शुक्रवार, 31 मार्च 2023

अमेरिकी शिक्षाविद ने लिखा संघ और भाजपा को समझा नहीं गया इनकी बुनियाद गंभीर विचारधारा पर आधारित है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और  भाजपा विश्व के प्रत्येक कोने में गहन चर्चा व बहस का विषय बना हुआ।  इस कारण जब भी कहीं किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त मीडिया में कुछ प्रकाशित- प्रसारित होता है तो देखते-देखते सुर्खियां बन जाता है । हाल में अमेरिका के जाने-माने शिक्षाविद और वॉल स्ट्रीट जर्नल के स्तंभकार वाल्टर रसेल मिड ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के बारे में जो कुछ लिखा उस पर पूरी दुनिया में बहस चल रही है। चूंकि भारत में 2024 लोकसभा चुनाव का माहौल बन रहा है इसलिए इसको भी उस संदर्भ में देखा जा रहा है। मिड ने लिखा है कि वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों में लगातार भारी जीत के बाद अब भाजपा 2024 में भी सफलता की ओर बढ़ रही है। इसे सुर्खियां बनना ही था। किंतु उनके लेख का महत्वपूर्ण बिंदु 2024 का चुनावी आकलन नहीं है। संघ और भाजपा  की पृष्ठभूमि,विचारधारा ,उसके चरित्र के बारे में जो कुछ उन्होंने लिखा वह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। किसी भी सांस्कृतिक राजनीतिक संगठन और उसकी विचारधारा को उसकी सोच तथा  वहां के भौगोलिक सांस्कृतिक धार्मिक राजनीतिक अवधारणाओं के आलोक में ही समझा जा सकता है । वाल्टर मिड ने इसे स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है। इस संदर्भ में उनकी तीन बातें महत्वपूर्ण है।

•एक , भाजपा ऐसे अनोखे राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास की बुनियाद पर खड़ा है जिससे भारतीय मूल्य और संस्कृति से परिचित लोग ही समझ सकते हैं।

•दो, भाजपा विश्व की सबसे महत्वपूर्ण विदेशी राजनीतिक पार्टी है पर इसको संभवत सबसे कम समझा गया है।

•  तीन, बुनियाद कौन सी है? उनके लेख का स्वर यही यह भी है कि भाजपा को समझने के लिए संघ को भी समझना होगा।

 उन्होंने संघ के बारे में लिखा है एक समय में हाशिए पर पड़ी विचारधारा के आधार पर सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आंदोलन चलाने वाला या संगठन दुनिया का सबसे मजबूत नागरिक संगठन है। ध्यान रखिए ,दुनिया भर में चर्चा का विषय बना वाल्टर मीट का यह आलेख राहुल गांधी द्वारा लंदन में संघ को मुस्लिम ब्रदरहुड के समतुल्य बताने के बयान के तुरंत बाद आया है। विश्व में राहुल गांधी की बात पर बहस होगी या मिड की? हालांकि विरोधी इससे खुश हो सकते हैं कि भाजपा की व्याख्या करते हुए मिड ने भी मुस्लिम ब्रदरहुड का नाम लिया है। उनके अनुसार भाजपा दुनिया की जीन तीन महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों कीसबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों को साथ लाती हैं वे हैं,इजरायल की लिक्विड पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना और मिस्र की मुस्लिम ब्रदरहुड। हालांकि इसे उन्होंने उस तरह नहीं लिया जैसे राहुल गांधी ने कहा। 

•उन्होंने लिखा है कि मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह भाजपा पश्चिमी उदारवाद के कई विचारों और वरियताओं को खारिज करती है, आधुनिकता की प्रमुख विशेषताओं को अपनाती है। 

•चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तरह भाजपा एक अरब से अधिक लोगों वाले राष्ट्र की अगुवाई करती है ताकि वह वैश्विक महाशक्ति बन सके। 

•इजराइल के लिक्विड पार्टी की तरह भाजपा परंपरागत मूल्यों के साथ बाजार उन्मुख की अर्थव्यवस्था अपनाती है। 

इसे केवल अमेरिका और वॉल स्ट्रीट के प्रसार क्षेत्रों के पाठकों को भाजपा आर्य से समझाने की दृष्टि से दिया गया उदाहरण मानना चाहिए। दुनिया में संघ और भाजपा की तरह दूसरा कोई संगठन नहीं है जिससे उसकी तुलना की जाए । जो उदाहरण उनके समक्ष है उसे उन्होंने प्रस्तुत कर दिया। इसमें भी वह अपने दृष्टिकोण से भाजपा को इन सबसे अलग भी बताते हैं। 

•उन्होंने कहा कि भाजपा उन लोगों को भी आत्मसात करती है जो पश्चिमी संस्कृति और राजनीतिक विशेषता के चलते वर्षों से खुद को उपेक्षित व हाशिए पर महसूस करते थे।

•इस तरह वह संघ और भाजपा के संघ को विश्व का अनोखा संगठन तथा इससे निकली भाजपा को भी सभी उपलब्ध पार्टियों से अलग साबित कर देते हैं।

• वे लिखते हैं,अमेरिकी विश्लेषक विशेष रूप से वामपंथी उदारवादी अक्सर नरेंद्र मोदी के भारत को देखकर पूछते हैं कि यह डेनमार्क जैसा क्यों नहीं है? उसे अल्पसंख्यक विरोधी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने वाला मानते हैं। लिखते हैं कि वे यह नहीं समझते कि भारत एक जटिल जगह है। पूर्वोत्तर के ईसाई बहुल राज्यों में भी भाजपा ने उल्लेखनीय राजनीतिक सफलता प्राप्त की है। 

मेग्ने संघ भाजपा के महत्वपूर्ण नेताओं के साथ घोर विरोधियों तथा समर्थकों से मुलाकात करने के बाद अपनी स्थापना दी है । उन्होंने संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी भेंट की और वह सारे प्रश्न पूछे जो दुनिया भर में उठाए जाते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि उन्होंने केवल इनके उत्तर को ही सच मान लिया हो। लेकिन ध्वनि है कि इसे उन्होंने जांच आप रखा है । 

मोहन भागवत के बारे में और कहते हैं कि उन्होंने भारत के बढ़ते आर्थिक विकास पर बातचीत की । अल्पसंख्यक भेदभाव आदि पर भी उनका मत मिलने समझा।  इसके बाद वे कह रहे हैं कि कट्टर नेता माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ किसी तरह के भेदभाव के विचार को सिरे से खारिज कर दिया। उनके अनुसार वे चाहते हैं कि उनके प्रदेश के सभी नागरिक समृद्धि और भारत की समृद्धि में योगदान दें।

 •एक अमेरिकी होते हुए भी उन्होंने इस सच्चाई को रेखांकित किया है कि आरएसएस के यहां तक पहुंचने के पीछे हजारों स्वयंसेवकों की कई पीढ़ियां खपीं है। 

•उन्होंने लिखा है कि स्पष्ट और सीमित सामाजिक आंदोलन के साथ शुरू हुए राष्ट्रीय नवीनीकरण के आंदोलन में सामाजिक विचार को और कार्यकर्ताओं की पीढ़ियों के प्रयास लगे हैं ताकि स्पष्ट रूप से हिंदू धर्म को आधुनिकीकरण की ओर ले जाया जा सके। 

जब हमारे ही देश के लोग हिंदू धर्म, हिंदुत्व राष्ट्र आदि की सही समझ नहीं रखते तो हम यह कल्पना नहीं कर सकते की पश्चिम का एक व्यक्ति हिंदुत्व, हिंदू धर्म आदि को बिल्कुल सही संदर्भों में समझ ले। बावजूद उन्होंने दुनिया ही नहीं भारत में भी उन लोगों की आंखें खोलने की कोशिश की है जो अभी तक संघ और उससे निकले संगठनों की विकासधारा को समझ नहीं पाए हैं। पीढिय़ां से उनका तात्पर्य क्या है?

•1925 में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापना के बाद गिनती करना मुश्किल है कि कितनी संख्या में प्रचारकों ने पूरा जीवन संघ और उससे निकले संगठनों के विस्तार तथा सशक्तिकरण में लगा दिया। 

•इस तरह  का चरित्र विश्व के किसी संगठन में नहीं है। विद्वेष, घृणा, उग्रता जैसी विचारधारा वाले संगठन को इस तरह जीवनदानी कार्यकर्ताओं की फौज नहीं मिल सकती। 

अमेरिकी वाल्टर रसेल मिड के इस विश्लेषण के बाद भारत के बाहर भारी संख्या में रुचि रखने वाले संघ और भाजपा तथा इससे जुड़े अन्य संगठनों को पूर्वाग्रह रहित होकर समझने की कोशिश करेंगे। भारत के अंदर भी संघ तथा भाजपा विरोधियों को ठहर कर अवश्य विचार करना चाहिए कि क्या उनकी धारणा  सही है?

आलोचक कह सकते हैं कि मिड ने अमेरिका के रणनीतिक भविष्य की दृष्टि से भी भाजपा और संघ का विश्लेषण किया है। यानी उद्देश्य से की गई व्याख्या है। उन्होंने कहा है कि अमेरिकी लोग भाजपा और संघ के साथ जुड़ने के निमंत्रण को खारिज करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि चीन के साथ तनाव बढ़ रहा है और अमेरिका को आर्थिक राजनीतिक साझेदार के रूप में भारत की जरूरत बढ़ती जा रही है। उनके विश्लेषण को यहीं तक खारिज करने का मतलब सच को पूरी तरह नकारना हो होगा।

अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों के पत्रकार- लेखक संघ और भाजपा के बारे में अक्सर अपने दृष्टिकोण से ही समझते व लिखते बोलते रहे हैं। भारत में भी ऐसे लोगों की ज्यादा संख्या है जो उनके दृष्टिकोण को ही प्रतिबिंबित करते हैं। नेशन स्टेट, नेशनलिज्म, रिलीजन, रिलीजियस या थियोक्रेटिक स्टेट, कल्चर, स्वदेशी आदि का उनका अनुभव और ज्ञान हमेशा संघ भाजपा के बारे में टिप्पणी करने पर हाबी रहता है। इसलिए राष्ट्र राज्य, हिंदू राष्ट्र, राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, हिंदुत्व आदि को हमेशा उग्र सांप्रदायिक मजहबी और संकीर्ण राष्ट्रीयता के रूप में व्याख्यायित किया गया है। भारतीय संदर्भ में इन शब्दों के मायने बिल्कुल अलग है यह समझने की कोशिश जिन कुछ पश्चिमी विद्वानों ने कि उन्हें अपनी ही दुनिया में मान्यता नहीं मिली। यह नहीं कहते कि वाल्टर रसेल मीट ने संपूर्ण रुप से भारत तथा संघ और भाजपा के दृष्टिकोण के अनुरूप विचार किया है। किंतु उन्होंने संघ और भाजपा के लोगों से मिलने तथा उनके साहित्य के अध्ययन करने के बाद काफी हद तक पूर्वाग्रह से परे हटकर संघ, उससे जुड़े अन्य संगठनों तथा भाजपा को सही परिपेक्ष में समझने की कोशिश की है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली-110092, मोबाइल 98110 27208

मंगलवार, 28 मार्च 2023

गुरुवार, 23 मार्च 2023

पंजाब के चिंताजनक हालात पर अधिक सावधानी और सतर्कता की आवश्यकता

अवधेश कुमार

पंजाब में अमृतपाल एवं उसके साथियों के विरुद्ध कार्रवाई से पूरे देश ने राहत महसूस किया है। अमृतपाल के चाचा सहित उसके प्रमुख साथियों को मिलाकर डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है । इसे पूरी तरह दुरुस्त आयद न कहें  देर आयद कह सकते हैं । पिछले करीब 6 महीने से अमृतपाल की गतिविधियों ने पूरे पंजाब और वहां नजर रखने वाले सभी को भयभीत कर दिया था। अमृतपाल की हरकतों को पहले ही सख्ती से रोक दिया जाता तो नौबत यहां तक नहीं आती। उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी एनएसए लगाकर लुकआउट सर्कुलर जारी करना पड़ा है। हरियाणा एवं पंजाब उच्च न्यायालय की तीखी टिप्पणियां मुख्यमंत्री भगवंत मान सहित पंजाब सरकार एवं आम आदमी पार्टी को भले नागवार गुजर रही हो किंतु सच्चाई तो यही है। न्यायालय ने पूछा है कि आखिर 80 बजार पुलिस क्या कर रही थी? वास्तव में 23 फरवरी को अमृतसर जिले के अजनाला थाने का पूरा दृश्य आतंकित करने वाला था। हजारों लोग जिस तरह थाने को बंधक बनाकर पुलिस वालों पर ईंट पत्थर बरसा रहे थे उस पर पहली नजर में यकीन करना कठिन था। ऐसा नहीं है कि अमृतपाल के साथियों के भारी संख्या में पहुंचने और उधम मचाने की सूचना खुफिया एजेंसियों को नहीं थी।  पंजाब सरकार ने खतरे को देखते हुए भी कार्रवाई से बचने की खतरनाक आत्मघाती प्रवृत्ति अपनाई थी। पूरे देश को आश्चर्य हुआ जब थाने पर हमले के बाद पुलिस ने तूफान सिंह को रिहा करने की घोषणा कर दी जिस पर अपहरण कर मारपीट करने का आरोप था। हालांकि बाद में वह न्यायालय के आदेश से ही रिहा हुआ पर पुलिस ने उसकी जमानत का विरोध नहीं किया। स्थानीय वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का बयान था कि अमृतपाल ने जो जानकारी दी उसके अनुसार तूफान सिंह घटनास्थल पर था ही नहीं। यानी पुलिस के लिए अमृतपाल के साक्ष्य मान्य हो गए थे।

ध्यान रखिए वर्तमान कार्रवाई मुख्यमंत्री भगवान सिंह मान की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद हो रही है। इसका अर्थ बताने की आवश्यकता नहीं । पुलिस की वर्तमान चुस्ती और सख्ती बताती है कि पहले भी ऐसा हो सकता था।

जम्मू कश्मीर के बाद पंजाब ऐसा सीमावर्ती राज्य है जहां हिंसा व अलगाववाद ने पूरे देश को लंबे समय तक दहलाया है। आतंकवाद ने वहां 70 हजार  से ज्यादा लोगों की जानें ली है। सीमा पार पाकिस्तान से हो रहे षड्यंत्रों एवं अमेरिका यूरोप सहित अन्य देशों से अलगाववादियों मिल रहे सहयोग का ध्यान रखते हुए भगवंत मान सरकार की पहली प्राथमिकता सुरक्षा व्यवस्था ही होनी चाहिए थी। सरकार के व्यवहार से ऐसा कभी झलका नहीं। पूरे देश ने देखा जब खालिस्तानी झंडा लिए लोग सड़कों पर नारे लगा रहे हैं और पुलिस उन्हें सुरक्षा दे रही है। इससे अलगाववादियों - आतंकवादियों सहित पूरी दुनिया में भारत विरोधियों का हौसला बढ़ा होगा। अमृतपाल पिछले वर्ष सितंबर में दुबई से आया और धीरे-धीरे वह इतनी बड़ी हैसियत प्राप्त कर गया तो क्यों? पंजाब के आम लोगों को तो पता था कि वहां स्थिति बिगड़ रही है। क्या सरकार को इसका आभास नहीं था?दमदमी टकसाल में जब अमृतपाल को भिंडरावाले की गद्दी दी जा रही थी तो उसकी सूचना निश्चय ही सरकार के पास पहुंची होगी। वहां का पूरा दृश्य डरावना था। भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक नारों से गूंजता कार्यक्रम हस्तक्षेप की मांग कर रहा था। इसलिए यह प्रश्न तो उठेगा कि सरकार आंखें मुद्दे क्यों रही?

यह संभव नहीं कि प्रदेश और केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों ने आप सरकार के मुखिया और शिर्ष पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों को पंजाब के अंदर और बाहर की गतिविधियों से सूचित नहीं किया होगा। विचार करने वाली बात है कि एक ट्रक ड्राइवर अमृतपाल अचानक दुबई से पंजाब लौटता है और धीरे-धीरे हीरो बन जाता है। उसके बोलने का अंदाज, उसकी तर्क शैली आदि स्पष्ट बता रहा था कि उसे पूरी तरह तैयार करके पंजाब भेजा गया। कहा जा रहा है कि वह आनंदपुर टास्क फोर्स बना रहा था। पंजाब पर काम करने वाले जानते हैं कि 1973 में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव से ही वर्तमान खालिस्तान आंदोलन को हवा मिली थी। इसमें पंजाब को स्वायत्त प्रदेश बनाने की मांग की गई थी। इसमें रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा को छोड़कर सारी शक्तियां राज्य को देने की मांग की गई थी। 24 जुलाई 1985 को पंजाब में उदारवादी लोकप्रिय संत हरचरण सिंह लोंगोवाल एवं राजीव गांधी के बीच समझौता हुआ जिसमें पंजाब की स्वच्छता की बात नहीं थी। उग्रवादियों ने संत लोगोंवाल की एक गुरुद्वारे में ही हत्या कर दी। अमृतपाल के पीछे की शक्तियों ने पंजाब को उसी तरह के आग में झोंकने के षड्यंत्र के तहत ही उसे दुबई से भेजा होगा। उसने योजनाबद्ध तरीके से पंजाब में नशे के विरुद्ध समाज की सोच पर फोकस किया और जगह-जगह नशा मुक्ति केंद्र खोला। इसमें युवाओं को साथ जोड़कर उसने अलग-अलग तरह के कार्यक्रम कराए। युवा उसकी ओर आते गए। नशा विरोधी अभियान के साथ बारिश द पंजाब के संगठन पर उसका नियंत्रण बहुत कुछ कह रहा था। उसके साथ आए युवाओं ने ऐसी हरकतें करनी शुरू की जो कानून के राज में सहन नहीं किया जाना चाहिए। वे सिगरेट पीने से लेकर तंबाकू सेवन करने वाले को सरेआम मारते पीटते थे। अमृतसर में निहंगों ने एक युवक को पीट-पीटकर मार डाला। नशा मुक्ति केंद्र अमृतपाल के लिए निजी सेना तैयार करने का स्थान बन गया। अमृतपाल के कार्यक्रम जगह-जगह लोगों में डर पैदा कर रहे थे क्योंकि उनके साथी हिंसा , तोड़फोड़ और हंगामे के पर्याय बन बन गए थे। इसी महीने आनंदपुर में कनाडा से निहंग बनने आए एक युवक को निहंगों द्वारा मार डालने की खबर आई क्योंकि वह उन्हें हुल्लड़बाजी से रोकने की कोशिश कर रहा था। एक समय था जब किसी निहंग को देख कर लोग अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत हो जाते थे। अब स्थिति बदल चुकी है।

वास्तव में पंजाब की स्थिति बिल्कुल चिंताजनक है। अमृतपाल का पकड़ा जाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि उससे पता चलेगा कि देश और विदेश की कौन शक्तियां उसके पीछे हैं। किंतु पंजाब की स्थिति संभालने के लिए इसके साथ काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। आखिर भगवंत सिंह मान के द्वारा खाली की गई संगरूर लोकसभा सीट से खालिस्तान समर्थक सिमरनजीत सिंह मान की जीत क्यों हुई? वह पंजाब के अंदर उभर रहे खतरनाक मनोवृति की ही परिणति थी। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियां दिल्ली से लेकर पंजाब एवं देश के बाहर अमेरिका, कनाडा , ब्रिटेन आदि में साफ दिखाई पड़ रही थी। संगरूर चुनाव प्रचार के बीच आ रहे समाचारों से साफ लग रहा था कि मान को जिताने की पूरी कोशिश हो रही है। आम विश्लेषण यही है कि पंजाब को में नए सिरे से अलगाववाद व हिंसा चाहने वालों ने माना कि सिमरनजीत सिंह मान उम्र के इस पड़ाव पर नेतृत्व देने में सक्षम नहीं हो सकते। इसी से अमृतपाल सिंह की हैसियत बड़ी। जरनैल सिंह भिंडरावाले को भी उभरने में समय लगा था जबकि अमृतपाल दुबई से आने के दो - ढाई महीने के अंदर ही इस धारा का जाना - पहचाना और प्रभावी चेहरा बन गया। यह सब यूं ही तो नहीं हो सकता। अमृतपाल को पहले रोक देते तो उसके साथ युवाओं की इतनी बड़ी फौज नहीं खड़ी होती। हजारों युवक और आम लोग अगर उसके विचारों से प्रभावित हो चुके हैं तो उन सबको मुख्यधारा में कैसे लाया जाएगा यह बड़ा प्रश्न पंजाब के समक्ष खड़ा है। भगवंत मान सरकार अभी तक स्थिर पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति नहीं कर पायी है। अभी तक तदर्थ नियुक्ति से काम चलाया जा रहा है। यह स्थिति बदलनी चाहिए। जब तक प्रौपर नियुक्त पुलिस महानिदेशक नहीं होगा पुलिस को सही नेतृत्व नहीं मिल सकता।

अमृतपाल के उभार एवं वर्तमान स्थिति से सीख लेकर न केवल भयानक भूल सुधारने बल्कि भविष्य की दृष्टि से पूर्वोपाय करने की आवश्यकता है। वैसे अजनाला में अमृतपाल के लोगों ने जिस तरह पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल बनाकर प्रवेश किया उससे पंजाब के अंदर नाराजगी भी है। इस नाराजगी का लाभ सरकार और पंजाब की शांति के लिए कार्यरत सामाजिक - धार्मिक - सांस्कृतिक संगठनों को मिलेगा। पंजाब के बहुसंख्यक लोग न कभी अलगाववाद के साथ थे न हो सकते हैं। किसी भी सरकार के लिए यह बहुत बड़ी ताकत है। किंतु इस ताकत का लाभ तभी मिलेगा जब अलगाववादी,हिंसक, लंपट और हुड़दंग  समूहों के प्रति प्रशासन का बर्ताव हमेशा कठोर रहे। तात्कालिक रूप से अमृतपाल और उसके साथियों के विरुद्ध कार्रवाई का असर होगा पर राजनीतिक नेतृत्व की सोच और दिशा बदलने के बाद ही पुलिस प्रशासन पंजाब की दृष्टि से अनुकूल भूमिका निभा सकेगा।

अवधेश कुमार  ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल 98110 27208

मंगलवार, 21 मार्च 2023

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

संघ के प्रतिनिधि सभा का संदेश - विरोध से आप प्रभावित रह कर एजेंडे के अनुसार आगे बढ़ते रहना

अवधेश कुमार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ज्यादातर कार्यक्रम अब देश की अभिरुचि के केंद्र बनते हैं। हरियाणा के समालखा में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक की ओर स्वभाविक ही संपूर्ण देश का ध्यान था। प्रतिनिधि सभा संघ की शीर्ष निर्णयकारी इकाई है । इस कारण भी राजनीति से लेकर गैर राजनीतिक सार्वजनिक जीवन के लोगों सहित मीडिया की इस मायने में उत्कंठा थी कि वहां से क्या निर्णय लिए जाते हैं। हाल ही में लंदन में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने संघ को मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह का संगठन बता दिया था। इसमें यह संभावना व्यक्त की जा रही थी कि संघ इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा। इसी तरह की अपेक्षाएं देश के सामान्य राजनीतिक घटनाक्रमों के संदर्भ में भी थी। हालांकि बरसों से संघ पर दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि बैठकों से इस तरह की प्रतिध्वनि कभी नहीं निकलती। बावजूद अनुमान और अटकलें हमेशा लगतीं है। तीन दिवसीय बैठक की समाप्ति के बाद संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने पत्रकार वार्ता में अपनी ओर से इन पर कोई टिप्पणी नहीं की। पत्रकारों ने जब राहुल गांधी के वक्तव्य संबंधी प्रश्न पूछा तो उन्होंने इतना ही कहा कि हमें इस बारे में टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है। राहुल अपने राजनीतिक एजेंडा से चलते हैं। हमारी उनकी कोई प्रतिबद्धता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी के पूर्वजों ने भी संघ के बारे में काफी टिप्पणी की है और संघ के बारे में सभी लोग जानते हैं। हां, एक राजनीतिक पार्टी के प्रमुख नेता के नाते राहुल को और ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए।

यह उत्तर ऐसा नहीं था जिस पर देश में आक्रामक बहस हो सके। हालांकि उन्होंने आपातकाल की याद दिलाते हुए बताया कि वह भारत में लोकतंत्र को खतरे में बताते हैं जबकि कांग्रेस के शासनकाल में ही आपातकाल लगा और हजारों लोग कारागार में डाले गए । यदि आप गहराई से संघ की कार्यपद्धति और उनके नेताओं के विचार और व्यवहार का मूल्यांकन करेंगे तो आपको आश्चर्य नहीं होगा। संघ अपनी ओर से आकर न उन पर प्रतिक्रियाएं देता है न खंडन करता है। दत्तात्रेय के पूरे वक्तव्य का निहितार्थ यही था कि संघ राष्ट्र के उत्थान की दृष्टि से अपने लक्ष्य के अनुरूप ही सक्रिय रहता है और ऐसी टिप्पणियों के खंडन - मंडन में अपना समय नष्ट नहीं करता। यह सच है कि संघ के बारे में अगर समाज में भी वैसे ही धारणाएं होती जैसी विरोधी दुष्प्रचार करते हैं तो अपने 98 वर्ष के जीवन काल में स्वयं उसके और उससे निकले अनेक संगठनों के साथ इतना व्यापक विस्तार नहीं होता। आप देखिए वहां जो प्रस्ताव पारित हुए उनमें स्वामी दयानंद सरस्वती की 200 वी जयंती वर्ष, महावीर स्वामी की 2250 वां जयंती वर्ष तथा शिवाजी छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक का 350 वां वर्ष मनाने का निश्चय है।

भारत का कौन सा संगठन अपनी शीर्ष निर्णयकारी इकाई में इन महापुरुषों की जयंती वर्ष मनाने का निर्णय करता है? साफ है कि संघ को समझने के लिए उसके दृष्टिकोण से देखने समझने की आवश्यकता पहले भी थी और आज भी है। प्रतिनिधि सभा में संघ ने सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से पहले से सक्रिय पांच आयामों पर आगे भी कार्य करने का निश्चय किया। इनमें सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी आचरण और नागरिक कर्तव्य शामिल हैं। भारत के लिए हमेशा सामाजिक विभेद बड़ी चुनौती रही है। इसके विरुद्ध बातें तो बहुत हुई पर काम न के बराबर हुआ। जैसा दत्तात्रेय ने बताया कि समाज में विभेद के विरुद्ध विमर्श खड़ा करना तथा समरसता के लिए निरंतर प्रयास करना इन पांच आयामों पर कार्य करने का लक्ष्य है। भारत की उन्नति की कामना करने वाला कौन इन पंच आयामों से अंतर्मन से असहमत हो सकता है? कोई भी देश तभी सशक्त होगा जब अपने वैविध्य के रहते हुए भी समरस होकर परस्पर सहयोग पर आश्रित बने। परिवार व्यवस्था किसी भी समाज के सशक्त होने का आधार है। टूटते परिवार हमारे देश में अनेक सामाजिक -आर्थिक -सांस्कृतिक समस्याओं के कारण बने हैं। इनमें परिवार प्रबोधन का महत्व बढ़ जाता है। प्रतिनिधि सभा में यह भी घोषणा हुई कि हर 3 महीने पर गृहस्थ कार्यकर्ताओं की शाखाएं लगेंगी जिनमें परिवार शामिल होंगे। इसी तरह स्वदेशी आचरण और एक नागरिक के नाते हमारा कर्तव्य मायने रखता है। अधिकारों की बात सभी करते हैं लेकिन वे दायित्वों के साथ आबद्ध हैथ इसकी चिंता नहीं होती। नागरिकों में दायित्व बोध पैदा हो तो न केवल अनेक समस्याओं से अपने आप मुक्ति मिलेगी बल्कि भविष्य में उभरने वाली समस्याओं से भी आराम से निपटा जा सकता है।

इस दृष्टि से विचार करें तो संघ ने अपने प्रतिनिधि सभा से संपूर्ण देश के लिए कुछ संदेश दिए हैं। जनसंख्या असंतुलन और विवाह आदि पर संघ का मत देश जानना चाहता है। संघ द्वारा समलैंगिक विवाह को नकारना बिलकुल स्वाभाविक है। दत्तात्रेय ने कहा कि भारतीय हिंदू दर्शन में विवाह संस्कार है। यह कोई कंट्रैक्ट या दो निजी लोगों के आनंद की चीज नहीं है, न अनुबंध है। विवाह सिर्फ अपने लिए नहीं परिवार व समाज के लिए है और यह दो विपरीत लिंग के बीच ही होता है। हाल में उच्चतम न्यायालय ने भी समलैंगिक विवाह के बारे में मोटा - मोटी ऐसी ही टिप्पणी की है। हालांकि जनसंख्या असंतुलन पर इस बार प्रस्ताव पारित नहीं हुआ क्योंकि पिछली बार हो गया था। प्रश्न पूछे जाने पर स्पष्ट किया गया कि जनसंख्या असंतुलन देश के विकास के लिए खतरा है और इसका निदान होना चाहिए।

सन 2025 में संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। स्वाभाविक ही देश जानना चाहता है कि अपने शताब्दी वर्ष में संघ क्या करेगा। संघ के चरित्र को देखें तो अन्य संगठनों की तरह शताब्दी वर्ष उसके लिए अतिविशिष्ट नहीं हो सकता है।  संघ साहित्य बताता है कि वह समाज में नहीं समाज का संगठन है और जब तक समाज है तब तक है। इसलिए उसके जीवन में अनेक शताब्दियां आएंगी। बावजूद शताब्दी वर्ष का लक्ष्य तो कुछ होना ही चाहिए । इस संदर्भ में सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य ने पत्रकार वार्ता में यही कहा कि अगले एक वर्ष तक  एक लाख स्थानों तक पहुंचना संघ का लक्ष्य है। शताब्दी वर्ष में संघ कार्य को बढ़ाने के लिए नियमित प्रचारकों, विस्तारकों के अतिरिक्त 13 सौ कार्यकर्ता दो वर्ष के लिए शताब्दी विस्तारक निकले हैं। अभी संघ 71,355 स्थानों पर प्रत्यक्ष तौर पर कार्य कर समाज परिवर्तन के महत्वपूर्ण कार्य में भूमिका निभा रहा है। संघ की दृष्टि से देश को 911 जिलों में विभाजित किया गया है जिनमें से 901 जिलों में प्रत्यक्ष कार्य है। इस तरह देखें तो शताब्दी वर्ष को केंद्र बनाकर संघ पहले से जारी अपने सभी आयामों पर काम करते हुए ज्यादा से ज्यादा स्थानों तक अपनी सक्रिय उपस्थिति बढ़ाने पर फोकस करेगा।

यह बात सही है कि संघ को लेकर आम समाज की अभिरुचि बढी है। 2017 से 2022 तक ज्वाइन आरएसएस के माध्यम से संघ के पास 7 लाख 25 हजार निवेदन है। इनमें से अधिकतर 20 वर्ष से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवक हैं। स्वाभाविक ही अगर संघ ने लक्ष्य बनाया है तो उसका विस्तार होगा। इसका अर्थ यही हुआ कि संघ को लेकर विरोध करने वालों की टिप्पणियों से आम भारतीय अप्रभावित हैं क्योंकि वह जमीन पर उस तरह की तस्वीर नहीं देखते जैसा विरोधी आमतौर पर बनाते हैं। संघ के विरोधियों और समर्थकों दोनों के लिए प्रतिनिधि सभा से साफ संदेश हैं जिन्हें वे उसी रूप में लें तो सच्चाई समझ में आएगी और यही देश के हित में होगा। विरोध करने के लिए भी सच्चाई जानना और समझना आवश्यक है। जो है नहीं उसके आधार पर विरोध करेंगे तो जनता उसे स्वीकार नहीं करेगी। भारत के हित और प्रगति का लक्ष्य बनाकर जब आप लगातार काम करते हैं तो आपको सही समस्याएं और उसके निदान भी अनुभव के अनुसार समझ आने लगते हैं। यह सामान्य बात नहीं है कि 1925 की स्थापना से लेकर आज तक हजारों लोगों ने संघ कार्य के लिए अपना घर द्वार त्याग कर जीवन लगा दिया और यह प्रक्रिया आज तक चल रही है। ऐसी स्थिति दूसरे किसी संगठन की नहीं। यही कारण है कि विरोधियों के विरोध से उसकी गतिविधियां दुष्प्रभावित नहीं होती। प्रतिनिधि सभा से भी यही संदेश निकला कि किसी विरोधी टिप्पणी या अन्य राजनीतिक घटनाओं से अप्रभावित रहते हुए सतत् अपने लक्ष्य की दृष्टि से ही कार्ययोजनाएं बनाकर काम करते रहना है। 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -98110 27208

मंगलवार, 14 मार्च 2023

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

संघ की ब्रदरहुड से तुलना अस्वीकार्य

अवधेश कुमार

विपक्ष के किसी नेता द्वारा सरकार की आलोचना सामान्य स्थिति होती है। किंतु राहुल गांधी ने ब्रिटेन मैं जो कुछ बोला है उसे नरेंद्र मोदी सरकार की सामान्य आलोचना तक सीमित नहीं माना जा सकता। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से लेकर लंदन के थिंक टैंक चाथम हाउस में उनके वक्तव्यों से भारत की ऐसी भयावह तस्वीर बनती है मानो यहां फासिस्टवादी सरकार हो जिसने न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका से लेकर प्रेस और सारी थिंकटैंक संस्थाओं पर नियंत्रण कर लिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुस्लिम ब्रदरहुड से तुलना करने का अर्थ यही है कि भारत में भी हिंसा के द्वारा मजहबी राज स्थापित करने वाला  आतंकवादी संगठन है जिसके लोगों के हाथों अभी सत्ता है। संघ संबंधी उनकी आलोचना की चर्चा इसलिए आवश्यक है क्योंकि आम धारणा यही है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली या अन्य भाजपा सरकारों का वैचारिक स्रोत संघ ही है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक रहे। भाजपा में बड़ी संख्या में संघ के स्वयंसेवक हैं। संगठन मंत्री के तौर पर ऊपर से नीचे संघ से भेजे गए प्रचारक काम कर रहे हैं। इस कारण राहुल गांधी की बात को सच मान लिया जाए तो  म स्वीकारना होगा कि भारत में ऐसा मजहबी फासिस्ट शासन है जहां दूसरे मजहब और विचारधारा आदि के लिए कोई स्थान नहीं। भारत में वे काफी समय से कह रहे हैं कि संघ ने सारी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है। इसे संघ के प्रति आम राजनीतिक विरोध की मानसिकता तक सीमित मान लिया जाता था। लेकिन में उन्होंने इसे उस रूप में चित्रित किया जिस तरह हिटलर और मुसोलिनी के शासनकाल में जर्मनी और इटली के अंदर संस्थाओं पर कब्जा किया गया था।

वामपंथी सोच वालों के द्वारा संघ का विरोध और आलोचना नई बात नहीं है। बावजूद इसके पूर्व विदेश की धरती पर भारत के किसी नेता ने इस तरह का वक्तव्य नहीं दिया। उसे मुस्लिम ब्रदरहुड जैसा आतंकवादी संगठन कहने से बड़ा बौद्धिक अपराध और कुछ नहीं हो सकता। चूंकि आप विदेश की धरती से ऐसा बोल रहे हैं जहां आमतौर पर लोगों को भारत के संगठनों के बारे में जानकारी नहीं वहां देश की कितनी विकृत तस्वीर बनेगी इसकी कल्पना करिए। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी ने भी संघ को लेकर  मतभेद प्रकट किए, पर इस रूप में विदेश तो छोड़िए भारत की धरती पर भी उसे चित्रित नहीं किया। भारत में संघ के घोर विरोधी भी अंतर्मन से राहुल की इस तुलना से सहमत नहीं हो सकते।  मुस्लिम ब्रदरहुड ने 1928 में अपनी स्थापना के बाद से राजनेताओं की योजनाबद्ध हत्या से लेकर अनेक हिंसक आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया है। उसके सदस्य इन मामलों में सजा पाते रहे हैं। यह संगठन कुरान और हदीस पर आधारित इस्लामिक शासन के लक्ष्य से काम कर रहा है। इसने अपनी स्थापना के दो वर्ष बाद ही राजनीतिक गतिविधियां आरंभ कर दी और 30 के दशक में मिस्र की सत्तारूढ़ वफ्द पार्टी का विरोध शुरू कर दिया जिसमें हिंसक विरोध भी शामिल था। इसने अनेक राजनीतिक हत्याएं की और जब सरकार ने इसे प्रतिबंधित करने की योजना बनाई तो  मिस्र के तत्कालीन प्रधानमंत्री महमूद फाहमी अल नुकराशी की 1948 में हत्या कर दी।  इस कारण हिंसा प्रतिहिंसा का ऐसा दौर चला कि मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक हसन अल्बाना की भी हत्या हो गई। मुस्लिम ब्रदरहुड ने उसके बाद 1954 में तत्कालीन मिस्र के राष्ट्रपति गमल अब्देल नसीर की हत्या करने की कोशिश की। इस षड्यंत्र में उसके नेता पकड़े गए और राजद्रोह के आरोप में उन्हें फांसी की सजा हुई। इनमें यहां विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं। कहने का तात्पर्य कि मुस्लिम ब्रदरहुड स्थापना के समय से आज तक इस तरह की गतिविधियों में बार-बार संलिप्त पाया गया है और अनेक देशों को उसे प्रतिबंधित करना पड़ा। क्या संघ के बारे में ऐसा कहा जा सकता है?

1925 में स्थापना से लेकर 98 वर्षों की यात्रा में संघ की सोच में भी कभी हिंसक गतिविधियां के संकेत तक नहीं मिले। भारत में संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगे और कभी कोई आरोप प्रमाणित नहीं हुआ।फलतः उसे प्रतिबंधों से मुक्त किया गया। राहुल गांधी को संघ विरोधी ज्ञान देने वाले रणनीतिकार एक बार इन प्रतिबंधों के हटाने के पीछे के कारणों को समझ लेते तो इस तरह निराधार आपत्तिजनक आरोप लगाने से बचते। तब उनका विरोध सामान्य होता और इस पर लोकतांत्रिक समाज में स्वाभाविक बहस भी होती। आप संघ के विरोधी हो या समर्थक सच कहा जाए तो आरोप वैसा है जिसका उत्तर देने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। चूंकि भारत के अंदर और बाहर की कुछ प्रभावी शक्तियां राहुल गांधी को एक बड़े नेता और विपक्ष के सबसे बड़े आवाज के रूप में पेश कर रही हैं इसलिए भी उत्तर आवश्यक हो जाता है। आप देश के सबसे बड़े विपक्षी दल के प्रथम परिवार में सोनिया गांधी के बाद और भविष्य के शीर्ष नेता है। चार बार के सांसद हैं। आपके सांसद बनने के साथ 10 वर्ष तक पार्टी के नेतृत्व में यूपीए सरकार रही है। इसके पहले भी सरकारों ने संघ के बारे में अनेक अध्ययन व रिपोर्ट प्राप्त किए हैं।

आरोप लगाना एक बात है, कभी भी कहीं से इसके संकेत तक नहीं मिले कि संघ के लक्ष्य या क्रियाकलापों में भारत की सत्ता को उखाड़ फेंक कर निरंकुशवादी सरकार की स्थापना करना है। या एक सांस्कृतिक सामाजिक संगठन है जो समाज परिवर्तन की दृष्टि से काम कर रहा है। संघ पर निष्पक्ष अध्ययन करने वाले बताते हैं कि इसके संपूर्ण साहित्य, नेताओं के भाषणों, बौद्धिक वर्गों आदि में सत्ता संबंधी सोच मिलती ही नहीं। यह मूलतः सांस्कृतिक सामाजिक संगठन है जो भारत राष्ट्र की उन्नति के लिए काम करता है। भारत राष्ट्र की सोच भी आधुनिक नेशन स्टेट की तरह भूगोल और राजनीति तक सीमित नहीं। हिंदुत्व इसकी सोच का मूल आधार है। हिंदुत्व एक उपासना पद्धति, कर्मकांड या इस्लाम, ईसागआदि की तरह  एक-दो पुस्तक के आधार पर संपूर्ण व्यवस्था की वकालत नहीं करता। हिंदुत्व व्यापक और विशाल जीवन दर्शन है जिसके मूल में शुचिता, नैतिकता और सभी जीवो के अंदर एक ही तत्व देखने का भाव है ताकि कोई किसी का दुश्मन न बने । इसकी की व्यापकता और उदारता इतनी है कि उसमें हर प्रकार के धार्मिक विचारों के लिए स्थान है। संकीर्ण मजहबी या उग्र राष्ट्रवादी या फासिस्टवादी सोच से पैदा हुआ कोई संगठन बिना टूट-फूट के लगभग 100 वर्ष तक लगातार विस्तारित होते और इतना बड़ा जनसमर्थन प्राप्त नहीं कर सकता। पीछे की बात जाने दीजिए पिछले एक दशक के अंदर ही संघ के किस पदाधिकारी का कोई एक बयान नहीं मिलेगा जिसमें किसी मजहब और यहां तक कि राजनीतिक पार्टी का विरोध। संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत हिंदुत्व के उदार चरित्र की बात करते हुए लगातार स्वयंसेवक संघ समर्थकों सहित संपूर्ण हिंदू समाज को उग्रता और आक्रामकता के प्रति सजग कर रहे हैं। राहुल गांधी इसे एक बंद संगठन बता रहे थे जिसकी गतिविधियों को बाहर के लोग जान ही नहीं सकते। संघ की शाखाएं प्रतिदिन खुले में लगती हैं। बड़े -छोटे सार्वजनिक कार्यक्रम नियमित होते हैं और उनमें समाज के सभी वर्गों को निमंत्रित किया जाता है। यह सब छिपा तथ्य नहीं है। वैसे भी संघ के इतने संगठन हैं कि भारत में ऐसे कम परिवार होंगे जहां किसी न किसी का किसी संगठन से कभी संपर्क नहीं हुआ हो। एक परिवार में कोई संघ से जुड़ा है तो कोई कांग्रेस, कम्युनिस्ट, समाजवाद से।  सबके बीच परिवार और समाज के रिश्ते हैं। जमीनी स्तर पर सभी संघ के स्वयंसेवकों का सम्मान भी करते देखे जाते है। संघ का ज्यादातर विरोध भारत में राजनीतिक रहा है और उसके पीछे भी मूल सोच मुस्लिम वोट पाना है।

राहुल गांधी इन सबसे आगे निकल गए। लगभग डेढ़ वर्ष पहले वर्ष पहले कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने अपनी पुस्तक सनराइज ओवर अयोध्या में संघ की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम तक से कर दी। राहुल गांधी द्वारा इसे ब्रदरहुड के समान बताना साबित करता है कि कांग्रेस नेतृत्व और बाहर से इनको बौद्धिक खुराक देने वालों की यही सामूहिक सोच है। चूंकी यह सच नहीं है, इसलिए भारत का समाज मानता है कि राहुल गांधी ने अत्यंत गैर जिम्मेदार बयान दिया है। कल अगर राहुल गांधी और कांग्रेस को इस बयान के कारण राजनीतिक क्षति होती है तो वह इसी तरह राग अलापेंगे कि चुनाव आयोग से लेकर सारी संस्थाएं भाजपा और संघ के कब्जे में आ गई हैं। संवैधानिक संस्थाओं को छोड़कर आम संस्थाओं में सरकारें अपने अनुकूल लोगों को नियुक्त करती रही है। कांग्रेस के शासनकाल में संस्थाओं में किनकी नियुक्तियां हुई? भाजपा सरकार में भी ऐसे नियुक्तियां हुई है तो इसमें आश्चर्य की बात होनी ही नहीं चाहिए। 



मंगलवार, 7 मार्च 2023

शुक्रवार, 3 मार्च 2023

चुनाव परिणामों में चौंकाने वाले तत्व नहीं

अवधेश कुमार

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों में चौंकाने वाला कोई तत्व नहीं है। वास्तव में परिणाम लगभग उम्मीदों के अनुरूप ही है। तीनों राज्यों त्रिपुरा,  नागालैंड और मेघालय के चुनाव परिणामों को एक साथ मिलाकर देखें तो कुछ बातें बिल्कुल स्पष्ट हैं। एक, भाजपा की सीटें किसी राज्य में थोड़े कम या ज्यादा हो, मत प्रतिशत में थोड़े बहुत अंतर आ जाएं लेकिन अब वह पूर्वोत्तर की प्रमुख स्थापित पार्टी हो गई है। दूसरे, एक समय पूर्वोत्तर पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की क्षरण प्रक्रिया लगातार जारी है। तीसरे, पूर्वोत्तर में तृणमूल के एक प्रमुख पार्टी के रूप में उभरने की उम्मीद भी धराशाई हुई है। चौथे, माकपा के नेतृत्व वाले वाम दलों की पुनर्वापसी की संभावना पहले से ज्यादा कमजोर हुई है। जरा सोचिए, अगर त्रिपुरा में वामदल और कांग्रेस मिलकर भी भाजपा को सत्ता से बाहर करने में सफल नहीं हुए तो इसके मायने क्या हैं? पिछले चुनाव में यद्यपि माकपा नेतृत्व वाला वाममोर्चा सत्ता से बाहर हुआ था लेकिन भाजपा और वाम मोर्चे के मतों में ज्यादा अंतर नहीं था। इस कारण भाजपा विरोधी और वाममोर्चा के समर्थक यह मान रहे थे कि भले जनता ने सत्ता विरोधी रुझान में माकपा को बाहर कर दिया लेकिन अगले चुनाव में इसकी वापसी हो सकती है। चुनाव परिणामों ने बता दिया कि वाम मोर्चे का उदय अब दूर की कौड़ी है। निश्चित रूप से इस परिणाम के क्षेत्र के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में भी विश्लेषण होगा। आखिर 2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भाजपा विरोधी पार्टियां कई प्रकार के समीकरण बनाने की कवायदें कर रही है तो इस चुनाव का असर उस पर न पड़े ऐसा संभव नहीं। तो कैसे देखा जाए इन चुनाव परिणामों को?

यद्यपि तीनों राज्यों के चुनाव महत्वपूर्ण थे,देश का सबसे ज्यादा ध्यान त्रिपुरा की ओर था। यह पहला राज्य था जहां भाजपा ने अपने विपरीत विचारधारा वाले वाममोर्चा को पहली बार पराजित किया था। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लव देव के शासनकाल में स्वयं पार्टी के अंदर असंतोष के स्वर तथा सरकार की कुछ नीतियों के विरुद्ध जनता में भी विरोध देखा गया। भाजपा ने मई 2022 में उनकी जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया। कहा जा सकता है कि चेहरा बदलने से दोनों स्तरों का असंतोष थोड़ा कम हुआ। भाजपा की सीटें और मत दोनों पिछले चुनाव से घटे हैं लेकिन वह अपनी बदौलत 60 सदस्य विधानसभा में बहुमत पा चुकी है। इंडीजीनस पीपल्स फ्रंट यानी आईपीएस के साथ गठजोड़ कर भाजपा ने चुनाव जीता था। इस बार भी दोनों के बीच गठबंधन था लेकिन आईपीएफ को केवल 5 सीटें भाजपा ने दी थी। इस कारण  कुछ स्थानों पर आईपीएफ भाजपा के विरुद्ध भी चुनाव लड़ रहा था। कांग्रेस और वाममोर्चा का गठबंधन नेताओं के स्तर पर हुआ लेकिन जमीन पर दोनों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच तालमेल न हो सका। भाजपा के उभार के पहले राज्य में कांग्रेस और वाममोर्चा के बीच संघर्ष की स्थिति थी। इसमें बची-  खुची कांग्रेस के लोगों के लिए स्वीकार करना कठिन था कि वह उसी वाम मोर्चे के उम्मीदवार का साथ दे जिनसे उसकी लंबी लड़ाई रही है। यह इस बात को साबित करता है कि भाजपा विरोध के नाम पर भले पार्टियों का गठबंधन हो जाए ,जनता ही नहीं स्वयं उन पार्टियों के कार्यकर्ता और समर्थकों के बीच सहयोग होना आसान नहीं। इसका असर आगामी विधानसभा चुनावों से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव के समीकरणों पर भी पड़ेगा। चुनाव के कुछ समय पूर्व बनी टिपरा मोथा पार्टी ने एक दर्जन सीटें जीतकर भी कुछ संकेत दिया है। शाही परिवार से प्रद्योत विक्रम माणिक्य देबबर्मन ने पार्टी को अलग आदिवासियों के लिए ग्रेटर त्रिपुरालैंड की मांग के साथ सामने लाया था। हालांकि मतदान के पहले कुछ नेताओं के साथ छोड़कर जाने से दुखी होकर उन्होंने घोषणा किया था कि वे अब आगे बढ़ा नीति में नहीं रहेंगे। बावजूद जनता का उन्हें इतना समर्थन मिला। भाजपा ने भी अपने घोषणापत्र में आदिवासियों के लिए ज्यादा स्वायत्तता का वायदा किया था। इन दोनों पार्टियों के बीच तालमेल की पूरी संभावना है। ऐसा होता है तो यहां से त्रिपुरा की राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत होगी।

नागालैंड की ओर देखें तो वहां भी भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक रहा। नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ गठबंधन में वह छोटा साझेदार थी। उसे 20 सीटें ही लड़ने के लिए मिली किंतु केंद्रीय नेतृत्व ने इसके कारण पार्टी की स्थानीय इकाई में विरोध और असंतोष उभरने नहीं दिया। छोटा साझेदार होकर भी उसने एनडीपीएस के साथ मिलकर उसी तन्मयता से चुनाव लड़ा जैसे वह अन्य राज्यों में लड़ रही थी।। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे सभी नेता वहां चुनाव प्रचार करने गए और पूरा जोर लगाया। पिछले नागालैंड की विधानसभा में कोई विपक्ष रही नहीं गया था। नागा पीपुल्स फ्रंट के विधायक सरकार के साथ चले गए थे। आगे क्या होगा अभी कहना कठिन है लेकिन भाजपा ने वहां सभी दलों के नेताओं से अपना संपर्क संबंध बनाए रखा है। वैसे भी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, लोक जनशक्ति पार्टी आदि भाजपा की सहयोगी पार्टियां हैं। इस तरह नागालैंड में एक मजबूत सरकार की संभावना है जो वहां जारी शांति प्रक्रिया को और सुदृढ़ करेगी । निस्संदेह,  मेघालय का चुनाव परिणाम भाजपा के उम्मीदों के अनुरूप नहीं है। उसे स्वयं बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद थी।  पिछली बार उसे 2 सीटें आई थी और एनपीईपी,पीडीएफ और एचएसबीसी के साथ मिलकर उसने मेघालय डेमोक्रेटिक एलाइंस बनाया था। एनपीईपी के साथ उसका चुनावी गठबंधन नहीं था।  चुनाव के बाद असम के मुख्यमंत्री और पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक हेमंतो तो विश्वासरमा का कोनराड संगमा से मुलाकात बताता है कि साथ मिलकर काम करने की बातचीत परिणाम के पहले ही शुरू हो गई थी। तृणमूल कांग्रेस भी यहां अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और कांग्रेस को लेकर तो बहुत उम्मीद ही नहीं थी। तृणमूल कांग्रेस ने मुकुल संगमा सहित कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर मेघालय की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बनने की उम्मीद की थी। लगता है मेघालय के मतदाताओं को यह रास नहीं आया।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्वोत्तर पर विशेष फोकस किया है। वहां अपनी नीतियों, कार्यक्रमों और संवाद से अलगाववाद, क्षेत्रीय -जातीय विशेषता के भाव को भारतीय राष्ट्र भाव के साथ जोड़ने की लगातार कोशिश की। यातायात और संचार के क्षेत्र में पूर्वोत्तर में सच कहा जाए तो क्रांति हुई है। सड़कें और रेलमार्ग ही नहीं हवाई यात्राओं की दृष्टि से भी आधारभूत संरचनाएं सशक्त हुई है। पूर्वोत्तर में इस समय 17 हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं। मेघालय के लोगों ने पहली बार अपने हक के लिए रेल यात्राएं की है। बिजली की स्थिति में काफी सुधार हो चुका है। शिक्षा के क्षेत्र में 191 उच्च शिक्षा के नए संस्थान खोले गए। उच्च शिक्षा में नामांकन में 29% की वृद्धि हुई। उग्रवाद को काबू करने के लिए सुरक्षा सख्ती के साथ क्षेत्रीय विकास और संवाद तीनों रास्ते अपनाए गए। परिणामतः 8000 से ज्यादा उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया। आज पूर्वोत्तर उग्रवाद से लगभग मुक्त है। सबसे बड़ी बात कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी अफस्पा को हटाने की बात अनेक पार्टियां और मानवाधिकार संगठन करते थे। उसे सही मायनों में भाजपा ने ही स्वीकार किया। आज असम, त्रिपुरा ,मणिपुर, मेघालय,मिजोरम आदि सभी राज्यों में ज्यादातर क्षेत्रों से अफस्पा हटाया जा चुका है। नागालैंड की सभा में प्रधानमंत्री ने इसे हटाने का वायदा किया। इस तरह वहां के लोगों ने लंबे समय बाद शांति, स्थिरता और आवागमन से लेकर सभी प्रकार की गतिविधियों में भयमुक्त स्वतंत्र वातावरण महसूस किया है। इन सबके साथ पूर्वोत्तर के अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृतियों, स्थानीय परंपराओं,  सोच और व्यवहार से लेकर स्थानीय विशेषताओं को भी प्रोत्साहित किया गया। पूर्वोत्तर के उन महापुरुषों को सामने लाकर महत्त्व दिया गया जिन्हें इतिहास के अध्याय में स्थान नहीं मिला था। इन सबका व्यापक असर हुआ है और आज पूर्वोत्तर सोच और व्यवहार की दृष्टि से समग्र रूप से भारत का बदला हुआ क्षेत्र है। इन सबकी प्रतिध्वनि चुनावों में दिखाई पड़ रही है। हालांकि अभी इन सारी दिशाओं में काफी कुछ किया जाना शेष है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -98110 27208



http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/