गुरुवार, 23 जुलाई 2015

इस सरेआम हत्या से उठते सवाल

 

अवधेश कुमार

नई दिल्ली का मीनाक्षी हत्याकांड राष्ट्रीय बहस का मामला हो गया है। दिल्ली में किसी की सड़क पर सैकड़ों लोगों के सामने चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी जाए, यह सामान्य कल्पना में भी नहीं आ सकता। देश की राजधानी की कानून व्यवस्था ऐसी नहीं हो सकती जिससे अपराधियों के अंदर पुलिस का भय न हो। 17 जुलाई को जब 19 वर्षीया मीनाक्षी अपने घर से सामान के लिए निकली तो उसे कतई यह इल्म नहीं रहा होगा कि उसका अंत इतनी बेरहमी से होने वाला है। दो युवकों द्वारा उसे सरेआम रोककर चाकुओं से गोदकर मार डालने की घटना किसी को सन्न कर सकता है। इस घटना ने राजधानी ही नहीं देश के सभी सोचने समझने वाले वर्ग को झकझोड़कर रख दिया है। लोगों की पहली पतिक्रिया यही है कि अगर दिल्ली में ऐसा हो सकता है तो फिर देश का कौन सा इलाका सुरक्षित होगा। खासकर लड़कियों या महिलाओं की सुरक्षा का प्रश्न फिर एक बार हमारे सामने उभरकर सामने आ गया है। इस घटना के तीन पहलू हैं- पुलिस या सुरक्षा व्यवस्था, ऐसे अपराधों की मानसिकता एवं अपराध के समय और बाद में समाज का व्यवहार।

आखिर कोई किसी लड़की को या लड़का को या किसी को उसके घर के बाहर इस तरह घेरकर कैसे गुण्डागर्दी कर सकता है। दो भाईयों जयप्रकाश उर्फ सन्नी और इलू ने जिस तरह उसे दबोचा, उसका बाल पकड़ा और चाकू मारना आरंभ किया इसका मतलब तो यही है कि उसे पुलिस या कानून का कोई भय नहीं था। वह लड़की एक बार जान छुड़ाकर भागी, फिर उसे पकड़ा गया, अगर न्यूनतम 20 चाकू भी उसे मारा गया तो इस बीच समय अवश्य लगा होगा। आनंद पर्वत थाना वहां से दूर नहीं है, फिर पीसीआर की वैन भी आसपास होगी, बिट का कान्सटेबल होगा। 20 मिनट से ज्यादा सब कुछ होता रहा और पुलिस वहां नहीं पहुंच पाई तो इसका अर्थ क्या है? 20-25 मिनट में तो कहीं किसी के साथ कुछ भी हो जा सकता है? दिल्ली पुलिस कमीश्नर बी एस बस्सी पुलिस का केवल बचाव कर रहे हैं। उनको इस बात की पड़ताल करवानी चाहिए कि आखिर आनंद पर्वत थाने की पुलिस की चूक है या नहीं। आनंद पर्वत सहित दिल्ली के अनेक क्षेत्र हैं जहां पुलिस पर सरेआम नशा का व्यापार करवाने, जुए और सट्टेबाजी करवाने से लेकर देह व्यापार तक कराने का आरोप हैं। झुग्गी झोपड़ी एकता मंच ने इसके खिलाफ दिल्ली में कई धरना प्रदर्शन किया है। दिल्ली पुलिस आयुक्त से लेकर उप राज्यपाल तक को ज्ञापन दिया है।

जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनके अनुसार दो वर्ष पहलें लड़की ने आनद पर्वत थाना में मामला दर्ज करवाया था। कहा जाता है कि जयप्रकाश और इलू ने उसके कपड़े फाड़ दिए थे। तेजाब फेंकने की धमकी दी थी। पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने के बजाए शांति भंग करने का कलंदरा बनाकर मामले को रफादफा कर दिया था। एक बार और उसकी मां पुलिस थाने फिर शिकायत दर्ज कराने गई, पर पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। आज अगर उसकी इस तरह बेरहमी से हत्या हुई तो इसमें पुलिस का दोष कैसे नकारा जा सकता है? अगर पुलिस ने आरंभ में इस पर उचित कार्रवाई की होती तो यह वारदात नहीं होती। आखिर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इतने सख्त कानून बने हुए हैं। इसमें पुलिस के हाथ कहीं बंधे नहीं है। इसलिए पुलिस को हम दोषमुक्त नहीं कर सकते। यह स्थिति एक जगह की नहीं हो सकती। अब हत्या के बाद पुलिस ने दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया है, चाकू मिल गया है तथा सामने कुछ सीसीटीवी फुटेज भी मिले हैं। मामले ने जितना तूल पकड़ा है उससे इनको सजा मिलनी निश्चित हो गई है। किंतु अगर पुलिस ने आरंभ में कार्रवाई की होती तो न मीनाक्षी मरती न ये दो नवजवान इस सीमा तक अपराध को प्रवृत्त होते।

कई बार पुलिस की भूमिका से गैर अपराधी प्रवृत्ति के दिग्भ्रमित लोगों को भी अपराध का प्रोत्साहन मिल जाता है। उस लड़की के साथ अगर जयप्रकाश या दोनों भाई छेड़छाड़ करता था तो उसका इरादा समझ में आने वाला था। लड़की के घर की हालत देखिए। उसका एक छोटा भाई है, मां है और बीमार पिता। परिवार चलाने के लिए वह किसी निजी कंपनी में नौकरी करती थी। जाहिर है, परिवार का कमजोर होना भी मनचलों को लड़कियों के प्रति अपराध का दुस्साहस प्रदान करता है। अगर वह संपन्न परिवार की होती, उसके पिता स्वस्थ होते, भाई बड़ा होता तो ये शायद ही उसे छेड़ने का दुस्साहस कर पाते। वह लड़की उस परिवार की अभिभावक, संरक्षक, पालक सब थी। अब उस परिवार का क्या होगा? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने परिवार से मुलाकात कर मुआवजा के तौर पर 5 लाख रुपये देने की घोषणा की। यह एक छोटा आर्थिक संबल उनके लिए हो सकता है। यदि जानमाल की रक्षा की जिम्मेवारी राज्य की है तो फिर किसी की जान जाती है तो राज्य को अपराधी को सजा दिलाने के साथ कुछ मुआवजा तो देना ही चाहिए। यह एक मानवीय कदम के साथ राज्य के दायित्व को हल्का निर्वहन भी है।

हम यहां दिल्ली सरकार बनाम केन्द्र सरकार की राजनीति में नहीं पड़ना चाहते। हम बस्सी बनाम केजरीवाल के वाद संवाद में भी नहीं जाना चाहते। हम ऐसी राजधानी जरुर चाहते है जहां इस तरह सरेआम अपराध का दुस्साहस कोई अपराधी न करे। उसे कानून का भय हो। यह भय का उदाहरण नहीं है। लेकिन यहां सबसे शर्मनाक और दिल दहलाने वाला रवैया समाज का आया है। वह लड़की चीखती रही, बच के भागी भी, हत्यारे सरेआम उसे पकड़कर पटकते और चाकू घोंपते रहे। उसकी मां उषा बचाने आईं तो उसे भी चाकू मारा। केवल एक नवजवान सामने आया, लेकिन वह भी इन दोनों के खूनी चाकू के सामने न टिक सका। साफ है कि अगर तमाशबीन बने सैकड़ों लोगों में से पांच दस लोग भी मुकाबले को आ जाते तो उसकी जान बच सकती थी। तो समाज का यह कैसा आचरण है? 

महानगरों और कस्बों में ऐसे ही अपराधी और दादा प्रवृत्ति वाले सरेआम किसी पर हमला करते हैं, वह चिल्लाता है, लोग देखते हैं, लेकिन सामान्यतःः उसे बचाने या मुकाबले के लिए नहीं आते। समाज में एक दूसरे से कटे होने, एकांगिता इसका मूल कारण है। पर इसे कहा तो जाएगा कायरता ही। कायर समाज कभी भी अपने को सुरक्षित नहीं कर सकता है। दुनिया की सक्षमतम पुलिस व्यवस्था भी ऐसे कायर, डरपोक और स्वार्थी समाज को रक्षित नहीं कर सकता। कोई यह क्यों नहीं सोचता कि आज जो दूसरे के साथ हो रहा है वह कल हमारे साथ भी हो सकता है। अरे, जीवन का एक दिन अंत होना ही है। जिस दिन अंत होना है उस दिन इसे कोई नहीं रोक सकता। हमारे यहां सारे धर्मग्रंथ निर्भीक होने की प्रेरणा देते हैं। इसमें मृत्यु से भी भयरहित होने की बात है, क्योंकि यह शरीर आया ही है मृत्यु के लिए तो उससे भय क्यों करना। यह भाव सामूहिक रुप से समाज में कौन पैदा करेगा? समाज की एकांगिता या निजताओं में सिमटे चरित्र को बदलकर लोगों को सामूहिक आचरण के लिए कैसे प्रवृत किया जाएगा? पुलिस का भ्रष्टाचार, उसकी आपराधिक गैर जिम्मेवारी का मामला अपनी जगह है, पर ये दो मूल प्रश्न है जिनका उत्तर हमे तलाशना होगा। नही ंतो पता नहीं कितनी मीनाक्षियां मारी जा रही हैं और मारी जातीं रहेंगी।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

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