शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

धर्मपुरा वार्ड 233 की निगम पार्षद तुलसी गांधी 'नेता जनता के द्वार' कार्यक्रम को संबोधित करती हुईं साथ में हैं पूर्वी दिल्ली के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित


 

रामदेव के बयान पर मचे बावेला का दूसरा पहलू

 

अवधेश कुमार

स्वामी रामदेव काफी दिनों बाद मीडिया की सुर्खियां बने हैं। कई मीडिया खासकर अंग्रेजी समाचार चैनलों में यह खबर चली है कि रामदेव उनका सिर काटेंगे जो भारत माता की जय नहीं बोलेगा या भारत माता की जय का विरोध करेगा। क्या स्वामी रामदेव के पास इतनी अक्ल नहीं है कि ऐसे बयान का क्या असर हो सकता है? किसी भी मामले में हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता है। जो कोई भी हिंसा की बात करता है उसका विरोध होना चाहिए ताकि दूसरा कोई उससे प्रेरणा लेकर वैसा ही न करने लगे। किंतु स्वामी रामदेव ने यह नहीं कहा है कि वो सिर काट लेंगे। भारत माता की जय का विरोध करने वालों के बारे में उनका बयान यह है कि हम कानून का सम्मान करते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कितनों का सिर काट देते। साफ है कि जानबूझकर बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है। बतंगड़ बनाने वालों की सोच क्या है वे क्या चाहते हैं यह शायद अब बताने की आवश्यकता भी नहीं। देश इन लोगों का अच्छी तरह पहचानने लगा है। वास्तव में स्वामी रामदेव के बयान का मतलब चह है कि गुस्सा तो हमारे मन में है, पर कानून का पालन करने के कारण हम शांत हैं। इसका दूसरा अर्थ यह हुआ कि हम अपना गुस्सा दूसरे ढंग से प्रकट करें जिसमें हिंसा न हो।

यह मानना भी गलत होगा कि केवल स्वामी रामदेव अकेले ऐसा कहने या सोचने वाले हैं। आप भारत माता की जय मामले पर आम लोगों को यह कहते हुए सुन सकते हैं कि इतना गुस्सा आता है कि मन करता है गोली मार देते.... कुछ यह कहेंगे कि ऐेसे लोगों के लिए तो कानून बनना चाहिए ताकि सजा मिले, उऩको सीधे फांसी पर चढ़ा दिया जाए या उनको देश निकाला दिया जाए। तो गुस्से का आम माहौल ऐसे लोगों के विरुद्ध है। वास्तव में समाज की सामूहिक भावना का यही सच है। स्वामी रामदेव ने भी अपने भाषण में इसी भाव को प्रकट कर दिया है। वे बड़े व्यक्तित्व हैं, इसलिए कुछ लोगों को उनके मुंह से वह भी सार्वजनिक स्तर पर सुनना थोड़ा अजीब लगता है, परंतु भारत माता जय के मामले पर यही सच है। देश का बहुमत भारत माता की जय के पक्ष में है और इसका किसी तरह से विरोध करने वाले...या किंतु परंतु लगाने वाले या फिर यह कहने वाले कि आप हमसे जबरन नहीं कहलवा सकते....के खिलाफ आम गुस्सा है। इसमें आम प्रतिक्रिया है कि ओह देश का कानून रोकता है नहीं तो ऐसे लोगों को तो बीच चौराहे पर खड़ा करके गोली मार देना चाहिए। क्या यह भावना लोग व्यक्त करते हैं या नहीं? अगर प्रकट करते हैं तो फिर रामदेव के बयान को अकेले किसी एक व्यक्ति का बयान क्यों मान लिया जाए?

वैसे भी यह अच्छी बात है कि देशभक्ति, भारतभक्ति, भारतनिष्ठा को लेकर इस तरह के खुलकर बयान आ रहे हैं। मीडिया में आलोचना करने से इस भावना को रोका नहीं जा सकता। उल्टे इसकी प्रतिक्रिया में लोगों का गुस्सा और बढ़ता है। लोग पूछते हैं कि रामदेव ने गलत क्या कहा? फिर आप रामदेव की आलोचना करिए और जो लोग भारत माता की जय को आरएसस और भाजपा का सांप्रदायिक एजेंडा घोषित करते हैं उनको यूं ही छोड़ दीजिए। उनकी आलोचना नहीं हो, उनका विरोध न हो तो समाज अपने तरीके से इसका रास्ता निकालेगा। सवाल है कि भारत माता की जय से आपत्ति क्यों प्रकट की जानी चाहिए? किसी को भारत माता की जय बोलने में समस्या क्यों होनी चाहिए? जो भारत माता की जय नहीं बोलते उनको किस श्रेणी का भारतीय मानना चाहिए? कैसे मान लें कि भारत के प्रति उनकी निष्ठा है? ये ऐसे प्रश्न हैं जो समाज को मथ रहे हैं और दुर्भाग्य यह है कि मीडिया इन प्रश्नों का गंभीरता पूर्वक और यथोचित उत्तर ढूढने और सामने रखने की जगह जो कोई इसके पक्ष में आक्रामक बयान दे देता है उसी को कठघरे में खड़ा करने लगता है। इसकी समाज में विरोधी प्रतिक्रियाएं होती हैं। इस कारण मीडिया की अपनी साख गिर ही है भले ये इसे स्वीकार न करें।

आप महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस का बयान देख लीजिए। अगर वो भारत माता की जय के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी कुर्बान करने की बात कर रहे हैं भले इसकी नौबत न आए या वे न करें लेकिन इसकी तो प्रशंसा होनी चाहिए। देवेन्द्र फडणवीस ने वही कहा है जो एक देशभक्त को ऐसे मामले पर कहना चाहिए। आखिर कोई भी पद भारत भक्ति, देशभक्ति के सामने तुच्छ लगे यह भावना अगर नेताओं में पैदा हो तो इससे बेहतर बात क्या हो सकती है। आखिर सबसे पहले हमारा देश भारत है। भारत है तभी हम हैं, तभी हमारी अस्मिता है, तभी हमारा कोई पद है। इसलिए भारत सर्वोपरि है। भारत भक्ति हमारी प्राथमिकता होनी ही चाहिए। इसी भारत माता की जय कहते हुए, वंदे मातरम कहते हुए हजारों देशभक्त दीवानों ने इसकी स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलि चढ़ा दिया। देशभक्ति की वो दीवानगी हर हाल में कायम रहनी चाहिए। भारत माता की जय और वंदे मातरम जैसे नारे हमारी अंतश्चेतना में कुछ क्षण के लिए वही दीवनगी पैदा करती है। हिन्दुस्तान की जय और जय हिन्द नारा भी समानार्थी है। किंतु कोई यह कहे कि हम हिन्दुस्तान की जय बोलेंगे, जय हिन्द बोलेंगे लेकिन भारत माता की जय नहीं बोलेंगे तो यह न तार्किक है और न स्वीकार करने योग्य। यह केवल कुत्सित राजनीति है। भारत माता की जय को आरएसएस और भाजपा का एजेंडा बताना कुछ लोगों की कोरी नासमझी है तो कुछ लोगों की कुटिल राजनीति। इस पर सबका समान अधिकार है।

विडम्बना देखिए कि जब दारुल उलुम देवबंद ने बाजाब्ता जलसा बुलाकर भारत माता की जय के खिलाफ फतवा जारी किया तो इसकी उतनी लानत मलानत नहीं हुई जितनी स्वाम रामदेव या देवेन्द्र फडणवीस के बयानों की हो रही है। क्यों? यही तो एकपक्षीयता है। अनेक मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों ने पहले कहा कि भारत माता की जय बोलना कहीं से इस्लाम विरुद्ध नहीं है। फिर देवबंद के सामने ऐसी क्या आपात स्थिति पैदा हो गई कि उसने बाजाब्ता बैठक बुलाकर इसे इस्लाम के खिलाफ घोषित कर दिया? तब तो पीर अली से लेकर अश्फाक उल्लाह खान और मौलाना अबुल कलाम आजाद .....जैसों को इस्लाम विरोधी मान लेना होगा। आप भारत माता की मूर्ति या तस्वीर की बात क्यों करते हो? आवश्यक नहीं कि हर कोई भारत माता की जो तस्वीरें हमें मिलतीं है उनको स्वीकारें। अमूर्त और निर्गुण रुप में भी अपने वतन को माता माना जा सकता है और उसकी जय बोली जा सकती है। इसके लिए कुरान, हदीस या शरीया कहीं से बाधा नहीं है।  जाहिर है, यह भारत माता की जय के नाम पर गंदी और सांप्रदायिक राजनीति को खड़ा करने का दुष्प्रयास है। आखिर असदुद्दीन ओवैसी को किसने कहा था कि आप भारत माता की जय बोलो ही? संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने तो यही कहा था आज की पीढ़ी को भारत माता की जय बोलना सिखाने की आवश्यकता है क्योंकि वह ऐसा करता नहीं। उन्होंने तो ओवैसी का नाम भी नहीं लिया था। इसके बाद एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि हमे जबरदस्ती किसी से भारत माता की जय नहीं बोलवाना है। हम अपने व्यवहार से उनका दिल जीते ताकि वे स्वयं ऐसा बोलने लगे। लेकिन ओवैसी को अपनी सांप्रदायिक राजनीति करनी है इसलिए उन्होंने मोहन भागवत का नाम लेकर लातूर की सभा में चीखना आरंभ कर दिया कि मेरे गले पर छूड़ा रख दो तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा।

जितना विरोध स्वामी रामदेव और देवेन्द्र फडणवीस के बयान का हो रहा है उसका शतांश भी ओवैसी का नहीं हुआ। जितना बड़ा मुद्दा रामदेव और फडणवीस के बयानों को बनाया गया है उतना बड़ा ओवैसी का नहीं बना? क्यों? इसके खिलाफ समाज के बड़े वर्ग के ंअंदर गुस्सा पैदा होता है। यह तो भारत की सहिष्णु संस्कार है कि कुछ अनहोनी नहीं होती अन्यथा इन भंगिमाओं से आम आदमी के अंदर खीझ और क्रोध पैदा हो रहा है। इसे समझने की आवश्यकता है। आज रामदेव ने बोला है। हो सकता है कल आपको हजारों रामदेव ऐसा बोलने वाले दिख जाएं। वस्तुतः ऐसा न हो इसका उपाय करना आवश्यक है। इसका एक उपाय यह है कि जो लोग अपनी राजनीति या सांप्रदायिक सोच के लिए भारत माता की जय का विरोध कर रहे हैं, इसे अनर्गल तरीके से किसी मजहब के खिलाफ साबित कर रहे हैं या फिर इसे भाजपा एवं आरएसएस के सांप्रदायिक एजेंडा का अंग मानकर इसको महत्वहीन बनाने पर तुले हैं उनका पुरजोर विरोध हो, उनकी लानत मलानत की जाए। जावेद अख्तर भी मुसलमान हैं और वो कहते हैं मैं बार-बार भारत माता की जय कहूंगा क्योंकि ये हमारा कर्तव्य नहीं अधिकार है। ऐसे लाखों मुसलमानों को खड़ा किया जा सकता है। इसका अभियान क्यों न चलाया जाए। अभी प्रधानमंत्री की सउदी अरब यात्रा के दौरान मुसलमान पुरुष और महिलाआंे ने खुलकर भारत माता की जय के नारे लगाए। तो क्या देवबंदी उलेमा उनको इस्लाम से बाहर कर देंगे? ऐसा नहीं हो सकता। आखिर मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थान मक्का और मदीना सउदी अरब में ही है। वहां से भारत माता की जय की आवाज निकलने का महत्व आसानी से समझा जा सकता है।  वास्तव में इस भाव को विस्तारित करने और ताकत देने की जरुरत है। अब यह कैसे हो इस पर जरुर विचार होना चाहिए। मीडिया भी संभलकर ऐसे मामले में अपनी भूमिका निभाए।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208  

 

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/