शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

असम में हिन्दीभाषियों की हत्याओं पर हमारी खामोशी

अवधेश कुमार

इस समय पिछले कई दिनों से असम में अलग-अलग स्थानों पर हिन्दी भाषियों की हत्याएं हो रहीं हैं। नृषंस हत्याओं का एक सिलसिला चल रहा है। करीब एक दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए हैं एवं कई घायल हो चुके हैं। स्थिति को समझने के लिए पहले कुछ घटनाओं पर नजर डालिए। 18 जनवरी को कोंकड़ाझाड़ के समीप राष्ट्रीय राजमार्ग पर पांच हिन्दी भाषियों की गोलीमार कर हत्या कर दी गई। सारे मृतक बिहार के रहने वाले थे। उन्हें रात्रि करीब 10 बजे एक बस से उतारकर पहले कतार में खड़ा होने के लिए कहा गया और फिर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं गईं।  ध्यान दीजिए, इनमें एक 19 वर्ष, दो 20 वर्ष एक 22 एवं एक 25 वर्ष को युवा था। दो लोग घायल भी हुए। बस . बंगाल के सिलिगुड़ी से मेघायल के जोवाई जा रही थी। वे रोजगार के लिए षिलांग जा रहे थे। उसके पूर्व उसी दिन शाम को उदाहगुड़ी में एक नाई की हत्या कर दी गई थी तो चिरांग जिले के मानस अभयारण्य के निकट भरतमारी बाजार में आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं जिनसे एक व्यक्ति मारा गया एवं कई घायल हो गए। 19 जनवरी को शोणितपुर के ढेकियाजुली थानांतर्गत दिनदहाड़े बीच बाजार उसी तरह गोली चलाई गई जिसमें एक हिन्दीभाषी की मृत्यु हो गई एवं एक घायल हो गया। उसके बाद बतासीपुर के हिन्दी भाषी व्यवसायी विक्रम कुमार राय को गोली मारकर घायल कर दिया। राय सड़क पर भागते रहे और बीच बाजार में उग्रवादी उन पर गोली चला रहे थे जबकि वहां पास में सेना का षिविर है एवं सीआरपीएफ की गष्ती भी वहां रहती है। उसी दिन 9 बजे सुबह कोकराझाड़ के मंगलझोरा में एक व्यवसायी की गोली मार कर हत्या कर दी गई। व्यवसायी धुबड़ी जिले के निवासी थे। पुलिस कह रही है कि उनसे एनडीएफबी ने कुछ दिनों पहले 15 लाख रुपए मांगे थे, जिससे इन्कार करने की सजा उनको मौत के रुप में दी गई। कोकराझाड़ में एक आठ वर्ष के बच्चे का अपहरण कर हत्या कर दी गई। 

इस तरह आतंक का ऐसा सिलसिला चल रहा है लेकिन चिंता का विशय यह कि देश के दूसरे हिस्सों में कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही। जरा सोचिए, वहां हिन्दी भाषी अभी किस मानसिक अवस्था में रह रहे होंगे। जब मुंबई में राज ठाकरे हिन्दी भाषियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो हम आसमान सिर उठा लेते हैं, लेकिन असम में हिन्दी भाषी इस तरह मारे जा रहे हैं और क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं पर हम बिल्कुल निरपेक्ष बने हुए हैं। क्यो? ऐसा लगता है जैसे पूरा देश अलग-अलग घटनाओं में मग्न है जबकि वहां दिनानुदिन स्थिति बिगड़ती जा रही है। ये सारी हत्याएं उस एनडीएफबी यानी नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड- सगंविजीत गुट द्वारा अंजाम दिया जा रहा है, जो सरकार से किसी प्रकार की बातचीत का विरोधी है। इसका प्रमुख संगबिजीत इंग्ती काथर उर्फ आईके. संगबिजीत उर्फ सारसिंक इंगती उर्फ संगबिजॉय है। वह कार्बी जनजाति से संबंध रखता है। 2005 से इनने हिन्दीभाषियों की हत्याएं आरंभ की। 2010 में इसने कई नरसंहार किए तथा बड़ी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया। एसएसबी के जवानों को भी इसने मौत के घाट उतारा। गेगांग अपांग जब अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे उनके बेटे का अपहरण हो गया। पता चला कि एनडीएफबी ने ही अपहरण किया है। काफी मिन्नतों के बाद उनका बेटा रिहा हुआ। ये वारदात करके मेघालय, मिजोरम भाग जाते हैं। ऐसा लगता ही नहीं कि उन्हें पुलिस या सुरक्षा बलों का कोई भय है। एनडीएफबी के आंतक से शोणितपुर, चिरांग, उदाहगुड़ी, कोकराझार और बाक्सा में भय व्याप्त हैं। ये जिलें बिल्कुल अषांत हैं और वहां की सामान्य गतिविधियां बाधित हैं। शोणितपुर और आसपास से अनेक छोटे-बड़े कारोबारी भाग गए हैं। कारण, जितना धन वे बार-बार मांगते हैं उसे देना संभव नहीं रहा।

कहने की आवष्यकता नहीं कि असम सरकार एवं बोडो क्षेत्रीय परिषद प्रशासन दोनों का दायित्व वहां रहने वालों की सुरक्षा सुनिष्चित करनी है जिसमें ये पर्याप्त सफल नहीं हो रहे हैं। ध्यान रखिए सारी हत्याएं बोडो परिषद के क्षेत्र में हुए हैं। वहां अपहरण, धन उगाही आम बात हो गई है। यद्यपि लोगों ने इसके खिलाफ  आक्रोश व्यक्त करना आरंभ कर दिया है। हत्याओं हमलों विरुद्ध कई समूह सड़क पर उतर रहे हैं। इसी तरह अखिल असम बिहारी युवा मंच, अखिल हिन्दी भाषी युवा छात्र परिषद, अखिल असम भोजपुरी युवा छात्र परिषद के अलावा स्थानीय संगठनों जैसे जागरुक गणमंच असम ने भी विरोध किया है।  बीपीएफ जैसे स्थानीय संगठन भी इस हत्या के खिलाफ सड़कों पर उतरे हैं। बीपीएफ इस समय बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का शासन चला रही है। उसके द्वारा हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग का अर्थ वहां की स्थिति को दर्षाता है। बीटीसी के प्रमख हाग्रामा महिलारी ने भी घटनास्थल का दौरा किया, अस्पतालों में घायलों से मिले, लेकिन उनको भी पता है कि इतना पर्याप्त नहीं है। पुलिस और सुरक्षा कार्रवाइयों के भय से बेपरवाह उग्रवादी संगठन वहां कमजोर, निरपराध लोगों के खिलाफ हर प्रकार का अपराध कर रहे हैं। उनको आंतकित कर धन उगाही करते हैं और देने पर उनके साथ हिंसा। ये लोग उनके भय से पुलिस के पास आते भी नहीं। यह सुरक्षा व्यवस्था की स्पष्ट विफलता है। हिन्दी भाषी संगठनों को आरोप है कि पिछले आठ वर्षों में कुल मिलाकर 400 हिन्दी भाषियों की हत्या हो चुकी है और कई लाख हिन्दी भाषियों को राज्य से बाहर जाना पड़ा है। 

पुलिस महानिदेशक खगेन शर्मा ने अपने बयान में कहा है कि एनडीएफबी अल्फा एवं केएलओ के साथ मिलकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश पर काम कर रहे है। प्रष्न है कि आपके पास इसका उपचार क्या है? मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की ओर से कहा गया है कि उन्होंने एनडीएफबी-सं के खिलाफ कठोर कार्रवाई का आदेश दिया हुआ है। आदेश उचित है, पर इसके परिणाम को भी सुनिश्चित करना होगा। एनडभ्एफबी के कुछ नेताओं के सिर पर ईनामों की घोषणा से अभी तक कोई लाभ नहीं हुआ है। सूचना है कि केन्द्र की ओर से भारत भूटान सीमा पर तैनात एसएसबी को पुलिस के साथ मिलकर अभियान तेज करने का निर्देश दिया गया है। ये विषेश अभियान समूह यानी एसओजी गठित कर जंगलों में प्रवेश कर रहे हैं। पुलिस महानिदेशक शर्मा बीटीएडी में एनडीएफबी-सं के खिलाफ पुलिस और सेना के संयुक्त अभियान का बयान दे चुके हैं। मूल बात अभियान की सफलता की है। हालांकि यह समस्या केवल सुरक्षा बलों की कार्रवाई से हल नहीं हो सकती। हिंसक अलगाववादियों की नृषंस हिंसात्मक गतिविधियों के खिलाफ जन चेतना एवं समूह की आवाज भी गूंजनी चाहिए। 

वास्तव में एनडीएफबी पहले भी हिन्दीभाषियों की हत्याएं करता रहा है। राज्य के अन्य उग्रवादी संगठनों जैसे उल्फा, केएलएनएफ आदि यह जताने के लिए वे शक्तिषाली है, हिन्दी भाषियों की हत्याएं कर देते हैं। इसे वे सबसे आसान निषाना मानते हैं, क्योंकि हिन्दी भाषियों की हत्या का असम या पूर्वोत्तर में तो उतना विरोध नहीं होता जितना दूसरे की हत्या पर होता है। वहां के बाहर देश में इसके विरुद्ध प्रबल आवाज नहीं उठती। इसलिए यह आवष्यक है कि पूरे देश से इसके खिलाफ आवाज उठे ताकि वहां रहने वाले हिन्दी भाषियों के साथ अल्पसंख्यकों या दूसरे भाषा के लोगों को यह विष्वास हो कि देश उनके साथ है। 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाष-01122483408, 09811027208

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