शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

बंदिशें हटने के साथ जम्मू कश्मीर

 

अवधेश कुमार

जम्मू कश्मीर में पोस्ट पेड मोबाइल सेवाएं चालू हो चुकीं हैं। यह कदम साबित करता है कि सरकार की दृष्टि में 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने तथा राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू कश्मीर की स्थिति काफी सुधर गई है। पिछले 8 अक्टूबर को राज्यपाल ने घोषणा की कि 10 अक्टूबर से सैलानी प्रदेश में आ सकते हैं। राज्य प्रशासन ने सैलानियों के घाटी छोड़ने और वहां न जाने संबंधी अडवाइजरी को करीब 2 महीने बाद वापस ले लिया। अनुच्छेद 370 को खत्म करने से 3 दिन पहले 2 अगस्त को एक सिक्यॉरिटी अडवाइजरी जारी कर अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने की सलाह दी थी। इस एडवायजरी को वापस लेना जम्मू कश्मीर के अतीत और वर्तमान को देखते हुए बहुत बड़ी घोषणा है। इसका मतलब यह भी हुआ कि सुरक्षा समीक्षा में भी सकारात्मक संकेत मिले हैं। ऐसा नहीं होता तो राज्य प्रशासन सैलानियों को बुलाने का रास्ता प्रशस्त नहीं करता। इसी तरह सारे विद्यालय खोले जा चुके हैं। 24 अक्टूबर को बीडीसी चुनाव कराने का फैसला भी महत्वपूर्ण है। तो क्या यह मान लिया जाए कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख अब सामान्य होने के करीब है?

ऐसा मान लेना जल्दबाजी होगी। मोबाइल सेवाएं बहाल होते ही शोपियां से सेब लेकर राजस्थान जा रहे ट्रकपर हमला एवं चालक का मारा जाना तथा श्रीनगर में हथगोला फेंकना इसका प्रमाण है कि आतंकवादी अशांति के पूरे प्रयास करेंगे। लद्दाख मे तो कोई समस्या नहीं है किंतु जम्मू कश्मीर वर्षों से असामान्य राज्य रहा है और सीमा पार से आतंकवाद जारी रहने तथा अलगाववादियों को समर्थन देने तक उसका पूरी तरह सामान्य होना कठिन है। वहां के मुख्यधारा के नेताओं की भी यही रणनीति रही है कि कश्मीर को किसी तरह सामान्य राज्य न बनने दिया जाए ताकि केन्द्र पर उनका दबाव बना रहे एवं उनकी घटिया राजनीति और कुशासन पर खतरा पैदा न हो। दूसरी स्थिति में तो काफी बदलाव है, किंतु इसकी चर्चा आगे। आज की स्थिति यह है कि करीब 90 प्रतिशत पाबंदियां खत्म की जा चुकीं हैं। वस्तुतः आठ से 10 थाना क्षेत्रों के अलावा लोगों की आम गतिविधियों पर लगी पाबंदियां हट चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर में 16 अगस्त से ही पाबंदियां धीरे-धीरे हटाई जाने लगीं और सितंबर का पहला हफ्ता आते-आते अनेक हटा लिए गए। आंशिक रूप से 17 अगस्त को लैंडलाइन सेवाएं बहाल की गईं और 4 सितंबर को इसे पूरी तरह बहाल कर दिया गया। उसके बाद पोस्टपेड उपभोक्ताओं के लिए इनकमिंग मोबाइल सेवाएं बहाल की गई। आउटगोइंग मोबाइल सेवाओं पर रोक जारी थी जो हटा दी गई है। हां, मुक्त इंटरनेट बहाल करने में समय लगेगा। इंटरनेट से आतंकवादियों और उनके समर्थकों के बीच संपर्क का खतरा है। जब तक मोटा-मोटी निश्चिंतता नहीं हो जाती पूरी तरह इंटरनेट एवं प्रीपेड मोबाइल सेवा बहाल करने में समस्या है। हालांकि पर्यटकों की सुविधा के लिए पर्यटक स्थलों पर इंटरनेट सेवा बहाल की जा रही है। 

संचार सेवा को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर छाती पीटने वालों के दबाव में यदि सरकार काम करती तो अभी तक न जाने कितनी आतंकवादी घटनाएं घट जाती। जम्मू कश्मीर की स्थिति को देखते हुए इतना बड़ा कदम उठाने के पूर्व इस तरह के प्रतिबंध तथा इसमें बाधा बनने वाले नेताओ को ससम्मान नजरबंद या कैद करना आवश्यक था। इसी कारण जम्मू कश्मीर इस दौरान शांत रहा। पाबंदी का असर यह हुआ कि लंबे समय बाद एक भी व्यक्ति दो महीने से ज्यादा समय में आतंकवादी हमले का शिकार नहीं हुआ। इस बीच आठ आतंकवादियों को मारा गया, कई गिरफ्तार हुए। निस्संदेह, आम लोगों को ज्यादा परेशानियां हुईं लेकिन इसे प्रसव पीड़ा की तरह लिया जाना चाहिए। इस बीच आतकवादी संगठनों ने लोगों को डराने की कोशिश की। पोस्टर तग लगाए गए लेकिन उसके जवाब में भी पोस्टर लगे। 2008, 2010 और 2016 में आतंकवादियों ने अपनी बात न मानने पर हत्याएं कीं थी।

वैसे पाबंदियों को जिस तरह सैन्य आपातकाल के रुप में चित्रित किया गया वह सही भी नहीं था। सात अक्टूबर को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में 196 में से केवल दस थाना क्षेत्रों में ही धारा 144 लगी हुई है। मीडिया को प्रतिबंधित करने की बात भी सही नही है। राजधानी दिल्ली से गए पत्रकार वहां से रिपोर्ट करते रहे। इंटरनेट के कारण समस्या थी लेकिन वे पत्रकार ही बताते रहे कि मीडिया पर पांबंदी की बात गलत हैं। स्थानीय समाचार पत्र भी निकलते रहे। हां, 16 या 20 पृष्ठ के अखबार 10-12 पृष्ठ में आते रहे। घाटी के ज्यादातर अखबारों का भारत विरोधी, आतंकवादी, अलगाववादी समर्थक तेवर को देखते हुए ऐसी परिस्थिति में उन पर थोड़ी निगरानी आवश्यक थी। वैसे भी वहां के ज्यादातर अखबार या तो सरकार के परोक्ष मदद से निकलते हैं या अलगाववादी उनको वित्त उपलब्ध कराते हैं। कठिनाइयां थीं जो कि स्वाभाविक है लेकिन उसका चित्रण झूठ और अतिवाद पर आधारित था। उच्चतम न्यायालय में  एक याचिका जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय पहुुंच नहीं पाने की डाली गई तो एक बच्चों को नजरबंद करने की। ये दोनों आरोप गलत निकले और मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं को फटकार भी लगाई।

सरकार ने अपनी ओर से कुछ कोशिशें लोगों की कठिनाइयां दूर करने के लिए भी कीं। मसलन, बकरीद के दिन सामग्रियां पहुंचाने, राशन की कुछ सामग्रियों की आपूर्ति सुनिश्चित करने, सेब की खरीदारी करने या बाहर जाने के लिए ट्रकों की व्यवस्था, बीमारों को अस्पताल पहुंचाने आदि। सरकार ने 5000 करोड़ में घाटी का 50 प्रतिशत सेब खरीदने का ऐलान किया। पुलवामा के डीसी सैयद राशिद सेब बाजारों में पहुंचाने के लिए रोजाना 300 ट्रक का बंदोबस्त किया गया है। 3 सितंबर को अमित शाह ने दिल्ली मिलने आए पंचों और सरपंचों के लिए पुलिस सुरक्षा तथा 2-2 लाख रुपये का बीमा कवरेज देेने की घोषणा की।

अब आएं सबसे ज्यादा चर्चा वाले पहलू यानी नेताओं की नजरबंदी एवं कैद पर। सरकार ने करीब चार हजार लोगों को हिरासत में या नजरबंद रखा था। इनमें से करीब 700 लोग मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से संबंध रखते हैं। 17 सितंबर को  केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने जम्मू कश्मीर प्रशासन को कह दिया था कि कोई भी व्यक्ति चाहे वो कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, अगर वह कश्मीर में कानून व्यवस्था का उल्लंघन करता है या लोगों को भड़काने का प्रयास करता है तो उसके खिलाफ पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट (पीएसए) लगा दिया जाए। फारूक अब्दुल्ला को पीएसए के तहत हिरासत में ले लिया गया। इससे पहले वे करीब एक माह से भी ज्यादा समय तक नजरबंद थें। 370 पर भिन्न मत रखने वाले और भी कुछ लोगों पर पीएसए लगाया गया है। हालांकि राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं की रिहाई भी शुरू हो चुकी है। जम्मू प्रांत में मुख्यधारा के सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं को नजरबंदी से मुक्त कर दिया गया है। घाटी में नेताओं की पृष्ठभूमि और संवैधानिक परिवर्तन पर उनकी विचारधारा का आकलन करने के बाद रिहा करने की प्रक्रिया चल रही है। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस, माकपा और अवामी इत्तेहाद पार्टी से जुड़े करीब तीन दर्जन प्रमुख नेताओं को मुक्त कर दिया गया। हालांकि राज्य के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन और नौकरशाही छोड़ राजनीति में सक्रिय हुए शाह फैसल समेत कई नेताओं की रिहाई की संभावना नहीं है। तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उमर और महबूबा व कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं ने रिहाई के लिए बांड व अन्य प्रशासनिक शर्तों को मानने से इनकार कर दिया है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीए मीर को भी मुक्त कर दिया। जो जानकारी आ रही है प्रशासन नेताओं को कह रहा है कि ब्लौक विकास परिषद के चुनाव प्रक्रिया में किसी रुप में भाग लेने को इच्छुक लोग मुक्त हैं। इसके तहत भी काफी लोग मुक्त हुए है। हां, रिहा होने वालों से यह वचन लिया जा रहा है कि वो कोई भी ऐसी गतिविधि न करें, जिससे हालात बिगडऩे की आशंका हो। ऐसा होने पर उन्हें हिरासत में ले लिया जाएगा। बड़े नेता शर्त मानने को तैयार नहीं है इसलिए उनको रिहा नहीं किया जाएगा। अभी तक जो राजनीतिक व्यक्ति नजरबंद हैं या दूसरे राज्यों की जेलों में कैद हैं, उनसे दो बार पूछा गया है कि वे मुख्यधारा में लौटना चाहें तो सरकार उनकी पूरी मदद करेगी। वैसे नेता कुछ भी कहें घाटी की फिजां बदल रहीं हैं। 31 अगस्त को ही खबर आई कि जम्मू-कश्मीर से 575 युवा सेना में भर्ती हुए हैं।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408,9811027208

 

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/