अवधेश कुमार
लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले भाषण ने देश को लंबे समय बाद झकझोड़ा है। अगर आज यह प्रश्न किया जाए कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से जो कुछ कहा उसमें उन्हांेेने देश की उम्मीदों को पूरा किया तो आपका उत्तर क्या होगा? कांग्रेस या अन्य कई विरोधी दल उसकी मीन मेख निकालने में लगे हैं। जो भाषण में नहीं था उसके बारे में पूछ रहे हैं, पर यह जनता की आवाज नहीं है। आम जनता की सामूहिक आवाज यही है कि लंबे समय बाद किसी प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अनुरुप देश को उत्प्रेरित करने वाला ऐसा भाषण दिया है जिससे सुनने के लिए देश तरस गया था। आखिर स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का संबोधन कैसा होना चाहिए? अभी तक हम सरकारों द्वारा नीरस कार्यवृत्त सुनते-सुनते उब चुके थे। नौकरशाहों द्वारा तैयार भाषणों की नीरसता से स्वतंत्रता दिवस की प्रेरणा गायब रही है। अटलबिहारी वाजपेयी जैसा प्रखर वक्ता भी लालकिला पर जाते ही कागज के पूर्जे को पढ़ने लगते थे और इतिहास का सबसे छोटा 22 मिनट का भाषण देने का रिकॉर्ड बना दिया। मनमोहन सिंह तो वैसे ही सरकारी सेवक रहे हैं। उनके भाषण में हम वैसी प्रेरणा और जज्बात की उम्मीद भी नहीं कर सकते थे।
जरा पिछले दो दशक के भाषणों को याद कर लीजिए, या उतना पीछे न जाना चाहें तो पिछले दो भाषण को ही आधार बना लीजिए। क्या देश के अंदर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का भाषण सुनने तक की रुचि रह गई थी? अगर पत्रकारों को इस पर टिप्पणी नहीं करनी हो तो वे भी नहीं सुनना चाहते ऐसा भाषण हो गया था। एक परंपरागत औपचारिकता की पूर्ति जैसा क्षरण का ग्रास बन चुका था हमारे स्वतंत्रता दिवस का संबोधन। इस परिप्रेक्ष्य में यदि आप विचार करेंगे तो यह मानने में कोई हिचक नहीं होगी कि मोदी ने इस नीरसता की परंपरा को खत्म किया है। स्वतंत्रता दिवस! यह नाम ही अपने आपमें हमारे अंदर रोमांच पैदा करना चाहिए, देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ बलि चढ़ा देने वाले महापुरुषों के प्रति केवल सम्मान नहीं वैसे ही जीवन जीने की प्रेरणा मिलनी चाहिए और उन महापुरुषों ने स्वतंत्र भारत के लिए जो भी सपने देखेें उनको पूरा करने के लिए अपनी पूरी क्षमता और उर्जा लगाने का देश का सामूहिक स्वभाव बनना चाहिए। वह भी इस संकल्प के साथ कि जब तक उस लक्ष्य को पा नहीं लेते चैन से नहीं बैठंेगे, विश्राम नहीं करेंगे। प्रधानमंत्री के भाषण में इसके लिए कुछ सूत्र तो होना ही चाहिए तथा यह आत्मविश्वास पैदा होना चाहिए कि हां, वाकई हम ऐसा कर सकते हैं। मोदी के या किसी प्रधानमंत्री के भाषण की कोई कसौटी हो सकती है तो यही।
वैसे मोदी की खासियत रही है कि वे अपने भाषणों से तात्कालिक संवेग और गहरी आशा की रोशनी पैदा कर देते हैं। इसलिए यह प्रश्न उठ रहा था कि क्या वे आज लालकिला से इसी तरह का सामूहिक राष्ट्रीय जज्बा पैदा करने मे ंसफल होंगे? यह कहना होगा वाकई वे इसमें सफल हुए हैं। यानी इन कसौटियों पर खरे उतरे हैं। स्वतंत्रता दिवस का भाषण आपकी सरकार का विज्ञापन बन जाए यह राजनीति के अधःपतन का ही प्रमाण था। जो सच है उसे हमें स्वीकारना ही चाहिए, अन्यथा भारत की पता नहीं और क्या दुर्गति होगी! यह मानना होगा कि इस अधःपतन से मोदी ने उबारने की शुरुआत कर दी है। हालांकि यह उनका पहला भाषण था और सरकार भी केवल ढाई महीने की, इसलिए उनके पास उपलब्धियों के नाम पर ज्यादा नहीं था। सो इसे स्थायी मान लेना जल्दबाजी होगी। वैसे सरकार उपलब्धियों की चर्चा करे उसमंें बुराई नहीं है। आखिर सरकार की उपलब्धियां मतलब देश की उपलब्धियां ही तो है। इससे भी देश में आत्मगौरव का भाव पैदा होता है और दुनिया में भी धाक जमती है। पर किसी तरह यह सरकार का विज्ञापन न बने। जो कुुछ भी बोला जाए वह उन कसौटियों के दायरे मंें हो जो हमने उपर लिखी है और स्वतंत्रता दिवस के लंबे संघर्ष, बलिदान और त्याग की कथाओं को ध्यान में रखते हुए।
यहां उन सारे कार्यक्रमों, योजनाओं, अपीलों, आह्वानों की चर्चा संभव नहीं है, लेकिन मोदी के भाषण को हम मोटामोटी सात पहलुओं में बांट सकते हैं। पहले पहलू में हम उनके आजादी के लक्ष्य और उन दौरान देखे गए सपनों को पूरा करने की प्रेरणा की बातों को रख सकते हैं। इसमें उन्होंने गांधी जी, अरविन्द घोष, विवेकानंद..... आदि का नाम लिया और उनको उद्धृत किया। दूसरे पहलू में उन्होेंने यह बताया कि आज नवजवानों को भगत सिंह की तरह फांसी पर चढने की आवश्यकता नहीं है, पर विकास एव सुशासन को जनांदोलन का रुप देना जरुरी है। यह तभी संभव है जब हम आजादी के महत्व को समझें और स्वतंत्रता सेनानियों के सपने के अनुसार कार्य करें। तीसरे पहलू में हम उनके शासन सुधार के सपने को रख सकते हैं। इसमें दो बातें प्रमुख थीं। एक, सरकार के विभाग ही एक दूसरे से लड़ते है, मुकदमे करते हैं और खजाने का पैसा खर्च करते हैं। इसको तोड़ने की शुरुआत हुई है। दूसरे, उन्होंने निजी नौकरी को जॉब एवं सरकारी को सर्विस यानी सेवा का उदाहरण देते हुए बताया कि सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों मंे इस सेवा की भावना को पैदा करना होगा। वस्तुतः ंअंग्रेजों के जमाने से ये अधिकारी कर्मचारी अंग्रेजी में तो पब्लिक सर्वेंट कहलाते हैं, पर व्यवहार मंें ये पब्लिक मास्टर की तरह काम करते हैं। यानी जनता के सेवक नहीं। मोदी ने जो कहा अगर वह साकार हो जाए तो यकीन मानिए महाक्रांति हो जाएगी। प्रशासकीय बदलाव के लिए इतने ज्यादा नियम कानून बनाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। पर यह आसान नहीं है। चौथे पहलू में हम विकास की उनकी सोच और नई घोषणाओं को रखते हैं। इनका हम पूरा उल्लेख नहीं कर सकते। पर सांसद आदर्श ग्राम योजना जिसमें एक-एक सांसद एक गांव को आदर्श बनाने से शुरुआत, तथा एक वर्ष के अंदर सभी विद्यालयों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय का निर्माण करने के संकल्प के महत्व को समझना कठिन नहीं है।
लेकिन इसके आगे के पहलुओं में हम एक नेता और शासक से ज्यादा मोदी को समाज सुधारक के रुप में देख सकते हैं। मसलन, राजनीतिक व्यवहार में बदलाव। उन्होंने सारे पूर्व सरकारों, पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ वर्तमान संसद के संचालन के लिए विपक्ष के सभी नेताओं के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हम बहुमति से नहीं सहमति से सरकार चलाना चाहते हैं। वास्तव मंे आज हमारी राजनीति राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की जगह परस्पर घृणा और दुश्मनी में बदल गई है। अगर मोदी की पहल और अपील सफल हुई तो एक नए राजनीतिक व्यवहार की हम उम्मीद कर सकते हैं। इसी तरह छठे पहलू में हम सामाजिक व्यवहार में बदलाव वाली बातों को रख सकते हैं। लड़कियों के संरक्षण, भू्रण हत्या के विरुद्ध, माता-पिता से एवं डॉक्टरों से भी अपील हमने लाल किले से पहली बार सुना है। यही नहीं कोई प्रधानमंत्री पहली बार यह बोल रहा है कि आखिर बलात्कार करने वाला किसी का तो बेटा ही है। माता पिता क्यों नहीं उससे लड़कियों की तरह पूछते कि तुम कहां जा रहे हो। इसी तरह हिंसा और आतंकवाद में लगे नवजवानों को हिंसा छोड़ने की स्वयं अपील के साथ माता पिता से भी आगे आकर बच्चोें से पूछने अपील उनने की। यह बहुत बड़ी बात है। आम तौर पर सरकारें बलात्कार और हिंसा के खिलाफ कानूनों, सरकारी सख्ती की बातंें करतीं हैं, पर बगैर समाजिक जागरण के यह संभव नहीं हो सकता। मोदी की अपील सामाजिक जागरण वाला था। इसमें टूटते परिवार को फिर से मजबूत करने का भाव प्रमुख था। सातवें पहलू में हम निजी व्यवहार में बदलाव को ले सकते हैं। यानी किसी काम में इसमें मेरा क्या की भावना से हटकर आजादी के सपनों के अनुसार देश कल्याण के भाव से काम करें। नवजवानों से यह अपील कि आपलोग यह देखें कि हम कितने चीजें आयात करते हैं और यह तय करें कि उनमें से एक चीज का हम उत्पादन करेंगे। अगर ऐसा कर दिया तो आयात पर हमारा जो खर्च होता है वह घटेगा और हम निर्यात करने वाले देश बन जाएंगे।
इस प्रकार कुल मिलाकर मोदी का भाषण नए सिरे से राष्ट्रीय पुनर्जागरण, सांस्कतिक-सामाजिक पुनर्जागरण के माध्यम से विकास एवं व्यापक बदलाव से भरा हुआ था। इसमें विदेश निवेश आदि के पहलू पर मतभेद की गुंजाइश है, पर वर्तमान राजनीति में तो बाजार अभिमुख अर्थनीति पर एकमत है। इसलिए उनके विरोध का कोई औचित्य नहीं हो सकता।
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