अवधेश कुमार
कोई भी महसूस कर सकता है कि पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी एवं भाजपा के बीच राजनीतिक टकराव का एक नया और सबसे बड़ा मोर्चा बन गया है। संसद में हमने देखा कि किस तरह तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने सहारा की कथित लाल डायरी का मामला उछालकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को कठघरे में खड़ा करने की रणनीति अपनाई। यह एक दिन पहले कोलकाता रैली में अमित शाह द्वारा ममता बनर्जी पर किए गए हमले और पश्चिम बंगाल को तृणमूल कांग्रेस मुक्त करने की घोषणा के बाद आया है। मामला कहां तक पहुंच गया है इसका प्रमाण है ममता द्वारा प्रधानमंत्री की आदर्श ग्राम योजना से अपने सांसदों को हटने का निर्देश। अब तृणमूल के सांसद एक भी गांव गोद नहीं लेंगे। दोनों पार्टियों का जैसा तेवर है और हमने ममता बनर्जी का जो राजनीतिक आचरण आज तक देखा है उसमें इस संघर्ष का आगे और उग्र और आक्रामक होना निश्चित है। हमने दोनों पार्टियों के बीच हिसंक टकराव देख रहे हैं, लोगों को मरते और घायल होते भी देख रहे हैं। जाहिर है, यदि टकराव इस दिशा में बढ़ता है तो राजनीति और स्वयं पश्चिम बंगाल के लिए काफी चिंताजनक स्थिति होगी।
हालांकि ममता बनर्जी को इस संघर्ष में ज्यादातर भाजपा विरोधी पार्टियों का समर्थन नहीं मिला है। इसका कारण साफ है। इस समय उन्होंने सारधा चीट फंड घोटाले में पार्टी नेताओं की गिरफ्तारी एवं उनके घर छापेमारी को लेकर अपना तेवर कड़ा किया है। इस मामले में वो जिस सीमा तक चलीं गईं वह राजनीति के किसी मापदंड के तहत नहीं आता। राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, पर बगैर ठोस कारण के किसी नेता की रैली पर आप कैसे रोक लगा सकते हैं? ममता बनर्जी ने अमित शाह की प्रस्तावित रैली को प्रतिबंधित कर दिया। जिस ढंग से ममता रैली न होेने देने पर अड़ गईं थीं वह लोकतंत्र के किसी दायरे में नहीं आता था। जिस वामपंथी शासन को ममता लोकतंत्र विरोधी, फासीवादी, विरोधियों का दमन करने वाला करार देतीं थीं खुद उनका व्यवहार उसी तरह का हो गया। हालांकि वामपंथी सरकार ने अनावश्यक कभी किसी की रैली प्रतिबंधित करने का कदम नहीं उठाया। आप रैली के समानांतर रैली से उसका उत्तर दीजिए, लेकिन बिना किसी कारण के आप किसी नेता की सभा को कैसे रोक सकते हैं?
कोलकाता के विक्टोरिया हाउस के सामने अमित शाह की रैली आयोजित हो या न हो यह राज्य में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच राजनीतिक संघर्ष का विषय हो गया था। भाजपा स्प्लैनेड स्क्वेयर में शाह की रैली करना चाहती थी, उसी अनुसार तैयारी कर रही थी, किंतु कोलकाता पुलिस और फिर सिटी कॉर्पाेरेशन ने इजाजत नहीं दी। कोलकाता पुलिस का कहना था कि विक्टोरिया हाउस हैवी ट्रैफिक वाली जगह है, ऐसे में रैली की इजाजत देने से लोगों को परेशानी होगी। मजे की बात देखिए कि तृणमूल कांग्रेस 21 जुलाई को ठीक इसी जगह पर पार्टी कार्यकर्ताओं की सालाना सभा का आयोजन कर चुकी थी। साफ है कि यह एक अहंकारी और अलोकतांत्रिक ज़िद थी। अंततः न्यायालय ने ममता को पीछे हटने को मजबूर कर दिया। कोलकाता उच्च न्यायालय ने ममता सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए भाजपा को विस्टोरिया हाउस के सामने स्प्लैनेड स्क्वेयर में अमित शाह की रैली की सशर्त अनुमति दे दी। सरकार द्वारा सांप्रदायिक तनाव भड़काने सहित कई प्रकार की साजिश की आशंका के जवाब में उच्च न्यायायलय ने कहा कि ठीक है हम रैली पर नजर रखने के लिए 3 सदस्यीय टीम बना देते हैं और बना दिया।
यहां प्रश्न भाजपा का नहीं था। आप किसी पार्टी को पसंद न करें, या आपका उससे विरोध है, इसलिए उसे प्रचार प्रसार की अनुमति नहीं देंगे तो लोकतंत्र का क्या होगा? अगर ममता बनर्जी को लगता है कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार सीबीआई को हथियार बनाकर उनके नेताओं को निशाना बन रही है तो इसके लिए राजनीतिक एवं कानूनी दोनों स्तरों पर संघर्ष के रास्ते हैं। वास्तव में सारधा चीट फंड घोटाले में उनके सांसदों के खिलाफ जैसे-जैसे सीबीआई का ंिशकंजा कसा है ममता का तेवर उग्र हुआ है। उन्होंने सड़कों पर उतरकर स्वयं मार्च किया और धर्मतल्ला में सभा को संबोधित किया। हालांकि शारधा चीटफंड घोटाले की जांच की आग उड़ीसा से लेकर असम तक पहुंच चुकी है। उड़ीसा में नवीन पटनायक के करीबी नेता भी इसकी जद में आ गए हैं, पर पटनायक ने ऐसा रवैया नहीं आया। कांग्रेस में नरसिंह राव सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे असम निवासी मतंग सिंह एवं उनकी पूर्व पत्नी मनोरंजना सिंह से भी पूछताछ हुई है। कांग्रेस ने ऐसा तेवर नहीं अपनाया जैसा ममता ने अपनाया है। ममता कह रहीं हैं कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का गलत इस्तेमाल कर रही है। हमारे नेताओं और सांसदों पर फर्जी आरोप लगाए जा रहे हैं। ताकत की यह लड़ाई नहीं थमी तो तृणमूल दिल्ली तक जाएगी और वहां प्रदर्शन करेगी। सीबीआई की जांच उच्चतम न्यायायल की मौनिटरिंग मंें चल रही है। ममता को अगर समस्या है तो न्यायालय में जाना चाहिए। वे भाजपा के खिलाफ राजनीतिक अभियान भी चलायें, लेकिन वे उसी तरह भाजपा पर टूट पड़ीं हैं जैसे कभी वामदलों विशेषकर माकपा पर टूटतीं थी। हालांकि इस मामले में उनको प्रदेश की किसी पार्टी का साथ नहीं मिलने वाला। माकपा का तो अधिकृत बयान है कि ममता सीबीआई जांच मंे बाधा डालने की कोशिश कर रहीं हैं।
उनके ही राज्यसभा सांसद कुणाल घोष, जो इस समय सारधा घोटाले में जेल में बंद हैं, ने जेल में आत्महत्या करने की कोशिश की एवं आत्महत्या नोट में ममता बनर्जी का नाम लिखा है। इसमें केन्द्र सरकार क्या कर सकती है? कुणाल ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर इसके असली दोषी को जेल में नहीं डाला गया तो वे आत्महत्या कर लेंगे और उनने ऐसा करने की कोशिश की। यह न केन्द्र सरकार ने करवाया न सीबीआई ने। इस भ्रष्टाचार के दाग ने ममता के सफेद चादर पर कालिमा जड़ दिया है। ममता की मूल शक्ति उनकी ईमानदारी और सादगी है। इस पर यदि प्रश्न खड़ा होता है तो उन्हंे गुस्सा आना स्वाभाविक है। पर वे क्यों भूल रहीं है कि यह घोटाला वर्तमान सरकार के आने के पूर्व सामने आया एवं जांच पहले से चल रही है। यह साफ हो गया कि लोगों का पैसा लेकर कंपनी ने गलत तरीके से खर्च किया, ऐसे चैनल चलाए गए एवं अखबार निकाले गए जिनसे वामपंथ के विरुद्ध एवं ममता बनर्जी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश हुई। कुणाल घोष को ममता ने इसी का इनाम सांसद बनाकर दिया। हां, इसमें ममता शामिल हैं, इस पर दो राय हो सकती है, लेकिन यदि आपके नेतृत्व में काम करने वाले ऐसा कर रहे थे, जिन्हें आप पुरस्कार दे रहीं है तो आप पर प्रश्न उठेगा। पर सीबीआई ने न तो उनसे पूछताछ की कोई बात की है न उनके खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई का संकेत ही दिया है। बावजूद ममता बनर्जी कह रहीं है कि हिम्मत हो तो मोदी सरकार व सीबीआइ मुझे गिरफ्तार करके दिखाए। क्यों? साफ है कि वो अपनी एवं पार्टी की गिरती छवि से परेशान हैं।
एक बड़ी वजह भाजपा का प्रदेश में उभार है। जिले जिले में पूर्व माकपा या दूसरी वामपंथी पार्टियों के सदस्य भाजपा में शामिल हो रहे हैं, कुुछ कांग्रेस के लोग भी आ रहे हैं और उनका टकराव तृणमूल से उसी तरह हो रहा है जैसे कभी वामदलों विशेषकर माकपा के साथ तृणमूल का होता था। हालांकि यह पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नये दौर की शुरुआत है जिसे हम अपने नजरिये से विश्लेषित कर सकते हैं। किंतु यह सच है कि भाजपा तृणमूल के समानांतर एक बड़ी ताकत के रुप में उभर रही है। अमित शाह की रैली में उमड़ी भीड़ इसका प्रमाण था। भाजपा आज माकपा का स्थानापन्न कर रही है तथा दोनों पार्टियों में हिसंक टकराव बढ़ रहा है। इस स्थिति का जितनी जल्दी अतं हो उतना ही अच्छा। ममता मुख्यमंत्री के नाते यह समझें कि राजनीतिक विरोध एवं निरंकुश निर्णय में अंतर होता है। वो भाजपा से वैचारिक स्तर पर लड़ें यह उनका अधिकार है। उसी तरह भाजपा को भी उनके खिलाफ अहिंसक संघर्ष का अधिकार है। सारधा घोटाला हुआ है तो उसकी जांच होगी और जो चपेटे में आयेंगे उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी। इसका निदान उच्चतम न्यायालय कर सकता है, न कि हम किसी की सभा को रोकें ......उसको अनावश्यक चुनौतीं दें।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208