शनिवार, 13 अप्रैल 2024

डॉ. आंबेडकर की विरासत के संवाहक नरेंद्र मोदी

बसंत कुमार

बाबा साहेब आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर कांग्रेस पर बाबासाहेब के अपमान का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि "देश में गांधीजी की 100वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई, पं. नेहरू की 100वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई, पर डॉ. आंबेडकर की 100वीं जयंती मनाना क्यों भूल गई, जबकि उस समय वह केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह सत्ता में थी? गांधी शताब्दी समारोह से एक समाजसेवी डॉ. बिंदेश्वर पाठक उभरे, जिन्होंने अपने अथक प्रयास से देश को सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा से मुक्ति दिलाई, और आज भी वे अस्पृश्य दलितों के पुनर्वास में लगे हुए हैं। यदि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जन्मशताब्दी भी इसी तरह मनाई होती तो देश को डॉ. बिंदेश्वर पाठक जैसी और विभूतियाँ मिल गई होतीं, जो दलित व वंचित समाज के उत्थान हेतु 'सुलभ' जैसी संस्था का निर्माण करतीं और वंचित समाज राष्ट्र की मुख्यधारा में शमिल हो जाता।" दरअसल, प्रकाश आंबेडकर द्वारा उठाए गए प्रश्न मात्र उनके ही नहीं थे, यह देश के सामाजिक रूप से वंचित वर्गों के साथ-साथ भारत के निर्माण में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की भूमिका के बारे में जागरूक लोगों की भावना थी। डॉ. आंबेडकर के प्रति श्री मोदी का झुकाव तब से था, जब वे तीसरे दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ काम कर रहे थे। तब दलितों की समस्याओं पर अपने काम के कारण संघ की ओर से 1981 की 'मीनाक्षीपुरम घटना' पर प्रतिक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे।
गुजरात में भाजपा के महासचिव के रूप में 1987 में मोदी के पहले कार्य के रूप में पार्टी संगठन को विभिन्न स्थानों पर आंबेडकर की मूर्तियाँ स्थापित करने और उन्हें माला पहनाकर सम्मानित करने के लिए जुटाया। उसी वर्ष मोदी 'न्याय यात्रा' के सूत्रधार थे, जिसने गुजरात के लोगों को अन्याय के विरुद्ध इकट्ठा किया। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो वर्ष 2007 में उन्होंने पूरे गुजरात में विभिन्न स्थानों पर 'आंबेडकर भवनों' का निर्माण कराया। उद्घाटन कार्यक्रमों में उनके भाषण यह संकेत देते हैं, वे किस प्रकार बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर को आधुनिक भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण निर्माताओं में से एक के रूप में देखते हैं! एक मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने कहा था कि "डॉ. आंबेडकर का लक्ष्य सामाजिक क्रांति था। वे केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि असमानता के खिलाफ पूर्ण संघर्ष के पर्याय थे।" इसलिए उन्होंने बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की तुलना मार्टिन लूथर किंग से की थी, और मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे। पर मोदी ने इस बात पर चिंता की, जहाँ महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग का सम्मान दुनियाभर में किया जाता है, वहीं भारत में प्रतिष्ठित, स्थापित आभिजात्य वर्ग ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के प्रति घोर अन्याय किया और इसी कारण उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित करने में चार दशक का समय लग गया। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके शासन की अनेक योजनाएँ बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर से प्रेरित थीं। 'बाबासाहेब आवास नवीनीकरण योजना' ने वंचित वर्गों को घर का मालिक बनाने में वित्तीय सहायता प्रदान की। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने भाषण में कहा, "डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने सामाजिक समानता के लिए लड़ाई लड़ी, पर उनके आंदोलन में कभी नकारात्मकता देखने को नहीं मिली। इसके स्थान पर वे सदैव समाज में ऐसे सुधार के पक्षधर थे, जहाँ सबसे वंचित वर्ग भी सम्मान का जीवन जी सकता था। इसी कारण सामाजिक सशक्तीकरण और सामाजिक समरसता सुनिश्चित करना नरेंद्र मोदीजी की पार्टी और सरकार की प्राथमिकता रही है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में आरक्षित 131 लोकसभा सीटों में से 67 सीटें भाजपा द्वारा जीतना वंचित समाज में श्री मोदी की स्वीकारिता दिखाता है और वर्ष 2019 में भाजपा के पास एससी-एसटी सांसदों की संख्या बढ़कर 97 हो गई और वर्ष 2014 में 81 ओबीसी सांसद और 2019 में 119 ओबीसी सांसद लोकसभा पहुँचे। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने ऐतिहासिक महत्त्व के उन स्थानों को विकसित किया, जो आंबेडकर के जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण थे। जिन्हें 'पंचतीर्थ' के नाम से जाना जाता है-
1. मध्य प्रदेश के महू में उनका स्थान।
2. लंदन में वह स्थान जहाँ वे ब्रिटेन में पढ़ने के दौरान रहते थे।
3. नागपुर में स्थित दीक्षा-भूमि।
4. दिल्ली में महापरिनिर्वाण स्थल।
5. महाराष्ट्र में बंबई स्थित चैत्यभूमि ।
19 नवंबर, 2015 को मोदी सरकार ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के सम्मान में 26 नवंबर को 'संविधान दिवस' के रूप में घोषित किया। बाद में 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'महापरिनिर्वाण स्थल' पर 'डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक' का उद्घाटन किया, जो लगभग दो एकड़ में फैला हुआ है। स्मारक का प्रस्ताव पहले दिवगंत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने किया था। हालाँकि, यूपीए के सत्ता में आने पर यह परियोजना रुक गई, जिसे मोदीजी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पूरा किया। उनके विचारों को प्रधानमंत्री की निर्धारित प्राथमिकताओं में देखा जा सकता है। 'मन की बात' के अपने संबोधन के दौरान लोगों का ध्यान उन क्षेत्रों की ओर आकर्षित किया, जिनमें उनकी सरकार ने डॉ. बाबासाहेब के दृष्टिकोण से प्रेरणा ली-
"मेरे प्यारे देशवासियो! 14 अप्रैल डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती है। बरसों पहले डॉ. बाबासाहेब ने भारत में औद्योगीकरण की बात की थी, उनके अनुसार उद्योग एक प्रभावी माध्यम है, जिसके द्वारा गरीब-से-गरीब और निर्धनतम को भी रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है। आज 'मेक इन इंडिया' का अभियान डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के एक औद्योगिक महाशक्ति के रूप में भारत के सपने के अनुरूप सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। उनका यह सपना हमारी प्रेरणा बन गया है।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे कहते हैं, "आज भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक दीप-बिंदु के रूप में उभरा है और आज दुनिया में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या एफडीआई भारत में आ रहा है। पूरी दुनिया भारत को निवेश, नवाचार और विकास के रूप में देख रही है। डॉ. बाबासाहेब के विचार का मूल था कि उद्योगों का विकास केवल शहरों में हो सकता है, और इसी कारण भारत के शहरीकरण पर उन्हें भरोसा था। उनकी दूरदर्शिता के अनुरूप देश में 'स्मार्ट सिटी मिशन' और 'अरबन मिशन' की शुरुआत की गई, ताकि देश के बड़े शहरों और छोटे शहरों में सभी प्रकार की सुविधाएँ, अच्छी सड़कें, पानी की आपूर्ति, स्वास्थ्य सुविधाएँ, शिक्षा या डिजिटल कनेक्टिविटी उपलब्ध हो सकें।"
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का आत्मनिर्भरता में दृढ़ विश्वास था। वे नहीं चाहते थे कि कोई भी सदा के लिए गरीबी का दंश झेलता रहे। उनका यह भी मानना था कि गरीबों के बीच पूँजी के वितरण मात्र से गरीबी को कम नहीं किया जा सकता है। आज हमारी मौद्रिक नीति, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी पहलें हमारे युवा नवप्रवर्तकों और युवा उद्यमियों के लिए आधार बन गई हैं। 1930 और 1940 के दशक में, जब भारत में केवल सड़कों और रेल की बात की जा रही थी, तब डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने बंदरगाहों और जलमार्गों का उल्लेख किया था। वह डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ही थे, जिन्होंने जलशक्ति को राष्ट्रशक्ति के रूप में देखा। उन्होंने देश के विकास के लिए पानी के उपयोग पर जोर दिया। विभिन्न घाटी प्राधिकरणों की उत्पत्ति, विभिन्न जल संबंधी आयोग- ये सब डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की दूरदृष्टि के कारण ही संभव हुए। आज हमारे देश में जलमार्गों और बंदरगाहों के लिए ऐतिहासिक प्रयास किए जा रहे हैं।
"1940 के दशक में, जहाँ अधिकांश चर्चाएँ द्वितीय विश्वयुद्ध, सिर पर मँडरा रहे शीतयुद्ध और विभाजन के आसपास केंद्रित थीं, वहीं उस समय बाबासाहेब ने 'टीम इंडिया' की भावना की नींव रखी थी। उन्होंने संघीय व्यवस्था के महत्त्व के बारे में बात की थी और देश के उत्थान के लिए केंद्र और राज्यों को साथ मिलकर काम करने पर जोर दिया था। आज हमने शासन के सभी पहलुओं में सहकारी संघवाद के मंत्र को अपनाया और एक कदम आगे बढ़ते हुए प्रतिस्पर्धी संघवाद को अपनाया है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मेरे जैसे लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं, जो पिछड़े वर्ग के हैं।"
कैसा संयोग है कि दोनों ही, यानी डॉ. आंबेडकर और नरेंद्र मोदी सामान्य पृष्ठभूमि से आए और उसके बाद भी दोनों अपने चुने हुए क्षेत्र में शिखर पर पहुँचे! नीति के दृष्टिकोण से भी अर्थशास्त्र, सामाजिक न्याय, कमजोर और गरीब के सशक्तीकरण के साथ ही महिलाओं के सामाजिक और वित्तीय सशक्तीकरण पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और मोदी के उपाय एक जैसे लगते हैं।
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