अवधेश कुमार
लंबे समय से प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा का मूल्यांकन मुख्यतः इस आधार पर होता रहा है कि आखिर शिखर वार्ता के मुद्दे क्यो थे, समझौते क्या हुए, हमेें वहां से प्राप्त क्या हुआ....आदि आदि। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा के लिए भी ये कसौटियां होंगी और उन पर समझौतों, बातचीत, प्राप्तियों का मूल्यांकन किया जाएगा। पर अगर हम मोदी की अभी तक संपन्न चार विदेश यात्राओं, भूटान, नेपाल, ब्रिक्स सम्मेलन के लिए ब्राजिल एवं जापान को मिलाकर देखें तो उन्होंने इस लीक को तोड़कर उसे अपनी राष्ट्रीय सोच के अनुरुप सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामजिक धरातल को पुष्ट करने पर जोर दिया है जिससे संबंधों में निकटता की भावुक और संवेदनशील तत्वों का गहरा समावेश रहे। वास्तव में ऐतिहासिक, सांस्कृति, आध्यात्मिक आयाम ऐसे क्षेत्र हैं जो दो देशों के लोगों को निकट लाते हैं, उनमें अपनेपन का भाव सुदृढ़ करते हैं। एक बार जब इस आधार पर संबंध खड़ा हो गया तो फिर द्विपक्षीय राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक संबंधों का भवन ज्यादा सशक्त होता है। मोदी के प्रति किसी आग्रह और दुराग्रह से परे हटकर विचार करें तो यह स्वीकार करना होगा कि अन्य यात्राओं की तरह जापान में भी हर अवसर पर ऐसा लग रहा था कि वाकई भारत का नेता वहां अपने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इसके पूर्व प्रधानमंत्रियों को हम नकारते नहीं, पर यह चेहरा और चरित्र पहली बार प्रकट हुआ है।
इसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विद्वान या राजनय के मर्मज्ञ जो भी नाम दें, पर यह एक ऐसी शुरुआत है जिससे हमारी पूरी विदेश नीति की धारा बदल रही है। जापान में मोदी चाहते तो तोक्यो से यात्रा आरंभ कर सकते थे, लेकिन उन्होंने क्योतो जैसे आध्यात्मिक शहर से किया जो बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध स्थान है, जिसका भारत के साथ ऐतिहासिक, धार्मिक संबंध है। प्रधानमंत्री ने अपनी जापान यात्रा के कार्यक्रम में फेरबदल करते हुए सबसे पहले क्योटो जाने का फैसला किया था ताकि वे इस शहर के अनुभव से सीख सकें। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबे भी पारंपरिक औपचारिकता को तोड़ते हुए उनका स्वागत करने के लिए पहुंच गए। मोदी और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी की मौजूदगी में दोनों देशों के बीच वाराणसी के विकास के लिए मान्य साझेदार शहर समझौते पर जापान में भारत की राजदूत दीपा वाधवा और क्योटो के मेयर कादोकावा ने हस्ताक्षर किए। यह समझौता वाराणसी की विरासत, पवित्रता और पारंपरिकता को कायम रखने और शहर के आधारभूत ढांचे को आधुनिकतम बनाने में मदद करेगा। इसके साथ ही कला, संस्कृति और अकादमिक क्षेत्र में भी शहर के विकास में दोनों देश सहयोग करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने धार्मिक महत्व के शहरों को आकर्षक तीर्थ व पर्यटनस्थल में विकसित करने की घोषणा की है वाराणसी के अलावा वे मथुरा, गया, अमृतसर, अजमेर और कांचीपुरम जैसे कई धार्मिक शहरों के लिए भी ऐसी ही योजना तैयार कर रहे हैं। इसमंे क्योतो अपने अनुभव से योगदान देगा।
मोदी ने क्योतो के मेयर दाइसाका कादोकावा को एक पुस्तक भेंट की जिस पर लिखा था मैं बनारस का प्रतिनिधित्व करता हूं। उन्होंने वाराणसी का एक डिजिटल मानचित्र भी मेयर को भेंट किया। मोदी ने कहा कि क्योटो आने की उनकी वजह यह है कि तमाम कठिनाइयों के बावजूद क्योटो अपनी सांस्कृतिक विरासत को बरकरार रखते हुए आधुनिक जरूरतों को पूरा किया है। इस शहर का विकास सांस्कृतिक धरोहर के आधार पर हुआ। भारत में हम भी विरासत शहर विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। यहां से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। क्योटो के मेयर ने मोदी को विरासत शहर के विकास पर प्रजेंटेशन दिया। उन्हांेंने 40 मिनट के प्रजेंटेशन में बताया कि क्योटो के नागरिकों ने किस तरह उसे स्वच्छ बनाया। उसमें यह बताया गया कि शहर को कैसे विकसित किया जाए ताकि उसकी ऐतिहासिकता भी बनी रहे, प्रकृति को नुकसान भी नहीं पहुंचे और उसे आधुनिक भी बनाया जा सके। उन्होंने मोदी को बताया कि स्थानीय विद्यार्थियों ने शहर को स्वच्छ बनाने में सक्रिय भागीदारी निभाई और शहर में कचरे को घटाकर 40 फीसद कर दिया। इसके अलावा जगह.जगह लगे पोस्टर भी हटाए गए। मोदी ने शिंजो एबी को वहां क्या भेंट किया? भगवद गीता का संस्कृत और जापानी संस्करण के अलावा स्वामी विवेकानंद के जापान से जुड़े संस्मरणों पर आधारित पुस्तक। प्रधानमंत्री अपने साथ इस किताब के जापानी और अंग्रेजी संस्करण ले गए थे। उसके बाद मोदी क्योटो शहर स्थित प्रसिद्ध तोजी बौद्ध मंदिर पहुंचे। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे इस दौरान उनके साथ थे। दोनों प्रधानमंत्रियों ने यहां करीब आधा घंटा बिताया और मंदिर के प्रमुख बौद्ध भिक्षु वेनेरेबल यासू नागामोरी से पूरी जानकारी ली।
इस घटना का विस्तार से वर्णन करने का उद्देश्य समझना आसान है। किस प्रधानमंत्री ने इसके पूर्व ऐसा किया है? वाराणसी और अन्य शहरों के विकास का तरीका तो मोदी ने सीखा ही, वहां के लोगों से सहयेाग का वायदा प्राप्त किया और यह वायदा सहर्ष और स्वेच्छा से था, क्योंकि मोदी ने सांस्कृतिक एकता का सूत्र बीच में ला दिया। जो समझौते हुए वे तो केवल औपचारिक हैं। शिंजो अबे को उन्होंने यही पस्तुकें क्यों भेंट की? वहां भी यही लगाव पैदा करने का भाव था। माहौल कितना बदला इसका उदाहरण था क्योतो के मेयर का बयान। मेयर ने कहा कि वह भारत और जापान के बीच संबंधों को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित रहेंगे। बुद्ध से जुड़ी विरासतें भारत से प्रेरित हैं। तोजो मंदिर के पूजारी से कहा कि मैं मोदी हूं और आप मोरी। तो ये सब चीजें व्यक्तियों को निकट लातीं हैं और इससे देशों के संबंधों के दूसरे आयाम अपने-आप मजबूत होते हैं।
यूएस.2 एम्फीबियस एयरक्राफ्ट की डील साइन की गई है। इसके जरिए भारतीय एयरक्राफ्ट उद्योग के विकास के लिए एक रोड मैप तैयार किया जा सकेगा। मोदी सरकार की नीतियों को ध्यान में रखते हुए ये प्लेन भारत में तैयार किए जाएंगे।
7 दशक पहले खत्म हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह पहली बार होगा जब जापान किसी देश को सैन्य उपकरण बेचेगा।
यूएस-2 एम्फीबियस विमान समझौता, शिंजो अबे की शिखर वार्ता, उसके बाद हुए छः समझौतों, फिर उद्योगपतियों का महत्व तो है ही क्योंकि जापान ने करीब 2 लाख 10 हजार करोड़ रुपया 5 वर्ष में निवेश करने का ऐलान किया है। संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में अबे ने ऐलान किया कि वे बुलेट ट्रेन चलाने में भारत की मदद करेंगे। साथ ही सामरिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तरों पर भी सकारात्मक कार्य करने में सहभागिता देंगे, शिक्षा और शोध में भी सहायता करेंगे......। मोदी ने ने कहा कि जापान ने बिल्कुल नए स्तर पर साझेदारी की बात कही है। इसी तरह जापान चेम्बर औफ कौमर्स में उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए मोदी ने जो कहा उसके दो भाग थे-एक, कारोबार, रोजगार से संबंधित एवं दूसरा अंतराष्ट्रीय राजनीति से। उन्होंने भारत विश्व का सबसे युवा देश है, क्योंकि यहां पर 60 फीसद से ज्यादा युवा हैं। इसके चलते 2020 में वर्क फोर्स के लिए भारत पर दुनिया की निगाह होगी। यहीं पर उन्होंने स्किल विकास की बात की। यानी आपको यदि काम करने वाले कुशल लोग चाहिएं तो भारत ही वह प्रदान कर सकता है। प्रधानमंत्री ने जापानी निवेशकों को आमंत्रित करते हुए कहा कि कारोबारियों को काम करने के लिए अच्छा माहौल चाहिए और यह उपलब्ध कराना सिस्टम और शासन की ज़िम्मेदारी है। नियम और कानूनों को बदले जा रहे हैं जिनके परिणाम निकट भविष्य में दिखने लगेंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय में जापानियों को निवेश में मदद के लिए एक विशेष टीम जापान प्लस गठित की जाएगी। यानी पिछले कुछ सालों की कठिनाइयों और समस्याओं को भूल जाइए और निवेश करिए। जो जानकारी आ रही है अनेक कंपनियों में भारत में निवेश की लंबी योजनायें बनाईं हैं।
दूसरे भाग में उन्होंने कहा, ‘21 वीं सदी एशिया की होगी यह तो सभी मानते हैं, लेकिन यह सदी कैसी होगी यह भारत और जापान के संबंधों पर निर्भर करता है।’ यानी भारत और जापान ही इस सदी का भविष्य तय कर सकते हैं। 21वीं सदी में शांति और प्रगति के लिए भारत और जापान की बड़ी ज़िम्मेदारी है। मोदी ने कहाए भारत और जापान की जिम्मेदारी द्विपक्षीय संबंधों से भी आगे जाकर है। भारतीय और जापानी कारोबारी दुनिया की अर्थव्यवस्था को दिशा दे सकते हैं। यानी आइए और साथ मिलकर कदम बढ़ायों, खुद भी प्रगति करें और दुनिया को दिशा दे। उन्होंने कहा कि दुनिया दो धाराओं में बंटी है, एक विस्तारवाद की धारा है और दूसरी विकासवास की धारा है। हमें तय करना है कि विश्व को विस्तारवाद के चंगुल में फंसने देना है या विकासवाद के मार्ग पर जाने के लिए अवसर पैदा करना है। इन दिनों 18वीं सदी का विस्तारवाद नजर आता है। कहीं किसी के समंदर में घुस जाना कहीं किसी की सीमा में घुस जाना। जाहिर है, इसका निशाना ची नही हो सकता है जो भारतीय सीमाओं में घुसपैठ करता है और दक्षिण चीन सागर पर दक्षिण पूर्व एशिया को परेशान किए हुए है।
इसकी प्रतिध्वनि हमें सुनने को मिली है। चीन ने जापान पर भारत को उससे तोड़कर अपने साथ मिलाने का आरोप भी लगा दिया है। खैर, इस पर हम यहां विस्तार से चर्चा नहीं कर सकते। मुख्य बात यह कि मोदी पहले
तोजी मंदिर के दर्शन के बाद मोदी क्योटो विश्वविद्यालय पहुंचे जहां उन्होंने स्टेम सेल रिसर्च की दिशा में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जापानी प्रोफेसर शिन्या यामनांका से मुलाकात की। इस दौरान दोनों के बीच सिकल सेल अनीमिया के उपचार पर बातचीत हुई। भारत के कई हिस्सों में इस बीमारी की वजह से कई मौतें हो जाती हैं। मोदी ने प्रोफेसर यामनांका के साथ भारत.जापान के विश्वविद्यालों के बीच स्टेम सेल रिसर्च की दिशा में आपसी सहयोग पर भी बात की। इसी तरह वे जापान की शिक्षा प्रणाली को समझने के घोषित उद्देश्य से तोक्यो में 136 साल पुराने तैमेइ प्राथमिक स्कूल गए। वह एक संगीत कक्षा में गए जहां सात-आठ साल के आयु समूह के बच्चे उनके लिए एक गीत गा रहे थे। मोदी ने कुछ बच्चों को बांसुरी बजाते हुए पाया। मोदी ने कहा कि भारत की पौराणिक कथाओं में भगवान कृष्ण बांसुरी बजाते थे। इसका उपयोग गायों को आकर्षित करने के लिए करते थे। इसके बाद उन्होंने बच्चों के लिए बांसुरी बजाई। वास्तव में मोदी जापान की शिक्षा प्रणाली को समझने के लिए एक श्छात्रश् के तौर पर स्कूल गए ताकि ऐसी ही प्रणाली अपने देश में भी लागू की जा सके। प्रधानमंत्री ने भारत में जापानी भाषा पढ़ाने के लिए यहां के शिक्षकों को आमंत्रित किया और 21 वीं सदी को सही मायने में एशिया की सदी बनाने के उद्देश्य से एशियाई देशों में भाषाओं तथा सामाजिक मूल्यों के लिए सहयोग को आगे बढ़ाने की अपनी वकालत के बीच ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का प्रस्ताव भी दिया। मोदी ने कहा कि यहां आने का मेरा इरादा यह समझना है कि आधुनिकीकरण, नैतिक शिक्षा और अनुशासन जापान की शिक्षा प्रणाली में किस प्रकार एकाकार हुए हैं। मैं 136 साल पुराने स्कूल में सबसे उम्रदराज छात्र के तौर पर आया हूं। प्रधानमंत्री को उप शिक्षा मंत्री माएकावा केहाई ने जापान की शिक्षा प्रणाली खास कर सरकार संचालित प्रणाली और कामों के बारे में विस्तार से बताया। मोदी ने कुछ सवाल पूछे जैसे सिलेबस कैसे तैयार किया जाता है? क्या अगली क्लास में प्रमोट करने के लिए परीक्षा एकमात्र मानदंड है? क्या छात्रों को सजा दी जाती है? उन्हें नैतिक शिक्षा कैसे दी जाती है?
मोदी ने स्कूल के दौरे के दौरान कहा कि अब मैं ज्ञानवान महसूस कर रहा हूं।् 21 वीं सदी को एशिया की सदी की कल्पना को वास्तविकता में बदलने के लिए एशियाई देशों को भाषाओं और सामाजिक मूल्यों की दिशा में सहयोग बढ़ाना चाहिए। इससे पूरी मानवता की सेवा होनी चाहिए। यह जो मोदी की विशेषता है सीधे संपर्क करके समझना, वहां जाना, वहां के लोगों को योजना के तौर पर आमंत्रित करना....यह विदेश नीति की ऐसी धारा है जो निस्संदेह, भारत को विश्व में न केवल अलग पहचान देगी, इसे लाभान्वित करेगी, मौजूदा आर्थिक ढांचे में सांस्कृतिक आध्यात्मिक विरासत और सामाजिक परंपरा व पहचान खोये द्विपक्षीय-अंतरराष्ट्ीय राजनीति का यह सूत्र आने वाले समय में और खिलेगा।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208