शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

सीलमपुर विधायक चौ. मतीन अहमद ने की पद यात्रा

संवाददाता

उत्तर पूर्वी दिल्ली।  सीलमपुर के  विधायक चौ. मतीन अहमद ने आज क्षेत्र स्थित ब्रह्मपुरी में गली नं. 1 से 6 तक की गलियों में पदयात्रा की। पदयात्रा के दौरान उन्होंने क्षेत्रीय निवासियों से संपर्क किया। इस मौके पर कांग्रेस नेता मकसूद जमाल,अनिल गौड, देवराज शर्मा, चौ. नत्थू सिंह,आबाद अहमद, बल्लू, त्रिलेाकचंद शर्मा, तेजू भाई,महिपाल सिंह,रवि कुमार, महेन्द्र पाली, समय सिंह, प्रशांत, विजय पाल, शेखर शर्मा, मुकेश शर्मा, सुरेन्द्र, विनोद,राजीव, पदम शर्मा, सोनू भाई, परशुराम रावत, राकेश शर्मा, दिनकर जी, मुख्तार सिद्दीकी, अबरार अहमद, रियाज अहमद, नदीम, मौ. जााकिर, अंसार, जुबीन, शकील मलिक, हाजी पप्पू सैफी, पप्पू चौधरी, रशीद केबिल वाले, शहिद चौधरी, हाजी सादिक अली, अकरम खेडा, रिजवान, शौकिन बेग, आरके शर्मा के अलावा महिला कांग्रेस नेता गुड्डी गुप्ता सहित अन्य कार्यकर्ता मौजूद थे।

 

बापू भवन की ‘दुखिया मंजिल’

श्याम कुमार

किसी समय लखनऊ में सचिवालय के बापू भवन का प्रथम तल ‘दुखिया मंजिल’ बन गया था। उस समय मुलायम सिंह यादव मुख्यमन्त्री थे तथा मायावती के सभी खास सिपहसालार दुर्दिन झेल रहे थे व दुखी लोगों की श्रेणी में शामिल थे। उनमें से अधिकांश लोगों को बापू भवन के प्रथम तल पर कक्ष मिले हुए थे, इसलिए उक्त प्रथम तल बापू भवन की ‘दुखिया मंजिल’ हो गया था। उन दिनों बापू भवन के एक छोर पर रोहित नन्दन का कमरा था, जो अत्यन्त महत्वहीन विकलांग कल्याण विभाग के सचिव थे। वैसे, वहां उन्होंने काफी काम किया। मायावती के कार्यकाल में पूरे प्रदेश में रोहिन नन्दन का बड़ा दबदबा था। वह मुख्यमन्त्री मायावती की नाक के बाल एवं उनके प्रमुख सलाहकार माने जाते थे। रोहित नन्दन के बगल में सदाकान्त का कमरा था और वह भी एक महत्वहीन बैंकिंग विभाग के सचिव थे।

तीसरे वरिष्ठ अधिकारी हरभजन लाल बिरदी थे, जो अनेक बार शिखर-पदों पर आसीन रह चुके थे और अब सामान्य प्रशासन-जैसे महत्वहीन विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में दिन काट रहे थे। अगले कक्ष में चन्द्र नारायण दुबे थे, जो कुछ समय पूर्व तक झांसी मंडल में मंडलायुक्त रहे थे और वहां उनकी धमक थी। चन्द्र नारायण दुबे शान्त प्रकृति के थे एवं चुपचाप अपने दायित्वों का निर्वाह करते थे। जब वह झांसी में मण्डलायुक्त थे, वहां उन्होंने आयुक्त-आवास के बगल में गन्दगी से भरी एक बड़ी जमीन को व्यक्तिगत प्रयास से बड़े सुन्दर बालउद्यान के रूप में परिणत किया था। लखनऊ आने पर उन्हें संस्कृति-माफियाओं से ग्रस्त चले आ रहे संस्कृति विभाग का सचिव व निदेशक पद दिया गया था। इस विभाग में पहले से एक प्रमुख सचिव मौजूद होने के कारण वहां उनकी स्थिति ‘न’ के बराबर हो गई थी। उनके निकटवर्ती कक्ष में बैठने वाले गोपबन्धु पटनायक वैकल्पिक ऊर्जा विभाग में प्रमुख सचिव थे। विभाग सामान्य था, किन्तु उस विभाग में भी उन्होंने काफी काम किया। बाद में वह और भी दुर्भाग्य के शिकार हुए। जब मायावती मुख्यमन्त्री बनीं तो उन्हें दिल्ली से वापस लखनऊ ले आईं। उस समय आशा की जा रही थी कि लखनऊ में गोपबन्धु पटनायक सत्ता के एक प्रमुख स्तम्भ बनेंगे, लेकिन वह गच्चा खा गए और अवकाश ग्रहण करने तक उन्हें राज्यपाल के प्रमुख सचिव के रूप में दिन काटने पड़े।

गोपबन्धु पटनायक के बगल में अशोक कुमार का कमरा था, जो उस समय होमगार्ड विभाग के सचिव थे। एक तो यह विभाग वैसे ही महत्वहीन माना जाता है, उस पर उनके ऊपर प्रमुख सचिव के रूप में तेजतर्रार आई.ए.एस. अधिकारी हरीश चन्द्र विराजमान थे। अशोक कुमार मायावती के सबसे अधिक वफादार अधिकारियों में माने जाते रहे हैं। वर्तमान समय में लोग उन्हें किस्मत का बहुत धनी कहते हैं, क्योंकि अखिलेश-सरकार में भी उनका मायावती के समय वाला वही जलवा है। वह अत्यन्त सुखदायी विभाग में तैनात हैं, जहां मन्त्री का पूरा वरदहस्त उन्हें प्राप्त है। अशोक कुमार के बगल में कुंवर फतेह बहादुर का कक्ष था। सर्वविदित है कि वह मायावती की आंख के तारे एवं सत्ता की अपार शक्ति से युक्त रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के उस मुख्यमन्त्रित्व काल में वह भी ‘दुखिया मंजिल’ के एक कक्ष में एकान्तवास कर रहे थे।

अगला कमरा शशांक शेखर सिंह का था, जो बार-बार सत्ता के उत्थान-पतन के शिकार होते रहे थे। कभी उनकी प्रदेश भर में तूती बोली तो कभी उन्होंने अपने फाइलविहीन सुनसान कक्ष में समय काटा। मायावती का पिछला मुख्यमन्त्रित्व काल शशांक शेखर के जीवन का स्वर्णकाल था। उस समय वह स्वयं में ‘उत्तर प्रदेश सरकार’ बन गए थे। बड़े-बडे़ सूरमा आई.ए.एस. अधिकारियों को मैंने उनके समक्ष दण्डवत होते व भीगी बिल्ली बने देखा। मायावती के मुख्यमन्त्री पद से हटने के बाद लोगों में जिज्ञासा थी कि जो शशांक शेखर सिंह सत्ता का अपार सुख भोग चुके हैं, वह अब सत्ता के बिना कैसे रह पा रहे होंगे! सम्भवतः इस सदमे में ही वह अधिक जीवित नहीं रह सके। शशांक शेखर का व्यवहार आमतौर पर बड़ा व्यवहारकुशल एवं चुम्बकीय आकर्षण वाला होता था। उदाहरणार्थ, मेरी वरिष्ठता का वह इतना सम्मान करते थे कि जब कभी मैं उनसे मिलने जाता था तो वह विदा होते समय उठकर मेरे लिए दरवाजा खोलते थे।

(श्याम कुमार)

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