बुधवार, 29 मई 2024

छोटे और मंझोले पत्र-पत्रिकाओं पर लटक रही तलवार


- पत्रकारों का गला घोंट रही सरकार, कैसे मनाएं पत्रकारिता दिवस?
- अधिकांश पत्रकार संगठनों के मठाधीश हैं धंधेबाज, कैसे पूछे सरकार से सवाल?

आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है। 30 मई 1826 को हिन्दी का पहला साप्ताहिक उदन्त मार्तण्ड यानी समाचार सूर्य। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने मंगलवार के दिन शुरू किया। अंग्रेजों के जमाने में हिन्दी पत्रों की बड़ी भूमिका थी। आजादी के आंदोलन में भी। आज चाटुकारिता और चरणवंदना में हिन्दी पत्रकारिता सबसे आगे हैं। सरकार के चरणों में एकदम दंडवत लेटी हुई। दलाल और अनपढ़ टाइप लोग संपादक बने हुए हैं। ऐसे में सरकार से सवाल कौन पूछेगा? परिणाम कि आज वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 180 देशों में 159वें स्थान पर है। 

आज छोटे और मझोल पत्र-पत्रिकाओं पर केंद्र और राज्य सरकार चाबुक चला रही हैं। न राज्य सरकार उन्हें विज्ञापन देती है और न ही केंद्र सरकार। केंद्र सरकार की डीएवीपी नीति और एबीसी भ्रष्टाचार का एक बड़ा जरिया है। बड़े संस्थान 100 कापी को एक लाख कापी दिखा देते हैं और छोटे पत्र-पत्रिकाओं पर तमाम तरह की अड़चने हैं। विज्ञापन नीति दूर की कौड़ी थी ही लेकिन अब पब्लिकेशन डेट से 48 घंटेे में पीआईबी में पत्र-पत्रिका जमा कराने की बाध्यता भी है। समय पर जमा नहीं करा पाए तो दो हजार एक दिन का जुर्माना। आरएनआई सूदखोर सी हो गयी है। अब आरएनआई ने नया नियम निकाला है कि एनुअल एसेसमेंट में प्रिंटर को भी शामिल कर दिया है। बड़े अखबार झूठ का पुलिंदा हैं लेकिन सरकार की चरणवंदना करते हैं तो उनके लिए सारे झूठे को सच बता कर एबीसी सर्टिफिकेट दे दिया जाता है लेकिन छोटे और मंझोले अखबारों की गर्दन पर बंदी की तलवार ही लटक रही है।

कोरोना काल में देश में हजारों छोटे पत्र-पत्रिकाएं बंद हो गयी। अब जो बची हुई हैं आरएनआई और सरकार मिलकर उनका गला घोंटने पर उतारू हैं। ऐसी शर्तें लादी जा रही हैं कि छोटे-मंझोले पत्रकार के पास यही चारा बचा है कि वो दो वक्त की इज्जत की रोटी कमाने की बजाए सरकार की कल्याणकारी नीति पांच किलो मुफ्त राशन की लाइन में लग जाए। 

इधर, पत्रकार संगठन हिन्दी पत्रकारिता दिवस मना कर कुप्पा हो रहे हैं। उनकी दुकान चल रही है लेकिन जो पत्रकार आरएनआई के नये नियमों के डंडे से परेशान हैं, उनकी आवाज कौन उठाएगा? जब सवाल पूछने वाले ही सत्ता से मिल जाएंगे तो आम लोगों के सवाल गौण ही हो जाएंगे। खैर, जो सच्चे पत्रकार हैं उन्हें हिन्दी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
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