भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दक्षिण एशिया को आपसी विश्वास और साझेदारी के व्यावहारिक क्षेत्र में बदलने की पहल कर रहे हैं, पर कुछ शक्तियां पहले के अनुसार ही अपने राजनीतिक हितों के लिए इस पर आघात पहुंचाने की कोशिश कर रहीं हैं। इस बार ऐसी कोशिशों की गंध हमारे पड़ोसी श्रीलंका से आई है। वहां यह अफवाह फैलाई जा रही है कि पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की हार के लिए भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने कोशिश की थी। यानी यदि रॉ हराने में नहीं लगता तो राजपक्षे तीसरी बार सत्ता में आ जाते। 8 जनवरी को श्रीलंका में हुए मतदान में तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे चुनाव हार गए थे और उनके ही पूर्व सहयोगी तथा विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार मैत्रीपाल श्रीसेना ने विजय पाई। हालांकि यह आरोप राजपक्षे या उनके भाइयों ने नहीं लगाया है, लेकिन वहां यह बात तेजी से फैल रही है और मीडिया इसे उठा रहा है। वहां के अखबार इसे उठा रहे हैं। एक अखबार लिख रहा है कि रॉ का वह अधिकारी विपक्षी नेताओं से संपर्क में था। सामचार पत्रों में रॉ के प्रमुख तक के रानिल विक्रमसिंघे एवं पूर्व राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमारतुंगे से संपर्क में होने की बात लिख दी है।
इस मामले में आगे बढ़ें उसके पहले यह जान लेना आवश्यक है कि श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग के साथ पक्ष एवं विपक्ष के नेता लगातार संपर्क में रहे हैं, आते जाते हैं। तमिलों की संख्या वहां काफी है, उनका भारत के तमिलनाडु में सीधा रिश्ता है। श्रीलंका के विकास में भारत का धन लगता है। इस समय तो राजपक्षे द्वारा लिट्टे को नेस्तनाबूद करने के बाद तमिल क्षेत्रों में हुए विनाश में भारत पुनर्वास अभियान में मुख्य भूमिका निभा रहा है। तमिल नेता वहां आते हैं और अपनी शिकायते करते हैं। यानी वहां उच्चायोग की सक्रियता एक आम स्थिति है। भारत की नीति किसी भी पड़ोसी देश की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने की नहीं है, पर नेपाल, भूटान, श्रीलंका जैसे देशों में स्थिति अपने आप थोड़ी भिन्न होती है। यह एक स्वाभाविक स्थिति है। स्वयं राजपक्षे के काल में भी यही स्थिति थी। उनके मंत्री, अधिकारी भारतीय उच्चायोग से लगातार संपर्क में रहते थे। तमिल समस्या को लेकर हमारे नेता व अधिकारी उनसे बातचीत करते रहते थे। इससे भारत के लिए अलग करना संभव न था, न है। यह होगा। इसका असर अगर वहां के चुनाव पर पड़ता है तो इसे किसी प्रकार की साजिश नहीं कहा जा सकता। सिंहलियों से किसी प्रकार का मतभेद रखे बिना तमिल हितों के लिए खड़ा होना भारत का दायित्व है। इसका यह अर्थ नहीं कि भारत के अधिकारी वहां किसी को जीताने और हराने के खेल में पड़ जाएं।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अकबरुद्दीन ने इस आरोप का खंडन कर दिया है। स्वयं महेन्द्रा राजपक्षे ने कहा है कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं। अगर जानकारी होगी तभी वे कुछ बोलेंगे। वहां अफवाह इतना गहरा है कि हाल में श्रीलंका के कोलंबों स्थित दूतावास में तैनात एक अधिकारी के तबादले के बारे में कहा जा रहा है कि वह दरअसल, रॉ का अधिकारी था तथा चुनाव में उसकी भूमिका का खुलासा होने के बाद उसे निर्वासित कर दिया गया है। हालांकि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कह दिया है कि तबादले होते रहते हैं। चूंकि उस अधिकारी का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो गया था, इसलिए उनका तबादला किया गया है। हमारे लिए यही कथन सच है। जो यह आरोप लगा रहे हैं उनने अपना जो स्रोत बताया है उसका कोई अर्थ नहीं है। अगर रॉ की भूमिका थी तो यह बात राजपक्षे की पार्टी कह सकती थी।
यह बात ठीक है कि लिट्टे के खिलाफ नृशंस सैन्य कार्रवाई के कारण भारत में राजपक्षे के खिलाफ वातावरण था। खासकर तमिलों के बीच। वे भारत के साथ अच्छे संबंधों की बात करते रहे और भारत के सुझावों की अनदेखी भी। वे बार-बार कहते थे कि वी. प्रभाकरन को पकड़कर भारत को सौंप देंगे। ध्यान रखिए प्रभाकरन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का मुख्य अभियुक्त था। हालांकि उनके सेनाओं ने निर्दयता से प्रभाकरन एवं उसके पुत्र आदि की हत्या कर दी। बाद में उन्हांेने भारत का विश्वास जीतने की कोशिश की, पर कुल मिलाकर यह साफ था कि भारत को दक्षिण एशिया का स्वाभाविक नेता कहते हुए भी वे विकल्प के लिए चीन के करीब जाते रहे। 2010 में चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा वित्तीय साझेदार हो गया। इस समय वह हर साल 61 अरब रुपये से ज्यादा की सैन्य सामग्रियां श्रीलंका को आपूर्ति करता है। श्रीलंका की वायु सैनिक क्षमता के उत्थान में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वह श्रीलंका मेरीटाइम परियोजना में काम करने लगा है जिससे चीनी कंपनियां आसानी से श्रीलंका पहुंच सकेंगी। यह सब राजपक्षे के शासनकाल में ही हुआ। यह हमारे लिए चिंता का कारण है। श्रीलंका के अंदर भारत विरोधियों का इसे समर्थन था। उनके हारने के बाद ऐसा लग रहा है कि भारत की भूमिका वहां अब पहले के अनुसार ज्यादा होगी।
हालांकि स्वयं श्रीलंका के एक बड़े वर्ग में भी चीन से ज्यादा निकटता को अच्छा नहीं माना। उनकी इस नीति का खुलेआम विरोध भी हुआ। जब पिछले वर्ष राजपक्षे ने दो चीनी पनडुब्बियों को अपने तट पर रुकने दिया तो केवल भारत ही नहीं दुनिया की महत्वपूर्ण शक्तियों के भी कान खड़े हुए। अमेरिका े भी इससे सशंकित हुआ और भारत के लिए तो यह आघात जैसा था। चीन हिन्द महासागर में अपनी सैन्य ताकत बढ़ाना चाहता है, इसलिए वह लगतार सक्रिय है। भारत के लिए चिंता का कारण वहां केवल चीनी पनडुब्बियों का रुकना नहीं था। राजपक्षे ने इस घटना के बारे में भारत को पहले से सूचित तक करने की औपचारिकता पूरी नहीं की, जबकि श्रीलंका की भारत के साथ इस संबंध में स्पष्ट संधि है। तो भारत उनको कैसे अनुकूल मान लेता। परंतु इन सबके आधार पर यह आरोप लगाना कि भारत ने अपनी विदेश खुफिया एजेंसी के माध्यम से राजपक्षे को हराने की साजिश की नासमझी से अधिक कुछ नहीं है। राजपक्षे मोदी के साथ बेहतर संबंध की कोशिश कर रहे थे और मोदी ने भी उनको अनुकूल प्रत्युत्तर दिया था।
इस प्रकार के दुष्प्रचार के कुछ स्पष्ट संकेत हैं। यह संभावना बलवती हो रही है कि नए राष्ट्रपति श्रीसेना का भारत के प्रति विशेष लगाव हो सकता है। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अपने पहले विदेश दौरे के लिए भारत का ही चयन किया है। यह एक महत्वपूर्ण संकेत है और इससे लगता है कि भारत श्रीलंका संबंधों पर एक साथ कई प्रकार की जो काई जम गई थी, वो सब धीरे-धीरे हटेगी। हालांकि जो भारत विरोधी इस प्रकार की खबरें उड़ा सकते हैं, वे आगे भी कुछ दुष्प्रचार करेंगे। यह इसका एक महत्वपूर्ण संकेत है। इस अफवाह का अर्थ ही है कि भारत को बदनाम करो ताकि जनता का एक वर्ग उसके खिलाफ हो। हो सकता है इसके पीछे चीनी लौबी का भी हाथ हो। आखिर भारत ने भी तो श्रीलंका, मालदीव, नेपाल, भूटान में चीन की पैठ के बाद उसके क्षेत्रों में अपने संबंध प्रगाढ़ करने आरंभ किए। दक्षिण चीन सागर में तेल गैस खोज का ठेका लेकर चीन को भारत ने संकेत भी दिया। किंतु भारत के लिए यह विचराणीय है कि इन चारों देशों में ऐसे तत्व हैं जो भारत की भूमिका को हमेशा संदेहों के घेरे में लाते हैं, इसके विरुद्ध वातावरण बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं, पर वे चीन के विरुद्ध ऐसा नहीं करते। वर्तमान आरोप प्रसंग का निष्कर्ष यही है कि श्रीलंका में इसी प्रकार भारत विरोधी वातावरण बनाने की कोशिश तेज होगी। वे ये भी नहीं चाहेंगे कि भारत तमिलों के मामले में वहां किसी प्रकार का हस्तक्षेप करे।
इसका सामना हम कैसे करेंगे इसकी रणनीति विदेश मंत्रालय को अभी से बनानी होगी। कारण, भारत श्रीलंका के आंतरिक मामले से अपने को अलग नहीं रख सकता। अगर तमिलों की समस्या नहीं सुलझीं, उनको अपने क्षेत्रों में जितनी वाजिब स्वायत्तता चाहिए नहीं मिली, उनका उचित पुनर्वसन नहीं हुआ, उनको सिंहलियों के समान सभी अधिकार व्यवहार में नहीं मिले तो वहां अशांति कायम होगी और इससे भारत प्रभावित होगा। यह मानने में कोई समस्या नहीं है कि भारत के खिलाफ प्रचार करने वालों में तमिलों से विद्वेष रखने वाले सिंहली समुदाय के कुंठित समूह शामिल होंगे।
अवधेश कुमार, ई: 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर: 01122483408, 09811027208