गुरुवार, 2 जुलाई 2015

तीन अलग देश, पर हमलावरों की सोच एक

 

अवधेश कुमार

कुवैत, ट्यूनीशिया और फ्रांस- तीन देश, तीनों की भौगोलिक दूरियां, लेकिन हमला करने वालों की सोच एक। दो घंटे के अंदर तीन दूरस्थ देशों में हमला। यह है जेहादी आतंकवाद का कू्रर सच। सबसे पहले फ्रांस, फिर कुवैत और अंत में ट्युनीसिया। पता नहीं यह टिप्पणी पढ़ते-पढ़ते और कहीं हमला हो जाए। यह जेहादी आतंकवाद के वैश्विक विस्तार का भयावह प्रमाण है। जो करीब 70 लोग मारे गए या इससे कई गुणा ज्यादा घायल हुए वे न इनके निजी दुश्मन थे, न हमलावर इनको निजी तौर जानते थे। ज्यादातर आतंकवादी हमले में मारने वाले यह जानते ही नहीं कि जिन निरपराध लोगों का वे खून बहा रहे हैं वे कौन हैं। बस, हिंसा का एक जुनून, आतंक पैदा करने का उन्माद और इसके पीछे मजहब की वर्चस्व स्थापना की नासमझ किंतु सुदृढ हो गया विचार। कभी-कभी तो इनका निशाना ऐसा स्थान और ऐसे लोग होते हैं जिनके पीछे कोई निश्चित सोच भी नहीं होती, लेकिन ज्यादातर बार वे हमले के लिए ऐसी जगहों, ऐसे प्रतीकों और ऐसे लोगों का चयन करते हैं जिनसे ये एकदम सुस्पष्ट संदेश दे सकें। तीनों देशों में हुए हमले के स्थानों और निशाना बनाए गए व्यक्तियों का विश्लेषण करें तो फिर इसका अर्थ समझ में आ जाएगा।

उत्तरी अफ्रीकी अफ्रीकी देश ट्यूनीशिया के समुद्र तट पर स्थित सूजे शहर के दो होटलों पर हुए आतंकी हमले की जो आपबीती सामने आई है उसके अनुसार एक में बिच पर पर्यटक की तरह दिखने वाला एक नवजवान लोगों को जोक सुना रहा था और अचानक उसने छाते से ए के 47 निकाली और केवल विदेशियों पर गोलियां बरसती रही। जो स्थानीय थे उनको वह बाहर जाने को कह रहा था। कुवैत में क्या हुआ? कुवैत सिटी स्थित सबसे बड़ी शिया मस्जिद में शुक्रवार की नजाम अदा करते समय ही हमला हो गया, जिसमें 27 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल जिनमें पता नहीं कितने और काल कवलित हो जाएंगे। अल-सवाबेर में स्थित अल-इमाम-अल-सादिक नाम की यह शिया मस्जिद कुवैत सिटी के पूर्वी हिस्से में है और रमजान के महीने में शुक्रवार होने के कारण 2000 से ज्यादा लोग उपस्थित थे।  उसमें कोई आत्मघाती स्वयं को उड़ा दे तो फिर कैसा कोहराम मच सकता है इसकी कल्पना से ही रोंगटेे खड़े हो जाते हैं।

 ध्यान रखिए, जब शिया मुस्लिम नमाज के घुटनों पर झुके हुए थी कि तभी अचानक उसने स्वयं को उड़ा दिया। निस्संदेह, उसके शरीर में काफी शक्तिशाली विस्फोट बंधे थे, इसलिए विस्फोट काफी जोरदार था। इस जोरदार धमाके का ही परिणाम था कि मस्जिद की छत और दीवारें फट गई थीं। तो व्यापक नरसंहार की योजना थी। दक्षिण-पूर्वी फ्रांस के सेंट क्वेंटिन फैलेवर स्थित जिस एयर प्रोडक्ट्स फैक्ट्री में आतंकी हमले की बात की जा रही है उसे लोकर थोड़ा संशय है। हालांकि वहां कई धमाकों की बात की जा रही है। कहा गया कि एक कार में सवार हमलावरों ने फैक्ट्री के गेट पर क्रैश करवा दिया। इसके बाद धमाका हुआ। फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट किया कि कार में विस्फोटक भरा हुआ था। यह सच है तो वहां भारी विनाश न मचना संयोग ही हो सकता है। लेकिन एक ही व्यक्ति का सिर और धड़ अलग-अलग क्यों किया गया? इसक उत्तर नहीं मिला। अगर सिर पर अरबी में लिखा हुआ है और हमलावर के हाथ में इस्लामिक स्टेट का झंडा होने की खबर सच है तो फिर कुछ कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती।

अब जरा इनका विश्लेषण करिए। ट्युनीसिया, आंतरिक संघर्ष, जिसे अरब क्रांति कहा गया के गर्भ से अभी निकला नहीं और वहां मजहबी कट्टरपंथ ने वर्चस्व जमा लिया है। यहां इसमें विस्तार से जाना संभव नहीं, लेकिन यह सच सबको पता है कि बाहरी दुनिया की मीडिया ने जिसे गुलाबी क्रांति कहा, वह दरअसल, मजहबी कट्टरपंथ की का्रंति बन गई और ट्युनीसिया उसका भयावह शिकार है। हमलावरों ने केवल विदेशियों को क्यों मारा? उनकी जेहाद की सोच में विदेशी सभ्यता के साथ सम्मिलन का कोई स्थान नहीं। दूसरे, जब तक वहां दहशत पैदा नहीं होगा, विदेशी पर्यटक आते रहेंगे, उसकी आय भी होती रहेगी, इसलिए उस पर अपना आतंकी वर्चस्व कायम नहीं हो सकता। ट्युनीसिया में वर्ष 2014 में 60 लाख 10 हजार पर्यटक आए थे। देश के सकल घरेलू उत्पाद का 15.2 प्रतिशत हिस्सा पर्यटन से आता है। 4 लाख 73 हजार लोगों को पर्यटन में रोजगार मिलता है। तो पर्यटन वहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, वहां विश्व के पढ़े लिखे लोगों से संपर्क का मुख्य आधार भी। तो इसी को ध्वस्त करो। चुनकर विदेशियों को मारो। समुद्री किनारों वाला सूजे शहर विदेश पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हैं। वहां जाने वालों में ब्रिटेन के नागरिकों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। ध्यान रखिए यहां पिछले मार्च में इस्लामी आतंकवादियों ने राजधानी ट्यूनिस के बार्डा म्यूज़ियम पर हमला किया था जिसमें 22 लोग तत्काल मारे गए थे। वह भी वहां का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। उस समय से पूरे देश में रेड अलर्ट था और सारे पर्यटक स्थलों की सुरक्षा बढ़ाई गई थी। इसके बावजूद आईएस के आंतकवादी हमला करने में सफल रहे।  ठीक है कि सुरक्षा गार्डों ने मुकाबला किया और हमलावरों के मारे जाने की सूचना है। लेकिन वो आईएसआईएस का प्रतीक बन चुके काला कपड़ा पहनकर आए ही थे मरने के लिए। इसलिए इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।

कुवैत में शिया मस्जिद पर नमाज के वक्त हमला करके आईएस आतंकवादियों ने क्या संकेत दिया? यही न कि वे सुन्नी एकाधिकार के अलावा इस्लाम के किसी पंथ को इस्लाम नहीं मानेंगे और उसके खिलाफ हिंसा करते रहेंगे। आईएस के आतंकवादी चारों ओर शियाओं की ऐसे ही हत्या कर रहे हैं, यजीदियों की तो उनने पूरी तरह अंत करने की ठान ली है। 30 वर्षीय कुवैत आत्मघाती हमलावर की पहचान अबु सुलेमान अल-मुवाहेद के रुप में हुई है। सउदी अरब में आईएस से संबद्ध समूह नजद प्राविन्स ने बयान जारी करके कहा है कि अबु सुलेमान ने मस्जिद पर हमला इसलिए किया क्योंकि मस्जिद की ओर से सुन्नी मुस्लिमों के बीच शिया की शिक्षाओं का प्रसार किया जा रहा था। जेहादी आतंकवादी के उभार के समय से कुवैत काफी हद तक इससे बचा रहा है। आईएस के आतंकी ऐसे किसी देश को नहीं छोड़ना चाहते जहां गैर सुन्नी इस्लाम का अस्तित्व हो।

तो जो सोच है उसमें ऐसे हमले आगे भी होंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद ने कहा है कि ऐसे और हमले का भय है। यहां भी एक हमलावर के मुठभेड़ में मारे जाने की सूचना है। जो दूसरा संदिग्ध गिरफ्तार हुआ उसका नाम यासिम सलीम है, किंतु उसे लेकर स्पष्ट नहीं है कि वह वाकई आतंकवादी है ही। बावजूद इसके स्थिति की गंभीरता का अनुमान इसी से लगाइए कि जब यह वारदात हुई ओलांद ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ की बैठक में थे जिसे छोड़कर देश वापस आए। फ्रांस पर आईएस आतंकवादियों ने इसी वर्ष जनवरी में पेरिस की मशहूर कार्टून पत्रिका चार्ली हेब्दो पर हमला करके 17 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। आईएस ने तो घोषणा ही किया हुआ है कि वह फ्रांस पर आगे भी हमला करेगा।

तो एक स्थान पर निशाने पर पर्यटक, दूसरे में शिया और तीसरे में एक आम फ्रांसीसी नागरिक। देखने में तीनों अलग-अलग लगते हैं, पर जैसा हम समझ चुके हैं ये एक ही खतरनाक सोच और लक्ष्य की अलग-अलग हिंसक अभिव्यक्तियां हैं और इनके संदेश भी पूरे विश्व के लिए एक ही है। आईएस दुनिया में जिस सुन्नी इस्लाम का साम्राज्य स्थापित करना चाहता है, पिछली सदी की खिलाफत व्यवस्था को कायम करने के लिए आतंकवाद की पिछली सारी क्रूरताओं को पार गया है उसके उद्देश्य के आईने में इनकी तस्वीर एक ही दिखाई देगी। आईएसआईएस के प्रमुख अबु अल बगदादी ने जबसे स्वयं को खलीफा घोषित किया है उसने अपने सुन्नी इस्लामी साम्राज्य का एक नक्शा भी प्रसारित किया है जिसमें हमारे भारत का पश्चिमी हिस्सा भी शामिल है। उसी अनुसार वह अभियान चला रहा है। हालांकि हम एक दिन में तीन ही हमले की चर्चा कर रहे हैं जबकि उसी दिन तुर्की की सीमा के नजदीक सीरिया के शहर कोबानी पर इसने कब्जा कर लिया तथा 24 घंटे के भीतर 146 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। वे सारे शिया थे। प्रश्न है कि क्या आईएस इसी तरह आतंकवादी हमला करके अपना हिंसक विस्तार करता रहेगा और दुनिया हर हमले पर शोक और क्षोभ व्यक्त करती रहेगी? अमेरिका इतने लंबे समय से ड्रोन हमले कर रहा है, सीरिया और इराक सीधी लड़ाई लड़ रहा है, कुर्द सेनाएं अपने क्षेत्रों में लोहा ले रहीं, पर इसकी शक्ति में कमी आने के संकेत नहीं। वह अफगानिस्तान तक पहुंच गया और वहां तालिबान आतंकवादियो को वर्चस्व बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। क्या पूरी दुनिया एकजुट होकर इसके समूल नाश का संकल्प लेकर कार्रवाई नहीं कर सकती? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर विश्व समुदाय को तलाशना होगा। शांति और सद्भावपूर्ण जीवन के पक्षधर विश्व भर के मुस्लिम समुदाय को भी इनके खिलाफ खुलकर प्राणपण से आगे आना चाहिए।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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