गुरुवार, 28 नवंबर 2013

आम आदमी पार्टी कैसी राजनीतिक संस्कृति बना रही है

अवधेश कुमार

राजनीति में कौन भ्रष्ट है कौन सदाचारी इसका प्रमाण पत्र देना इतना आसान नहीं है जितना हम समझते हैं। किंतु आम आदमी पार्टी के नेता अपनी स्थापना के पहले से आरोपों का पुलिंदा लेकर जिस तरह से दहाड़ें मारते थे उनसे उनकी छवि आम जन मानस में अन्यों से अलग ईमानदार, नैतिक, जन सरोकारों को समर्पित ...व्यक्तित्वों की स्थापित हो रही थी। जो लोग किसी दल से जुड़े नहीं या उसके कट्टर समर्थक नहीं, उनको यह उम्मीद बंधी कि इनका राजनीति में आना अलग राजनीतिक संस्कृतिक की संभावना पैदा करेगा। जन लोकपाल के नाम पर अन्ना हजारे के सारे प्रचारित अनशन अभियानों के पीछे और आगे के चेहरे ये ही थे और बाद में तो खुद इनने ही अनशन किया। अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया ने स्वयं दिल्ली के बढ़े हुए बिजली बिल तथा अन्य अनियमितताओं के खिलाफ दो सप्ताह का अनशन किया। यह राजनीति में लंबे समय बाद दिखा। जनता की मांगों को लेकर इस ढंग से संघर्ष में अपने को झोंकने की खत्म होती दलीय राजनीतिक संस्कृति में यह किसी के लिए भी नई सुबह की उम्मीदांे वालीं थीं। गांधी जी के नमक सत्याग्रह के दिन से अपने संघर्ष की घोषणा करके इनने यह संदेश भी दिया कि वे केवल चुनावी युद्ध के लिए नहीं, राजनीति को बदलने के लिए आए हैं। क्या आज हम यह कह सकते हैं कि आम आदमी पार्टी या आप वाकई राजनीति में बेहतर बदलाव या नई राजनीतिक संस्कृति की वाहक बनी हुई है?

अभी आप के 9 नेताओं के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया। उसमें कुछ बातें बिल्कुल साफ दिख रहीं थीं। हालांकि आज समाज और राजनीति में जो जीवन शैली है, उसमें अनेक ऐसे विचलन जो पहले अस्वीकार्य थे, स्वीकार्य हो गए हैं। यह समाज का ऐसा दौर है जिसमें किसी की गलत कमाई या राजनीति में गलत तरीके से धन पाने या चुनाव में अघोषित तरीके से खर्च करने की बात उठाने पर कह दिया जाता कि इसके बगैर कोई उपाय नहीं है और सब ऐसा करते हैं। यह स्थिति का सरलीकरण है, जो पूरा सच नहीं है। पर मान लीजिए सच हो भी तो आप के लोग तो बाकी सारे दलों को भ्रष्ट, चोर साबित करते हुए नई नैतिक, ईमानदार, शतप्रतिशत पारदर्शी आचरण का डंका पीटते आए थे। अगर उनके नेताओं को चुनाव खर्च के लिए या पेशे में अपारदर्शी धन लेने के लिए तैयार होते दिखाया गया या वैसा संदेह भी हुआ तो उसका आचरण क्या होना चाहिए था? इन्होंने उनको केवल पाक साफ करार नहीं दिया, स्टिंग करने वाली कंपनी तथा उसे चलाने वाले चैनलों पर मुकदमा करने की धमकी दे दी। अब सबको उनके खिलाफ षडयंत्र में शामिल होने तथा मानहानि करने के मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। प्रशांत भूषण वकील हैं और वे मामलों को हमेशा कानूनी नजरिए से देखते हुए न्यायालय को अपनी लड़ाई का साधन बनाए हुए हैं। उनके लिए ऐसा मुकदमा सामान्य बात है। वैसे स्टिंग का टेप चुनाव आयोग के पास भी चला गया है और उसका फैसला भी आएगा।  

लेकिन जरा याद करिए- यही आप के नेता जब भाजपा अध्यक्ष नितीन गडकरी के खिलाफ आरोपों का पुलिंदा लेकर आए थे और इनकी पत्रकार वार्ता को चैनलों ने लाइव किया। गडकरी को इस कारण दोबारा अध्यक्ष पद प्राप्त नहीं हुआ जो कि निर्धारित था। किंतु भाजपा ने किसी पर मानहानि की धमकी न दी। भाजपा के पास भी एक से एक नामी वकील हैं। उनने किसी चैनल को धमकाया नहीं। कांग्रेस ने भी राॅबर्ट बाड्रा के खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन किया, इनकी आलोचना की, लेकिन कभी चैनलों एवं समाचार पत्रों को मुकदमे की धमकी न दी, ऐसा ही सलमान खुर्शीद के मामले में हुआ। रिलायंस के मुकेश अंबानी के खिलाफ इनने मामला लाया, उनके तो चैनलों में शेयर भी हैं, फिर भी सबने इसे चलाया, लेकिन धमकी किसी को नहीं आई। ये कहते हैं कि वे तो मोटी चमड़ी वाले हैं, भ्रष्ट हैं इसलिए ऐसा नहीं करते, हम उनसे अलग संवेदनशील हैं, इसलिए हमें ऐसा करना पड़ रहा है। किंतु यह बात गले नहीं उतरती। गडकरी के खिलाफ जांच में कुछ नहीं आया। वे चाहें तो मुकदमा कर सकते थे,उनने नहीं किया। 

जंतर-मंतर पर अयोजित कार्यक्रम में जिस तरह आम आदमी पार्टी के नेताओं ने विरोधियों के लिए कुत्ते कमीने से लेकर पुरस्कारों को जूते की नोंक पर रखने जैसी भाषा का प्रयोग किया उसके बाद कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। वस्तुतः आज हम चाहें या न चाहें यह स्वीकार करना होगा कि आप ने अपने विरोध या आलोचना के प्रति अस्वीकार्य असहिष्णुता प्रदर्शित किया है। यह दुःखद है। अगर आप राजनीति ही नहीं सार्वजनिक जीवन में हैं तो आपको आलोचना, निंदा, आरोप या स्टिंग झेलने की आदत डालनी होगी। आप के एक नेता इसे पत्रकारिता के न्यूनतम मापदंडों के विपरीत बताने लगे। उनने किसी मीडिया हाउस से नहीं पूछा कि मूल 18 घंटे की टेप देखी गई या नहीं। ऐसे भी चैनल हैं जिनने मूल टेप देखा है और उनका दावा है कि गलत कुछ भी नहीं दिखाया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दूसरों पर आरोप लगाते हुए राजनीति में उतरने वाले अरविन्द केजरीवाल और उनके साथी इस तरह व्यवहार कर रहे हैं। आप यदि यह कहें कि हमें अपने साथियों पर विश्वास है तो यह आपका अधिकार है और उसकी आलोचना केवल नैतिकता और सदाचार की स्वयं इनकी कसौटी पर आलोचना होगी और हो भी रही है। लेकिन यह व्यवहार ऐसा है मानो हमें यह धमकी दी जा रही है कि आगे आपने ऐसे स्टिंग या आरोप दिखाएं तो आप मुकदमा झेलने के लिए तैयार रहिए। आज कम से कम इस मायने में कांग्रेस और भाजपा को तो इससे बेहतर आचरण वाला कहा जा सकता है। आपको यदि आम आदमी पार्टी के सदस्यों की परीक्षा लेनी है तो जरा उनकी आलोचना कर दीजिए। आप पर तीखे हमले आरंभ हो जाएंगे, आप पर बिना सिर पैर के आरोप लगेंगे, आपके खानदान तक ये पहुंच जाएंगे, आपको किसी पार्टी का दलाल या खरीदा गया व्यक्ति, अखबार, चैनल या संस्था का आदमी घोषित कर दिया जाएगा। उनके विरोध में यदि आप कोई पत्रकार वार्ता करते हैं और आप बड़े दलों के नेता नहीं हैं, तो उनके समर्थक वहां पहुंचकर हंगामा करेंगे। यह उनका आम व्यवहार हो गया है।
अब जरा दूसरे कुछ आचरणों पर नजर दौड़ा लीजिए। आप की ओर से एक पर्चा जारी किया गया है जिसमें मुसलमानों से विशेष तौर पर आप को वोट देने की अपील है। यह वैसे ही है जैसे अन्य गैर भाजपाई दल करते हैं। इसमें बाटला हाउस मुठभेड़ पर संदेह प्रकट किया गया है। गुजरात के इशरत जहां मुठभेड़ का भी जिक्र करते हुए मोदी एवं भाजपा पर हमला है। इस पर उन्हें चुनाव आयोग का नोटिस मिल चुका है। अगर आम आदमी पार्टी भी मजहब और समुदाय के नाम पर वोट मांगती है तो फिर आपमें और अन्य दलों की संस्कृति में अंतर क्या है? इसके पूर्व अरविंद केजरीवाल ने बरेली में दंगा भड़काने के आरोपी मौलाना तौकीर रजा से मुलाकात कर दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार में मदद और समर्थन मांगा था। तौकीर रजा की अपनी एक राजनीतिक पार्टी इत्तेहाद मिल्लत कौंसिल (आईएमसी) है, जिसने 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक स्थान पर विजय पाई थी। मार्च 2010 में बरेली में हुए दंगों को भड़काने के आरोप में तौकीर रजा खान की गिरफ्तारी हुई थी। तौकीर के रिहा होने के तुरत बाद दंगे फिर भड़के थे। तस्लीमा और जॉर्ज बुश के खिलाफ फतवा जारी करने वालों में भी तौकीर रजा का नाम शामिल था। इसकी तीखी आलोचना हुई।
मुसलमान हों या हिन्दू किसी से मत मांगने या उनके धार्मिक नेताओं से मिलने और मदद लेने में समस्या नहीं है। किंतु यदि आधार उस मजहब या समुदाय का मत पाना तो यह आपत्तिजनक है और यह कांग्रेस, सपा, राजद, जद यू आदि के समान चरित्र है। इसमें एक और बात है। आम आदमी पार्टी को आम आदमी के माध्यम से राजनीति को बदलना था और खास को भी आम बनाना था। यह तो खास के माध्यम से आम तक पहुंचने की अन्य राजनीतिक दलों की विकृत व्यवहार के समतुल्य है। इससे साफ हो जाता है कि आप के नेताओं ने भले नई राजनीतिक संस्कृति एवं आम जनता वाले दल व सत्ता का लक्ष्य घोषित किया, उनकी सोच और व्यवहार उन्हें भी आम दलों की कतार में शामिल कर रहा है।
अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर काॅम्प्लेक्स, दिल्ली-110092, दूरभाष-1122483408, 09811027208  


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