शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

पाकिस्तान का नकार उसके स्वभाव के अनुरुप है

 

अवधेश कुमार

क्या विडम्बना है! जम्मू के उधमपुर में आतंकवादी हमले में पकड़ा गया आतंकवादी नावेद स्वयं को ताल ठोंक कर पाकिस्तानी बता रहा है। उसने अपने घर का सही पता दे दिया, पिता का नाम बताया, फोन नंबर दिया जिस फोन पर एक अखबार ने उसके पिता से करीब 80 सेकेण्ड बातचीत की,  फैसलाबाद में रफीक कॉलोनी की उसकी गली नंबर तीन के लोग पूछ रहे हैं कि नावेद ने क्या किया, लेकिन पाकिस्तान अपना सारा बुद्धि कौशल केवल इसे नकारने में लगा रहा है। वह कह रहा है कि जिस व्यक्ति को दिखाया जा रहा है वह उसका नागरिक है ही नही। आप सबूत दो कि वह आपका नागरिक है। इसे आप क्या कहेंगे? किंतु, क्या हम आपमें से किसी ने पाकिस्तान से अपेक्षा की थी कि वह तत्काल आतंकवादी को अपने देश का नागरिक स्वीकार कर उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रस्ताव करेगा? नहीं न। तो फिर इसमें धक्का लगने या चिंतित होने का कोई कारण नहीं है। जो पाकिस्तान कर रहा है वही अपेक्षित था। अगर वह इसके विपरीत सभी सही सूचनाओं को स्वीकार कर लेता तो हमें आश्चर्य होता। 

लेकिन जितने साक्ष्य हमारे पास हैं, जिस तरह हमने पकड़े गए आतंकवादी नावेद याकूब उर्फ उस्मान को मीडिया के सामने लाकर बातें कराईं, जिस तरह उसने साफ-साफ जवाब दिया, उन सबको देखने सुनने के बाद दुनिया का कौन देश पाकिस्तान के नकार पर विश्वास करेगा? कोई नहीं। इससे परे जरा पहले नावेद के परिवार की व्यथा और समस्या देखिए। नावेद के अब्बा मोहम्मद याकूब को 1.22 बजे दिन में फोन किया गया था। 80 सेंकेड की बातचीत में बिल्कुल परेशान लग रहे मोहम्मद याकूब ने पंजाबी लहजे में फोन पर बताया कि लश्कर ए तैयबा चाहता था कि उनका बेटा मर जाए और भारतीयों के हाथ जिंदा न लगे। लश्कर-ए-तोएबा और फौज के लोग उसके पीछे पड़े हुए हैं। वो उसे और उसके परिवार को मार डालेंगे। उन्होंने कहा कि लश्कर वाले चाहते है कि हम मर जाएं और जिंदा न पकड़े जाएं। एनआइए की टीम से पूछताछ में नावेद ने कबूला कि उसे आतंकी संगठन लश्कर के दो कैंपों दौर-ए-आम और दौर-ए-खास में ट्रेनिंग दी गई थी। पहले कैंप में उसे फिजिकल फिटनेस, पहाड़ों पर चढ़ने व छोटे हथियार चलाने की तथा दूसरे में असॉल्ट राइफल्स चलाने तथा छोटे बम तैयार करने की ट्रेनिंग दी गई थी।

ध्यान रखिए मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हुए हमले में भी लश्कर-ए-तैएबा की ही भूमिका थी। इसी ने आतंकवादियों का चयन किया, तैयार किया, संसाधन दिए, हमले की योजना बनाई, हमले के दौरान निर्देश देते रहे......। पाकिस्तान अगर इसे स्वीकारता है तो यह साबित हो जाएगा कि 2002 में प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद लश्कर आज भी पाकिस्तान की जमीं से आतंकवादी गतिविधियां चला रहा है। अगर चला रहा है तो फिर उसे संरक्षण और समर्थन भी होगा और होगा तो किसका होगा? तो पाकिस्तान के लिए इसे स्वीकार करना आसान नहीं है। इसलिए वह वही कर रहा है तो वह इस हालत में करेगा। हालांकि पाकिस्तान सच स्वीकार कर लेता तो यह उसके हित में ही जाता। दुनिया को लगता कि वाकई प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना प्रमुख राहील शरीफ दोनों आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष करने, आतंकवाद को किसी कीमत पर बरदाश्त न करने की जो घोषणा कर रहे हैं उसमें सच्चाई है।

पाकिस्तान का तर्क देखिए। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद काजी खलिलुल्लाह ने कहा कि हम कई बार कह चुके हैं कि पाकिस्तान पर तुरंत आरोप लगाना सही नहीं। भारत का दावा आधारहीन है। एक्सप्रेस ट्रिब्यून समाचार पत्र में पाकिस्तान सरकार के सूत्र के हवाले से कहा गया है कि नेशनल डाटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथारिटी (नादरा) के रिकॉर्ड के अनुसार गिरफ्तार मोहम्मद नावेद याकूब का पाकिस्तानी होने का भारत का दावा बेबुनियाद है। पाकिस्तान का कहना है कि नेशनल डाटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी के मुताबिक नावेद पाकिस्तान का रहने वाला नहीं है। उसका कहना है कि नावेद नाम का कोई भी शख्स उसके डाटाबेस में नहीं। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत यह आरोप बिना किसी सुबूत के लगा रहा है। ध्यान रखिए मुंबई हमले में पकड़े गए आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के बारे में उसने यही तर्क दिया था कि डाटाबेस में उसका नाम नहीं है, इसलिए वह पाकिस्तान का नागरिक नहीं है। स्वयं भारत में सभी व्यक्तियों का निंबंधन नहीं है। तो क्या वे भारत के नागरिक नहीं माने जाएंगे? पाकिस्तान के तो आधे नागरिकों का भी रजिस्ट्रेशन नहीं है। यह स्थिति कसाब के समय थी और आज भी है। तो क्या पाकिस्तान अपने हर दो में से एक व्यक्ति को पाकिस्तान का नागरिक नहीं मानता? यह तर्क हास्यास्पद है और पाकिस्तान के पाखंड को ही उजागर करता है। नादारा का डाटाबेस में नाम न होना किसी के पाकिस्तानी होने का सबूत नहीं हो सकता है।

हम  न भूले कि पाकिस्तान की ओर से जो भी आतंकवादी हमले करने आता है उसके पकड़े जाने या मारे जाने पर वह उसे अपना नागरिक मानने से इन्कार करता है। यह उसकी आदत है। कसाब को भी उसने पहले पाकिस्तानी नहीं माना। उल्टे भारत पर ही बदनाम करने का आरोप लगाया। पाकिस्तान के एक सामचार पत्र के पत्रकारों ने उसे गांव जाकर घर का पता किया, पूरी जानकारी ली और साबित किया कि वह वाकई फैसलाबाद के उसी गांव का रहने वाला है जहां कि जानकारी भारत ने दी है। पाकिस्तान के जिओ चैनल के पत्रकारों ने तो बाजाब्ता उसका विडियो और बातचीत प्रसारित किया। उसके गांव तक में प्रवेश करने पर सेना ने रोक लगा दी थी। पूरी घेरेबंदी थी। जियो चैनल के दो पत्रकारों ने खुफिया कैमरा लगाकर छद्म वेश में कसाब के पिता से बातचीत करने में सफलता पाई थी। उसके पिता ने कुबूल किया था कि कसाब उन्हीं का बेटा है। ठीक यही स्थिति नावेद के गांव की हो गई है। पाकिस्तान के पत्रकारों के लिए भी फैसलाबाद स्थित गुलाम मोहम्मद क्षेत्र में उसके परिवार के पास सीधे पहुंचना कठिन है। भय यही है कि जिस तरह कसाब के माता-पिता को उनके गांव से कहां ले जाया गया यह किसी को पता नहीं कहीं वहीं स्थिति नावेद के परिवार की न हो। यह बिल्कुल संभव है। पाकिस्तान ने कसाब के साथ मुंबई हमले में शामिल छह अन्य मारे गए पाकिस्तानी आतंकवादियों को भी अपने देश का वासी मानने से इन्कार किया। पाकिस्तान ने करगिल युद्ध में मारे गए आतंकवादियों के साथ सेना के शव तक लेने से यह कहते हुए इन्कार किया कि वो हमारे नागरिक है ही नहीं। भारतीय सेना के जिम्मे उन सबका उनके मजहब के अनुसार सम्मानपूर्वक दफनाने की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती थी।

हालांकि बाद में पाकिस्तान को मजबूर होकर कसाब को स्वीकार करना पड़ा, उसने इसके सात सूत्रधारों पर वहां प्राथमिकी दर्ज कर मुकदमा भी चलाया। यह बात अलग है कि मुकदमा सही कानूनी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सका। पाकिस्तान ने यह भी आरोप लगाया कि कसाब तो छोटा व्यापारी था। वह नेपाल गया था। वहां से भारतीय एजेंसियों ने उसे पकड़ा और छिपाकर रखा था ऐसे समय में प्रयोग करने के लिए, जबकि भारत ने वहां की न्यायिक टीम तक को भारत आकर जांच करने की अनुमति दी। ऐसा ही कुछ नावेद के मामले में हो सकता है।

पाकिस्तान के विशेषज्ञ कर रहे हैं कि पहले साबित करो कि वह पाकिस्तानी था और आतंकवादी था। यह भी साबित करो कि उसे भेजने में सरकार के किसी अंग की भूमिका है? वे कह रहे हैं कि स्वीकार्य साक्ष्य लाओ। प्रश्न है कि पाकिस्तान के अनुसार क्या स्वीकार्य साक्ष्य हो सकता है? पाकिस्तान अपने यहां धराधर आतंकवादियों को फांसी पर चढ़ा रहा हैं। उसके लिए जो साक्ष्य चाहिए उसके पास आ जाता है, पर वही आतंकवादी यदि भारत में आकर हमला करता है तो उसके लिए उसे दूसरे प्रकार के साक्ष्य चाहिएं। मुंबई मामलों में जिन 7 पर मुकदमा चला रहे हैं उनके बारे में भी वे कहते हैं कि यह न्यायालय में स्वीकार्य साक्ष्य नहीं है। क्या साक्ष्य वे चाहते हैं? जाहिर है, साक्ष्य का बहाना अपने को केवल बचाना है। किंतु हम उनकी चिंता ही क्यों करें? उनको जो करना हैं करें। हम इस बात को लेकर सुनिश्चित हैं कि हमारे हाथ आया आतंकवादी पाकिस्तानी है। उसे वहां से प्रशिक्षण देकर निश्चित लक्ष्य पर हमले करने और जान देने के लिए भेजा गया था। दुनिया इसे मान लेगी यह भी तय है। सजा तो हमारे न्यायालय को देना हैं। हां, यह हमारी कुशलता पर निर्भर है कि हम उससे प्राप्त जानकारी के अनुसार पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने में किस सीमा तक सफल होते हैं। नावेद को उन सभी स्थानों पर ले जाया गया, जहां से वह भारत में घुसा और घुसपैठ के बाद शरण ली थी। उससे हमें आतंकवादियों की आगे की योजना, उनके घुसपैठ के स्थानों, तरीकों को पता चल रहा है, उनकी नई रणनीति समझ आ रही है, दो महीने तक उसके और दूसरे आतंकवादियों के कश्मीर में ठहरने के स्थान पता जल रहे हैं, लोग चिन्हित हो रहे हैं...गिरफ्तार भी हो रहे हैं। यह आतंकवाद से संघर्ष और शमन में कितना सहयोगी साबित हो सकता है, शायद बताने की आवश्यकता नहीं।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

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