अवधेश कुमार
पाकिस्तान की संसद ने एक स्वर में भारत के खिलाफ निंदा प्रस्ताव अगर पारित कर दिया तो उससे हमारे लिए क्या अंतर आता है कि हम उस पर छाती पीटें। वहां की संसद ने इसके पूर्व पिछले अगस्त माह में भी एक सप्ताह के अंदर दो बार लगभग ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया था। वह ऐसा समय था जिसे हमारी सेना ने 1971 के बाद की सबसे ज्यादा गोलीबारी वाला समय करार दिया था। वस्तुतः पाकिस्तान शांति के लिए ईमानदार प्रयासों के अलावा भारत के विरोध में जो चाहे करे, हमारी अपनी तैयारी और प्रत्युत्तर भारत के अनुरुप ही होगी। भारत यानी एक ऐसा परिपक्व देश, जिसके बारे में दुनिया मानती है कि यह अनावश्यक रुप से अपने पड़ोसी के शरीर में कांटे नहीं चुभाता, मुकाबले में सशक्त होते हुए भी किसी प्रकार की उत्तेजना या अतिवादी कदम से बचता है, जो लंबे समय से एक ओर पाकिस्तान प्रायोजित और फिर बाद में उसके चाहे अनचाहे सीमा पार आतंकवाद से ग्रस्त है, लेकिन कभी जवाब में आतंकवाद का नासूर पैदा नहीं करता......। क्या पाकिस्तान ने निंदा प्रस्ताव पारित करके वास्तविक नियंत्रण रेखा एवं अंतरराष्ट्रीय सीमा पर चल रही गोलीबारी के लिए पूरी तरह से भारत को जिम्मेदार ठहराया दिया यानी भारत को हमलावर देश साबित करने की कोशिश की है तो दुनिया उसे स्वीकार कर लेगी? क्या वह भारत पर उसके अंदरुनी मामलों में दखल देने का आरोप लगा रहा है तो उससे विश्व समुदाय भारत को दोषी मान लेगा? इसका उत्तर दुनिया पाकिस्तान को पहले ही दे चुकी है। इसलिए हमें उत्तर तलाशने के लिए किसी माथापच्ची की आवश्यकता नहीं।
यह प्रस्ताव भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सियाचिन एवं कश्मीर घाटी के दौरे के साथ पारित किया गया है। इसलिए हम प्रस्ताव को इससे भी जोड़कर देख सकते हैं। पाकिस्तान सियाचिन दौरे को भड़काउ कार्रवाई के रुप में पेश करने की कोशिश कर रहा है। पर यदि मोदी वहां दौरे पर न जाते तो वह प्रस्ताव पारित नहीं करता यह मानने का कोई कारण नहीं है। ध्यान रखिए प्रस्ताव में विश्व समुदाय से इस मामले में दखल देने का अनुरोध किया गया है। तो लक्ष्य वही है, किसी तरह कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बनाना। हालांकि इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि वह लगातार अपनी इस दुष्प्रयास में विफल हो रहा है, सभ्य भाषा में झिड़की भी सुन रहा है, पर हर कदम के बाद कोई न कोई तरीका फिर निकाल लेता है विश्व समुदाय से आग्रह का। पिछला तरीका संयुक्त राष्ट्रसंघ को बाजाब्ता पत्र लिखकर आग्रह करना था ताकि विश्व संस्था कुछ न कुछ लिखित उत्तर देने को विवश हो जाए। लेकिन उत्तर यह मिला कि आप भारत के साथ ही इसे निपटाइए। क्या पाकिस्तान मानता है कि इसके बाद विश्व संस्था अपने रुख से पलट जाएगा?
हालांकि उस समय लगा कि पाकिस्तान का यह अंतिम पैंतरा है। कारण इसके पूर्व वह संयुक्त राष्ट्र भारत पाक सैन्य आयोग के पास नियंत्रण रेखा पर हो रही गोलीबारी की रोकथाम के लिए आगे आने का लिखित आवेदन कर चुका था। वहां से उसे कोई प्रत्युत्तर न मिला न मिलना था, क्योंकि भारत ने उस आयोग को कब का खारिज कर दिया है। स्वयं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इससे पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा के अधिवेशन में इसे अपना मुख्य फोकस बनाया एवं उसे साढ़े छः दशक पूर्व पारित जनमत संग्रह प्रस्ताव को साकार करने के लिए आगे की अपील की थी। किसी ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि इसके परिणाम में उनकी कूटनीति भारतीय कूटनीति के सामने इस तरह विफल हो गई कि शरीफ चाहकर भी अमेरिका के राष्ट्रपति से न मिल सके, एवं पूरा अमेरिकी प्रशासन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीे की यथोचित आवभगत में लग गया। इसके आगे के कदम के रुप में पाकिस्तान के राजदूत ने भी संयुक्त राष्ट्र में अपने प्रधानमंत्री के वक्तव्य को आगे बढ़ाने की कोशिश की, पर परिणाम वही....शून्य।
इसलिए हम इस मामले में निश्चिंत हो सकते हैं कि विश्व समुदाय हमारी सोच के विरुद्ध पाकिस्तान के साथ कश्मीर मामले पर आगे नहीं आने वाला। चीन भी नहीं जिसे वह अपना शायद सबसे विश्वसनीय मित्र मानता है। कारण, अब चीन ने भी भारत के साथ अपने संयुक्त वक्तव्य में अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को स्वीकार कर लिया है और अमेरिका ने भी। इन सबके बावजूद यदि पाकिस्तान किसी न किसी तरह ऐसा कर रहा है तो यह हमारे लिए चिंता का विषय जरुर है। यह पाकिस्तान की उस खतरनाक स्थिति को दर्शा रहा है जहां से तत्काल उसके पीछे लौटने का संकेत नहीं। पाकिस्तान की संसद का अर्थ है, वहां की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों की आवाज। पाकिस्तान की परेशानी कुछ हद तक समझ में आने वाली है। मसलन, लंबे समय बाद उसे लगातार करारा प्रत्युत्तर मिला है। उसकी ओर के हमलों के जवाब में सीमा सुरक्षा बल ने सरकार से कार्रवाई की आजादी हासिल करने के बाद उस पार भी तबाही मचाई है। हमारे यहां जितने लोग मारे गए हैं उनसे तीन गुणा के करीब उधर मारे गए हैं। कई दर्जन उनके बैंकर तथा आतंकवादियों के शिविर नष्ट किये है। कई किलोमीटर तक पाकिस्तान को अपना क्षेत्र खाली करना पड़ा है। इससे उसका परेशान होना स्वाभाविक है। पर इसका निदान तो बड़ा सीधा है, वह अनावश्यक गोलीबारी बंद करे, आतंकवादियों की घुसपैठ की अपनी सैन्य रणनीति पर पूर्ण विराम लगाए। अगर वह यह करने को तैयार नही तो जाहिर है, वह खतरनाक दिशा में आगे बढ़ चुका है। यहां यह भी उल्लेख करना जरुरी है कि निंदा प्रस्ताव में भारत से पाकिस्तान के साथ नाभिकीय शक्ति संपन्न देश की तरह व्यवहार करने को कहा गया है। इसका क्या अर्थ है? क्या हम इसे नाभिकीय धमकी मान लें? इसका अर्थ जो भी लगाया जाए कम से कम तत्काल एक उद्धत देश का प्रमाण तो इसे मानना ही होगा।
अगर कोई देश उद्धतवाद की मानसिकता में पहुंच चुका है तो फिर उससे ज्यादा सचेत होकर रहने और किसी भी हालात से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। यह हमारे साथ दुनिया भर की चिंता का कारण होना चाहिए। नाभिकीय अस्त्र से लैश देश यदि इस तरह अनावश्यक औपचारिक रुप से इसकी धौंस दिखाता है तो इसे अवश्य विश्व समुदाय को गंभीरता से लेना चाहिए। पता नहीं पाकिस्तान यह कैसे भूल जाता है कि भारत भी नाभिकीय हथियार संपन्न देश है। लेकिन भारत का व्यवहार उद्धत देश की तरह न था न हो सकता है। कुल मिलाकर पाकिस्तान खतरनाक दिशा में जा रहा है। इसके कारणों की कई बार विवेचना की जा चुकी है। संसद के पास से कादरी साहब का घेराव हट गया, पर इमरन खान अभी वापस नहीं गए हैं। वहां जिस नेता को देखिए उसके मुंह से ही कश्मीर की जहर निकल रही है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के युवा नेता और उनकी आशा के केन्द्र बिलावल भुट्टो कहते हैं कि मैं जब कश्मीर का नाम लेता हूं तो पूरा भारत चीखने लगता है।
बेचारे भुट्टो भूल गए कि उन्हीं के नाना ने हाथ जोड़कर 33 वर्ष पूर्व शिमला समझौता किया था, अन्यथा भारत को कोई आवश्यकता नहीं थी। वे यह भी भूल गए कि पिछले वर्ष के चुनाव में उनको अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार छोड़कर सुरक्षा के लिए विदेश भागकर रहना पड़ा। तो भैया, अपने देश को ठीक करने की जगह यदि आप कश्मीर का आग उगलोगे तो यह तुम्हें एक दिन भस्म कर देगा। आखिर आतंकवाद पैदा किया तुम्हारा ही था जिसकी शिकार तुम्हारी मां हुई और पिछला चुनाव। बेचारे मुशर्रफ जो अपने कार्यकाल में भारत के साथ संबंध सुधारने की पहल कर रहे थे वे कह रहे हैं कि लाखों लोग तैयार बैठे हैं कश्मीर मे लड़ने के लिए केवल उन्हें भड़काने की आवश्यकता है। सेना का एक धड़ा तो खैर कट्टरवाद की गिरफ्त में है ही। इसमें नवाज सरकार भी पूरी तरह दबाव में है। ऐसे हालत में फंसा देश कोई भी विनाशकारी कदम उठा सकता है।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208