शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

एससी-एसटी आरक्षण मे क्रीमी लेयर क्या संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है

बसंत कुमार
वर्ष 2015 मे जब डॉ. आंबेडकर की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य मे संविधान का विशेष अधिवेशन बुलाया गया था तो सदन को संबोधित करते हुए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, बाबा साहब की विशेषता की हम बात करते हैं तो पाते है कि अगर किसी को सरकार पर प्रहार करना है तो कोटेशन बाबा साहब का देता है और किसी को अपना बचाव करना है तो उसके काम बाबा सहाब का कोटेशन बाबा साहब का ही काम आता है, मतलब उनमे कितनी दूर दृष्टि थी , कितना विजन था कि आज भी विरोध करने के लिए मार्गदर्शक और शासन करने के लिए मार्गदर्शक! इसी कारण जब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इस बात का परीक्षण करते हुए कि क्या पंजाब मे अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति एक्ट 2006 के तहत बाल्मिकी और मजहबी सिखों को एस सि आरक्षित कोटे के तहत सरकारी नौकरियों मे प्राथमिकता मिलानी चाहिए! साथ मे न्यायालय ने यह भी देखना था कि क्या राज्य सरकारे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कोटे के अंदर सब कलास बनाकर अति पिछड़े और गरीबी की मार झेल रहे महादलितो को आरक्षण मे प्राथमिकता दे सकती हैं! यद्यपि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महादलितो और उपेक्षित आदिवासीयो के हित मे लिया हुआ फैसला माना जा सकता हैं, क्योकि आजादी के साथ दसक बाद भी बल्मिकी, मुसहर, चमार, डोम और जंगलो मे रह रही आदिवासी समुदाय को आरक्षण का लाभ नही मिल रहा है और वे बेचारे आरक्षण का मतलब ही नही जानते।
इस फैसले के आते ही हर राजनीतिक दल को इस पर राजनीति करनी ही थी क्योकि सबको दलित वोट की जो चिंता है, विपक्ष ऐसी बहाने जाति पर आधारित जनगड़ना की मांग और जोर से उठाने लगा और अभिज्यात दलित समुदाय के लोग जो कई पीढियों से आरक्षण का लाभ उठाकर और अधिक संपन्न हो रहे थे इस फैसले को दलित और आदिवासियों को तोड़ने का षड्यंत्र कह रहे थे, ऐसे मे मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार भी इस दबाव को कैसे झेल पाती और घोषणां कर दी एस सी एस टी आरक्षण जिस तरह से चल रहा था वैसे ही चलता रहेगा कोक डा अम्बेडकर के संविधान मे इस प्रकार के वर्गीकरण का कोई प्रावधान नही है! पर इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि इन सत्तर वर्षो मे एस सी एस टी समुदाय मे आरक्षण का लाभ लेकर एक वर्ग  इतना धनाडय हो गया हा गया है कि अब उनका गरीब दलितो से कोई सरोकार नही रह गया है! यह इलिट क्लास सवर्णो के साथ रह रहा है और उन्ही के साथ वैवाहिक रिश्ते भी हो रहे है तो क्या अम्बेडकर के संविधान की आड़ मे इस फैसले को प्रभावहीन किया जाना चाहिए।
अब सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण के प्रविधान मे क्रीमी लेयर और सब क्लास के नियम की बात की है तो सारे राजनीतिक दलों को वोट बैंक की राजनीति छोड़कर न्यायालय के निर्देशों का पालन करना चाहिए! जिससे महादलित और सदियों से उपेक्षित आदि वासी समाज राष्ट्र की मुख्य धारा मे शामिल हो सके। अभी कुछ माह पूर्व चुनाव संपन्न हुए हैं और कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन सहयोगियों ने पूरे चुनाव मे संविधान की कॉपी लेकर यहि प्रचार किया कि डा आंबेडकर का संविधान खतरे में है पर कांग्रेस यह क्यों भूल गई कि डॉ. आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान की ही मूल भावना से 1975 मे आपात काल के दौरान 42वें संसोधन के द्वारा नष्ट करने का प्रयास किया गया और उसी कांग्रेस ने सारे जतन करके लोक सभा चुनाव मे डा आंबेडकर को जीतने नही दिया! एस सी एस टी के प्रोमोशन मे आरक्षण के प्रश्न पर सपा के संस्थापक श्री मुलायम सिंह यादव ने सदन मे कह दिया था कि यदि एस सी एस टी को प्रोमोशन मे आरक्षण मिल गया सचिव और कैबिनेट सचिव के काबिल अधिकारी ढूढ़ने से नही मिलेंगे, आज वही सपा और उसके गठबंधन के लोग डा आंबेडकर के नाम पर जातिगत जनगणना की मांग करके जितनी जिसकी है आवादी उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात कर रहे है।
जहाँ तक डॉ. आंबेडकर की बात है तो वे कभी भी वर्तमान आरक्षण पद्धति के पक्ष मे नही थे! देश मे एस सी एस टी आरक्षण पूना पैक्ट 1932 की देन था जो कहने के लिए महात्मा गॉंधी और डॉ. आंबेडकर के बीच एक समझौता था पर असलियत मे यह गाँधी जी, सरदार पटेल और मदन मोहन मालवीय के दबाव मे उनसे हस्ताक्षर कराया गया था, पर आरक्षण का विरोध करने वाले लोग  वास्तविकता जाने बगैर इस आरक्षण के लिए डॉ. आंबेडकर को कोसते है! दर असल लंदन मे आयोजित द्वितीय गोलमेज कांफ्रेंस मे डॉ. आंबेडकर ने दलितो के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग की और उनकी मांग स्वीकार करते हुए अंग्रेज सरकार ने दलितो के लिए अलग निर्वाचन मंडल की घोषणां की, जिससे दलितो को दो मतो का अधिकार मिला, एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुनते और दूसरे वोट से समान्य प्रतिनिधि चुनते और ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रेम्सजे मैकडोनाल्ड ने दि 16-8-1932 को यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जिसे communal award की संज्ञा दी गयी! पर यरावदा जेल मे बंद गाँधी जी को जब यह पता चला तो इसके विरोध मे आमरण अनशन की धमकी दे दी और गाँधी, पटेल और प मदन मोहन मालवीय आदि के  दबाव मे गाँधी जी और डा आंबेडकर के बीच पूना पैक्ट हुआ! जिसके कारण वर्तमान आरक्षण अस्तित्व में आया और डा आंबेडकर को दलितो के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग छोड़नी पड़ी! कहने का अभिप्राय यह है कि वर्तमान आरक्षण के लिए डा आंबेडकर नही अपितु गाँधी, पटेल और प मदन मोहन मालवीय जिम्मेदार थे।
यह तो विपक्षी भी स्वीकार करते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के पश्चात अनेक प्रगति शाली कदम उठाये गए है- संविधान मे अनुच्छेद 370 जो संविधान निर्माता डा आंबेडकर की इक्षा के विरुद्ध नेहरू जी की इक्षा के विरुद्ध जोड़ा गया और अस्थायी प्राविधान था पर यह आजादी के पश्चात 7 दशकों तक चलता रहा और कोई भी सरकार इस विभाजन कारी अनुच्छेद को हटाने का साहस न कर सकी! मोदी जी के सत्ता मे आने के पश्चात इसे समाप्त किया गया, जिसका परिणाम है कि जम्मू कश्मीर आज देश के साथ विकाश' की मुख्य धारा मे शामिल हो रहा है! मुस्लिम महिलाओं के लिए अमानवीय ट्रिपल तलाक़ को बैन किया गया, सीएए लागू किया गया! फिर मोदी सरकार  उन महादलितो आदिवासियों जिन्हे आजादी के सात दशकों के बाद भी आरक्षण का लाभ नही मिला है उनके लिए अवसर प्रदान करने वाले फैसले को मूर्त रूप देने के स्थान पर इसे न लागू करने का विचार क्यो कर रही है, जैसा कि चर्चा है इसे प्रभाव विहीन करने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया जाये अगर ऐसा हुआ तो 1985 में राजीव गाँधी सरकार द्वारा शाहबानो मामले मे सर्वोच्च् न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए जो कदम उठाये गए थे उसकी पुनरावृत्ति जैसी होगी! जो उचित नही है।
चाहे मुस्लिम महिलाओं को हक दिलाने के मामले मे सुप्रीम कोर्ट का फैसला रहा हो या फ़िर अत्यंत पिछड़ी दलित और आदिवासी लोगो को समाज की मुख्य धारा मे शामिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का एस सी- एस टी आरक्षण मे क्रीमी लेयर और सब क्लास का मामला हो राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक के खातिर संविधान संशोधन व अध्यादेश के जरिये फैसले को निष्प्रभावी करना सरा सर गलत है, साथ ही साथ यह प दीन दयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानव वाद के दर्शन के खिलाफ है क्योकि प दीन दयाल उपाध्याय यही चाहते थे कि पंक्ति की अंतिम छोर मे खड़े व्यक्ति का कल्याण ही सरकार और प्रशासन का उतर दायित्व होना चाहिए।
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