बुधवार, 26 जून 2013

सोमवार, 24 जून 2013

इज़हार-ए-ग़म

 जीशान खान

 दिल्ली के चाँदनी महल में हुआ हादसा पर मेरी माँ ने एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है......


गिरता हो मकान मौत का सामान बन गया..
लोगों की सिसकियों का निगहेबान बन गया...

बच्चे किसी के गुज़रे तो कोई बड़ा हो गया...
लाशों का ढेर जैसा के शमशान बन गया...

निकले थे पढ़ने घर से 2 भाई जो एक साथ...
एक भाई अब बच्चा है और एक बेजान बन गया...

मलबे से जब निकला तो बस्ता था उसके साथ...
मार कर भी इल्म का वो कद्रदान बन गया...

टूटा है दिल ये किसकी आवाज तक नहीं...
तोड़ा है जिसने दिल को वो नादान बना दिया...

जिनके गए हैं जान से उनकी सुने कोई...
हर लम्हा उनका अब तो परेशान बन गया...

पैसा नहीं अगर तो क़दर कोई क्यों करे...
पैसा वह रिश्तेदारी की पहचान बन गया...

मिलते हैं जो भी अपने वो करते हैं ये करम....
रिश्तों को अब निभाना भी अहसान बन गया...

भुला है हर रफीक को जब से हुआ मशहूर...
पाकर दुआएं सबकी जो सुल्तान बन गया...

फिरदौस की दुआ है ना आए कभी भी पेश...
वो वाकया जो मौत का ऐलान बन गया...
...........

सपा सरकार को बर्खास्त करें राज्यपालः डा. अय्यूब

उत्तर प्रदेश। पीस पार्टी के मुखिया डा. मुहम्मद अय्यूब ने प्रदेश की सपा सरकार को जनहित के प्रत्येक मुद्दों पर असफल और कानून व्यवस्था कायम रखने में अयोग्य तथा वादा खिलाफ करार देते हुये प्रदेश में शान्ति की स्थापना और विकास के लिये राज्यपाल से मांग किया कि वह सपा सरकार को बर्खास्त कर उसके कुशासन का अंत करें।

पीस पार्टी के पांचवें स्थापना दिवस 10 फरवरी 2013 को सत्ता संकल्प दिवस के रूप में मना रहे पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित अपने संदेश में उक्त उदगार व्यक्त करते हुए डा. अय्यूब ने कहा कि हम कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा जैसी साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ मैदान में है देश की जनता को इनका असली चेहरा बेनकाब कर समतामूलक, भ्रष्टाचार मुक्त समाज और विकासपरक राष्ट्र की स्थापना पीस पार्टी का मकसद है। उन्होंने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे आगामी लोकसभा चुनावों के लिये कमर कस कर तैयार हो जाये और इन दलों की कुत्सित मानसिकता से जनता को अवगत कराते हुये पार्टी को मजबूत करें।
उन्होंने कहा कि मुस्लिमों की हिमायती होने का दिखावा कर सत्ता हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने सबसे ज्यादे मुसलमानों का अहित किया है। आंकड़ों की तिकड़मबाजी व उन्हें गुमराह कर उनका वोट हासिल करना ही सिर्फ इनका असली मकसद रहा है। सत्ता से बाहर रहने पर मुस्लिम हितैषी होने का दिखावा करना और सत्ता पाते ही हर प्रकार से मुसलमानों को दबा कर उन्हें भयभीत कर अपना वोट बैंक बनाये रखने की साजिश रचना इनका असली मकसद है। इसका सबूत है प्रदेश में समाजवादी पार्टी के सत्तासीन होते ही चारो तरफ दंगे और मुसलमानों पर अत्याचार वारदातों में लगातार बढ़ोत्तरी होना। कोसीकलां-मथुरा, अस्थाना-प्रतापगढ, बरेली, गौतमबुद्धनगर, मसूरी-गाजियाबाद व फैजाबाद के दंगों में जहां निर्दोशों मुसलमानो की हत्यायें हुई, उनके मकान और दुकान जलाये गये लेकिन इसके जिम्मेंदारों के विरुद्ध कोई कार्यवाही न होना सपा सरकार की मुस्लिम विरोधी व आर.एस.एस के साथ सांठ-गांठ जनता के सामने उजागर करती है।
प्रदेश की सपा सरकार पर प्रहार करते हुये उन्होंने कहा कि चुनाव पूर्व मुसलमानो से किया गया अपना वादा भूल कर समाजवादी पार्टी अपने फायदे के लिये कार्य कर रही है। सपा ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह जेलों में बंद निर्दोष मुसलमानों को रिहा करायेगी। उनके लिये रोजगार की व्यवस्था करेगी। बुनकरों व दस्तकारों को बिना व्याज का कर्ज, उद्योग का दर्जा, बिजली की उपलब्धता के साथ कर्जमाफी का तोहफा देगी मगर सत्ता में आने के बाद जब वादों को पूरा करने का वक्त आया तो समाजवादी पार्टी ने अपने वायदो से उलट जेलो में बंद अपने समाज के गुण्डे व माफिया साथियों को रिहा किया।
मुसलमानों को रोजगार की व्यवस्था के स्थान पर उनके परम्परागत रोजगार को भी खत्म करने की साजिश शुरु कर दी। बुनकरों व दस्तकारों की भलाई के लिये सपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया आज भी प्रदेष के हजारों बुनकर व दस्तकार कामगार कर्जमाफी व बिजली की उपलब्धता की आस में भूखों मरने को मजबूर है, सपा सरकार को मुसलमानों की यह हालत सुधारने का यह ध्यान तो नही आया मगर यादव भाइयों के व्यव्साय तबेलों को उद्योग का दर्जा देकर उसने अपनी मानसिकता एक बार फिर उजागर कर दी। 18 प्रतिषत आरक्षण देने का वादा पूरा होने की आस में मुसलमान युवा अपने आप को छला महसूस कर रहा है।
कांग्रेस पार्टी मुसलमानों को सबसे बड़ी दुष्मन बताते हुये उन्होने कहा कि अपने शासन काल में 1400 से अधिक दंगों और हजारों निर्दोश मुसलमान युवकों, उलेमा-ए-कराम को जेल की सलाखों के पीछे भेजने और एण्काउन्टर के नाम पर उनका कत्ल और उन्हें बदनाम करने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुये डा. अय्यूब ने कहा कि अपने फायदे के लिये कांग्रेस के लोगांे ने भाजपा का भय दिखा कर मुसलमानों को दबाये रखा उनका वोट हासिल किया मगर अपना एक भी वादा पूरा नही किया। रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिर्पोट को वर्षों दबाये रखने रखने के बाद उसे आज भी कांग्रेस सरकार ने लागू नही किया नहीं सच्चर कमेटी की सिफारिशों को अमल में ला रही है।
उन्होने कहा कि पीस पार्टी सत्ता में आने पर अपने वादो को ईमानदारी से पूरा करेगी और देश में समतामूलक व भ्रष्टाचार मुक्त समाज की स्थापना के सिद्धान्त पर कार्य करेगी।

लोनी के रशीद गेट में बारिश के बाद हाल बेहाल, जनता को हो रही है परेशानी





 

गुरुवार, 13 जून 2013

बब्बी कुमारी के ज़ज्बे को सलाम

राजीव गुप्ता

देवरिया। वर्तमान समय में बब्बी कुमारी दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से सोशियोलोजी की छात्रा हैं और इस समय ग्रीष्मावकास और वृद्ध पिता जी की तबियत ठीक न होने के कारण इन दिनों देवरिया जिले के साहबाज़पुर गाँव में अपने घर आयीं हुई हैं. इन्होने सपने मे भी नही सोचा था कि परिवार और समाज के चलते इतनी मुसीबतों का सामना करना पडेगा. दरअसल परिवार और समाज़ के दबाव के चलते इनका विवाह उस समय हुआ था जब यें बारहवीं कक्षा की छात्रा थी. परंतु पढने की ललक के चलते उस समय इन्होनें विवाहोपरांत ससुराल जाने से मना कर दिया परिणामत: ‘गवना’ की रश्म को कुछ दिनों के लिये टाल दिया गया. इन्होने अपने पति जो कि एक अनपढ हैं और कमाने के लिये शुरू से ही शहर मे रहते थे, से अपनी पढने की इच्छा जतायी तो उन्होने किसी भी प्रकार की सहायता देने के लिये मना कर दिया. परंतु इस बहादुर बेटी ने हार न मानने की ठान ली. माता-पिता की अस्वस्थता और उनकी निर्धनता के चलते इन्होने अपने स्नातक की पढाई का सारा खर्च दूसरे के खेतों मे मजदूरी कर उठाया. बहन की पढने की इस लगन को देखकर इनके बडे भाई जो कि उस समय खुद पढाई करते थे, ने अपनी बहन को दूसरे के खेत में मजदूरी के लिये जाने हेतु मना कर खुद मजदूरी करने लग गये. बहन-भाई की इस मेहनत का परिणाम सकारात्मक आया. 

कालंतर में बब्बी कुमारी का स्नातकोत्तर हेतु  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सोशियोलोजी कोर्स मे चयन हो गया और बब्बी कुमारी जे.एन.यू. चली गयी. जब इनकी ससुराल वालों को बब्बी कुमारी की इस सफलता के बारे में पता चला तो उन्होने ‘गवना’  के लिये समाज की सहायता से इनके परिवार वालों के ऊपर दबाव बनाना शुरू किया परंतु बब्बी कुमारी और इनके भाई मुन्ना किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नही झुके. बब्बी कुमारी बताती है कि जे.एन.यू. जाने के बाद जबतक छात्रावास नही मिला तबतक यह वहाँ के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक छात्रा के साथ कुछ दिनों तक रही. नम आँखों से बब्बी कुमारी ने बताया कि उनके साथ ऐसा समय कई बार आया जब इनके पास न्यूनतम कपडे तक नही होते थे और आर्थिक तंगी से परेशान होकर एक बार तो इन्होने आत्महत्या तक विचार बना लिया था परंतु इन्होने अपनी गरीबी को ही अपनी असली ताकत बनाने की सोचा. कुछ महीने बाद इन्हे छात्रावास मिला तथा छात्रावृत्ति भी मिलने लगी और आगे की पढाई का मार्ग प्रशस्त हुआ. इन्होने अपने पति से कई बार आर्थिक मदद के लिये कहा परंतु हर बार वो मना कर देता था. हारकर इन्होने भविष्य में अपने पति से कोई रिश्ता न रखने के लिये कहा तो उसने कुछ पैसे भेजें. इनकी आर्थिक – स्थिति को इनके साथ रहने वाली मित्र से जब नही देखा गया तो वह आगे आयी और इनकी हर प्रकार की सहायता की.

जे.एन.यू के एम.फिल की प्रवेश परीक्षा देकर ये अपने गाँव चली आयी. इनके गाँव आते ही इन्हे जबरदस्ती ससुराल ले जाने के लिये इनके ससुराल वालें कई लोगों के साथ इनके घर आ धमके. परंतु जब इनके भाई और इन्होने अपने ससुराल वालों के इस कृत्य का विरोध किया तो सैकडों गाँव वालों और खाप पंचायत के सामने अनुसूचितजाति-समाज की इस बेटी को खीँचकर ले जाने की कोशिश की गई परंतु इनके भाई के अलावा किसी ने भी इस कृत्य को रोकने की हिम्मत नही दिखायी. चिंतन-मनन के पश्चात किसी प्रकार वहाँ उपस्थित लोगों से इन्होने अगले दिन तक का समय मांगा और दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार राजीव गुप्ता को फोनकर अपनी सारी स्थिति बताते हुए मदद मांगी. बस यही से इस पूरे घटनाक्रम मे तेज़ी से बदलाव आया. अगली सुबह ही जिला उप-जिलाधिकारी श्री दिनेश गुप्ता के संज्ञान मे सारा विषय आ गया और प्रशासन के सकारात्मक सहयोग और दूरदर्शिता के चलते दोनों परिवारवालों के बीच विवाह-खत्म करने की सहमति बनी. समाज-उपेक्षा से बब्बी को तो अब मुक्ति मिल जायेगी परंतु अभी भी बब्बी कुमारी की आर्थिक समस्या मुँह बाये खडी है फिर भी बब्बी कुमारी ने नेट, जे.आर.एफ जैसी छात्रवृत्ति पाने की आशा रखते हुए प्रशासनिक सेवा में जाने का अब मन बना लिया हैं.  

-          राजीव गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार , 09811558925

गुरुवार, 6 जून 2013

नाले में युवक का शव मिला

संवाददाता

पूर्वी दिल्ली। दिल्ली के सीलमपुर इलाके में नाले में  शव मिलने से सनसनी फ़ैल गई इस नाले को गोकुलपुर ड्रेन के नाम से जाना जाता है और  आज कल इस नाले को बनाये जाने का कार्य चल रहा है जब सुबहा लेबर काम करने पहुंची तब किसी ने शव को पानी में तेरते देखा और पुलिस को सुचना दी गई पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर जी .टी बी हॉस्पिटल में  पोस्टमार्टम के लिए रखवा दिया है और मामले की जाँच में जुट गई है आखिर ये युवक कोन है और ये हादसा है फिर कोई जानभुझ की गई वारदात   खबर लिखे जाने तक युवक की पहचान नहीं हो सकी।

 








मंगलवार, 4 जून 2013

दाऊद-छोटा राजन: दोस्त कैसे बने दुश्मन?

हैदर अली 

दाऊद इब्राहिम के अपराध की दुनिया में डॉन बनने के सफर में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसमें से बहुत कुछ लिखा जा चुका है पर इसके आगे बढऩे से पहले छोटा राजन पर चर्चा कर लेना जरूरी है। क्योंकि छोटा राजन अपराध की दुनिया में दाऊद का वो हमराज है जिसका जिक्र किए बिना दाऊद का अपराधिक इतिहास पूरा होना नामुमकिन है। 
छोटा राजन यानि राजेन्द्र सदाशिव निखलजे का जन्म 1956 में मुंबई के पूर्वी उपनगर चेंबूर में स्थित तिलक नगर हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाले एक मध्यमवर्गीय दलित परिवार में हुआ । उसके पिता नगर निगम में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। बचपन से ही दादागिरी के शौक और बुरी संगत के शिकार राजेन्द्र ने पढऩे-लिखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली इसलिए वह बारहवीं जमात से आगे न पढ़ सका। राजेन्द्र ने मुंबई शहर में तेजी से बढ़ रहे दादागिरी के कारोबार और हाजी मस्तान, करीम लाला और वरदा भाई की बढ़ती ताकतों से प्रेरणा लेकर दादागिरी में कदम रख दिया।
चेंबूर और घाटकोपर उन दिनों वरदा भाई के सहायक और मिल मजदूर नेता रहे राजन नायर के प्रभाव वाले इलाके थे। गली कूंचों में मारपीट और दो नंबर के छोटे मोटे अपराध करते-करते राजेन्द्र 'बड़ा राजन यानि राजन नायर के गिरोह के लिये सिनेमा टिकट ब्लैक करने लगा।
राजेन्द्र की दिलेरी और बहादुरी बड़ा राजन के कानों तक पहुंची तो उन्होंने निखल्जे को अपने करीब लाते हुए वरदा भाई के स्वर्ण तस्करी के धंधे से जोड़ दिया निखल्जे को चेंबूर व घाटकोपर में गिरोह के सामान्य कार्यों की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई।
बड़ा राजन के वरदहस्त के कारण निखल्जे को 'छोटा राजन कहा जाने लगा। 80 का दशक शुरू होते होते राजन सुपारी लेकर हत्या करने के धंधे में आ गया। यही वह समय था जब मुंबई पुलिस की कड़ी कार्यवाही के बाद वरदा भाई का सफाया हो यगा था। हाजी मस्तान और करीम लाला के सितारे भी गर्दिश में थे और हाजी मस्तान की सत्ता संभालने वाले दाऊद की करीम लाला के वारिसों से जबरदस्त गैंगवार छिड़ी हुई थी। ऐसे में अपनी अलग सत्ता चला रहे बड़ा राजन ने जब दाऊद का साथ लेकर पठानों के खिलाफ जेहाद छेड़ा तो बड़ा राजन को जान गंवानी पड़ी।
गरू की हत्या के बाद छोटा राजन को एक विश्वसनीय और ताकतवर सहारे की तलाश थी जो उसे दाऊद के रूप में मिल गया। दाऊद से गहरी दोस्ती के पीछे सिर्फ यहीं वजह नही थी कि वह अपराध की दुनिया में तेजी से उभर रहा था वरन एक वजह ये भी थी कि उसके साथ राजन का भावनात्मक लगाव हो गया था।
दरअसल छोटा राजन तिलक नगर की जिस बिल्डिंग में रहता था उसी की बगल वाली बिल्डिंग में रहती थी सुजाता। राजन की बचपन की इस प्रेयसी को 1988 में राजन के साथ शादी होने से पूर्व ही दाऊद ने अपनी मुंह बोली बहन बना लिया था। राजन की पत्नी सुजाता दाऊद को राखी बांधने
लगी। पत्नी और दोस्त के बीच बंधी पवित्र रिश्ते की इसी डोर ने राजन और दाऊद को इतना करीब ला दिया था कि 1988 में जब दाऊद को पुलिस के दबाव में दुबई भागना पड़ा तो उसने मुंबई में फैले अपने तमाम अपराधिक साम्राज्य का कमांडर बना दिया।
इस दौरान मुबई में एक और माफिया सरगना अरूण गवली सिर उठाने लगा था। उसके साथ अमर नाईक, दशरथ रोहणे और तान्या कोली के गिरोह थे। इन गिरोहों का काम हफ्ता वसूली, अपहरण और ठेके पर हत्याये करना था। दरअसल दाऊद के मुस्लिम होने के कारण अरूण गवली व साथी गिरोह दाऊद के साथ राजन की भी जान के दुश्मन बन गए थे। इसी के चलते दोनों गिरोह की खूनी गैंगवार में कई दर्जन छोटे बड़े अपराधी मारे गए।
1992 के आते-आते दाऊद और छोटा राजन में भी मतभेद गहराने लगे। इसके कई कारण थे। दरअसल दाऊद जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह जरूर बन गया था। मगर एक डर उसे हमेशा सताता रहता था वो था अपनो से मात खाने का डर। उसके आधिपत्य में पलने वाले गिरोह व उसके सरगना कहीं इतने ताकतवर न बन जांए कि भविष्य में उसके लिए चुनौती खड़ी कर दें। इसी के चलते दाऊद एक सोची समझी रणनीति के तहत अपने अधीन सभी गिरोंहो को आपस में भिड़वाकर रखता था। 
अपनी इसी योजना के तहत दाऊद ने दुबई में बैठे मुंबई में शिवसेना पार्षद व गिरोह बाज खीम बहादुर थापा की हत्या करवा दी। थापा छोटा राजन का करीबी था। छोटा राजन को इसकी जानकारी मिली कि थापा की हत्या में दाऊद के नेपाल में बसे शूटर सुनील सांवत उर्फ सौत्या का हाथ है।
एक और ऐसी घटना हुई जिसने दाऊद और राजन के बीच खाई पैदा कर दी। हुआ यूं कि राजन के एक बेहद करीबी तैय्यब भाई को दाऊद के शूटरों ने मार डाला। छोटा राजन लगातार हो रही घटनाओं से बेहद चिंतित था, लिहाजा वह भाई से बात करने स्वयं दुबई पहुंचा और अठारह मंजिली पर्ल बिल्डिंग के ग्यारहवें तल पर बने डी. कंपनी के आलीशान ऑफिस में दाऊद भाई से मिला तो भाई ने बताया कि तैय्यब की लापरवाही और मुखबिरी के कारण उसके करोड़ों के सोने से लदे दो जहाज कस्टम वालों ने पकड़ लिये।
दाऊद ने सभी राजन के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वह मुंबई छोड़कर उसके दुबई कारोबार को संभाल ले मगर राजन ने यह प्रसताव ठुकरा दिया और वापस मुंबई आ गया। दरअसल बाबरी मस्जिद ध्वस्त हो जाने के बाद दाऊद की पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आइ. से निकटता बढ़ गयी। और वह आई एस आई की साजिश का खिलौना बनकर इसके बदले में मुंबई बम विस्फोट की योजना बना रहा था।
ऐसे में जरूरी था कि मुंबई से दाऊद का एरिया कमांडर कोई कट्टर मुस्लिम हो, न कि छोटा राजन जैसा कोई हिन्दूवादी डॉन। यही कारण था कि राजन को किनारे कर अबू सलेम, मेमन बंधुओं को मुंबई में दाऊद भाई ने अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी थीं। छोटा राजन को स्पष्ट लगने लगा कि बहुत जल्द कोई बड़ा हादसा होने वाला है क्योकि खुद को किनारे किए जाने की दाऊद की रणनीति उसकी समझ में आने लगी थी। लेकिन मुंबई बम कांड से पहले ही एक ऐसी घटना हो गयी जिसने छोटा राजन और दाऊद के बीच दुश्मनी का बीज और गहरा बो दिया।
छोटा राजन लगातार अपने साथियों की हत्या से इस बदर बौखला गया कि उसने खबर मिलते ही दाऊद के विश्वासपात्र समझे जाने वाले पांच साथियों की मुंबई में एक ही दिन में हत्वा करवा दी। मुंबई समेत देश के कोने कोनें में फैले अपने साथियों अज्ञैर देश से बाहर के सूत्रों को तत्काल 'आपरेशन दाऊद पर काम बंद करके खुद के लिये काम करने के आदेश जारी कर दिये।
दाऊद और राजन दोनों की अटूट मित्रता रही थी । दोनों की एक दूसरे की कमजोरियों को बखूबी जानते थे। दाऊद जहां आदमियों के भरोसे काम चलाता है,वहीं राजन खुद एक शार्प शूटर तथा जिद्दी इंसान है। राजन ने मुंबई में अपना कमांडेट रोहित वर्मा को नियुक्त किया और खुद अपना ठिकाना मलेशिया के कुआलालमपुर में बनाकर वही से सैटेलाइट फोन के माध्यम से अपना कारोबार संचालित करना शुरू कर दिया।
इधर छोटा राजन ने दाऊद के शूटर सुनील सांवत से प्रतिशोध लेने के लिए सांवत की हत्या की सुपारी दे दी। सांवत दुबई में है,यह पता चलते ही राजन गिरोह ने सुनील सांवत को दिन दहाड़े हयात रिजेंसी होटल के सामने गोलियों से भून दिया। संयोग से उस समय दाऊद करांची में था जहां बेहद गोपनीय और सुरक्षित स्थान डिफेंस कालोनी में उसने अपना मुख्यालय बना लिया था। वहीं पर वह अपने परिजनों के साथ रह रहा था। उसे यंहा पर निजी अपराधियों के साथ आईएसआई का सुरक्षा कवच भी हासिल था। 
इधर 1993का घटनाचक्र बहुत तेजी के साथ घटा। आईएसआई के इशारे पर दाऊद ने मेमन बंधुओ,अबू सलेम और अपने गुर्गो की मदद से मुंबई में कई जगह ब्लास्ट करवा दिए जिसमें सैकड़ो लोग मारे गए। ब्लास्ट के बाद सक्रिय हुई खुफिया एजेंसियों के कारण मुंबई में दाऊद समेत सभी गिरोहों की अपराधिक गतिविधियां करीब एक साल तक बंद रही। इस बीच मुंबई का समूचा अंडरवल्र्ड साम्प्रदायिक आधार पर बंट गया था। अरूण गवली,अमर नाइक और छोटा राजन हिन्दूवादी डॉन के रूप में उभरकर सामने आये तो दाऊद की छवि आईएसआई के इशारे पर चलने वाले पाक परस्त मुस्लिम डॉन के रूप में उभरी। छोटा राजन के बारे में तो यह बात भी फैलने लगी कि उसने मुंबई ब्लास्ट के लिए दाऊद को सबक सिखाने के लिए भारतीय खुफिया एजेंसियों रॉ और आईबी को मदद करनी शुरू कर दी। माना जाता है कि राजन ने दाऊद के बारे में अक्सर कई महत्वपूर्ण सूचनाएं खुफिया एजेंसियों को मुहैय्या करवाई। छाटा राजन दाऊद का किस हद तक दुश्मन बन चुका था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने मुंबई ब्लास्ट को अंजाम देने वाले दाऊद और उसके समूचे गिरोह का खात्मा करने की सौंगध खा ली। छोटा राजन ने अपनी इस सौंगध का निभाया भी। दो साल के भीतर राजन ने दाऊद गिरोह के सत्रह लोगों की हत्या करवा दी। इन सभी के मुंबई ब्लास्ट में शामिल होने का शक था।
बहरहाल मुंबई ब्लास्ट के बाद दाऊद ने फिर से मायानगरी में अपना अपराधिक साम्राज्य फैलाना शुरू किया और इस बार उसने मुंबई का लेफ्टिनेंट बनाया अपने दाएं हाथ छोटा शकील को। लेकिन छोटा राजन के साथी रोहित वर्मा और शूटर गुरू सॉटम दाऊद गिरोह पर भारी पड़ते रहे। 1997 में उन्होंने बंगलौर में दाऊद के एक साथी थकीउद्दीन वाहिद की हत्या कर दी। दरअसल थकीउद्दीन वाहिद दाउद की ईस्ट-वेस्ट एयरलांइस का डाइरेक्टर था। उसकी हत्या से दाऊद का बडा झटका लगा। दाऊद की कमर तोडऩे के लिए छोटा राजन ने यहीं पर बस नही किया। उसके शुटरों रोहित वर्मा और गुरू सॉटम ने नेपाल में बसे वहां के सांसद मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या करवा दी। सांसद मिर्जा दिलशाद बेग ने सिर्फ नेपाल में दाऊद गिरोह को पनाह दिलवाता था वरन आईएसआई की आतंकवादी गतिविधियों और हथियार तस्करी का खास माध्यम भी बन गया था।
एक के बाद एक अहम लोगों की हत्या से दाऊद की कमर टूट गई थी। मुंबई बम कांड के एक और अभियुक्त पीलू खान की राजन गिरोह द्वारा हत्या के बाद छोटा शकील इस कदर बौखला गया कि पहले उसने पीलू खान के हत्यारे मंगेश पवार और फिर मुंबई में राजन के फाइनेंसर तथा भवन निर्माता ओम प्रकाश कुकरेजा की हत्या करवा दी। दरअसल राजन और दाऊद गिरोह में अब यह खूनी गैंगवार वर्चस्व की लड़़ाई को लेकर चल रही थी। मुंबई से हर वर्ष होने वाले 400 करोड़ के हफ्ता वसूली, शराब वेश्यावृत्ति जुएखाने और ठेके पर हत्याओं के कारोबार पर कब्जे के लिये दोनों गिरोह एक दूसरे को कमजोर करने में लगे हैं। तस्करी और जमीन पर कब्जे का धंधा ही दोनों गिरोह की रंजिश का मुख्य कारण है।
1993 में मुबई शहर में श्रृंखलावद्ध कम विस्फोट करवाकर सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले और खुद को अपराध जगत का सबसे बड़ा डॉन कहलवाने वाले दाऊद इब्राहिम के अपराधिक साम्राज्य को छोटा राजन के सात सालों में छिन्न-भिन्न कर दिया और उसके विश्वास पात्र खतरनाक साथियों को चुन-चुन कर खत्म करने का अभियान छेड़ा। इसी छोटा राजन के डर से आई.एस.आई के हाथों का खिलौना बने डॉन दाऊद इब्राहिम ने अब अपना मुख्यालय दुबई से हटाकर करांची पाकिस्तान में बना लिया था। मौत यानि छोटा राजन नाम की सिर पर लटकती तलवार को हटाने के लिये दाऊद इब्राहिम के इशारे पर उसके सबसे करीबी साथी छोटा शकील ने 14 सितम्बर 2000 को बैंकाक में हमले की साजिश रची। शकील ने इस हमले को बहुत ही सुनियोजित ढंग से अंजाम दिया। पर असफलता ही हाथ लगी। वह इस हमले से एक साथ कई शिकार करना चाहता था पर किस्मत ने साथ नहीं दिया और छोटा राजन बाल-बाल बच गया। हुआ यूं की बैंकाक के संभ्रात इलाके के कूटनीतिक एंक्लेव में बने चरनकोर्ट अपाट्मेंट में रोहित वर्मा के घर पर 14 सितम्बर 2000 की रात साढ़े नौ बजे जब शकील के आदमियों ने हमला किया तब छोटा राजन घर में मौजूद था। मगर इस दाऊद का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा के इस हमले में रोहित वर्मा व तीन अन्य लोग (पत्नी बेटी व नौकरानी) मारे गये जबकि छोटा राजन मात्र घायल हुआ और बच निकला। थाई पुलिस ने मात्र तीन दिनों के भीतर चार हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से एक थाई हमलावर 51 वर्षीय चवालित उर्फ रफीक अरूकियत समेत तीन पाकिस्तानी शूटर थे जिनमें 33 वर्षीय मोहम्मद सलीम, 36 वर्षीय शेरखान और 45 वर्षीय मोहम्मद युसुफ ने पूछताछ के बाद न सिर्फ अपना अपराध कबूल किया वरन इस बात पर अफसोस जताया कि छोटा राजन जिंदा बच गया। इसी के बाद से दाऊद और छोटा राजन के बीच एक-दूसरे का खात्मा करने की जंग चल रही हैं। यह जंग उसी वक्त खत्म हो सकती है जब दोनों में से किसी एक सरगना का अंत हो जाएं।
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