शुक्रवार, 17 जून 2016

कैराना पर संवेदनशील होकर विचार करें

 

अवधेश कुमार

कैराना पर राजनीति देखकर दिल दहल रहा है। एक सांसद ने कैराना से पलायन करने वाले लोगों की सूची देश के सामने रखी। उस सूची में कुछ त्रुटियां थीं। यानी 346 लोगों की सूची में 9 लोग मृत पाए गए और 6 लोग वहीं रहते पाए गए। बस, क्या था। लोगांें का पलायन कुछ लोगों के लिए छोटा मुद्दा हो गया और सूची की त्रुटि मुख्य मुद्दा। इसके समानांतर टीवी कैमरों पर वहां से पलायन कर गए लोगों के कारुणिक व भयावह वक्तव्य तथा अखबारों मंे आ रही रिपोर्टिंग साफ बता रहीं हैं कि वहां से भारी संख्या में पलायन हुआ है और वह स्वाभाविक नहीं है। रोजी रोटी या बेहतर रोजगार और व्यवसाय के लिए अपना कस्बा या शहर छोड़कर जाने की प्रवृत्ति पूरे देश में है लेकिन इससे बस्तियां खाली नहीं होतीं। इससे आबादी के अनुपात में इतना असंतुलन नहीं आता कि किसी समुदाय की संख्या 2011 के 30 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत हो जाए। कतारों से घरों पर ताले नहीं लटकते। एक-एक कर दूकानों पर यह बोर्ड नहीं चिपकता कि यह बिक्री का है।

उत्तर प्रदेश सरकार को देखिए। उसने स्थानीय प्रशासन को इसकी जांच सौंप दी और उसने जांच रिपोर्ट सरकार को दे भी दी। इसमें साफ कहा गया है कि कोई भी पलायन असामान्य है ही नहीं। हालांकि यह भी मानता है कि 252 लोगों ने पलायन किया है लेकिन कहता है कि इनमें भय से पलायन करने वाले केवल तीन परिवार हैं। इसके अनुसार 73 परिवार ऐसे हैं जो तीन वर्ष में पलायन करके गए हैं। 179 परिवार ऐसे मिले जो चार वर्ष से अधिक और 10 वर्ष से कम समय में वहां से गए हैं। इनमें 67 परिवारों को गए हुए 10 वर्ष से अधिक हो गए। अगर प्रशासन यह कह रहा है तो फिर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को क्या पड़ी है कि इस मुद्दे को गंभीरता से ले। उन्होंने तो एक दिन मीडिया से बात करते हुए एक पत्रकार को ही कह दिया कि तुम कैराना की तुलना कश्मीर से करते हो तुम्हारा मुंह काला। समाजवादी पार्टी का स्टैण्ड है कि भाजपा ने जानबूझकर राजनीतिक लाभ के लिए मामले को उठाया है। वह इसे सांप्रदायिक रंग देकर चुनावी लाभ लेना चाहती है। कुल मिलाकर अगर अखिलेश सरकार के लिए इस मामले की जांच स्थानीय प्रशासन से कराना था तो उसके लिए मामला पर पूर्ण विराम लग गया है। हालांकि यह विडम्बना ही है कि जिस प्रशासन के निकम्मेपन से यह पलायन हुआ उसे ही ंजांच की जिम्मेवारी दी जाए। क्या प्रशासन कभी यह स्वीकार करेगा उसके रहते वहां कानून के राज की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एक वर्ग के अपराधी और गुंडे तत्वों के भय से लोग वहां से भागने लगे? यह सामान्य समझ की बात है कि प्रशासन कभी ऐसा स्वीकार नहीं कर सकता। 

वास्तव में यह देश का दुर्भाग्य है कि कैराना तथा कांधला जैसी बस्तियों से हुए पलायन को जितनी गंभीरता और संवेदनशीलता से लिया जाना चाहिए आम राजनीति और बौद्धिक जगत की प्रतिक्रिया उसके विपरीत रही है। भाजपा के प्रतिनिधिमंडल के जवाब में विपक्षी दलों का एक प्रतिनिधिमंडल गया। यह एक अच्छी पहल थी। बाहर से प्रतिक्रियात्मक बयान की जगह वहां जाकर स्वयं देखने का निर्णय स्वागतयोग्य था। ंिकंतु जाने के पहले ही इनने हुकुम सिंह की सूची को नकार दिया। दिल्ली में ही इन नेताओं के बयान से स्पष्ट हो गया कि ये क्यों वहां जा रहे हैं। वही हुआ। वे कुछ लोगों से मिले और उनका निष्कर्ष निकल गया कि यहां से अस्वाभाविक पलायन हुआ ही नहीं है। उनके हाथ में वहां से बाहर गए मुसलमानों की एक सूची भी थमाई गई। इनने सूची की जाच करने की जहमत भी नहीं उठाई। विपक्षी नेता अगर उन परिवारों से अकेले में बात करते जिनके परिजन वहां से पलायन कर गए और वो डरते सहमते हुए वहां संपत्ति की रक्षा के लिए रुके हुए हैं तो उन्हें सच का पता चल जाता है। वैसै कैराना का सच तब तक समझ में नहीं आ सकता जब तक वहां से पलायन करके अन्यत्र बस गए लोगो से जाकर बातचीत न की जाए। यह न विपक्ष नेताओं ने किया न भाजपा ने।

हालांकि भाजपा को इसका श्रेय देना होगा कि उसकी टीम ने कम से कम वहां दिन भर रहकर विस्तृत जांच की, लोगों से बातचीत की, एक वर्ग द्वारा उनका विरोध भी हुआ, पर वे लौटने के बावजूद वहां रुके। विपक्षी नेता यदि उतने ही विस्तार से वहां काम करते तो उनकी समझ में सच्चाई आ जाती। सच्चाई क्या है? सच्चाई यह है कि वहां से भारी संख्या में लोगों का पलायन हुआ है और उनका कारण गुण्डागर्दी, भयादोहन, अपराध ही है। यह महज संयोग नहीं है कि ये अपराधी तत्व एक विशेष समुदाय से रहे हैं। आज के समय का संकट यह है कि जब मुसलमान पीड़ित होते हैं तब तो वह राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता है। उस पर बोलना अपने सेक्यूलर होने का प्रमाण माना जाता है। अगर उसी जगह हिन्दू पीड़ित हों और कोई उसे मुद्दा बनाना भी चाहे तो उस पर इतने हमले होने लगते हैं...उसे गलत साबित करने की इतनी प्रभावी और हंगामेदार कोशिशें होतीं हैं कि उसमें सच दब जाता है। यह अजीब किस्म का सेक्यूलरवाद है। कैराना इसी का शिकार हो रहा है। दबाव देखिए कि भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने जांच करके जो रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी उसमें लिखा है कि एक वर्ग विशेष का पलायन हुआ है। उसे कानून व्यवस्था का मुद्दा माना है। भाजपा के प्रवक्ता भी मथुरा कांड और कैराना पलायन दोनों को एक ही तराजू पर रखकर इसे सपा सरकार के शासन काल में कानून व्यवस्था की स्थिति ध्वस्त होने तथा अपराध एवं गुंडागर्दी का परिणाम बता रहे हैं।

कोई यह नहीं कह सकता कि कैराना या कांधला या जहां से भी पलायन की रिपोर्टें आ रहीं हैं वहां के सारे मुसलमान एक साथ हिन्दुओं पर टूट पड़े हैं। अपराधी तत्वों की संख्या कम ही होती है। लेकिन अगर अपराधी तत्व के खिलाफ बहुसंख्यक आबादी चुप रहती है तो फिर अल्पसंख्यक को वहां से भागने के सिवा कोई चारा नहीं बचता। कश्मीर में पंडितों का पलायन क्यों हुआ? सारे मुसलमान तो आतंकवादी थे नहीं, पर वे बहुसंख्य होते हुए भी खामोश रहे और पंडितों के सामने वहां से जान और इज्जत बचाने के लिए भागने का ही एक विकल्प बचा था। यही स्थिति कैराना और कांधला की है। जब तक इसे इस सच के आइने में नहीं देखा जाएगा तब तक न सच दिखाई देगा और न इसके निदान का कोई रास्ता निकलेगा। प्रशासन अगर कह रहा है कि केवल तीन परिवार भय से पलायन किए हैं तो तीन भी क्यों किए हैं यह सवाल तो उठैगा। वैसे यह सफेद झूठ है। वास्तव में  वहां कानून के राज का अंत हो गया था। अगर कानून का राज रहता तो ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होती। पानीपत में जाकर बस गए एक व्यापारी के अनुसार एक दिन उनके पास कुछ लोग आए और कहा कि 20 लाख रुपया दो। इनने हाथ जोड़कर कुछ दिनों का समय मांगा। समय देते हुए धमकी दी गई कि अगर पुलिस के पास गए तो वहीं खड़ा मिलूंगा और गोली मार दंूंगा। उसी दिन एक व्यापारी की हत्या हो गई। अगले दिन दो व्यापारियों की हत्या हुई जिस पर प्रशासन की ओर से ऐसी कार्रवाई नहीं हुई जिससे अन्यों का भय दूर हो और परिणामतः ये अपने परिवार के साथ एक सैंण्ट्रो कार में बैठकर वहां वे भाग निकले। यह एक उदाहरण कैराना और कंाधला के सच को समझने के लिए पर्याप्त है।

अखिलेश सरकार को यह सच कैसे समझाया जाए? गृहमंत्रालय ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है। वह रिपोर्ट वही होगी जो स्थानीय प्रशासन ने प्रदेश सरकार को दिया है। अखिलेश सरकार यह तो मान नहीं सकती कि उसके राज में कहीं वाकई कानून के राज का ऐसा अंत हो गया था कि वहां सांप्रदायिक गुुंडों और अपराधियों की बन आई थी। अब तक वे इसे नहीं स्वीकारेंगे कानून के राज की स्थापना के लिए जो कठोर कदम उठाए जाने चाहिएं नहीं उठाए जाएंगे। सवाल सरकार की संवेदनशीलता का है। जब तक वह संवेदनशील तरीके से इस मामले पर विचार नहीं करेगी कुछ नहीं हो सकता।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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