रविवार, 21 मई 2023

क्या है 'रेवड़ी',क्या है 'ज़रूरत' कौन करेगा तय?

तनवीर जाफ़री   

उत्तर प्रदेश के जालौन में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करते समय 15 जुलाई 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में सर्वप्रथम उन राजनैतिक पार्टियों पर निशाना साधा था जो चुनाव जीतने मात्र के लिये जनता को लालच देने वाली योजनाओं की घोषणाएं किया करते हैं। प्रधानमंत्री ने इसे 'रेवड़ी कल्चर' का नाम दिया था। उन्होंने कहा था कि -'मुफ़्त की रेवड़ियों का ऐलान कर वोट लेने की कोशिश करने का अभ्यास देश के विकास के लिए हानिकारक है'। चुनावी घोषणाओं में देश की जनता को मुफ़्त की चीज़ों का लालच देकर वोट हासिल करने की साज़िश की है। ये रेवड़ी कल्चर आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक साबित होगा। ऐसे लोगों को लगता है कि मुफ़्त की रेवड़ी के बदले उन्होंने जनता जनार्दन को ख़रीद लिया है'। यही बात प्रधानमंत्री ने गत 26 अप्रैल को कर्नाटक में भी एक चुनावी जनसभा के दौरान दोहराते हुये कहा कि - ‘मुफ़्त की रेवड़ी की राजनीति की वजह से कई राज्य बेतहाशा ख़र्च अपनी दलगत भलाई के लिए कर रहे हैं। राज्य डूबते चले जा रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों का भी ये खा जा रहे हैं।  देश ऐसे नहीं चलता, सरकार ऐसे नहीं चलती।'

परन्तु इसी के साथ प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार द्वारा दी जा रही 'मुफ़्त सेवाओं '  की पैरवी इन शब्दों में की - उन्होंने कहा कि -' कुछ तात्कालिक चुनौतियों से निपटने के लिए देश के ग़रीब परिवारों को हर संभव सहायता दी जा रही है और ये सरकार का दायित्व है। कोरोना के समय हमें ज़रूरत लगी तो हमने मुफ़्त वैक्सीन दिया देश को… क्योंकि जान बचानी थी’ ‘मुफ़्त राशन देने की ज़रूरत पड़ी तो दिया गया क्योंकि देश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहना चाहिए। लेकिन देश को आगे बढ़ाना है तो हमें इस 'रेवड़ी कल्चर' से मुक्त होना ही पड़ेगा। ’ आज सरकार के प्रतिनिधि बड़े गर्व से बताते रहते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कोरोनाकाल में ग़रीब लोगों को 5  किलो अनाज मुफ़्त दिये जाने की जो योजना शुरू की गयी थी उसका फ़ायदा देश के 80 करोड़ लोग उठा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि कोरोना काल ख़त्म हो जाने के बावजूद इस मुफ़्त राशन योजना को फ़िलहाल दिसंबर 2023 तक बढ़ाये जाने कभी ख़बर है।

जहां तक कोविड के दौरान मुफ़्त वैक्सीन लगाये जाने का प्रश्न है तो देश में अभी तक जितनी भी महामारी सम्बन्धी वैक्सीन लगाई गयी हैं कभी भी किसी भी सरकार द्वारा जनता से उसके पैसे वसूले नहीं गये। हाँ कोविड वैक्सीन से पहले किसी सरकार के मुखिया ने अपनी फ़ोटो युक्त प्रमाणपत्र ज़रूर नहीं बांटे जोकि राजनैतिक प्रचार के सिवा और कुछ नहीं था। दुनिया के कई देशों में इसका मज़ाक़ भी उड़ाया गया। रहा सवाल मुफ़्त राशन बांटने का तो पिछले लोकसभा चुनाव में तो भारतीय जनता पार्टी ने मुफ़्त राशन हासिल करने वाले मतदाताओं की अलग श्रेणी ही बना डाली जिसका नाम 'लाभार्थी ' रखा गया। कोई आश्चर्य नहीं कि यह योजना दिसंबर 23 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव तक भी बढ़ा दी जाये। रहा सवाल देश के लोगों की भूख की फ़िक्र करने की तो यहाँ यह भी याद रखना ज़रूरी है कि पेट तो राशन से भरता है न कि प्रधानमंत्री के चित्र छपे उन मज़बूत थैलों से जिनकी क़ीमत उन थैलों में पड़े राशन से भी अधिक थी। भूख मिटाने के नाम पर किया जाने वाला इसतरह का पार्टी प्रचार सरकारी ख़र्च पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का तरीक़ा नहीं तो और क्या है ?

कर्नाटक में मोदी को इसलिए 'रेवड़ी'  फिर याद करनी पड़ी क्योंकि कांग्रेस ने भाजपा द्वारा अपने चुनाव प्रचार में परोसे गये विभाजनकारी एजेंडे के मुक़ाबले में राज्य की जनता से पांच ऐसे वादे किये थे जो सीधे तौर पर कांग्रेस को फ़ायदा पहुँचाने वाले तो ज़रूर थे परन्तु सरकार के राजस्व पर निश्चित रूप से भरी बोझ साबित होने वाले थे। इनमें एक वादा था 'गृह लक्ष्मी योजना,  इसके अंतर्गत महिलाओं को हर महीने 2000 रुपये की सहायता राशि देने की बात है जबकि 'युवा निधि योजना' के तहत स्नातक की पढ़ाई करने वाले युवाओं को दो साल तक 3 ,000 रुपये और डिप्लोमा होल्डर्स को दो साल तक 1500 रुपये प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता दिए जाने का वादा किया गया है। इसी प्रकार 'अन्न भाग्य' योजना में ग़रीब परिवारों को हर महीने 10 किलो चावल की गारंटी देने की बात कही गयी है तो 'सखी योजना' के तहत महिलाओं को सरकारी बसों में फ़्री बस पास उपलब्ध कराने का घोषणा की गयी है। इसी तरह ' गृह ज्योति' योजना में हर घर  को 200 यूनिट फ़्री बिजली देने का वादा किया गया है। कर्नाटक की नई सिद्धारमैया सरकार ने शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले इन्हीं वादों को पूरा करने की घोषणा भी कर दी है।  

इसके पहले हिमाचल प्रदेश में गत वर्ष हुये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जनता से जो अनेक वादे  किये थे उनमें सत्ता संभालते ही बेरोज़गार युवाओं को एक लाख सरकारी नौकरियां देने,ग्रामीण सड़कों के लिए भू-अधिग्रहण क़ानून लागू कर भू-स्वामियों को चार गुना मुआवज़ा देने,महंगाई से निपटने के लिए लोगों की जेबों में पैसा डालने,पुरानी पेंशन योजना (OPS ) लागू करने, महिलाओं को 1500 रुपए प्रति माह देने और 300 यूनिट बिजली मुफ़्त देने जैसे वादे प्रमुख थे। ऐसे ही वादों ने कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक में सत्ता दिलाई। इसी प्रकार दिल्ली में बिजली पानी शिक्षा व स्वास्थ्य की मुफ़्त घोषणा कर अरविंद केजरीवाल सत्ता में आये।और यही 'रेवड़ी वितरण फ़ार्मूला' पंजाब में भी लागू किया गया। पूर्व में भी किसानों का क़र्ज़ मुआफ़ करने, किसानों का बिजली बिल मुआफ़ करने के नाम पर विभिन्न पार्टियां वोट मांगती रही हैं।कहीं मुफ़्त तीर्थ यात्रा करने के नाम पर वोट तो कहीं मुफ़्त शौचालय बनाने के नाम पर,कहीं मुफ़्त आवास देने के नाम पर, कहीं मुफ़्त राशन के नाम पर तो कभी मुफ़्त वैक्सीन के नाम पर वोट माँगा जाता रहा है। मध्य प्रदेश में भी ऐसी कई 'रेवड़ी 'योजनायें चल रही हैं। गोया रेवड़ियां बांटने में कोई भी दल किसी से पीछे नहीं है। ऐसे मे यह तय करने का अधिकार आख़िर किसे है और यह कौन तय करेगा कि कौन सी योजना 'रेवड़ी वितरण ' की श्रेणी में आती है और कौन सी योजना जनता की वास्तविक ज़रुरत है ? परन्तु यह तो तय है कि चाहे वह 'रेवड़ी' हो या ज़रुरत की घोषणायें, सभी राजनैतिक दल इनसे चुनावी लाभ ही हासिल करना चाहते हैं।

तनवीर जाफ़री  संपर्क - 9896219228
                                                                                  

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