शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

विस्तारित दक्षेस या एक अलग ईकाई की पाकिस्तानी रणनीति

 

अवधेश कुमार

हमारा या आपका समाज में गलतियों के कारण बहिष्कार हो तो हमें आत्मविश्लेषण करना चाहिए कि हमसे कहां गलतियां या भूलें हुईं हैं। इसकी बजाय यदि हम अपने समाज को दोष देकर उसके विरुद्ध कोई दूर का नया समाज बनाने के लिए निकल पड़े ंतो फिर हमारी दुर्दशा ही होती है। अपना समाज तो छूटता ही है, नया समाज भी नहीं बनता, क्योंकि सबको आपका असलियत पता होता है और वह व्यावहारिक भी नहीं होता। दक्षेस सम्मेलन के पांच देशों द्वारा बहिष्कार के बाद पाकिस्तान इन दिनों ऐसा ही नासमझ प्रयास करने की ओर चल पड़ा है। अब उसने एक नया शगूफा साइआ यानी साउथ एशियन इकोनॉमिक अलायंस का शगूफा छोड़ा है। इसे हम हिन्दी में दक्षिण एशिया आर्थिक गठजोड़ कह सकते हैं। आप इसके पीछे पाकिस्तान का तर्क सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे। वह कहता है कि  चीन, ईरान और आसपास के पड़ोसी देशों यानी मध्य एशिया के देशों को मिलाकर इस नए समूह को खड़ा किया जा सकता है। अजीब बात है। नाम दक्षिण एशिया और उसमें चीन, ईरान तथा मध्यएशिया के देश! यह कौन सा विचार हुआ? अगर पाकिस्तान इसे कोई दूसरा नाम देता और उसके लिए प्रयास करता तो कुछ क्षण के लिए उस पर विचार करने की नौबत भी आ सकती थी। यहां तो सोच ही तथ्यों से परे है। नाम हिमालय क्षेत्र और देशों के नाम आल्प्स पर्वत के आसपास का। इस पर कोई हंसेगा नही ंतो और क्या करेगा।

पाकिस्तान की समस्या भारत है। उसे लगता है कि भारत ने हमें दक्षेस से अलग-थलग कराया है तो एक ऐसा समूह खड़ा कर दो जिसमें भारत या तो हो नहीं या फिर हो तो वह कमजोर रहे। चीन और ईरान उसे इस मामले में ऐसे देश नजर आते हैं जो भारत को काउंटर कर सकते हैं। हालांकि अभी पाकिस्तान ने इसका पूरा खाका भी नहीं दिया है जिससे लगे कि यह दक्षेस को ही विस्तारित करना चाहता है या उससे अलग कोई समूह विकसित करना चाहता है। विडम्बना देखिए कि इसका समाचार पाकिस्तान से नहीं न्यूयॉर्क से आता है। अमेरिका गए पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की ओर से इसका बयान दिया गया। वहां पाकिस्तानी सांसद मुशाहिद हुसैन सैयद ने कहा कि दुनिया में दक्षिण एशिया उभर रहा है। इसमें चीन, ईरान और आसपास के पडोसी देश शामिल हैं। ऐसे में, सभी देशों को साथ लाया जा सकता है। हुसैन के अनुसार - हुसैन ने बताया- चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा दक्षिण एशिया को मध्य एशिया के साथ जोड़ने का महत्वपूर्णा रास्ता है। ग्वादर बंदरगाह इसमें महत्वपूर्ण निभा सकता है। हम चाहते हैं कि भारत भी इसमें शामिल हो। सबसे पहला प्रश्न तो यही उठेगा कि क्या पाकिस्तान दुनिया में इतना महत्वपूर्ण देश है कि वह कोई योजना दे और उसे देश तुरत स्वीकार कर लें? एक ओर प्रतिनिधिमंडल का यह बयान आया और उनके वहां रहते हुए ही अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने भारत के सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन कर दिया। प्रवक्ता ने उड़ी हमले को पाकिस्तानी सीमा से आए आतंकवादियों की कार्रवाई मानते हुए सर्जिकल स्ट्राइक को भारत का स्वाभाविक जवाब माना है।

तो पहले पाकिस्तान अपने इस कलंक को धोये या उसे नष्ट करने की पहल करे तभी न उसकी विश्वसनीयता दुनिया में होगी। इस समय तो उसकी साख दुनिया मंें पूरी तरह खत्म है। इस्लामी सहयोग संगठन ओआईसी के जो देश उसके साथ दिखते हैं उनके कारण अलग हैं। मूल बात यही है कि जिन कारणों से भारत, बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने पहले इस्लामाबाद दक्षेस शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया तथा बाद मंें भूटान एवं श्रीलंका ने उसे सही माना उनकी गंभीरता को पाक समझे। उसे वह समझने को तैयार नहीं। अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पाकिस्तान की हैसियत क्या है? वह बगैर विदेशी सहायता के अपना खर्च तक नहीं चला सकता। देश में आतंकवादियों के वर्चस्व के कारण चीन को छोड़कर कोई महत्वपूर्ण देश वहां पूंजीनिवेश करने की सोचता भी नहीं। चीन की भी अपनी रणनीति है। वह पाकिस्तान को एक उपग्रह देश यानी परोक्ष उपनिवेश के रुप में उपयोग करना चाहता है। उसकी रणनीति यह भी है कि भारत कभी निश्चिंत होकर नहीं रह सके।  ऐसा देश अगर अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक नए क्षेत्रीय आर्थिक ईकाई का गठन करने की पहल करे तो उसका साथ कौन देगा।

यहां प्रश्न यह भी है कि चीन, ईरान या आसपास के देश भौगोलिक रुप से दक्षिण एशिया के अंग कैसे हो जाएंगे? चीन पूर्वी एशिया का देश है तो ईरान पश्चिम एशिया या मध्यपूर्व का, अन्य देश मध्य एशिया के भाग हैं। उन्हें पाकिस्तान दक्षिण एशिया का भाग बनाना चाहता है। उसके चाहने से दुनिया इनको दक्षिण एशिया का भाग नहीं मान सकता है। अगर दक्षेस में अपने अपराध के कारण वह अलग-थलग पड़ा है और उसके अंदर भारत के खिलाफ प्रतिशोध का भाव है तो उसके लिए अन्य देश क्यों उसका साथ देंगे। कूटनीति भी हवा में नहीं की जाती। कूटनीति हमारी अपनी स्थिति, हमारे बारे में अन्य देशों की धारणा और संभावनाओं पर ही आगे बढ़ती है। आपकी कूटनीति की सफलता के लिए उसका ठोस आधार तथा तर्कों पर आधारित  होना चाहिए। पाकिस्तान के मौजूदा शगूफे में इनमें से कुछ भी नहीं है। वैसे भी अगर दक्षेस में किसी एक देश या देशों को शामिल करना है या उनको पर्यवेक्षक का ही दर्जा देना है या इसके साथ जुड़ी हुई विस्तारित आर्थिक ईकाई का निर्माण करना है तो सभी सदस्य देशों की सहमति से ही हो सकता है। इसके लिए बाजाब्ता प्रस्ताव आना चाहिए और उस पर सर्वसम्मति कायम होनी चाहिए। अफगानिस्तान सभी देशों की सहमति से शामिल हुआ।  हम मानते हैं कि चीन पाकिस्तान का साथ दे सकता है क्योंकि इसमें उसकी रणनीति भी शामिल है। किंतु अन्य देश ऐसा करेंगे इसमें संदेह है। ईरान के भारत के साथ अच्छे संबंध हैं। दोनों ने ऐतिहासिक चाबाहार बंदरगाह विकास समझौता पर हस्ताक्षर किया है। ईरान भारत के विरुद्व पाकिस्तान की किसी पहल का भाग हो जाए ऐसा मानना कठिन है। मध्यएशिया के देशों से भी भारत के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं। उनको पता है कि पाकिस्तान ने जानबूझकर भारत को नीचा दिखाने के लिए यह राग छेड़ा है। इसलिए वे भी उसमें हिस्सा बनेंगे इसमें संदेह है।

इस तरह कुल मिलाकर पाकिस्तान ने भारत से प्रतिशोध लेने या हम आपसे कम नहीं है यह दिखाने के लिए चाहे जितना सोच-समझकर साइआ या दक्षिण एशिया आर्थिक गठजोड़ का शगूफा छोड़ा हो, इसके मूर्त रुप लेने की संभावना न के बराबर है। कोई भी ऐसा संगठन खड़ा करने की अगुवाई करने वाले देश की अपनी विश्वसनीयता या क्षमता होनी चाहिए। पाकिस्तान एक विश्वसनीय और क्षमतावान राष्ट्र बन सकता है बशर्तें वह अपना चरित्र और चाल बदले। भारत सहित दूसरे देशों में आतंकवाद का निर्यात बंद करने के लिए प्राणपण से लगे, गद्दी बचाने के लिए नेता कश्मीर राग अलापने की जगह पाकिस्तान को एक आधुनिक, शिक्षित और विकसित समाज बनाने के लिए काम करें, राजनीतिक नेतृत्व पर से सेना का दबाव खत्म हो और सेना राजनीतिक नेतृत्व के मार्गदर्शन मंें काम करे....। यह सब तभी होगा जब पाकिस्तान यह माने कि आतंकवाद को पाल पोसकर उसने भयंकर भूल की है। जब तक वह इसे स्वीकार ही करेगा उसमें सुधार की गुंजाइश पैदा ही नहीं होगी। ऐसे में विश्व समुदाय के बीच उसकी इज्जत नहीं हो सकती। इसलिए अच्छा है कि पाकिस्तान भारत को नीचा दिखाने के लिए ऐसी कोशिश करने की जगह अपना घर संभालने पर ध्यान केन्द्रित करे। पाकिस्तान की मीडिया, वहां के बुद्धिजीवी और विवेकशील नागरिक समूह और समझदार नेताओं की जिम्मेवारी हैं कि वे देश को रास्ते पर लाने के लिए आगे आएं। वहां जन जागरण करें। सच्चाई से लोगों को अवगत कराएं। अगर उसने सुधार किया तो फिर भारत और दक्षिण एशिया के सारे देश उसके सहयोग हो जाएंगे। ऐसे में उसके अलग-थलग पड़ने की संभावना ही पैदा नहीं होगी। पाकिस्तान से ऐसा होने का  संकेत तक नहीं मिल रहा। इसके बगैर अगर वह किसी प्रकार की ईकाई बना भी लेता है जिसकी संभावना बिल्कुल नहीं है और उसके यहां के आतंकवादी वहां जाकर हिंसा फैला देते हैं तो फिर वह देश उसके साथ क्या करेगा इसकी कल्पना करिए।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208 

 

 

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