शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

मसलहत_या_बुज़दिली

एक आदमी की "गाड़ी" गांव के क़रीब ख़राब हो गई, 
उसने सोचा कि गांव से किसी से मदद लेता हूँ। 
वह जैसे ही गांव में दाख़िल हुआ तो उसने देखा 
एक बूढ़ा शख़्स चारपाई पर बैठा है 
और उसके क़रीब "मुर्गियां" दाना चुग रही हैं। 
उन मुर्गियों में एक ”बाज़” का बच्चा भी है 
जो मुर्गियों की तरह दाने चुग रहा है। 
वह हैरान हुआ और उस बूढ़े शख़्स से कहने लगा कि 
"ये कैसे "ख़िलाफ़-ए-क़ुदरत" मुमकिन हुआ कि 
एक "बाज़" का बच्चा ज़मीन पर मुर्गियों के साथ दाने चुग रहा है?

तो उस बूढ़े शख़्स ने कहा- 
"दरअसल ये बाज़ का बच्चा सिर्फ़ एक दिन का था, 
जब ये पहाड़ पर मुझे गिरा हुआ मिला, 
मैं इसे उठा लाया ये ज़ख्मी था 
मैंने इसको मरहम पट्टी करके 
इसको मुर्गी के बच्चों के साथ रख दिया, 
जब इसने पहली बार आंखे खोली 
तो इसने ख़ुद को मुर्गी के चूजों के दरमियान पाया। 
ये खुद को मुर्गी का चूज़ा समझने लगा 
और दूसरे चूजों के साथ-साथ इसने भी दाना चुगना सीख लिया।

उसने बूढ़े शख़्स से दरख़्वास्त किया कि 
"ये बाज़ का बच्चा मुझे दे दें तोहफ़े के तौर पर 
या इसकी क़ीमत ले लें, 
मैं इस पर तहक़ीक़ करना चाहता हूं"
बूढ़े शख़्स ने बाज़ का बच्चा को 
उस शख़्स को तोहफ़े के तौर पर दे दिया। 

उसने अपनी गाड़ी ठीक करवा कर अपने घर आ गया। 
वह रोज़ाना बाज़ के बच्चे को छत से नीचे फेंक दिया करता, 
मगर बाज़ का बच्चा मुर्गी की तरह 
अपने परों को सुकड़ कर गर्दन उसमें छुपा लेता था। 
वह रोज़ाना बाज़ के बच्चे को अपने सामने टेबल पर बिठाता 
और कहता "तू बाज़ का बच्चा है, मुर्गी का नही अपनी पहचान कर" 

आख़िरकार वह शख़्स 
एक दिन बाज़ के बच्चे को लेकर 
एक बुलंद तरीन पहाड़ पर चला गया 
और उसे कहने लगा,
"ख़ुद को पहचानने की कोशिश करो तुम बाज़ के बच्चे हो" 
और इस शख़्स ने ये कहकर बाज़ के बच्चे को 
पहाड़ की बुलंदी से नीचे फेंक दिया। 
बाज़ का बच्चा डर गया 
और उसने मुर्गी की तरह अपनी गर्दन को झुका कर 
पैरों को सुकड़ लिया और आंखे बंद करली, 
थोड़ी देर बाद उसने आंखे खोली तो 
उसने देखा कि ज़मीन तो अभी बहुत दूर है, 
तो उसने अपने पर फडफ़ड़ाएं 
और उड़ने की कोशिश करने लगा।

जैसे कोई आपको दरिया में धक्का दे दे तो 
आप को तैरना नहीं भी आता तो भी आप हाथ पांव मारेंगे, 

थोड़ी ही देर में बाज़ का बच्चा 
अपने आप को बेलेंस करने लगा 
क्योंकि बाज़ में उड़ने की सलाहियत खुदा ने रखी हुई है। 
थोड़ी ही देर में वह ऊंचा उड़ने लगा। 
वह ख़ुशी से चीखने लगा 
और ऊपर और ऊपर जाने लगा, 
कुछ ही देर में वह उस शख़्स से भी ऊपर निकल गया 
और नीचे निगाहें करके उसका एहसान मंद होने लगा।

तो उस शख़्स ने कहा, 
"ऐ बाज़ मैने तुझे तेरी शनाख्त दी है, 
अपने पास से कुछ नहीं दिया 
ये कमाल और सलाहियतें तेरे अंदर मौजूद थी, 
मगर तू बेख़बर था"
यही मामला हम लोगो के साथ है, 
हमारी एक ख़ास शिनाख्त है, 
हम एक ख़ास उम्मत के रकान हैं। 
हम एक ऐसी क़ौम से हैं 
जिसने सारी दुनिया पर "हुकूमत" की है। 
हमारे अंदर "रब्बुल इज़्ज़त" ने बेपनाह सलाहियतें रखी हैं।

मगर मसला ये है कि 
हमारे इर्दगिर्द बेशुमार मुर्गियां हैं, 
जो बताती हैं कि तुम "सुपर पावर" नहीं हो, 
सुपर पावर कोई और है। 
हमारे इर्दगिर्द बेशुमार मुर्गियां हैं, 
जो मसलहत के नामपर लगातर बुज़दिल व कमज़ोर बनाती हैं!

"अगर आज हम अपने आप को पहचान लें, 
तो हम बहूत कुछ कर सकते हैं"

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