गुरुवार, 12 सितंबर 2019

भागवत और मदनी मुलाकात के मायने

 
संघ और जमीयत के बीच संवाद की शुरुआत

अवधेश कुमार

यह समाचार सामान्य नहीं है कि जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ लंबी बातचीत की है। 30 अगस्त को संघ के झंडेवालान कार्यालय में दोनों की बातचीत काफी देर हुई। इसमें इस तरह की मीनमेख निकालने का कोई मायने नहीं है कि मदनी ही संघ कार्यालय क्यों गए और भागवत उनसे मिलने जमीयत के कार्यालय क्यों नहीं आए? जो मोटा-मोटी सूचना है उसके अनुसार भागवत को कोलकाता कार्यक्रम के लिए जाना था और मदनी से मुलाकात तय होने के कारण वे दिल्ली आए थे। बातचीत के बाद वे सीधे कोलकाता के लिए रवाना हो गए। हालांकि डेढ़ घंटे से ज्यादा चली इस मुलाकात के बारे में संघ ने औपचारिक रुप से कोई बयान नहीं दिया है लेकिन जमीयत की ओर से जरुर कुछ बातें कहीं गईं हैं। इसके अनुसार मदनी ने संघ प्रमुख को कहा कि इस समय मुसलमानों के अंदर भीड़ की हिंसा तथा तत्काल तीन तलाक के खिलाफ बने कानून को लेकर चिंता का माहौल है। मदनी ने कहा कि एक बड़े समुदाय में भय पैदा करके देश का विकास नहीं हो सकता। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मदनी ने किस तरह की बातें रखीं होंगी। इसमें अस्वाभाविक कुछ नहीं है। कोई यह कल्पना करे कि मदनी संघ प्रमुख के सामने जाकर केवल संघ एवं भाजपा सरकार की प्रशंसा करेंगे तो यह अव्यावहारिक होगा। भारत के भविष्य की दृष्टि से इस बैठक में जो बातचीत हुई उसका महत्व तो है ही किंतु इन दोनें की मलाकात का महत्व उससे कहीं ज्यादा है। दोनों ने यह निर्णय किया कि हमें मिलकर बात करनी है तो उसके पहले काफी कुछ विचार किया होगा।

वास्तव में जो जानकारी है आगे निरंतर संपर्क एवं संवाद पर दोनों नेताओं में सहमति बनी है। इसमें समन्वय की जिम्मेदारी संघ के सह संपर्क प्रमुख रामलाल को दी गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह प्राथमिक मुलाकात थी जिसने आगे खुलकर संवाद करने का आधार बना है। हालांकि इस देश में ऐसे लोगोें की संख्या कम नहीं है जिनको इस बैठक से ऐतराज होगा। ऐसे निहित स्वार्थी तत्व राजनीतिक, बौद्धिक, एनजीओ, सामाजिक सक्रियतावाद.. सभी क्षेत्रों में हैं। साथ ही संघ परिवार के अंदर भी इसके विरोधी होंगे और जमतयत तथा व्यापक मुस्लिम समाज के भीतर भी। बहुत सारे लोगों का पूरा अस्तित्व ही संघ विरोध पर टिका है। उनके लिए ऐसी बैठकें और संवाद कलेजे पर सांप लोटने जैसा होगा। किंतु जो लोग निष्पक्ष भाव से भारत में सामाजिक-सांप्रदायिक एकता और शांति की कामना करते हैं वे इस पहल से अवश्य प्रसन्न होंगे। हां, व्यावहारिकता का तकाजा है कि हम ज्यादा उत्साहित नहीं हो सकते। इसके कई कारण है। सबसे पहला तो यह कि बड़ी शक्तियां इसको विफल करने में लग गई होंगी। जो लोग मुस्लिम वोट बैंक के आधार पर राजनीति करते हैं उनका एक प्रमुख एजेंडा होगा, किसी तरह आगे संवाद को बाधित करना। ऐसे अन्य लोग भी सक्रिय हो चुके होंगे। अगर वाकई दोनों पक्ष संवाद में रुचि रखते हैं तथा देश में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए मिलकर काम करना चाहते हैं तो आलोचनाओं, विरोधों, उपहास, उत्तेजना पैदा किए जाने से निरपेक्ष रखते हुए आगे बढ़ना होगा। संघ और मुस्लिम संगठनों के बीच पहले भी संवाद हुए हैं लेकिन हमेशा ऐसी शक्तियों ने उसमें विध्न डालकर विफल कर दिया। पूर्व सरसंघचालक स्व. कुपहल्ली सीतारमैया सुदर्शन की ओर से इसकी लगातार कोशिशें की गईं। वे तो प्रमुख शहरों की मस्जिदों में स्वयं जाकर वहां के मौलवियों से चर्चा करते थे। इसके लिए उन्होंने इस्लाम धर्म की मान्य पुस्तकों का अध्ययन किया। दो दशक पहले लखनउ मंें सुदर्शन और संघ के प्रतिनिधियों के साथ मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ लंबी बैठक हुई। यह बात अलग है कि वह संवाद निरंतर जारी नहीं रहा। किंतु उनकी सहमति से संघ के प्रचारक इन्द्रेश कुमार ने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच नामक संगठन खड़ा किया। वह संगठन अपनी सीमाओं में लगातार सक्रिय है।

हालांकि इस बैठक में उस संगठन की कोई भूमिका थी या नहीं स्पष्ट नहीं है। संघ हिन्दुओं का संगठन है तथा जमीयत मुसलमानों का इसमें तो किसी को संदेह नहीं हो सकता। बातचीत में निरंतरता रहेगी या नहीं रहेगी, यह गतिरोध का शिकार हो जाएगा या वाकई आगे निकलते हुए किसी सहयोग में परिणत होगा इस समय कुछ कहना कठिन है। न यह संभव है कि संघ अपना विचार बदल लेगा और न जमीयत ही। इतने वर्षों से काम करने वाले संगठन की विचारधारा का भी क्रमिक विकास होता है और एक समय आने के बाद वह रुढ़ हो जाता है। बावजूद निरंतर संवाद से एक दूसरे को समझा जाता है उससे अपने विचारों की बेहतर परख होती है। इससे गलफहमियां भी समझ में आतीं हैं और उनको दूर करने की संभावनाएं बनतीं हैं। अरशद मदनी ने कहा कि हमें बंद कमरों से बाहर निकलकर मिलकर काम करना चाहिए। इतनी उम्मीद अभी शायद जल्दबाजी होगी। किंतु मदनी ने अगर ऐसा कहा तो इसका मतलब है भागवत के साथ बातचीत काफी सद्भावनापूर्ण माहौल में हुई।

पिछले वर्ष भागवत ने राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय संवाद आयोजित कर संघ के बारे मंे पूरे विस्तार से जानकारी दी। उसमें हर क्षेत्र के लोग आमंत्रित किए गए थे। उनमंें पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भी दिए गए। वह पूरा संवाद सार्वजनिक है। उसमें भागवत ने हिन्दुत्व की उदार व्याख्या प्रस्तुत करते हुए संघ को उसका प्रतिनिधि बताया। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि यदि हम मुसलमानों को अपने से अलग मानते हैं तो यह हिन्दुत्व होगा ही नहीं। तो संघ का एक सर्वग्राही एवं समन्वयवादी चरित्र उन्होंने प्रस्तुत किया। उसका कुछ असर हुआ है। कई ऐसे लोग जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम सुनते ही नाक-भौं सिकोड़ने लगते थे उनकी भाषा बदली है। जो सूचना है मदनी  ने जब एक समुदाय के भय की बात की तो भागवत ने कहा कि हम जब हिन्दुत्व या हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं तो उसमें मुसलमान शामिल हैं। ये ऐसी बातें हैं जिनको जब तक विस्तारपूर्वक नहीं समझाया जाएगा तब तक समझ में नहीं आ सकता। हिन्दुत्व से जुड़ा कोई विचार कभी अनुदार नहीं हो सकता। लेकिन दूसरे मजहब के लोगों के अंदर इसका विश्वास पैदा होना चाहिए।

हालांकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। जो मुस्लिम संगठन हैं उनको भी अपने व्यवहार से बताना होगा कि वे दूसरे मजहबों-पंथों का सम्मान करते हैं। जो भी हो देश और दुनिया के सबसे बड़े हिन्दू संगठन और भारत के बड़े मुस्लिम संगठन के बीच संवाद से कोई क्षति नहीं हो सकती। इसलिए इसको प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अगर दोनों संगठनों के बीच विश्वास का हल्का भी पुल बना तो देश की अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। उदाहरण के लिए अभी उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की सुनवाई हो रही है। न्यायालय कोई भी फैसला दे दे अगर दोनों पक्षों में तनाव बना रहे तो फिर उससे देश का भला नहीं हो सकता। अगर दोनों पक्षों के बीच संवाद है तो फैसले के बाद उसके अमल में लाने का वातावरण ही अलग होगा। वास्तव में सवाद से दूरियों की खाई कम हो सकतीं हैं। कुछ ऐसे मुद्दे हो सकते हैं जिन पर भविष्य में ये साथ काम भी कर सकते हैं। कहीं सांप्रदायिक तनाव में यदि दोनों संगठनों के नेता एक साथ लोगों के बीच जाए तो उसका चमत्कारिक असर हो सकता है।

किसी संगठन को अछूत मानकर चलने से किसी का भला नहीं है। हमारे देश में ऐसे लोगों का बड़ा वर्ग है जो मानता है कि संघ के साथ कोई काम किया ही नहीं जा सकता। ऐसा संगठन, जिसके 50 से ज्यादा अनुषांगिक संगठन हैं, जो मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में काम कर रहा है, देश से लेकर अनेक राज्यों में उसके ही परिवार के अंग भाजपा का शासन है उसे आप छांटकर देश में कोई बड़ा काम नहीं कर सकते। वैचारिक मतभेद या वैचारिक असहमति तो रहने वाली है। लेकिन उसमें भी देश और व्यापक रुप से मानव समुदाय के लिए साथ आने और काम करने की संभावना हमेशा रहती है। संघ और जमीयत के बातचीत की शुरुआत इस दिशा में एक मिसाल बने ऐसी कामना की जा सकती है। संघ ने अपने एक वरिष्ठ अधिकारी को इस काम में लगा दिया है तो इसका मतलब हुआ कि उसने संवाद आगे बढ़ाने का निर्णय कर लिया है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

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