फंसाता है और उनका धर्म परिवर्तन कर निकाह करता है। बाद में उनको तलाक देता है या फिर लड़की ही तंग आकर छोड़ देती है। अनेक मामले ऐसे हैं जहां मुस्लिम युवक ने हिंदू नाम रखकर लड़की को फंसाया, उससे शादी भी कर ली और जब लड़की घर आई तो पता चला वह मुसलमान है। उसे फिर से धर्म परिवर्तन कर निकाह करने के लिए मजबूर किया गया या करने की कोशिश हुई। ऐसी प्रमाणित और न्यायालय द्वारा पुष्ट घटनाओं की लंबी सूची है। ऐसी भी घटनायें पहले आई हैं कि किसी ने लड़की को फंसाया, उनके साथ रहा और बाद में छोड़ दिया। 

ऐसा नहीं है कि लड़कियों के साथ लिव-इन में रहने के बाद उसे छोड़ने वाले गैर मुस्लिम समुदाय के नहीं है। हैं, किंतु इस तरह की दरिंदगी करने वाली घटना पहले नहीं हुई। इससे सहसा संदेह की सुई घूमती है कि आफताब अमीन कहीं कट्टर इस्लामी विचारों की मानसिकता वाला तो नहीं था। ऐसे लोगों के सामने मनुष्यता, इंसानियत, संवेदनशीलता या वचनबद्धता के कोई मायने नहीं होते। वह केवल अपने दृष्टिकोण से दीन की समझ के अनुसार ही लड़कियों से संबंध बनाते हैं। हाल के वर्षों में ऐसी घटनाएं आई है जब मुस्लिम नवजवानों के भीतर इस्लाम के नाम पर इस तरह की बातें भरी गई हैं जिनसे उन्हें लगे कि  गैरमुस्लिम लड़की को फंसाकर निकाह करना या उसके साथ रिश्ते बनाना उनके लिए मजहबी फर्ज हो। उनका ब्रेनवाश इस तरह से किया जाता है कि वह ऐसा करने के लिए किसी सीमा तक चले जाते हैं। संभव है उसने श्रद्धा को धर्म परिवर्तन के लिए कहा हो और वह उसके लिए तैयार नहीं हुई हो। इसमें कुछ ऐसी बातें हुई है जिसे बाहर आने के बाद आफताब अमीन के लिए कठिनाइयां पैदा हो जाती। या फिर श्रद्धा ने दूसरी लड़कियों के साथ इसी विचार के अनुरूप उसे संपर्क संबंध बनाते देखा हो और उसे इसकी पूरी असलियत समझ आ गई हो। उसने इसकी असलियत दुनिया के सामने लाने की धमकी भी दी हो। श्रद्धा की दोस्त बता रही है की आफताब उसकी हत्या कर सकता था इसी आशंका थी और उसने उसके परिवार को आगाह सतर्क भी किया था। सब पुलिस के पास भी जाना चाहते थे लेकिन श्रद्धा में ही किसी कारण रोक दिया था। श्रद्धा की आफताब हत्या कर सकता था यह आशंका कैसे पैदा हुई इसका उत्तर मिलना चाहिए।

 यह तो सोचना ही पड़ेगा कि आखिर हत्या कर टुकड़े-टुकड़े काटने के बाद वह दूसरी लड़कियों के साथ किस मानसिकता में संबंध बना रहा था? पुलिस बता सकती है कि उन लड़कियों में भी सभी या ज्यादातर गैर मुस्लिम ही होंगी। आफताब अमीन पुलिस की पूछताछ में इस बात को स्वीकार करता है या नहीं इसका पता भी कुछ दिनों में चल जाएगा। किंतु इस दृष्टि से जांच होनी चाहिए और वह नहीं स्वीकार करता तो नारको टेस्ट कराया जाना चाहिए। नारको टेस्ट के लिए वह तैयार नहीं होता तो न्यायालय से उसकी अनुमति ली जा सकती है। वास्तव में यह ऐसी घटना है जिसका पूरा सच देश और दुनिया के सामने आना चाहिए। इस तरह के वारदात की पुनरावृत्ति न हो इसलिए इसकी पूरी जानकारी आवश्यक है। 

अगर आफताब का व्यवहार मजहबी कट्टर सोच से नहीं निकली और इसके कारण कुछ और है तो भी इस तरह की क्रूरता को केवल सामान्य परिभाषा के तहत मानसिक व्याधियों की परिणति नहीं कहा जा सकता। दूसरी ओर यह पूरी घटना हम सबको काफी कुछ सोचने को फिर से बात करती है। आखिर परवरिश में ऐसी गलती कहां हो रही है कि नई पीढ़ी वास्तविक या तथाकथित प्यार के चक्कर में अपने माता-पिता तक के रिश्ते को नकारने किस सीमा तक चली जाती है? हमने कैसा समाज बना दिया है जहां हर कोई आप केंद्रित हो गया है? हर व्यक्ति यहां स्वयं को अकेला पाता है और अनेक समस्याओं की जड़ यही है। दूसरी ओर यह घटना नई पीढ़ी को भी अपने रवैये पर पुनर्विचार के लिए बाध्य करती है। जब श्रद्धा के पिता ने  आफताब के साथ उसके संबंधों को स्वीकार नहीं किया तो उसने कहा कि मैं 25 वर्ष की हो गई हूं और अपना भला बुरा सोच सकती हूं। इसके बाद वह उसके साथ लिव-इन में रहने लगी। ऐसी लड़कियों की बड़ी संख्या है जो घोषित उम्र के साथ बालिग होने के बाद माता-पिता की सलाह मशविरा या सहमति के बिना इस तरह के कदम उठातीं हैं जिनकी परिणति भयावह होती है। अनेक लड़कियों की पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। उनके परिवार वालों के सामने इससे जो सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं वह अलग। हमारे यहां सामाजिक व्यवस्था में परिवार द्वारा तलाशे गए लड़के से लड़की की शादी की परंपरा सर्वाधिक सफल है। किंतु, अगर कोई लड़की किसी लड़के के साथ प्रेम विवाह करना चाहती है तो उसे परिवार के विरोध के काल में भी जिन निकट के रिश्तेदारों के साथ संवाद हो उनसे ठीक प्रकार से उसके और परिवार का पता कराना चाहिए। यही नहीं शादी करने के बाद भी उन रिश्तेदारों का आना - जाना अपने यहां रखना ही चाहिए। इससे आप अकेले नहीं होते और कमजोर नहीं पड़ते। ऐसा नहीं करना आपके और आपके परिवार के लिए जीवन भर की ट्रेजडी साबित हो सकती है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली 1100 92 , मोबाइल 98110 27208 


मंगलवार, 15 नवंबर 2022

शमां एजुकेशनल एंड पॉलिटेक्निक सोसाइटी के तत्वाधान में मुफ्त आंखों की जांच और मोतियाबिंद ऑपरेशन कैंप का आयोजन हुआ


पूर्वी दिल्ली। उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद क्षेत्र में गली नंबर 39/4 अबरार सैफी के निवास स्थान पर शमां एजुकेशनल एंड पॉलीटिकल सोसायटी, जाफराबाद रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से शशिकांत आइस एंड लेजर सेंटर के साथ भागीदारी करके  मुफ्त निशुल्क आंखों की जांच व मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए शिविर का आयोजन किया गया ।संस्था के महासचिव डॉक्टर के अनुसार आज इस कैंप में काफी संख्या में आंखों के मरीजों का चेकअप किया गया चश्मे का नंबर दिया गया दवाइयां लिखकर दी गई और साथ ही जो मोतियाबिंद के मरीज थे उनके ऑपरेशन का रजिस्ट्रेशन किया गया , उन्होने ने बताया कि इस प्रकार के कैंप हम वर्षों से समय-समय पर लगा रहे हैं स्वास्थ्य,  बाल व महिला स्वास्थ्य कैम्प ,हड्डियों हेपिटाइटिस वैक्सीन, COVID 19 टीकाकरण कैम्प,उसी कड़ी में आज यह कैंप लगाया गया और इसके माध्यम से आम नागरिकों को अपने आंखों का ख्याल रखने के हिदायतें दी गई जैसे मोबाइ, लैपटॉप,कंप्यूटर, टीवी आदि का कम से कम उपयोग किया जाए साथ ही साथ 7 घंटे की गहरी नींद ली जाए, रात को जल्दी सोया जाए सुबह प्रातः जल्दी उठा जाए। दिल्ली में फैले हुए प्रदूषण से बचने के लिए जब बाहर निकले तो  अपनी आंखों की सुरक्षा जरूर रखें  ठंडे पानी से दिन में तीन बार आंखें जरूर धोएं और गैजेट उपयोग करते हुए किरणों से बचाने वाले चश्मे का इस्तेमाल जरूर करें ।जांच कर रहे आर्यन बाजपाई ने जानकारी देते हुए बताया कि आज शुगर बीपी के रोगियों की आंखों को देखा गया तो काफी समस्याएं पाई गई साथ ही बुजुर्ग लोगों को मोतियाबिंद रोगियों को  उन्हें मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए आज पंजीकृत किया गया और आने वाले सप्ताह में उन सब के मोतियाबिंद के ऑपरेशन मुफ्त किए जाएंगे। कैम्प  इंचार्ज भोला प्रसाद ने बताया कि आज कैंप  में 55 रोगियों को देखा गया और 15 मोतियाबिंद के रोगियों का पंजीकरण किया गया और जो  बड़ी समस्या वाले योगियों थे उन्हें हमने हॉस्पिटल में रेफर किया इस कैंप के माध्यम से वहां उनको मुफ्त इलाज मिलेगा और साथ ही साथ जो सुविधाएं हैं प्राप्त कर पाएंगे। कैंप सफल बनाने में अबरार सैफी, लियाकत सैफी, शाहनवाज सैफी, साबिर, नौशाद खान,शीबा, फातमा,साहिल, सैफ, यूसुफ बेग आदि ने रोगियों की सेवा की।

सोमवार, 14 नवंबर 2022

शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

पंजाब में हिंदू नेता की हत्या आतंकवादी कार्रवाई

अवधेश कुमार

पंजाब के अमृतसर में हिंदू नेता की दिनदहाड़े सुरक्षाकर्मियों और उनके समर्थकों के समक्ष हत्या से पूरे देश में छो पैदा हुआ है। हिंदू नेता व शिवसेना टकसाली के अध्यक्ष सुधीर सुरी के शरीर में दनादन गोलियां उस समय उतारी गई जब वे मजीठा रोड के कश्मीर एवेन्यू स्थित गोपाल मंदिर के बाहर खंडित मूर्तियां पाए जाने के विरोध में धरना दे रहे थे। स्वाभाविक ही धरना में उनके साथ और भी लोग थे। सुधीर सूरी को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी। उनके सुरक्षा में 15 सुरक्षाकर्मी तथा एक पायलट जिप्सी था। इनमें से 12 उनके साथ से। धरनास्थल पर भी पुलिसकर्मी तैनात थे क्योंकि वहां की सुरक्षा की व्यवस्था स्थानीय पुलिस की थी। इन सबके बावजूद हत्यारा संदीप सिंह सन्नी कार से  पहुंच कर पिस्टल से 5 गोलियां चलाने में सफल हो गया। निस्संदेह,  यह आतंकवादी घटना है । वह गिरफ्तार हो चुका है लेकिन यह  पुलिस के लिए कीर्तिमान नहीं है। वह सरेआम सुरक्षाकर्मियों और लोगों के सामने गोली मारने आया था तो उसे अहसास रहा होगा कि मारा भी जा सकता है और अगर नहीं मारा गया तो गिरफ्तार होना ही है। जो व्यक्ति मरने या गिरफ्तार होने की मानसिकता से हत्या करने आया हो उसकी गिरफ्तारी पुलिस की सफलता नहीं मानी जा सकती। आतंकवादी इसी मानसिकता में वारदात करते हैं। अलगाववादी तत्व पंजाब में भय का ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जिससे कोई खालिस्तान के विचारों का विरोध करने का साहस न करे।   पंजाब में भगवंत मान सरकार आने के बाद सरेआम खालिस्तान समर्थकों ने सड़कों पर खालिस्तान के पक्ष में नारे लगाए हैं और उनके जुलूसों को पुलिस की सुरक्षा मिली है। सुधीर सूरी के विचारों से असहमति रखना अलग बात है लेकिन इसके लिए किसी की हत्या हो जाए और वह भी जानते हुए कि उनकी जान को खतरा है तो यह पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह है। सुधीर सूरी ने खालिस्तान समर्थकों का विरोध करते हुए 6 वर्ष पहले यह बोल दिया था कि अगर वे एक हिंदू को मारेंगे तो वह उनके 10 गिराएंगे। वे गिरफ्तार भी हुए थे और जमानत पर छूट कर बाहर निकले। हत्यारा स्थानीय दुकानदार है। जरा सोचिए ,पुलिस के सामने गोली चलाने का साहस करना पंजाब की कानून और व्यवस्था को लेकर कितना बड़ा प्रमाण पत्र है? यह इस बात का भी प्रमाण है कि खालिस्तानी तत्वों ने किस तरह दुस्साहस वाले आतंकवादी पैदा कर दिए हैं। संदीप की कार पर खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की तस्वीर लगी हुई है।  अमृतपाल जरनैल सिंह भिंडरावाले और खालिस्तान समर्थक है। कार से एक सूची बरामद हुई है जिसमें कुछ नाम लिखे हैं। कुछ कागजों पर हिंदू नेताओं, पादरियों की तस्वीरें भी है। इनमें से कुछ हिंदू नेताओं की तस्वीरों पर क्रॉस लगा था।  मिली तस्वीरों में टीवी कलाकार भारती सिंह, मनीषा गुलाटी,  मनजिंदर सिंह बिट्टा, राम रहीम और कुछ बंदी सिंहों की तस्वीरें हैं। कुल मिलाकर संदीप के आतंकवादी होने के ये पुख्ता प्रमाण हैं।

सुधीर सूरी के जीवन पर खतरे को लेकर पंजाब सुरक्षा के शीर्ष स्तर पर शायद ही किसी को संदेह रहा हो।  वे आक्रामक होकर खालिस्तानी आतंकियों आईएसआई आदि के खिलाफ बोलते थे। उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहती थी। पिछले ही महीने दिवाली से पहले अमृतसर के कटरा अहलूवालिया में पंजाब एवं दिल्ली पुलिस ने कनाडा के आतंकवादी लखबीर सिंह लांडा के चार सहयोगियों को एक होटल से गिरफ्तार किया था। इन चारों ने बताया था कि उनके निशाने पर सुधीर सूरी थे। इनके पास से भारी मात्रा में हथियार भी पकड़े गए थे। हाल में केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की ओर से भी पंजाब पुलिस को उनकी हत्या की आशंका संबंधी अलर्ट भेजा गया था। उसके बाद उनकी सुरक्षा की ज्यादा चिंता की जानी चाहिए थी। पंजाब पुलिस को इस बात का उत्तर देना होगा कि आखिर उसने इस घटना के बाद सुरक्षा व्यवस्था में क्या बदलाव किया था? यह प्रश्न इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में पंजाब के अलग-अलग जगहों से खालिस्तानी आतंकवादियों की धरपकड़ हुई है तथा हथियार भी बरामद हुए हैं। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों से लेकर विदेशी एजेंसियों तक ने आतंकवादियों द्वारा देश के अंदर और बाहर से हिंसा की रची जा रही साजिशों के बारे में भी संकेत दिया था।

लंडा पाकिस्तान में आतंकवादी हरमिंदर सिंह उर्फ रिंदा के साथ मिलकर आतंकवादी गतिविधियां चला रहा है। लांडा ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली है। अपने फेसबुक अकाउंट लंडा हरिके से पोस्ट कर कहा है कि सिख धर्म या किसी भी अन्य धर्म के बारे में बुरा बोलते हैं वो सभी तैयार रहें। सभी की बारी आएगी। सुरक्षा लेकर यह न समझें कि बच जाएंगे। अभी तो शुरुआत हुई है, हक लेना बाकी है।  यानी जिसके द्वारा हत्या की साजिश रचने की सूचना है वह हत्या करवा देता है और दावा भी करता है। पंजाब में बढ़ते आतंकवादी खतरे और सुरक्षा व्यवस्था की विफलता का इससे बड़ा समान कुछ नहीं हो सकता। मोहाली में पंजाब पुलिस के इंटेलिजेंस विभाग के मुख्यालय पर हुए हमले में भी लखबीर सिंह का नाम आया था। कुछ ही दिन पहले तरनतारन में कपड़ा व्यापारी की हत्या हुई थी उसमें भी उसी का नाम सामने आया। वह तरनतारन का ही रहने वाला था जो कनाडा में बस गया है। पाकिस्तान से खालिस्तानी आतंकवादी गोपाल सिंह चावला ने भी वीडियो जारी किया है। इसमें उसने सुधीर सूरी के हत्यारे को शाबाशी देते हुए कहा है कि जिस सिख युवक ने हत्या की है उसके लिए हमारी जान भी कुर्बान है। वह भी कह रहा है कि इसी तरह पंजाब के कई हिंदू नेता निशाने पर हैं और उनका भी नंबर आने वाला है। गोपाल खुलकर कई हिंदू व सिख नेताओं का नाम ले रहा है। नवंबर 2018 में अमृतसर में हुए ग्रेनेड हमले में जांच के दौरान गोपाल सिंह चावला की संलिप्तता सामने आई थी। वह पाकिस्तान में बैठकर आईएसआई के साथ पंजाब में खालिस्तानी आतंकवादी गतिविधियां बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। चावला इस तरह का वीडियो जारी करता रहा है।

पंजाब में फिर अलगाववादी खालिस्तानी विद्रोह को तेज करने तथा हिंसा फैलाने की साजिशों के प्रमाण लगातार मिलते रहे हैं। 2021 में केवल सीमा सुरक्षा बल ने 3322 गोला-बारूद और 485 किलोग्राम हेरोइन सहित 34 हथियार बरामद किए थे। जनवरी 2021 में पंजाब पुलिस ने एक अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर 3.79 किलोग्राम आरडीएक्स और 5 किलोग्राम आईईडी बरामद किया था। इसके अलावा गिराए गए बरामद किए गए हथियारों की कुल संख्या के बारे में आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। अमेरिका स्थित सिख फॉर जस्टिस ने जनमत संग्रह की आवाज उठाई और उसे भी समर्थन देने वाले निकले। यह बात अलग है कि इसमें वे सफल नहीं हुए। कनाडा में वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन का केंद्र है जिसकी कई देशों में इकाइयां है। ब्रिटेन में नेशनल सिख यूथ फेडरेशन सक्रिय है। अमेरिका में ही खालिस्तान परिषद है। हालांकि घोषित आतंकवादी संगठनों का समूह अब पाकिस्तान में केंद्रित है। इनमें बब्बर खालसा इंटरनेशनल, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स, खालिस्तान कमांडो फोर्स और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स मुख्य है। इनके सदस्य दुनिया के दूसरे देशों में होंगे लेकिन पंजाब में भी कुछ हैं।

जाहिर है ,सुधीर सूरी की हत्या ने नए सिरे से खालिस्तानी आतंकवाद के सक्रिय होने का प्रमाण दिया है। यह भी कोई छिपी बात नहीं है कि पंजाब में हिंदुओं और सिखों के बीच संघर्ष पैदा करने की साजिशें हो रही हैं। पहले भी संघ सहित कई हिंदू नेताओं की हत्यायें हुईं है। आगे कई निशाने पर हैं। चिंता की बात है कि वर्तमान आम आदमी पार्टी की सरकार खतरे को उस रुप में नहीं ले रही। खालिस्तानी तत्व इसका लाभ उठा रहे हैं। न केवल हिंदू नेताओं बल्कि पूरे पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था की नए सिरे से समीक्षा कर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि आतंकवाद, हिंसा एवं अस्थिरता में पंजाब को झोंकने का षड्यंत्र करने वाली  शक्तियां सफल न हो पाए। पंजाब की बिगड़ती स्थिति और हत्या पर गुस्सा स्वभाविक है। खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई एवं सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ करने का दबाव निश्चित रूप से बनाया जाना चाहिए लेकिन इसे किसी तरह तनाव और हिंसा का कारण नहीं बनने देना होगा। भारत की एकता अखंडता सर्वोच्च प्राथमिकता है और पंजाब सीमा पर होने के कारण हमारा प्रहरी है। दुश्मन किसी तरह इसका लाभ न उठा पाए यह ध्यान रखा जाना जरूरी है।

अवधेश कुमार, ई-30,गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092,मोबाइल- 98910 27208

सोमवार, 7 नवंबर 2022

हर जरूरतमंद के साथ खड़े रहते हैं नियाज अहमद

-किसी को भी अपने यहां से खाली नहीं जाने देते नियाज अहमद

-हर किसी का साथ देने के लिए हमेशा तैयार रहते है नियाज अहमद

मो. रियाज
चुनावी मौसम में हर कोई राजनीति के बुखार में तपा जा रहा है l जिसे देखो चुनावी मैदान में ताल ठोक रहा है मगर कुछ ऐसे समाजसेवी भी हैं जो जनता के कहने पर राजनीति में आ रहे हैं। ऐसा ही एक नाम है नियाज़ अहमद मंसूरी उर्फ पप्पू मंसूरी। अन्ना आंदोलन की आग में तपे नियाज़ अहमद मंसूरी उर्फ पप्पू मंसूरी गांधी नगर विधानसभा के शास्त्री पार्क वार्ड नंबर 213 में रहते हैं। यह शास्त्री पार्क वार्ड नंबर 213 से जनता की आवाज़ और निर्देश पर आगामी दिल्ली नगर निगम चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी से टिकट लेकर भारी मतों से चुनाव जीत कर दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल की तरह समाज सेवा और विकास कार्य करने को व्याकुल है। 
नियाज़ अहमद ने कोरोना काल में ज़रूरतमन्द लोगों को एसडीएम की अनुमति लेकर समाज से अनाज राशन इकट्ठाकर उसे पकाकर शास्त्री पार्क समुदाय भवन में लगातार 78 दिन तक बांटा। नगर निगम के अधिकारियों से मधुर संबंध बनाकर वार्ड में साफ़ सफाई दुरुस्त करवाने की व्यवस्था करवाना और समय पर कूड़ा उठवाना इनकी दिनचर्या रही है। नियाज़ अहमद वार्ड में समय समय पर जागरूकता के कार्यक्रम करते रहते हैं जैसे जल बोर्ड के कैम्प, बीएसईएस के कैम्प, हेल्थ केम्प, वोटर आईडी कैम्प, आधार कैम्प, एकाउंट खुलवाने के कैम्प आदि। क्षेत्र में बढ़ते क्राइम के निवारण के लिए पुलिस अधिकारियों  के समक्ष अपनी बात रख पीसीआर वैन से वार्ड में गश्त बढ़वाया।
यह वार्ड की स्ट्रीट लाइट को बिना किसी देरी के ठीक  करवा देते हैं, इन्होंने सरकारी स्कूल में बच्चों के अधिक से अधिक दाखिले करवाना, वार्ड के सरकारी स्कूल सीलमपुर की स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी) में छात्रों व पेरेंट्स की शिकायत को हमेशा प्रमुखता से उठाया और उसका निवारण करवाया। वार्ड के फॉरेस्ट एरिये की चार दी री करवाई।  ऐसे ही कार्यों के लिए समाज मे अपनी अलग पहचान रखते हैं।


शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

मोरबी त्रासदी से सबक ले देश

अवधेश कुमार

गुजरात के मोरबी पुल की त्रासदी ने पूरे देश को हिला दिया है। इस घटना की कल्पना से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मच्छु नदी पर बनाया सस्पेंशन ब्रिज यानी झूलने वाला  पुल पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा कारण था। लेकिन कौन जानता था वहां पहुंचे लोगों में बड़ी संख्या के लिए अंतिम दिन होगा। पुल टूटा और नीचे नदी में 15 फीट के आसपास पानी था, जिसमें लोग  डूबते चले गए। किसी भी त्रासदी में दो सौ लोगों का अंत हो जाना सामान्य घटना नहीं होती। गुजरात जैसे प्रदेश में जहां बचाव और राहत की मजबूत टीमें है वहां इतनी संख्या में लोगों की मृत्यु बताती है की घटना कितनी विकराल थी। वहां एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के साथ तैराकों, दमकलों व वायु सेना के कमांडो ,रेस्क्यू नावेंआदि सब कुछ होने के बावजूद दूसरे दिन भी लापता लोगों का पता नहीं लग सका और इस कारण मृतकों की संख्या बताना कठिन हो गया। रात्रि में बचाव ऑपरेशन करना लगभग मुश्किल था। राजकोट के भाजपा सांसद मोहन कुंदरिया के परिवार के 12 लोगों की जान इसमें चली गई । पता नहीं और ऐसे कितने परिवार होंगे जिनके लिए यह संपूर्ण जीवन भर के लिए त्रासदी साबित होगी।

 ध्यान रखिए कि यह प्राकृतिक आपदा नहीं है। न बाढ आया न तूफान और निरपराध लोग जान गंवा बैठे। पुल के रखरखाव की जिम्मेदारी वाले ओरेवा ग्रूप पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज हो गया है। जांच के लिए समिति भी बना दी गई है। कहा जा सकता है कि अंतिम निष्कर्ष के लिए समिति की रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जानी चाहिए। निस्संदेह, इस समय आप किसी भी कारण को खारिज नहीं कर सकते। देश विरोधी ताकतें जिस तरह हिंसा और दुर्घटना पैदा करने के लिए षड्यंत्र कर रहे हैं उसमें चुनाव वाले गुजरात जैसे संवेदनशील प्रदेश में शंका की उंगली उठना बिलकुल स्वाभाविक है। आखिर ये शक्तियां भीड़भाड़ वाले जगहों पर अपने तरीके से ऐसी कोशिश करती हैं जिनमें ज्यादा से ज्यादा लोग हताहत हो। हालांकि अभी तक ऐसा कोई पहलू नहीं दिखा जिससे षड्यंत्र नजर आए। अभी तक की जानकारी इतनी है कि फुल कमजोर था। दुर्घटना के पहले के वीडियो में दिख रहा है कि कुछ लोग उसके केबल के कमजोर होने का मजाक उड़ा रहे हैं। कुछ उसको हाथ पैरों से मार रहे हैं। कोई कह रहा है कि देखो यह कितना कमजोर है जो कभी भी टूट सकता है। करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराना पुल कमजोर और जोखिम भरा था तभी मरम्मत के लिए 6 महीना पहले बंद कर दिया गया था। ओरोवो ग्रुप ने इसकी मरम्मत की तथा 26 अक्टूबर को आम लोगों के लिए खोला गया। यानी 4 दिन पहले खुला और पांचवें दिन 30 अक्टूबर को शाम को पुल टूट गया। यह कैसे संभव है कि एक मान्य कंपनी पुल की मरम्मत में इतनी कोताही बरते कि वह 4 दिन भी न चल पाए? वहां के नगर निगम का कहना है कि उस पुल की क्षमता 100 लोगों की है लेकिन 500 से 1000 के आसपास लोग उस पर इकट्ठे थे। 765 फीट लंबा यह पुल केवल 4.5 फीट चौड़ा है। जाहिर है, यह जिस काल में बनाया गया उस समय के लिए उपयुक्त हो सकता है। बावजूद इतने लंबे पुल के लिए केवल 100 लोगों की क्षमता और वह भी आज की स्थिति में जब तबसे जनसंख्या वृद्धि कई गुनी हो चुकी है बताता है कि संख्या की दृष्टि से वह जो कौन था। आम हालांकि लोगों का कहना है कि बंद होने के पहले भी पुल पर काफी संख्या में लोग रहते थे ,बहुत दिनों के बाद पुल खुला था इस कारण भी संख्या ज्यादा थी। साथ ही छठ पूजा होने के कारण भी लोग चले आए थे। तो पहला कारण यही नजर आता है कि संख्या से ज्यादा लोगों के खड़े होने के कारण फूल वजन नहीं सह सका और टूट गया। तो निर्धारित संख्या से ज्यादा लोग आए क्यों? चश्मदीद बता रहे हैं कि कुछ लोग को हिला रहे थे और उसकी शिकायत कर्मचारियों से की गई लेकिन वे टिकट काटने में व्यस्त रहे। वास्तव में अगर कारण वही है जो अभी दिख रहा है तो कहा जा सकता है कि निर्धारित संख्या तक ही टिकट काटा जाता तथा समय सीमा तय कर लोगों को बाहर निकाल कर फिर नए लोगों को प्रवेश कराया जाता तो यह हादसा नहीं होता। इतने पुराने पुल पर तय संख्या से ज्यादा टिकट काटकर लोगों को जाने दिया गया। यह तो दुर्घटना को निमंत्रण देने जैसा व्यवहार था।

हादसे के बाद का वीडियो दिखा रहा है कि पुल टूटने के बाद लोग उस भाग में भी बचने के लिए छटपटा रहे हैं जो पानी में जा रहा है। लोग पुल पर फंसे हुए हैं लेकिन उनके तात्कालिक बचाव के लिए कोई उपाय नहीं है। जाहिर है , इस तरह का कोई हादसा हो सकता है इसकी कल्पना न किए जाने के कारण तात्कालिक बचाव और राहत के पूर्वोपाय नहीं किए गए थे। नगर निगम और ओरोवा कंपनी दोनों को इसका जवाब देना चाहिए। नगर निगम का तर्क है कि फिटनेस सर्टिफिकेट लिए बिना ही रुको कंपनी ने चालू कर दिया। यह हैरत की बात है कि नगर निगम की सहमति के बगैर केवल  कंपनी ने पुल को खोल दिया होगा। स्पष्ट है कि मोरबी के अधिकारी सच नहीं बोल रहे। मेंटेनेंस करने वाली कंपनी को यह अधिकार नहीं होता कि वह जब चाहे पुल बंद कर दे और जब चाहे खोल दे। कंपनी प्रशासन को रिपोर्ट दे सकती है और फैसला प्रशासन का ही होता है। अगर इसके पीछे कोई षड्यंत्र नहीं है तो कंपनी के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन व नगर निगम को भी इसके लिए उत्तरदायी मानना होगा। आखिर इतने लोगों की जान चली जाए, सैकड़ों परिवार तबाह हो जाएं, अनेक बच्चे अनाथ तथा महिलाएं विधवा व पुरुष विधुर हो जाएं और उसके लिए केवल मेंटेनेंस करने वाली कंपनी को जिम्मेवार मानना एकपक्षीय फैसला होगा।

इस घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में भी देखने की आवश्यकता है। यह पुल 20 फरवरी 1879 को जनता के लिए खोला गया था। तब मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेंपल ने इसका उद्घाटन किया था। यह सामान यातायात का मुख्य फूल नहीं था। लेकिन हमारे देश में सामान्य यातायात वाले प्राचीन पुलों की संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसा नहीं है कि किसी की मरम्मत नहीं होती। समय-समय पर अनेक पुलों की मरम्मत होती रहती हैं। बावजूद आप देखेंगे कि ऐसे पुलों की संख्या हजारों में है जिनको देखने से ही लगता है कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। हम आप जान जोखिम में डालकर उस पर चलते हैं। गाड़ियां चलती हैं। यही नहीं उसके बाद के और हमारे आपके समय के बने हुए भी हजारों पुलों, फुटओवर ब्रिजों, फ्लाई ओवरों, सब पर नजर दौड़ाई जाए तो अनेक हादसे की स्थिति में जाते हुए दिखेंगे। राजधानी दिल्ली में ऐसे कई फुट ओवरब्रिज हैं, जो कभी भी बड़े हादसे के कारण बन सकते हैं। वास्तव में पुलों, फुटओवरब्रिजों, पैदल पार पथों आदि को लेकर संबंधित विभाग को जितना सतर्क और चुस्त होना चाहिए वह प्रायः नहीं दिखता। जब  बड़ी घटनाएं होती हैं तो हाय तोबा मचता है लेकिन कुछ समय बाद फिर वही स्थिति।कोई उससे सबक लेकर अपने यहां के पुलों की समीक्षा नहीं करता।

जाहिर है, मोरबी त्रासदी पूरे देश के लिए चेतावनी होनी चाहिए। हर श्रेणी के पुलों तथा फ्लाई ओवरों की गहन समीक्षा होनी चाहिए। सभी राज्य इसके लिए आदेश जारी कर एक निश्चित समय सीमा के अंदर समीक्षा रिपोर्ट मंगवाए और उसके अनुसार जहां जैसी मरम्मत या बदलाव की जरूरत हो वो किया जाए। समीक्षा हो तो ऐसी अनेक पहलें निकलेंगे जिन्हें तत्काल बंद करने का ही विकल्प दिखाई देगा। कुछ ऐसे पुल हैं जिन्हें तोड़कर नए सिरे से बनाना होगा। समस्या को टालने से वह और विकराल होता है। जो समस्या सामने है उनका समाधान भविष्य का ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। मोरबी त्रासदी ने हम सबको झकझोरा है लेकिन अगर देश ने इसे सबक नहीं लिया तो ऐसी त्रासदी बार-बार होती रहेंगी। स्वयं मोरबी और राजकोट प्रशासन को आगे यह निर्णय करना होगा कि पुल को रखा जाए या नहीं और नहीं रखा जाए तो इसका विकल्प क्या हो सकता है। 

अवधेश कुमार, ई -30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल- 98910 27208

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