अवधेश कुमार

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की रिकॉर्ड जीत पर भौचक होने का कोई कारण नहीं है। यही बात हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में भी है। गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को झटका लगा है तो इसलिए उन्होंने वस्तुस्थिति का गलत आकलन किया था। अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि 27 साल बाद यहां परिवर्तन होगा। जनादेश ने बता दिया कि राज्य राजनीतिक परिवर्तन के पक्ष में बिल्कुल नहीं है। कांग्रेस का दावा था कि वह धरातल पर काम कर रही है, घर - घर जा रही है और उसे जनता का व्यापक समर्थन है। परिणाम ने बता दिया कि उसका दावा भी सही नहीं था। एक सरल विश्लेषण यह है कि कांग्रेस चुनाव अभियान में भाजपा के समकक्ष कहीं दिख नहीं रही थी। आप ने जोर लगाया लेकिन उसके पास संगठन नहीं है। दूसरी ओर भाजपा के पास सरकार है ,सशक्त संगठन है तथा नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय नेता एवं अमित शाह के जैसे चुनावी रणनीतिकार। हिमाचल का सामान्य विश्लेषण यह है कि यहां में पिछले 37 वर्षों से हर चुनाव में सरकार बदलती रही है। क्या गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणामों को इन्हीं कारकों तक सीमित माना जा सकता है?

इसका स्पष्ट उत्तर है, नहीं। केंद्रीय नेतृत्व के बिना अगर कांग्रेस की प्रदेश इकाई हिमाचल में अच्छा प्रदर्शन कर पाई तो इसका मतलब है कि भाजपा वहां कल्पना से ज्यादा रोगग्रस्त है। 68 सीटों में पार्टी के 21 विद्रोहियों का खड़ा होना बताता है कि पार्टी की स्थिति क्या है । भाजपा विद्रोहियों द्वारा काटे गए मतों के कारण ही हारी है। हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा दोनों का वोट लगभग समान है। विपक्षी कांग्रेस के अंदर व्याप्त निराशा को देखें तो भाजपा को आसानी से चुनाव जीतना चाहिए था, क्योंकि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार के कार्यों को लेकर वहां असंतोष का वातावरण नहीं था । भाजपा को गहराई से मंथन करना होगा कि  पूरे देश के वातावरण से अलग हिमाचल का परिणाम क्यों आया? इसके विपरीत गुजरात में भाजपा ने 1995 में अपने उत्थान के बाद मतों का सर्वोच्च शिखर छुआ है तो राज्य बनने के बाद गुजरात में सबसे ज्यादा सीट पाने का रिकॉर्ड बना दिया। माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस की 149 सीट रिकॉर्ड बन गया था जो टूट चुका है। 53 प्रतिशत से ज्यादा मत पाने का अर्थ है कि वह किसी पार्टी से सीधे मुकाबले में भी जीत सकती थी। यानी यह विश्लेषण कि आप नहीं होती तो कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती एवं भाजपा का ग्राफ नीचे आता सही नहीं दिखता। सीटों और मतों की दृष्टि से यह असाधारण विजय है। हर अंकगणित के राजनीतिक मायने होते हैं। 2017 का चुनाव अलग वातावरण में हुआ था। नोटबंदी के बाद का पहला चुनाव था और प्रदेश का माहौल पाटीदार आंदोलन से संतप्त था। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी तीन युवा नेता के रूप में उभरे थे। हार्दिक पटेल पाटीदारों के गुस्से का चेहरा बने थे। इन सबका असर हुआ और भाजपा सत्ता में आने के बाद सबसे कम 99 सीटों तक सिमट गई। 2022 आते-आते भाजपा ने ईडब्ल्यूएस के तहत 10% आरक्षण देकर  नाराज पटेल नेताओं को मनाया , साथ लिया तथा हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर भाजपा में आ गए। भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री होने के बाद यह प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई। भाजपा ने आदिवासी नेताओं के कुछ प्रमुख चेहरों को भी शामिल किया। निमिषाबेन मनहरसिंह सुथार (निमिषा सुथार) को मंत्री बनाया और उन्हें पार्टी स्तर पर आदिवासी चेहरे के रूप में आगे बढ़ाया । इसमें भाजपा का ग्राफ स्वाभाविक रूप से बढना था। भाजपा का प्रदर्शन उन क्षेत्रों में भी काफी अच्छा रहा जिनमें वह पिछली बार पिछड़ गई थी। तो इनके मायनों को थोड़ी गहराई से समझनी होगी। 

गुजरात एक सामान्य राज्य नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक सम्पूर्ण राजनेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर निखारने और उभारने की आधार भूमि है। यह कल्पना करना निरर्थक है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राजनीति की जो धारा राष्ट्रीय धारा बन गई वह अपनी आधारभूमि में ही कमजोर हो जाएगी । व्यक्तित्व मुख्यतः विचार और व्यवहार का समुच्चय होता है। गुजरात का मोदी मॉडल हिंदुत्व,  राष्ट्रभाव के सामाजिक -आर्थिक- सांस्कृतिक विकास और परिवर्तन के संतुलन का मॉडल रहा है। कहने का तात्पर्य कि मोदी के कार्यकाल में गुजरात की यह सामूहिक मानसिकता सुदृढ़ हुई। मोदी ने गुजरात में क्षेत्रीयता को राष्ट्रीयता के भाव से जोड़ दिया। दुर्भाग्य से विपक्षी कांग्रेस या आप संपूर्ण  रूप में इस परिवर्तन को समझ नहीं पाई है। कांग्रेस जैसी पार्टी अभी भी मानती है कि हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार लोगों का केवल भावनात्मक शोषण है और आर्थिक - सामाजिक उन्नति का इससे लेना-देना नहीं। सच इसके विपरीत है। कहा जाता है कि पेट में दाने नहीं हों तो राष्ट्र और धर्म का विचार गले नहीं उतरता। यह तो नहीं कहा जा सकता कि मोदी के शासनकाल में वाकई गुजरात या भारत चमत्कारिक रूप से बदल गया है किंतु विकास के मानकों में गुजरात और भारत हर मायने में बेहतर पायदान पर है। इसमें कांग्रेस या आप कहे कि गुजरात 27 सालों में बर्बाद हो गया,  बेरोजगारी बढ़ गई, आर्थिक विकास की गाड़ी रुक गई, व्यापार ठप्प हो गया तो लोगों के गले इसलिए नहीं उतरता, क्योंकि धरातल की सच्चाई यह नहीं है। दूसरे, मोदी मॉडल का एक मुख्य तत्व आंतरिक और बाह्य सुरक्षा है। गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में कहा कि 2002 के पहले गुजरात में दादाओं की चलती थी और दंगे होते थे, उनका इलाज हुआ उसके बाद से गुजरात शांत है। इसका असर आम लोगों पर होना ही था, क्योंकि शांति और सुरक्षा की दृष्टि से 2002 के पहले और बाद के गुजरात में जमीन आसमान का अंतर है। भाजपा, कांग्रेस और आप तीनों के घोषणापत्रों को देखें तो सुरक्षा का पहलू मुख्य रूप से आपको भाजपा में ही दिखेगा। पहली बार कहा गया है कि रेडिकलाइजेशन यानी कट्टरवाद को खत्म करने के लिए एक डीरेडिकलाइजेशन विंग बनेगा जो धर्म क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर मजहबी आतंकवाद की दिशा में जाने वाले युवाओं के मानस परिवर्तन के लिए काम करेगा। सुरक्षा का ऐसा विजन किसी दूसरी पार्टी ने नहीं दिखाया है। इसी तरह अगर विकास की चर्चा करें तो गुजरात के सभी भौगोलिक क्षेत्रों का समग्रता में विचार करते हुए विकास की रूपरेखा बनाने का काम भाजपा ने वहां किया है। वर्तमान घोषणापत्र में ही ब्लू इकोनामी कॉरिडोर की बात है। मछुआरों के लिए राजनीतिक तौर पर बहुत बात होती है लेकिन किसी ने भी इस दृष्टि से नहीं सोचा कि एक अलग कॉरिडोर भी इनके लिए हो सकता है जहां मछली पकड़ने से लेकर, उसके व्यापार, संसाधन आदि के सभी आधारभूत संरचना उपलब्ध हों। एक उदाहरण बताने के लिए पर्याप्त है कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मॉडल विकास की श्रेष्ठ अवधारणा से अलग नहीं है।

चुनावी विजय के लिए शेष बातें साथ चलती हैं। 

 चुनाव पूर्व का वातावरण देखिए तो सर्वाधिक प्रभावी चुनावी अभियान किसी का था तो भाजपा का था। मोदी, अमित शाह से लेकर केंद्रीय नेताओं की रैलियां और रोड शो से घर-घर संपर्क तक में कोई पार्टी मुकाबले में नहीं थी। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का तो लगा ही नहीं कि गुजरात चुनाव से बहुत वास्ता है। नरेंद्र मोदी के प्रति वितृष्णा के कारण चुनाव प्रक्रिया आरंभ होते ही मधुसूदन मिस्त्री ने मोदी को औकात दिखाने की बात की तो पहले चरण के पूर्व अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे ने कह दिया कि उनके क्या 100 सिर हैं रावण जैसे और मतदान के दूसरे दौर के पहले कर्नाटक के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता वी एस उग्रप्पा ने उन्हें आधुनिक भस्मासुर कह दिया। इसके विरुद्ध प्रतिक्रिया होनी थी और भाजपा ने मोदी के अपमान के रूप में इस ढंग से पेश किया जिससे लोगों का कांग्रेस के विरुद्ध गुस्सा बड़ा। परिणाम सामने है। कांग्रेस इतिहास के अब तक के सबसे कम सीटों और वोटों तक सिमट गई है। आप ने आरंभ में इवेंट प्रबंधन के गुण से यह दिखाया कि माहौल उसके अनुरूप है किंतु जमीन पर वही स्थिति नहीं थी। उसने वहां खाता खोला लेकिन वोट उसने केवल कांग्रेस का ही काटा है। यह विश्लेषण गलत होगा कि आप नहीं होती तो भाजपा बड़े अंतर से चुनाव नहीं जीतती। कांग्रेस सही तरीके से लड़ाई लड़ते दिख ही नहीं रही थी। इस तरह गुजरात का चुनाव परिणाम बिल्कुल स्वाभाविक है। वर्तमान वातावरण में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सिर भारी विजय का सेहरा पहना था और वही हुआ है।

 अवधेश कुमार, ई-30 ,गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली 110092, मोबाइल 98110 27208