यह पहली बार है जब किसी प्रदेश के मंत्री पर माओवादी या नक्सल संगठन चलाने, उससे जबरन वसूली से लेकर अनेक प्रकार के अपराध को अंजाम दिलवाने का आरोप लगा, त्यागपत्र देना पड़ा एवं अंततः गिरफ्तारी हुई। भारत में यह आरोप तो लगता रहा है कि राजनीतिक नेताओं के नक्सलियों से संबंध हैं, पर अभी तक किसी को इस आधार पर गिरफ्तार नहीं किया गया वह मंत्री होते हुए स्वयं नक्सल संगठनों का प्रमुख है। इस नाते यह असाधारण और हिला देने वाली घटना है। जी हां, झारखंड के पूर्व कृषि मंत्री योगेंद्र साव को दिल्ली पुलिस ने झारखंड पुलिस के साथ मिलकर एक साझा ऑपरेशन में जब गिरफ्तार किया तब यह खबर पूरे देश को पता चली। हालांकि झारखंड में यह खबर पहले से फैल चुकी थी, उन पर मुकदमा हो चुका था तथ इन कारणों से साव को मंत्रीपद से भी इस्तीफा देना पड़ा था। लेकिन वे पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपते फिर रहे थे।
साव इस समय मंत्री भले न हों, पर वे विधायक हैं। अभी हम एकदम से अंतिम निष्कर्ष नहीं दे सकते कि उन पर जो आरोप हैं, वे शत-प्रतिशत सच ही है, पर पुलिस ने जिस तरह का मामला बनाया है, जो साक्ष्य सार्वजनिक किए हैं वे तो इसे पूरी तरह पुष्ट करते हैं। पुलिस का साफ कहना है कि झारखंड टाइगर्स ग्रुप और झारखंड बचाओ आंदोलन नामक दो नक्सली संगठनों का संचालन मंत्री महोदय ही कर रहे थे और जब हमारे पास पुख्ता सबूत मिल गए तो हमने उनके खिलाफ कार्रवाई की। पुलिस ने उनको आत्मसमर्पण करने का वक्त दिया और जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो फिर हजारीबाग की स्थानीय अदालत ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया।
बहरहाल, पूरे देश को इंतजार होगा कि योगेन्द्र साव पूछताछ में क्या बताते हैं, उनसे और क्या राज हमें पता चलता है। दरअसल, पुलिस इसलिए उनकी संलिप्तता को लेकर आश्वस्त है, क्योंकि उसने उग्रवादी संगठन झारखंड टाइगर ग्रुप के प्रमुख के रुप में राजकुमार गुप्ता समेत चार उग्रवादियों को पिछले सितंबर माह में गिरफ्तार किया। कड़ाई से पूछताछ में उसी ने यह रहस्योद्घाटन किया था कि यह संगठन दरअसल मंत्री योगेन्द्र साव का है। उन्हीं के कहने पर इसका गठन हुआ, हथियार और सारे संसाधन वे ही मुहैया कराते रहे हैं, मंत्री के कहने पर ही दहशत पैदा करने का काम हुआ, लेवी वसूली गयी और अन्य उग्रवादी घटनाओं को अंजाम दिया गया था। यह खबर पहली नजर में ही सनसनी पैदा करने वाली थी। आखिर कोई यह कल्पना भी कैसे कर सकता था कि संविधान की शपथ लेकर कृषि मंत्री के पद पर बैठा कोई नेता नक्सल है। झारखंड की हर सरकार नक्सलियों से संघर्ष करने का संकल्प व्यक्त करती है और उसके आस्तीन में ही कोई ऐसा सांप हो, यह किसी के दुःस्वप्नों में भी नहीं आ सकता है। एक बार जब पुलिस को थोड़ा सुराग मिला तो पुलिस ने राजकुमार गुप्ता को रिमांड पर लेकर उससे लंबत पूछताछ की। इसके बाद पता चला कि झारखंड बचाओ आंदोलन भी उसीका बनाया हुआ संगठन है। पुलिस ने अपराध संहिता 164 के तहत न्यायिक दंडाधिकारी के सामने राजकुमार गुप्ता का बयान कराया और तब इस मामले में आगे बढ़ी। वास्तव में इस मामले में फिर एक- एक करके कई नाम जुड़ते चले गए और गिरफ्तारी भी होती चली गयी। सब में मंत्री महोदय के खिलाफ साक्ष्य पुख्ता होता गया। इसमें सिम और मोबाइल से एक- दूसरे से लंबी बातचीत, एसएमएस आदि भी है।
अगर कोई विधायक या मंत्री है तो वह जहां रहता है, उसके पास सरकारी भवनों के उपयोग के जो अधिकार हैं, उन सबसे ऐसी गतिविधियों को वह सरकारी संरक्षण में अंजाम दे सकता है। पुलिस की सूचना के अनुसार यही योगेन्द्र साव करते रहे हैं। इसके अनुसार उनके सरकारी आवास, परिसदनों और उनकी गाड़ियों तक का भी इस्तेमाल नक्सली गतिविधियों के लिए किया गया। सरकारी गाड़ी से माओवादी कारनामा, परिसदन से माओवादी कारनामा, सरकारी आवास से माओवादी कारनामा..........सामान्यतः किसी को भी सन्न कर सकता है। यह तो रक्षक के ही भक्षक हो जाने की कहावत को चरितार्थ करने वाला प्रकरण है। माना जाता है कि केरेडारी में योगेन्द्र साव की अवैध सॉफ्ट कोक प्लांट है जिसमें कोई पुलिस अंदर जा ही नहीं सकता था। इसलिए इसके समूह के लोग वहां आराम से रहते और योजना बनाते थे। कोयले के अवैध कारोबार से लेकर भयादोहन, फिरौती जैसे अन्य अपराधिक मामले आराम से अंजाम दिये जाते थे।
यह एक साथ राजनीति और भयानक अपराध के डरावने रिश्ते को फिर उजागर तो करता ही है साथ ही हमें नये सिरे से सोचने को विवश करता है कि आखिर माओवादी हिंसक आंदोलन की आड़ में कैसे रसूख वाले लोग धन और प्रभाव के लिए छद्म संगठन चला रहे हैं और हमारे सामने हमारे भाग्यविधाता भी बने हैं। योगेन्द्र साव का रिकॉर्ड भी ऐसा नहीं था कि उसे मंत्री बनाया जाना चाहिए। एक दबंग के रुप में साव की कुख्याति तो सबके सामने थी। पत्थर खनन जैसे धंधे में आने के साथ ही उसने दबंगई आरंभ कर दिया था। विरोध करने वालों की पिटायी, उसके लिए गिरोहबाजी आदि से स्थानीय लोग वाकिफ रहे हैं। 1995 में माओवादियों के एक संगठन नारी मुक्ति संघ से जुड़कर वह उसका कर्ताधर्ता बन गया। इस दौरान दूसरे जिलों और झुमरा में उग्रवादी कैंपों में भी उसकी भागीदारी रही। दस वर्षों में हत्या, मारपीट समेत कई गंभीर आरोप में उसपर प्राथमिकी दर्ज हुई। अकेले केरेडारी थाने में सात मामले वन अधिनियम 45/94 और 41/94, मारपीट के मामले 60/03, एनटीपीसी के अधिकारी से मारपीट 55/10, बीडीओ के साथ मारपीट 4/11, हत्या के मामले 83/90 तथा मारपीट के मामले 33/12 उसपर दर्ज हुए।
ये मामले और उसकी छवि ही उसे राजनीति से बाहर रखने के लिए पर्याप्त होने चाहिए थे। पर झारखंड राज्य बनने के बाद से वहां की राजनीति का जैसा भयानक व शर्मनाक रुप आया है उसमें साव ऐसे अकेले नहीं थे सच तो यह है कि पूरा झारखंड नेताओं के लूट का अड्डा बना हुआ है.....सब एक दूसरे को जानते हैं.....पुलिस भी जानती है और उनमें से भी ज्यादातर की इसमें संलिप्तता है.......। लेकिन कोई सीधे माओवादी या नक्सली संगठन बनाकर पर्दें के पीछे उसे अंजाम दे रहा हो और सामने चुनाव मंे विजीत होकर मंत्री बन बैठा हो यह कल्पना किसी को नहीं थी। अगर साव सामने आया है तो साफ है कि वह अकेले नहीं होगा। चूंकि पुराने नक्सलवाद के नये रुप नव माओवाद का विस्तार एक साथ कई राज्यों में है, इसलिए इस दृष्टिकोण से अब इसे देखे जाने की जरुरत है। अगर नीति-निर्माताओं के बीच ही माओवादी बैठे हैं तो फिर सुरक्षा बलों को विजय कहां से मिलेगी। वे तो बलि चढेंगे, क्योंकि इनके लोग हर कार्रवाई की सूचना दे देंगे।
अभी इस घटना के एक दिन पहले झारखंड के ही लोहरदगा जिले से गिरफ्तार नाबालिग लड़क ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि माओवादी नेता दीपक कुमार खेरवार से उसके अंतरंग संबंध रहे हैं। लड़की के मुताबिक दीपक उसे हर माह पांच हजार रुपए देता है, जिसके बदले वह हर वक्त बुलाए गए स्थान पर मिलने के लिए जाती है और अन्य सहयोगियों से तालमेल कर शीर्ष माओवादियों तक सूचनाएं पहुंचाती है। उसके साथ दो और गिरफ्तार हुए। पुलिस के अनुसार ये माओवादियों के शीर्ष से संपर्क में रहते थे और जिला मुख्यालय से लेकर अन्य जगहों से पुलिस गतिविधियों की हर सूचना उन्हें देते थे। जरा देखिए ये कैसे काम करते हैं। पुलिस 28 सितंबर को चौनपुर गांव में कैंप लगाने पहुंची। उसे आश्चर्य हुआ जिन ग्रामीणों की ओर से इसकी मांग की गई थी उसी की ओर से इसका विरोध हो रहा है और सामने महिलायें व बच्चे ज्यादा हैं। विरोध की छानबीन से खुलासा हुआ कि माओवादियों ने सहयोगियों के माध्यम से ग्रामीणों को विरोध के लिए बाध्य किया था। वहां के पुलिस अधीक्षक का कहना है कि किस पुलिस वाहन में पेट्रोल भराया जा रहा है इसकी भी सूचना माओवादियों तक पहुंच रही है। चौनपुर में कैंप लगने की बात दो दिन पहले ही माओवादियों तक पहुंच गई थी जबकि इसे गोपनीय रखने की बात कही गई थी।
तो एक ओर नेता माओवादी और दूसरी ओर सामान्य गांव की लड़की तक उनके सूचना सूत्र .....ऐसे में इस नव माओवाद के खतरे से लड़ना कितना कठिन है इसका अनुमान हम सहज लगा सकते हैं।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408,09811027208