मंगलवार, 7 नवंबर 2023

हिन्दी के वैश्वीकरण का वर्तमान

मीना शर्मा

20वीं सदी के अंतिम दशक में उत्पन्न क्रांतिकारी नव तकनीक क्रांति, संचार क्रांति सूचना क्रांति उदारीकरण, बाजारीकरण, भूमंडलीकरण ने समूचे वैश्विक परिदृश्य को बदलकर रख दिया। सवाल यहाँ पर यह है कि भारतीय परिदृश्य और अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में समग्र बदलाव के बीच हिन्दी स्वयं को कहाँ खड़ा पाती है? तमाम उथल-पुथल के बीच नवीन चुनौतियों के बीच हिन्दी की अपनी भूमिका क्या रही? वर्तमान के वैश्वीकरण की ऐतिहासिक शक्तियों का सामना हिन्दी ने कैसे किया। तभी हम हिन्दी के वैश्वीकरण के वर्तमान का सही आकलन एवं सही तस्वीर को समझ पाएंगे।
सभागार में उपस्थित प्रिय बुद्धिजीवी साथियों, संकट और सृजन में एक गहरा अन्त: संबंध होता है, एक रचनात्मक संबंध होता है। संकट के गर्भ से ही सृजन का जन्म होता है। कुछ ऐसा ही रचनात्मक रिश्ता हिन्दी का वैश्वीकरण के साथ रहा है। संकट के समय कछुआ सिमट या सिकुड़ जाता है लेकिन हिन्दी की अपनी कहानी है, अलग दर्शन है। वैश्विक सिकुड़न की बेला में कछुआ धर्म के विपरीत हिन्दी विस्तार के रास्ते पर चलती है। बदले हुए परिदृश्य में और बदलाव की घड़ी में हिन्दी अपनी एक रचनात्मक भूमिका निभाती है। वक्त का दामन थामकर वैश्विक बदलाव के लिए हिन्दी खुद को प्रस्तुत करती है, बदलाव के लिए तैयार होकर हिन्दी अपना कदम ताल मिलाती है। हिन्दी अपनी जिजीविषा शक्ति और युगानुसरण की क्षमता, उत्तरोत्तर बदलती हुई स्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता, अपनी उदारता एवं लोचदार गुणों के साथ अनुकूलन की क्षमता के साथ बाजार और संसार से खुद को कनेक्ट करती है। इस कार्य मे हिन्दी ने सूचना-संचार, तकनीक, हिन्दी फिल्म्स, हिन्दी गीत-संगीत, मनोरंजन, स्पोट्स, वैश्वीकरण प्रक्रिया और मीडिया जैसे सशक्त माध्यम का साथ लेकर अपना सफर तय किया है। 
आज चीन जैसे देश में भी हिन्दी का मार्केट है, जिसमें फिल्म 'दंगल' 2000 करोड़ का आंकड़ा पार करते हुए भाषा और समाज के बीच सतत् परिवर्तनशील और गतिशील संबंधों को धारण कर हिन्दी अपना सामर्थ्य दिखलाते हुए लोकल से ग्लोबल और राष्ट्रीय से अन्तरर्राष्ट्रीय व्याप्ति दिखाते हुए सात समुन्दर पार तक अपना साम्राज्य विस्तार कायम कर चुकी है। नये विभावों के साथ भावों के सामंजस्य स्थापित करने का जो सौन्दर्य, जो संतुलन, जो सामर्थ्य, जो सरवाइवल इंस्टिक्ट जो क्षमता हिन्दी के पास है, वह किसी अन्य भाषा में दुलर्भ है। मुझे यहाँ पर अनायास महान वैज्ञानिक चॉर्ल्स डारविन की इस उक्ति का स्मरण हो रहा है कि सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट हिन्दी अपने आपको इस कसौटी पर शत-प्रतिशत खड़ा साबित करती है, जो फिट भी है और हिट भी है। 
आजकल फिटनेस को चैलेंज करने का एक नया चलन शुरू हुआ है। विराट कोहली पीएम मोदी को चैलेंज करते हैं तो पीएम मोदी उस चैलेंज को एक्सेप्ट करते हैं, फिर आगे कुछ लोग तेल की बढ़ी करते हैं, कीमतों, रोजगार आदि मसले पर पीएम मोदी को चैलेंज करते हैं, खैर, बात यहाँ इस बात की नहीं है कि कौन किसको किस मसले पर चैलेंज कर रहा है, बात यहाँ चैलेंज की है और हिन्दी ने अपने भीतर दृश्य-अदृश्य ऐतिहासिक शक्तियों के तमाम चैलेंज को हमेशा स्वीकार कर, देशी और विदेशी को साधकर, देशी भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं के साथ, समस्त देशवासियों के साथ-साथ करोडो प्रवासी भारतीयों के साथ, समस्त राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ने के लिए भारतीय अस्मिता के साथ-साथ, पूरे विश्व में फैले भारतीयों को जड़िने एवं संपर्क स्थापित करने के लिए एशियाई अस्मिता से जोड़ने के लिए संपर्क भाषा के तौर पर, हिन्दी लिंक लैंग्वेज के तौर पर सेतू के रूप में एक सूत्र में जोड़ने वाली, पिरोने वाली एक ऐसी भाषा के रूप में उभरकर सामने आयी है जो केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि अनेक भाषाओं से निर्मित एक भाषा है। इस भाषा का श्रृंगार अन्य भारतीय भाषाओं/विदेशी भाषाओं ने स्वयं अपने हाथों से किया है। इसीलिए हिन्दी इतनी सुन्दर है, क्योंकि सभी का इसमें कुछ-न-कुछ है और हिन्दी भी सबकी है, सो अबकी बार हिन्दी सरकार।" जिसमें सबका सहकार है, जिसमें सबका सरोकार है। 
हिन्दी की महानता एवं विराटता का रहस्य, यही आदान-प्रदान की शक्ति और लोचदार है। जिसमें कई नदियां आकर मिलती हैं और फिर यही नदियां संसार रूपी सागर से मिलती हैं तभी तो सात समुन्दर पार भी हिन्दी का परचम आज लहरा रहा है, जो अपने भीतर लोकतांत्रिक और वैश्विक मानवीय संवेदना को धारण कर विश्वव्यापी सत्ता कायम करने की राह पर निकल चुका हिन्दी है। हीनता और पराधीनता भाव से मुक्त आज की आत्म-विश्वास से लबालब है, जिसके प्रति विश्व में गौरव और सम्मान बढ़ा है, कुछ हम भी कर लें। क्योंकि पूरे कमी हमारी हिन्दी भाषा में नहीं, हममें है। हमारी सोच में है, घर की मुर्थी बसबर जो समझते हैं, इसीलिए इस सोच के बारे में सोचें, थोड़ी सोच को स्वच्छ कर लें।
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