शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

आम चुनाव: सरकार किसी की बने पर लोकतंत्र और संविधान सुरक्षित रहना चाहिए

बसंत कुमार

आज कल प्रात: जब भी न्यूज पेपर का पन्ना खोलते हैं तो मुख पृष्ठ पर यही पढ़ने को मिलता है कि फलां दल के इतने लोगों ने अपनी पार्टी से त्याग पत्र देकर फलां पार्टी का दामन थाम लिया है। दो दिन तक यह था कि पूर्व बाक्सर बिजेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के किसी दिग्गज नेता को चुनौती देने वाले हैं पर वो रातोंरात पाला बदल कर भाजपा में आ गए और अपना लोकसभा टिकट पक्का करने में सफल हो गए। इन जैसे नेताओं के कारण भाजपा में दरिया बिछाने वाले कार्यकर्ताओं को दरिया बिछाते-बिछाते दशकों निकल जाते हैं और जब टिकट का नंबर आता है तो नवीन जिंदल और बिजेंद्र सिंह जैसे आयातित लोगों के आ जाने से उनके सपने ताश के पत्तों जैसे बिखर जाते हैं। अभी कुछ दिन पूर्व कांग्रेस के दिग्गज नेता संजय निरुपम जिन्हें भाजपा के विरुद्ध अतिवादी टिप्पणियों के लिए जाना जाता रहा है और भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणियों के लिए चर्चा में आये थे। वह कांग्रेस से नाता तोड़कर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल होने वाले हैं। वैसे देश के 70 वर्ष के लोकतांत्रिक इतिहास में वर्ष 2024 का चुनाव नेताओं द्वारा पार्टी बदलने और निष्ठाये बदलने के इतिहास के रूप में जाना जायेगा। यह चुनाव देश मौजूद 'दल-बदल निरोधक कानून' का परिहास उड़ाने के लिए जाना जाएगा।

इस समय पार्टियों द्वारा चुनाव लड़ाने के लिए प्रत्याशियों की घोषणा हो रही है और विभिन्न पार्टियों के मौजूदा सांसदों के टिकट काटे जा रहे हैं पर जिन लोगों का टिकट कटा है वे यह विचार किए बिना कि उन्होंने अपनी पार्टी में रहकर वर्षों सत्ता का सुख भोगा है पाला बदलकर दूसरी पार्टियों में टिकट की जुगाड़ में लग रहे हैं और राजनीतिक दल भी अपनी पार्टी से जुड़े हुए समर्पित कार्यकर्ताओं को अवसर देने के बजाय इन भगोड़े नेताओं को उपकृत कर रही है।

जो नेता वर्षों तक कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियों में रहकर अपने आप को सेकुलरिज्म के योद्धा के रूप में पेश करते रहे हैं और अटल-अडवाणी के नेतृत्व वाली पार्टी भाजपा को सांप्रदायिक कह कर इसे छूने से परहेज करते थे आज नरेंद्र मोदीजी के करिश्माई नेतृत्व के आगे रचनात्मक विपक्ष कि भूमिका निभाने के स्थान पर सत्ता की मलाई खाने के लोभ में नतमस्तक होकर भाजपा की ओर भाग रहे हैं। भाजपा भी देश को भ्रष्टाचार का पर्याय माने-जाने वाली कांग्रेस से मुक्त भारत बनाने के स्थान पर कांग्रेस युक्त भाजपा बनाने जा रही है जो राष्ट्रवादी विचारधारा वाली पार्टी के हित में नहीं है क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के भ्रष्ट संस्कृति में पले हुए लोग इस पार्टी में आकर भाजपा को भी ऐसा नहीं कर देंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है।

ऐसी परिस्थिति में माननीय अटलजी की 13 महीने की सरकार के बहुमत के दौरान एक मत से गिरने की घटना याद आती है कि अटल जी को यह अहसास हो गया था कि हमारी सरकार गिर सकती है तो अटलजी के एक सहयोगी मंत्री शरद यादव ने कुछ सांसदों को दलबदल करा कर सरकार बचा ली जाए तो अटलजी ने यह कहकर मनाकर दिया कि मुझे यदि इस प्रकार से बने रहना है तो ऐसी सत्ता को मैं चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा। यद्यपि अटलजी इससे पूर्व नरसिंहा राव सरकार को बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देकर अपने पक्ष में वोट दिलाकर सरकार बचाने का तमाशा देख चुके थे पर उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में आया राम-गया राम की राजनीति का कभी भी साथ नहीं दिया।

इस संबंध में भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में माने जाने वाले हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के साथ हुई वार्ता का उल्लेख करना चाहता हूं। उन्होंने बताया कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और वहा विधानसभा चुनाव हो गए थे और परिणाम आने पर भाजपा के पास सरकार बनाने के अपेक्षित सीटों से दो-तीन सीटें कम आई और दो-एक विधायकों की खरीद-फरोख्त से सरकार बनाई जा सकती थी पर इस मामले में अपनी अनिक्षा शांता कुमार जी ने अटलजी को बताई तो अटलजी ने अपने वक्तव्य में यह कहा कि हमें हिमाचल प्रदेश में विपक्ष में बैठेने का जनादेश मिला है और संगठन में बैठे उन नेताओं का मुहं बन्द कर दिया जो खरीद के माध्यम से प्रदेश में सरकार बनाना चाहते थे। यदि हम विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को अपने देश में सुरक्षित देखना चाहते हैं तो आम चुनाव के समय पार्टियां बदलने की भागमभाग को रोकना होगा।

यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के अपने दस वर्षों के कार्यकाल में आर्थिक विकास के क्षेत्र में, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और सड़क निर्माण के क्षेत्र मे, उद्यमिता विकास के क्षेत्र में देश ने अभूतपूर्व सफलता अर्जित की है और ऐसी आशा है कि देश के मतदाता अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए एक अवसर और दे जिससे देश विश्व के सामने विकसित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित कर सके। इसका अर्थ यह नहीं कि विपक्षी पार्टियों के लोग सरकार की कमियों की आलोचना करें और सरकार को और एक्टिव मोड में लाए न कि अपनी पार्टी को छोड़कर सत्ता के लोभ में सत्ता पार्टी में मिल जाए। उनके ऐसा करने से देश में लोकतंत्र की पराजय होगी जो देश के लिए खतरनाक है, ऐसी स्थिति में हमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस वक्तव्य का ध्यान देना चाहिए जो उन्होंने अपनी 13 दिनों की सरकार के अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कही थी "सरकारे आएंगी और जाएंगी, पार्टियां बनेंगी और बिगड़ेंगी पर देश का लोकतंत्र बचना चाहिए। अटलजी की यह बात आज के परिप्रेक्ष में और भी सार्थक हो रही हैं जहां लोग संसद में पहुंचने के लोभ में अपने दलों को 24 घंटे में छोड़कर पाला बदल रहे है जहां रहकर उन्होंने वर्षो तक सत्ता की सुख भोगा है। अब तो अपने दलों की नीतियां व रीतियां सब कुछ कुर्सी पाने की चाह में भूल गए हैं, जो लोग कांग्रेस में रहते हुए अटल-अडवाणी की राष्ट्रवादी विचार धारा को सांप्रदायिक कहकर उनकी आलोचना करते थे वे लोग अब राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की विचारधारा के झंडा बरदार बने हुए हैं।

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