शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

क्यों हो रहे हैं अफगानिस्तान में भारतीय मिशनों पर लगातार हमले

 

अवधेश कुमार

दो सप्ताह से भी कम समय में अफगानिस्तान स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावासों पर या उसके पास तीन हमले हो चुके हैं। पहले 3 जनवरी को मजार ए शरीफ में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला हुआ, उसके बाद 5 जनवरी को जलालाबाद में भारतीय एवं पाकिस्तानी वाणिज्य दूतावास के बीच हमला हुआ और अब फिर जलालाबाद में भारत और पाकिस्तान के वाणिज्य दूतावास के पास ही हमला हुआ है। ध्यान रखिए कि इसके पूर्व जलालाबाद वाणिज्य दूतावास पर हमले को लेकर दो तरह के मत प्रकट किए गए। एक मत यह था कि हमला भारतीय दूतावास पर नहीं, बल्कि पाकिस्तान दूतावास पर हुआ है, जबकि दूसरा मत यह था कि निशाना दोनों था। वस्तुतः दूसरी बात सच के ज्यादा निकट लगती है। शायद आतंकवादियों ने उस संशय को खत्म करने के लिए वहां फिर से हमला किया। पिछली बार आतंकवादी सुरक्षा के कारण बहुत आगे बढ़ने में सफल नहीं थे और 400 मीटर की दूरी पर विस्फोट करके वापस भागे। इस बार उन्होेंने तमात सुरक्षा व्यवस्थाओं के बीच दूतावास भवन के 200 मीटर की दूरी पर हमला करने में कामयाबी पाई और उसके बाद संघर्ष भी किया जिसमें आधा दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए हैं। 

इसे संयोग भी कह सकते हैं या सुरक्षा व्यवस्था की कामयाबी कि तीनों हमलों में वाणिज्य दूतावासों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा, कोई भारतीय हताहत नहीं हुआ। यह हमारे लिए राहत और संतोष का विषय है। किंतु यह तो विचार करना ही होगा कि आखिर आतंकवादी लगातार इस तरह भारतीय मिशनों को निशाना क्यों बना रहे हैं? मजार ए शरीफ हमले के बारे में बल्ख प्रांत के पुलिस प्रमुख ने कहा है कि वे सीमा पार से आए प्रशिक्षित सैन्यकर्मी थे। यह बहुत बड़ा आरोप है। उसका कहना है कि वे पढ़े लिखे थे और पूरी तैयारी से आए थे। ध्यान रखिए कि यह हमला तीनों में सबसे बड़ा था जिससे निपटने में सुरक्षा बलों को 25 घंटे से ज्यादा समय लगा। आतंकवादियों ने पहले भीषण हमला करते हुए दूतावास में घुसने की कोशिश की थी और उसमें नाकाम रहने पर उन्होेंने पास के एक मकान में घुसकर मोर्चा बना लिया। जाहिर है, हमलावर आत्मघाती थे और उनके मारे जाने के बाद ही स्थिति शांत हुई। भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने उनके हमले का आरंभ मंें दिलेरी से मुकाबला किया जिससे वे घुसने में कामयाब नहीं हो सके। इसका अर्थ है कि आतंकवादियों ने भारतीय दूतावासों को अपने निशाने पर रखा है और आगे भी वे हमला करेंगे।

हमलावर कौन हो सकते हैं यह प्रश्न तो महत्वपूर्ण हैं, पर इनसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उनका इरादा क्या है? आखिर वे क्यों भारत के खिलाफ इस तरह वाणिज्य दूतावासों को ही निशाना बना रहे हैं? हम पाकिस्तान से आकर हमला करने के आरोप को भी नकार नहीं सकते। जब आतंकवादी सीमा पार से आकर पठानकोट में हमला कर सकते हैं तो वे अफगानिस्तान में क्यों नहीं कर सकते हैं। वैसे भी काबुल दूतावास पर सात वर्ष पूर्व के हमले में अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने भी आईएसआई का हाथ माना था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शायद इस समय भारत के साथ अच्छे संबंधों की कोशिश कर रहे हैं, पर अफगानिस्तान में भारत की विस्तृत और प्रभावी उपस्थिति पाकिस्तान की अफगान नीति के एकदम विरुद्ध है। पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में बड़े वर्ग को लगता है कि भारत वहां पांव जमाकर दरअसल अफगानिस्तान को उसकी डोर से बाहर खींच रहा है। यह बात वहां उठाई जाती रही है। इस कारण वहां भारत को क्षति पहुंचाने की उसकी नीति हो सकती है। वैसे भी अफगानिस्तान में अन्य हमलों में भी सीमा पर से आने वाले आतंकवादियों का हाथ रहा है जिसे कम करने के लिए ही वर्तमान अफगान सरकार ने पाकिस्तान से अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की और इसमें सफलता न मिलने पर निराशा व्यक्त किया। तो आतंकवादी वहां पाकिस्तान की ओर से आते हैं और हमला करके चले जाते हैं यह स्थापित और पुष्ट तथ्य है।

इसके साथ जो नया आयाम जुड़ा है वह है 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अफगानिस्तान की यात्रा एवं नई संसद भवन को वहां की सरकार को सौंपने का प्रचारित कार्यक्रम। आतंकवाद चाहे वे अफगानिस्तान के अंदर रहकर संघर्ष कर रहे हों, या पाकिस्तान की सीमा से आकर उनका लक्ष्य वहां किसी कीमत पर संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को पांव न जमाने देना है। शासन की इस्लामिक व्यवस्था की उनकी अपनी सोच है जिसे तालिबान के शासनकाल में उनने क्रियान्वित किया था। वे इसके परे कुछ भी नहीं मान सकते। इसमें जब भारत वहां लोकतंत्र को मजबूती देने के लिए कोई ठोस काम करता है तो फिर उसका विरोध आतंकवादी अपने तरीके से करेंगे ही। जरा सोचिए, लोकतंत्र का शीर्ष निकाय संसद का भवन ही आप बनाकर दे रहे हैं और उसमंें प्रधानमंत्री भाषण दे रहे हैं कि अफगानिस्तान मंे लोकतंत्र के मजबूत होने से पूरे क्षेत्र को लाभ होगा, भारत इसके प्रति पूरी तरह प्रतिबद्व है, वह अफगानिस्तान को इसके लिए हर संभव सहायता देता रहेगा तो इसकी प्रतिक्रिया आतंकवादियों के बीच कैसी होगी? जब हमारे प्रधानमंत्री छाती ठोंककर वहां आतंकवादियों से शांति का रास्ता अपनाने को कहते हैं तो उसका संदेश क्या जाएगा? इसके अलावा भी भारत वहां अफगानिस्तान के पुननिर्माण, प्रशासनिक कार्यक्षमता बढ़ाने, आतंरिक सुरक्षा को मजबूती देने..... आदि के अनेक कार्य कर रहा है। तो थोड़े शब्दों में कह सकते हैं कि आतंकवादी इस समय भारत द्वारा संसद भवन बनाकर सौंपने, उसमें प्रधानमंत्री के भाषण, अफगानिस्तान में लोकतंत्र की मजबूती तथा वहां शांति एवं स्थिरता में काम करने की गति तीव्र करने की भारतीय नीति का हिंसक विरोध कर रहे हैं। वे भारत को भयभीत कर वहां अपनी गतिविधियां रोकने के लिए मजबूर करना चाहते हैं। वाणिज्य दूतावासों से ही वहां व्यवसाय से लेकर निर्माण आदि के कार्य संपन्न होते हैं। इसलिए वाणिज्य दूतावास उनके निशाने पर हैं और रहेंगे। वैसे एक मत यह भी है कि पाकिस्तान के अंदर जो तत्व भारत के साथ संबंध सामान्य बनाने के विरोधी हैं वे इस हमले के द्वारा दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाने के लक्ष्य को पूरा करना चाहते हैं। इसे भी हम खारिज नहीं कर सकते।

तो कारण हमारे सामने हैं और इनके अर्थ भी साफ हैं। इस बात को फिर याद दिलाना होगा कि आगे ऐसे और हमले होते रहेंगे। वैसे तो भारतीय मिशनों पर खतरा लंबे समय से रहा है और इसका ध्यान रखते हुए अफगानिस्तान सरकार की सहमति से इनकी सुरक्षा के लिए 2008 में ही भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के कमांडो को तैनात किया गया था। हाल में खतरे के पूर्व आकलन के बाद काबुल, जलालाबाद, हेरात, कंधार और मजार-ए-शरीफ वाणिज्य दूतावासों पर ज्यादा कमांडो तैनात कर उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। इसके परिणाम सामने हैं कि हमारे दूतावासों का न कुछ बिगड़ा है और न एक भी भारतीय का वहां बाल बांका हुआ है। किंतु इसमें निश्चिंत होने का कोई कारण नहीं है। आतंकवादी चाहे पाकिस्तान से भेजे गए हों या स्थानीय हों, अपने लक्ष्य को पाने के लिए वहां ज्यादा तैयारी से बड़े हमले कर सकते हैं। आतंकवादियों के भय से हम अपनी नीतियों और सक्रियताओं को कम नहीं कर सकते। अफगानिस्तान अब हमारा सामरिक साझेदार है और क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय हित के मद्दे नजर हम वहां से भागने का विकल्प नहीं चुनने वाले। तो फिर उपाय क्या है? भारत को इसका ध्यान रखते हुए एक बार फिर से अपने मिशनों ही नहीं, जो प्रमुख कार्यस्थल हैं, जहां सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियां कार्यरत हैं...उन सबकी सुरक्षा की समग्र समीक्षा करके आवश्यकतानुसार अफगानिस्तान सरकार की सहमति से अपनी सुरक्षा व्यवस्था और बढ़ानी चाहिए। हालांकि इसका अंतिम निदान अफगानिस्तान में लोकतंत्र को मजबूत करने, उसके आर्थिक ढांचा को ताकत देने तथा उसकी स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था को सशक्त और विश्वसनीय बनाने में है। भारत इन तीनों लक्ष्यों पर काम कर रहा है और उसमें तेजी लाने की आवश्यकता है।

अवधेश कुमार, ई.ः30,गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408,09811027208

 

 

 

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