शनिवार, 13 अप्रैल 2019

चुनावी समर में कांग्रेस अब बचाव की मुद्रा में

 अवधेश कुमार

निस्संदेह, कांग्रेस के लिए यह लोकसभा चुनाव करो या मरो की तरह है। हालांकि पिछले वर्ष तीन राज्यों में मिली सफलता से उसका मनोविज्ञान काफी बदला था लेकिन उसे पता है कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा की प्रकृति और प्रवृति काफी अलग है। 2014 का आम चुनाव उसके लिए ऐसा आघात था दुःस्वप्नों में भी जिसकी कल्पना कांग्रेस नेताओं ने नहीं की होगी। 2019 उनके लिए उस मर्मांतक आघात से बाहर निकलने का बड़ा अवसर है। किंतु चुनाव नजदीक आते-आते जो स्थितियां निर्मित हो रहीं हैं उनका ठीक से अवलोकन किया जाए तो कांग्रेस के लिए चिंता के अनेक वाजिब कारण उभरते हैं। भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों को ऐसे-ऐसे मुद्दे मिल रहे हैं जिनके समक्ष कांग्रेस हमलावर नहीं रह सकती। उसके पास जवाब देने का ही विकल्प है। इस तरह विपक्ष के नाते सरकार के विरुद्ध उसके आक्रामक रहने तथा इसका चुनावी लाभ लेने की उम्मीद पर गहरा असर पड़ा है। किसी भी संघर्ष का मान्य नियम आक्रमण ही सबसे बड़ा बचाव है। मोर्चे पर आपके सामने बचाव की स्थिति जितनी पैदा होती है फतह का लक्ष्य उतना ही कमजोर होता जाता है। चुनाव परिणामों के पूर्व इस तरह का अंतिम निष्कर्ष देना जोखिम भरा है, पर कम से कम इस समय की पूरी स्थितियां ऐसी हैं।

  अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाला मामले में जांच लंबे समय से चल रहीं हैं और इसमें संदिग्ध अनेक लोगों के नाम भी हमारे सामने पहले से आ चुके हैं। पिछले वर्ष 4-5 दिसंबर को इस सौदे के बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल जेम्स के दुबई से प्रत्यर्पित किए जाने के बाद से कई नए तथ्य सामने आए हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने चौथा पूरक आरोप पत्र विशेष न्यायालय में प्रस्तुत किया है। क्रिश्चियन मिशेल दुबई से लेकर यहां तक यही तर्क दे रहा है उसको राजनीतिक एजेंडे के तहत फंसाया गया है। उसके आरोप का निवारण न्यायालय करेगा। किंतु, उसके द्वारा इस सौदे में दूसरे बिचौलियों तथा अगस्ता वेस्टलैंड की सहयोगी कंपनी फिनमेकेनिका के अधिकारियों को भेजे गए संदेशों में जिस तरह कुछ कूट नाम आए हैं उनसे कांग्रेस का असहज होना स्वाभाविक है। उदाहरण के लिए इसमें इटली की मां के पुत्र का उल्लेख है जिसके बारे में कहा गया है कि वह प्रधानमंत्री बनने वाला है। यह 2009 के पूर्व की स्थिति है। इसमें एपी, आरजी एवं एफएएम जैसे शब्द संक्षेप हैं। स्विट्जरलैंड में बिचौलिये गुइडो हैश्के की मां के घर से बरामद दस्तावेजों में ये नाम हैं। इसके साथ उस समय के मंत्रियों, नेताओं, रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों, नौकरशाहों से लेकर पत्रकारों तक के नाम हैं। कांग्रेस इसके पीछे राजनीतिक प्रतिशोध तलाश सकती है। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ईडी को इलेक्शन ढकोसला बता भी दिया। पर इससे सौदे में कांग्रेसी नेताओं के संलिप्त होने का संदेह खत्म नहीं हो जाता। एपी को अहमद पटेल माना जा रहा है तो एफएएम को फैमिली। हम इसक् बारे में निश्चयात्मक रूप से कुछ नहीं कह सकते। आरजी को रजत गुप्ता कहें या राहुल गांधी? किंतु संदेह की सूई तो घुमाई ही जा सकती है। आखिर फैमिली का मतलब क्या हो सकता है?

कांग्रेस बचाव में जितना संभव है तर्क दे रही है, कितु भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे अपनी सभाओं में उठा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि इस मामले में सरकार आक्रामक है और राजनीति में इसके मायने हम सब जानते हैं। यह संयोग है या और कुछ कि 2014 के आम चुनाव में यूपीए सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप तथा प्रियंका बाड्रा के पति रॉबर्ट बाड्रा के जमीन घोटाले बड़े मुद्दे थे और 2019 आते-आते फिर लगता है जैसे घड़ी की सूई घूमकर वहीं पहुंच रही है। अंततः प्रवर्तन निदेशालय को बाड्रा से पूछताछ करने की अनुमति न्यायालय ने दी और इसमें आई जानकारियां देश के सामने हैं। बाड्रा को अग्रिम जमानत मिली हुई है लेकिन न्यायालय उसे कभी भी रद्द कर सकता है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि ईडी, सीबीआई या आयकर विभाग की सारी कार्रवाइयां केवल राजनीतिक बदले की परिणति है, पर इसे देश भी मान लेगा कहना कठिन है। इनमें से ज्यादातर मामले यूपीए के समय ही सामने आए एवं उनकी जांच भी आरंभ हुई। कांग्रेस ने इसका रास्ता यह चुना है कि जिन नेताओं या उनसे जुड़े लोगों पर आरोप हैं उनको आरोपी न मानकर उत्पीड़ित माना जाए। ऐसे नेताओं को पूरा महत्व देकर कांग्रेस संदेश देने की कोशिश कर रही है कि जांच एजेंसियों की कार्रवाइयों या न्यायालयी प्रक्रियाओं से वह अप्रभावित है। वे सब चुनाव में पूरी तरह सक्रिय हैं।

कांग्रेस की समस्या है कि अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर सोनिया गांधी एवं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक आरोपी हैं एवं न्यायालय से जमानत पर बाहर हैं। जब इन शीर्ष नेताओं पर ही आरोप हों तो वो अन्यों पर कैसे कार्रवाई कर सकते हैं? उदाहरण के लिए पी. चिदम्बरम और उनके पुत्र कार्ति चिदम्बरम पर एअरसेल मैक्सिस एवं आईएनएक्स मामले में सीबीआई एवं प्रवर्तन निदेशालय जांच काफी आगे बढ़ा चुकी है। कार्ति तो गिरफ्तार होकर जेल भी गए, पी चिदम्बरम को न्यायालय से गिरफ्तार न किए जाने का बार-बार आदेश लेना पड़ रहा है। कांग्रेस ने कार्ति को पी. चिदम्बरम के क्षेत्र तमिलनाडु के शिवगंगा से उम्मीदवार बना दिया है। हालांकि उसका कोई सक्रिय राजनीतिक जीवन नहीं रहा है। चिदम्बरम पार्टी के मुख्य नीति-निर्धारकों में शुमार हैं। अहमद पटेल पूरी तरह सक्रिय हैं। रॉबर्ट बाड्रा के कारण प्रियंका को पहले राजनीति मं सीधे लाने से कांग्रेस बच रही थी। अब वे कांग्रेस का चेहरा बनाई जा चुकीं हैं। इसका असर नेतृत्व के आत्मविश्वास पर तो पड़ता ही है, लोगों के बीच संदेश भी वही नहीं जाता तो राजनीतिक रणनीति के रुप में पार्टी देना चाहती है। ये जहां भी सक्रिय होंगे वहां स्थानीय भाजपा एवं राजग के नेता-कार्यकर्ता इनके खिलाफ आरोपों का प्रचार करेंगे। कार्ति के खिलाफ दोनों मामलों में आरोप शिवगंगा में खूब उछल रहे हैं।

कांग्रेस के नीति-निर्धारकों में कुछ नेता ऐसे हैं जिनने अपनी सोच से भी पार्टी को नुकसान पहुंचाया है। घोषणा पत्र में देशद्रोह कानून खत्म करने से लेकर सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून में बदलाव तथा जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों की संख्या घटाने आदि को शामिल कर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले पर भाजपा को पूरी तरह हमलावर बनने का आधार दे दिया है। इसमें कांग्रेस रक्षात्मक है। तज कहें तो कांग्रेस ने भाजपा  के हाथों मनचाहा मुद्दा थमा दिया है। सुरक्षा और जम्मू कश्मीर पर कांग्रेस का यह रुख बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है। इसमें कांग्रेस पार्टी के पास बचाव ही एकमात्र रास्ता है। इन रणनीतिकारों ने प्रियंका बाड्रा की उत्तर प्रदेश में धर्मनिष्ठ हिन्दू की छवि बनाने के लिए यात्रायें कराईं। किंतु अयोध्या का संदेश उल्टा गया। वो अयोध्या जाकर भी रामजन्मभूमि का दर्शन करने नहीं गईं और इस बाबत पूछने पर कहा कि यह विवाद में है। अयोध्या की राजनीति तो रामजन्मभूमि के पिच से ही खेली जा सकती है। अगर आप उसे ही बाहर करेंगे तो इसका उल्टा संदेश जाएगा। भाजपा ने इसे भी मुद्दा बना दिया है। भाजपा कह रही है कि हमारे लिए वह विवादास्पद स्थान है ही नहीं। कांग्रेस ने रामजन्मभूमि मंदिर का समर्थक होने की जो छवि बनाई थी वह प्रियंका की यात्रा से लगभग ध्वस्त हो गई है। राहुल गांधी को अमेठी के साथ केरल के वायनाड से लड़ाने का फैसला भी जोखिम भरा है। कांग्रेस कह रही है कि इससे दक्षिण भारत के तीन प्रमुख राज्यों केरल, तमिलनाडु एवं कर्नाटक पर असर होगा। ठीक इसके विपरीत संदेश यह निकल रहा है कि राहुल गांधी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में इसलिए गए हैं ताकि जीत सुनिश्चित हो सके। इसका दो विपरीत प्रभाव है। एक, राहुल पर अमेठी में जीत को लेकर आश्वस्त न होने के कारण केरल भागने का आरोप लग रहा है। विरोधी संदेश दे रहे हैं कि जब पार्टी का सबसे बड़ा नेता अपने परंपरागत क्षेत्र में ही जीत को लेकर सुनिश्चित नहीं है तो फिर देश भर में उसके अन्य उम्मीदवारों की हालत कैसी होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता  है। दूसरे, यह राहुल गांधी की पिछले दो वर्षों से निष्ठावान हिन्दू की निर्मित की गई छवि को लुंठित करने वाला कदम है। उनके नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान तथा उसके बाद आयोजित रोड शो में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के झंडों ने भी अपना काम किया है। भाजपा इसे कांग्रेस की मुस्लिमपरस्ती का प्रमाण बता रही है और कांग्रेस अपना बचाव कर रही है।     

इन सबका मतदाताओं पर क्या असर हो सकता है इसकी जरा कल्पना करिए और फिर निष्कर्ष निकालिए कि इस समय चुनावी रणक्षेत्र में कांग्रेस कहां खड़ी है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/