श्याम कुमार
जिस प्रकार कोई भी रेल-दुर्घटना होने पर रेल मन्त्री व रेल
अधिकारियों के यह पिटेपिटाए बयान आया करते हैं कि ‘दोषियों को नहीं बख्शा जाएगा’, उसी प्रकार नगरों में अतिक्रमणों के बारे में प्रशासनिक अधिकारियों के ये
वाक्य प्रायः सुनने को मिलते हैं- ‘अतिक्रमणों व अतिक्रमणों के लिए जिम्मेदार
लोगों के विरुद्ध कठोर कदम उठाया जाएगा’। लेकिन अधिकारी इस प्रश्न का उत्तर कभी
नहीं देते कि उन्होंने अतिक्रमणकारियों एवं अतिक्रमण के लिए जिम्मेदार अपने विभाग
के अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध अब तक कब-कब और क्या-क्या दण्डात्मक
कार्रवाइयां की हैं? आजादी के बाद अब तक ऐसा ही हो रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय अनेक वर्षों से
अतिक्रमणों को पूरी तरह हटाने का बार-बार आदेश व निर्देश जारी कर रहे हैं और कह
रहे हैं कि सड़कें, पटरियां (फुटपाथ) एवं गलियां राहगीरों के लिए
हैं, न कि दुकानदारी के लिए। लेकिन सम्बन्धित विभाग केवल दिखावे की खानापूरी कर
न्यायालय को अतिक्रमण हटाने की भ्रामक एवं मिथ्या सूचना दे देते हैं। अब तो जैसे
विभागों व अफसरों को न्यायालय की अवमानना का डर ही नहीं रह गया है। स्थिति यह हो
गई है कि जब न्यायालय द्वारा अवमानना में कुछ बड़े अफसरों को जेल नहीं भेजा जाएगा, तब तक अतिक्रमण नहीं हटाए जाएंगे।
अतिक्रमण हटाने के बारे में कभी-कभी अधिकारी बड़े रोचक बयान
दे देते हैं। एक अधिकारी ने कहा- ‘अतिक्रमणों को सबकी सहमति से हटाया जाएगा। इस
कथन पर यह शेर फिट बैठता है- ‘इस सादगी पे कौन न हो जाएगा फिदा, लड़ते हैं मगर हाथ में तलवार भी नहीं।’ कल यह बयान भी आ सकता है कि चोरों, लुटेरों, अपहर्ताओं, हत्यारों आदि के
विरुद्ध उनकी सहमति से कार्रवाई की जाएगी। कुछ समय पूर्व लखनऊ में एक अधिकारी ने
बयान दिया था- ‘जमीन के नीचे बनी दुकानों का नागरिकों को बहिष्कार करना चाहिए, क्योंकि वहां उनके जानमाल का खतरा बना रहता है।’ बहुत खूब ! आप अवैध निर्माण
हटाने की जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं और अपनी जिम्मेदारी जनता के गले मढ़ रहे
हैं।
अतिक्रमणों ने न केवल लखनऊ को, बल्कि प्रदेश के
समस्त नगरों को बुरी तरह अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। पटरियों पर तो उनका पूरी
तरह कब्जा हो ही चुका है, सड़कंें भी बुरी तरह उनकी गिरफ्त में हैं। सड़कों
पर रंेग-रेंगकर यातायात चलता है तथा सर्वत्र जब-तब जाम लगा रहता है। अतिक्रमणों के
कारण मार्ग-दुर्घटनाओं की भरमार हो रही है। अतिक्रमणकारियों ने शहरों को नरक बना
डाला है और नागरिकों का जीना दूभर हो गया है। अतः अतिक्रमणों के विरुद्ध जब तक
कठोरतम कार्रवाई नहीं की जाएगी, उनकी समाप्ति नहीं होगी। अतिक्रमणांे के सबसे
बड़े कारण पुलिस विभाग, नगर निगम तथा अन्य स्थानीय निकाय हैं। सर्वविदित
है कि अतिक्रमणकारी इन्हें नियमित ‘सुविधा शुल्क’ बांधकर चैन की बंशी बजाते हैं और
ये लोग ‘मूंदउ आंख कतउ कोउ नाहीं’ की कहावत चरितार्थ करते हैं।
यदि वास्तव मंे अतिक्रमणों का सफाया करना है तो ये उपाय
करने होंगे:- 1. प्रत्येक थानेदार एवं स्थानीय निकाय के
अभियन्ताओं को इस बात के लिए प्रत्यक्ष रूप से पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया जाय कि
वे अपने क्षेत्र में कहीं भी लेशमात्र अतिक्रमण न होने दें। इसके लिए वे अपने
क्षेत्र में नित्य भ्रमण किया करें। यदि उनके क्षेत्र में कोई भी अतिक्रमण होता है
और वह अतिक्रमण तत्काल नहीं हटाया जाता तो थानेदार व अभियन्ताओं के विरुद्ध कठोर
कार्रवाई की जानी चाहिए। 2. जैसे ही कहीं पर अतिक्रमण हो, उसे उसी समय हटाकर अतिक्रमणकारी के विरुद्ध कारगर दण्डात्मक कार्रवाई की जाय। 3. प्रायः नेतागण भी अपनी नेतागिरी व कमाई के चक्कर में अतिक्रमणों को बढ़ावा देते
हैं। अतः अतिक्रमणों के विरुद्ध कार्रवाई में ऐसे नेताओं की बिलकुल न सुनी जाय।
(श्याम कुमार)
सम्पादक, समाचारवार्ता
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