मंगलवार, 11 मार्च 2025

महाकुंभ में सपना बनी 'हवाई चप्पल' वालों ने की हवाई यात्रा?

निर्मल रानी

रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम (आरसीएस) ‘उड़ान’ का शुभारंभ करते हुये आठ वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ' हम मानते थे कि हवाई सेवा केवल राजा और महाराजाओं के लिये है। यह सोच बदलनी चाहिए। मैं हवाई चप्पल पहनने वाले लोगों को भी हवाई जहाज़ में देखना चाहता हूं।' इस योजना के अंतर्गत न केवल बंद या बेकार पड़े देश के 45 हवाई अड्डों को पुनः संचालित करने बल्कि कई नये हवाई अड्डे बनाने का भी प्रस्ताव था। इन आठ वर्षों के दौरान निश्चित रूप से अनेक नये हवाई अड्डों का निर्माण भी हुआ है। परन्तु सवाल यह है कि यह नये हवाई अड्डे और इनसे संचालित हवाई यात्रा क्या 'हवाई चप्पल' पहनने वाले लोगों को भी कुछ फ़ायदा पहुंचा रही है ? इस योजना के तहत औसतन 2500 / रुपये प्रति घंटे की उड़ान उपलब्ध कराने की घोषणा करने वाले प्रधानमंत्री का वह दावा आज आठ वर्ष बीतने के बाद भी आख़िर कितना सही साबित हो रहा है ? उस समय तो प्रधानमंत्री मोदी ने ग़रीब जनता की भावनाओं को स्पर्श करते हुये यह भी कहा था कि -'मैने ग़रीबी देखी है। ग़रीबी में जिया हूं, ग़रीबी देखने के लिए कोई यात्रा नहीं करनी पड़ती है। मुझे याद है आज तक मेरी मां के खाना बनाते हुए आंसू निकल जाते थे। इसी तरह हर मां के चूल्हा जलाते हुए आंसू निकलते हैं। इसलिए ग़रीब परिवारों को मुफ़्त गैस चूल्हा देने की योजना शुरू की है।' जबकि सच्चाई यह है कि इस योजना के बाद गैस की क़ीमत इतनी बढ़ गयी कि लाखों गृहणियां दुबारा गैस रिफ़िल तक नहीं करा सकीं। 

बहरहाल सवाल यह है कि 8 वर्ष पूर्व किये गये इस लोकलुभावन दावे के बाद हवाई यात्रा को लेकर आज की स्थिति क्या है? क्या हवाई चप्पल पहनने वाले यानी देश के ग़रीब लोग हवाई यात्रा कर पा रहे हैं ? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि जिस देश में सरकार स्वयं यह दावा करती हो कि हम देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन उपलब्ध करा रहे हैं उस देश के मुफ़्त राशन लेने वाले ग़रीब लोगों को हवाई यात्रा करने के लिये प्रोत्साहित करना कितना कारगर साबित हो सकता है ? यदि नहीं तो क्या 'हवाई चप्पल में हवाई यात्रा' जैसा शब्दों की 'तुकबंदी ' भरा दावा भी महज़ एक लोकलुभावन जुमला मात्र ही था ? कम से कम पिछले दिनों प्रयागराज में हुये महाकुंभ के दौरान तो यही देखने को मिला। यहाँ भी यही दावा किया जा रहा है कि 65 करोड़ लोगों ने महाकुंभ में स्नान किया। इसमें भी अधिकांश लोग वही 'राशन के लाभार्थी ' थे जो हवाई चप्पलों में या फिर नंगे पैर महाकुंभ में तीर्थ करने की ग़रज़ से आये और गये। कुंभ मेले के दौरान कई बार मची भगदड़ में भी मरने वाले बेचारे वही 'हवाई चप्पलों' वाले लोग ही थे। 

रहा सवाल कुंभ मेले में 'हवाई चप्पल वालों का हवाई जहाज़' के द्वारा संगम तट पर स्नान करने हेतु प्रयागराज पहुँचने का, तो उस दौरान ग़रीबों के लिये तो हवाई यात्रा एक दुःस्वप्न बनकर रह गयी जबकि विमानन कंपनियों ने जमकर चांदी ज़रूर कूटी। भारतीय इतिहास में विमान किरायों में इतनी अनियंत्रित वृद्धि कभी नहीं हुई जितनी कुंभ के दौरान हुई। ज़रा सोचिये कि दिल्ली इलाहबाद का हवाई किराया जो सामान्य दिनों में 4 से 5 हज़ार रूपये के बीच हुआ करता था उसी विमान में कुंभ के दौरान 13 हज़ार से लेकर 80 हज़ार रूपये प्रति यात्री तक वसूला गया। यानी दिल्ली से लंदन का किराया उस दौरान औसतन इलाहबाद के किराये से 30 प्रतिशत सस्ता रहा। यही हाल उस दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों से इलाहाबाद आने वाले विमानों के किराए का रहा। कभी दस गुना तो कभी बीस गुना तक ज़्यादा किराया वसूला गया। इतना ही नहीं बल्कि धनाढ्य लोगो के लिये एयरपोर्ट से हेलीकॉप्टर के ज़रिये संगम स्नान की सुविधा भी उपलब्ध कराई गयी। इसका किराया 35 हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति रखा गया। इससे यात्री हवाई अड्डे से सीधे संगम तक पहुंच सके। यह सुविधा इसलिए उपलब्ध कराई गयी थी ताकि इसका लाभ उठाकर श्रद्धालु बिना पैदल चले और बिना जाम में फंसे पवित्र संगम में स्नान कर सकें। फ़लाई ओला नाम की कम्पनी द्वारा इस सुविधाजनक उड़ान की व्यवस्था की गयी। निःसंदेह महाकुंभ का अवसर विमानन कंपनियों के लिये एक बड़ा व्यवसायिक आयोजन साबित हुआ जबकि हवाई चप्पलों वाले हवाई सैर को तरसते ही रह गये?

कुंभ मेले के बाद इस बात पर भी चर्चा हुई कि प्रयागराज में उमड़े इस अभूतपूर्व जन सैलाब ने देश की जी डी पी  को प्रभावित किया। उत्तर प्रदेश ने भी भारी राजस्व जुटाया। छोटे मोटे दुकानदारों व्यापारियों से लेकर, नाव,रिक्शा,टेक्सी गोया प्रत्येक व्यवसायिक क्षेत्र के लोगों ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर पैसे कमाये। परन्तु इस आयोजन को हाई टेक बनाने में कुछ बड़ी कंपनियों ने होटल के क्षेत्र में जो निवेश किया वह भी आश्चर्यचकित करने वाला था। धनाढ्य श्रद्धालुओं से 60 हज़ार से लेकर एक लाख रूपये प्रति रात्रि का किराया वसूला गया। डोम सिटी बनाये गये। इन विशेष स्थानों की पहुँच के अलग व सुरक्षित रास्ते निर्धारित किये गए। जब तक भगदड़ नहीं मची उस समय तक वी आई पी को विशेष सुविधाएँ,मार्ग,स्नान घाट व सुरक्षा आदि सब कुछ उपलब्ध कराये गये। बस यदि खुले आसमान के नीचे सर्द रातें बिताते लाखों लोग नज़र आये या भगदड़ में मरते या लापता होते दिखाई दिये तो वह वही 'लाभार्थी ' परिवार था जो मुफ़्त का राशन लेकर इन्हीं राजनेताओं से रेवड़ी लेने व  'भिखारी होने का प्रमाणपत्र' भी लेता है। और हवाई चप्पल में हवाई यात्रा करने की उम्मीद भी पाले रहता है। जबकि हक़ीक़त यही है कि महाकुंभ जैसे ऐतिहासिक आयोजन में भी 'हवाई चप्पल' वालों की हवाई यात्रा करने की तमन्ना मात्र सपना बन कर रह गयी। 

                                                                  निर्मल रानी

संभल में होली और जुम्मा विवाद यूं ही नहीं

अवधेश कुमार

संभल में होली और जुम्मे की नमाज देशव्यापी बहस और विवाद का विषय यूं ही नहीं बना हुआ है। हालांकि संभल के सीईओ अनुज चौधरी के वक्तव्य को आधार बनाकर कई पार्टियां ,नेता और मीडिया का एक वर्ग आलोचना कर रहा है। सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसे लोग जब सरकार बदलेगी तो जेल में होंगे। सीओ को गुंडा और दादा तक की संज्ञा दे दी गई है। मुस्लिम संगठनों सहित अनेक मुस्लिम नेताओं ने तो उनके खिलाफ ऐसा अभियान चला दिया है मानो वे संभल में शांति नहीं बल्कि अशांति के कारण बन चुके हों। क्या वाकई अनुज चौधरी ने ऐसा बयान दिया है जिससे उनके विरुद्ध इस तरह का माहौल होना चाहिए? सामान्य तौर पर देखें तो होली और जुम्मे की नमाज एक ही दिन हो रही है तो निश्चित रूप से प्रशासन का दायित्व दोनों को शांतिपूर्वक संपन्न कराने की है। कोई एकपक्षीय बयान देकर किसी समुदाय को नाराज करे तो उसके विरुद्ध आवाज उठनी चाहिए। किंतु क्या वाकई संभल का मामला ऐसा ही है? इससे जुड़े दोनों पक्षों को समझे बगैर हम कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं दे सकते।

निस्संदेह, भारत में 116 करोड़ से थोड़ा ज्यादा हिंदू और 22 करोड़ से ज्यादा मुसलमान है तो दोनों को मिलजुल कर ही रहना है। दोनों की अपनी संस्कृतियां हैं तथा अलग-अलग उत्सव हैं। यह दोनों समुदायों की जिम्मेवारी है कि वे एक दूसरे की भावनाओं , संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए तथा अपने उत्सवों के महत्व के अनुसार ऐसा आचरण करें जिनसे समस्याएं पैदा नहीं हो। इसी तरह पुलिस प्रशासन का दायित्व हर हाल में शांति व्यवस्था बनाए रखने का पूर्वोपाय करना है। अगर कहीं समस्या पैदा हुई तो पुलिस प्रशासन के लिए उत्तर देना कठिन होता है। अनुज चौधरी का बयान इसी के संदर्भ में था। सच है कि उनके बयान की दो पंक्ति को निकाल कर हंगामा पैदा कर दिया गया और यही बताता है कि कुछ लोग किस तरह देश में सांप्रदायिक तनाव, हिंसा पैदा करना चाहते हैं। यह वर्ग प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एवं केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने के लिए झूठ का नॉरेटिव चला रहा है। अनुज चौधरी के बयान को देखें तो उसमें यह पंक्ति है कि जुम्मे का नमाज वर्ष में 52 बार आता है जबकि होली एक बार। इसी में वे यह भी कह रहे हैं कि जिन्हें होली से समस्या हो वे उस दिन बाहर न निकलें। अपने पूरे वक्तव्य में वे कह रहे हैं कि हिंदू समाज मुसलमानों की भावनाओं का ध्यान रखे और मुस्लिम समाज हिंदुओं की भावनाओं का। इसमें गड़बड़ी करने वालों को चेतावनी भी दे रहे हैं। वह कह रहे हैं कि जिस तरह ईद के दिन लोग सवैया खाते हैं, एक दूसरे से गले मिलते हैं ठीक उसी तरह होली का त्यौहार भी है और इसको मुसै भी उसी रूप में लें, थोड़ा बड़ा हृदय दिखाएं। उनका कहना था कि अगर कहीं थोड़ा बहुत रंग गुलाल पड़ भी जाए तो उसे बड़ा हृदय दिखाकर सहन कर जाएं। उसी में वे कहते हैं कि जिन्हें बिल्कुल इससे समस्या हो वह बाहर न निकले। इसमें ऐसी कोई बात नहीं है जिसके आधार पर उनको जेल में डालने से लेकर गुंडा और न जाने क्या-क्या कहा जाना चाहिए। 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टीवी कार्यक्रम में यह कहते हुए उनका समर्थन किया है कि वह पहलवान है, अर्जुन अवार्डी है और पहलवान की तरह स्पष्ट बोलता है। उन्होंने भी लगभग वही बातें बोली जो अनुज चौधरी ने कहा। इस तरह अनुज चौधरी का वक्तव्य योगी आदित्यनाथ सरकार के विचारों की ही अभिव्यक्ति है। यह सच है कि इसके पहले भी होली और जुम्मे का नमाज एक दिन हुआ है। किंतु यह कहने वाले भूल जा रहे हैं कि जिन शहरों या क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी है वहां कई बार यह शांतिपूर्ण संपन्न हुआ तो कई बार अशांति पैदा हुई, हिंसा हुए, दंगे भी हुए। आप दंगों के इतिहास का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि इनमें से बड़ी संख्या में हिंदू उत्सवों या महत्वपूर्ण दिवसों के दिन या उनसे जुड़े हुए रहे। पिछले 3 वर्षों में हमने हिंदू धर्म से जुड़ी शोभा यात्राओं, महत्वपूर्ण तिथियों के दिन पत्थरबाजी, आगजनी, हमले और सांप्रदायिक हिंसा हुये हैं। क्या हम पिछले वर्ष 24 नवंबर को संभल में हुई हिंसा भूल गए? आखिर न्यायालय के आदेश से सर्वेक्षण टीम वहां आई थी, कहीं हिंदुओं की भीड़ नहीं थी, कोई नारा नहीं था, अचानक हजारों लोग ईंट पत्थर लेकर कहां से निकल पड़े?  जितनी भयानक पत्थरबाजी हुई, आगजनी गई और गोली तक चली उसका कोई एक कारण था तो यही कि संभल कट्टर मजहबी सांप्रदायिक उपद्रवी तत्वों का केंद्र बन चुका है। सीधे पुलिस से हिंसक मोर्चाबंदी लेने का दुस्साहस सामान्य लोग नहीं कर सकते। लोगों के मस्तिष्क को उस सीमा तक असामान्य बनाया जा चुका है या बन चुका है तो फिर उस स्थान के लिए पुलिस प्रशासन को भी सामान्य से अलग हटकर ही व्यवहार करना पड़ेगा।

संभल में दंगों का भयानक इतिहास है। आजादी के पूर्व से ही वहां गैर मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा, धर्मस्थलों पर कब्जे या उनको ध्वस्त करने की घटनाएं होतीं रहीं हैं। 1978 के दंगों के बाद बड़ी संख्या में हिंदुओं के पलायन हुए और यह 1995 तक जारी रहा। क्यों? करोड़ों की संपत्ति रखने वालों को भी वहां से भागने को भी बस होना पड़ा। वहां से निकले हुए परिवार जिन शहरों में है उनकी कथा सुनकर किसी का कलेजा मुंह को आ जाता है। 24 नवंबर, 2024  को हिंसा के बाद धीरे-धीरे पूरे संभल शहर में कब्जाए,  जमीन में दबाई या विरक्त महत्वपूर्ण पूजा स्थल, कूप,  बावरी निकल रहे हैं। संभल धार्मिक पुस्तकों में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात रहा है तथा कलयुग में भगवान कल्कि अवतार की भी भविष्यवाणी वही है। पिछले मोटा-मोटी 800 वर्षों से वह क्षेत्र इसी कारण इस्लामी हमले का शिकार रहा है इस इतिहास को कोई झूठला नहीं सकता। जामा मस्जिद विष्णु पुराण, भविष्य पुराण से लेकर अकबरनामा, बाबरनामा एवं अंग्रेजों के काल में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार हरि मंदिर को ध्वस्त कर बनाया गया है। अनेक मुसलमान भी टीवी कैमरे पर बता रहे थे कि उनके देखते-देखते मस्जिद इतनी बड़ी हुई है अन्यथा यहां ऐसा कुछ था नहीं। कल्पना करिए, उत्तर प्रदेश का एक छोटा शहर अगर हिंदू धर्म स्थलों को निगल जाने, उन्हें विरक्त कर देने या धरती में दबा देने की भूमिका निभा रहा हो तो वहां की सांप्रदायिक स्थिति क्या रही होगी?

भारत का दुर्भाग्य है कि यहां सेकुलरिज्म की गलत व्याख्या सोच और वोट बैंक की मानसिकता में सांप्रदायिक व्यवहारों का विरोध करने की जगह इन्हें दुरुस्त करने के लिए खड़े होने वाले को खलनायक बनाया जा रहा है। जामा मस्जिद के पास एवं अन्य जगह पुलिस थाने या पोस्ट बनाने तक का विरोध करने वाले कौन लोग थे? कल्पना करिए, अगर प्रदेश और केंद्र में भाजपा सरकार नहीं होती तो जितनी बड़ी संख्या में कब्जे किए गए या विरक्त मंदिर, मिट्टी में दबाए गए कूप और बावरी मिले हैं वह संभव होता? मनुष्य के अंदर दिव्यता और विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति व अंत:प्रेरणा पैदा करने वाले वे पवित्र स्थान ऐसे ही भुला दिये जाते। आश्चर्य इस पर होनी चाहिए कि कब्जा किए गए, कराए गए उन पवित्र स्थलों या निर्माण को न्याय पूर्ण तरीके से खाली करने की कार्रवाई देश में नेताओं, बुद्धिजीवियों व मीडिया के एक बड़े वर्ग की आलोचना का शिकार हो रहा है। यह इकोसिस्टम इतना बड़ा है कि इसका सामना करना कठिन होता है तथा यही वर्ग देश में नैरेटिव भी बनाता है। इसी वर्ग ने  केंद्र व प्रदेश सरकार तथा उसके नेतृत्व में स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा कानूनी शक्ति का उपयोग करते हुए हिंदू समाज को न्याय दिलाने तथा कानून और व्यवस्था बनाए रखने की नीतियों और कदमों के विरुद्ध वातावरण बनाने में लगा है। ऐसा नहीं होता तो अनुज चौधरी के वक्तव्य की सभी पक्षों द्वारा प्रशंसा होती तथा उसके अनुरूप व्यवहार की अपील की जाती। वहां के हिंदुओं से पूछिए कि क्या हवे पिछले 50 वर्षों में होली जैसे खुले व्यवहार त्यौहार को भी खुलकर मना पाए हैं? अगर नहीं तो यह दूसरे समुदाय के लिए शर्म और सोचनीय विषय होना चाहिए या नहीं? संभल पुलिस प्रशासन न्याय और कानून की दृष्टि से अपनी शक्तियों का सदुपयोग कर रहा है। यही कारण है कि बाहर दुष्प्रचार व विरोध करते हुए भी इनमें से कोई न्यायालय तक जाने का साहस नहीं करता।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092 , मोबाइल -9811027208

शिक्षा बोर्ड की सख्ती के चलते अब तक 344 अनुचित साधन के केस दर्ज

- 29 पर्यवेक्षको को किया कार्यभार मुक्त

- 09 परीक्षा केन्द्रों की परीक्षा रद्द

संवाददाता

भिवानी। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी द्वारा सैकेण्डरी एवं सीनियर सैकेण्डरी वार्षिक परीक्षा तथा डी.एल.एड. (रि-अपीयर) फरवरी/मार्च-2025 का आयोजन नकल रहित सुचारू रूप से करवाया जा रहा है।

बोर्ड सचिव डॉ० मुनीश नागपाल, ह.प्र.से. ने बताया कि ये परीक्षाएं 27 फरवरी से आरम्भ होकर 29 मार्च, 2025 तक चलेंगी। इन परीक्षाओं में 1434 परीक्षा केन्द्रों पर 5,17,448 परीक्षार्थी परीक्षा दे रहे हैं। परीक्षाओं का समय दोपहर 12:30 बजे से सायं 03:30 बजे तक है। परीक्षा केन्द्रों पर प्रभावी निरीक्षण हेतु 227 उडऩदस्ते गठित किए गए। संवेदनशील परीक्षा केन्द्रों पर 588 ऑब्जर्वर भी नियुक्त किए गए हैं। प्रत्येक जिले में बोर्ड से एक नोडल अधिकारी भी लगाया गया है, जो जिला प्रशासन से तालमेल करते हुए परीक्षा समाप्ति उपरान्त प्रतिदिन की रिपोर्ट बोर्ड मुख्यालय को कर रहे हैं।

बोर्ड सचिव ने सभी उडऩदस्तों को आदेश दिए की वह स्वयं परीक्षा केन्द्रों पर जाकर स्थिति का जायजा लें और बोर्ड परीक्षा बिना किसी अड़चन के संपूर्ण हो, इसको लेकर सभी जरूरी व्यवस्थाएं होना सुनिश्चित करें। शिक्षा बोर्ड ने नकल रोकने एवं पेपर लीक के मामलों को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई हुई है।

उन्होंने बताया कि परीक्षा ड्यूटी में नियुक्त विभिन्न उडऩदस्तों को भी गड़बड़ी वाले परीक्षा केन्द्रों पर और अधिक सतर्कता दिखाते हुए तुरन्त कार्यवाही करने के निर्देश दिए। बाह्य हस्तक्षेप रोकने के लिए सभी परीक्षा केन्द्रों पर अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है। बोर्ड परीक्षाओं की पवित्रता बनाए रखने और नकल रहित परीक्षाओं के संचालन के लिए पुलिस और प्रशासन गंभीरता से कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि बोर्ड द्वारा नकल रोकने के लिए पुरजोर प्रयत्न किए जा रहे है। शिक्षा बोर्ड द्वारा अभी तक सैकेण्डरी कक्षा के विभिन्न विषयों के 04 दिनों व सीनियर सैकेण्डरी के विभिन्न स्ट्रीम के 05 दिनों में होने वाले पेपरों में अनुचित साधन के 344 केस बन चुके हैं व अभी तक बोर्ड ने 29 पर्यवेक्षकों को परीक्षा ड्यूटी से कार्यभार मुक्त किया गया है। शिक्षा बोर्ड द्वारा अभी तक 09 परीक्षा केन्द्रों की परीक्षा रद्द की गई है। परीक्षा ड्यूटी में कौताही बरतने वालों के विरूद्ध नियमानुसार सख्त कार्यवाही करने हेतु शिक्षा विभाग को लिख दिया गया है।

उन्होंने कहा कि बच्चों, उनके माता-पिता व अन्य नाते-रिश्तेदार को यह नहीं भूलना चाहिए कि आज प्रतियोगिता का युग है और ऐसे वक्त में समाज में अपना स्थान बनाने के लिए योग्यता का होना परमावश्यक है। इसमें नकल काम नहीं करेगी, अकल ही असल मायने में लाभकारी रहेगी। उन्होंने पुरज़ोर अपील की है कि वे अपने बच्चों को सद्मार्ग पर चलना सिखाएं। उन्होंने कहा कि समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि किसी भी सूरत में नकल नहीं होने दी जाएगी। परीक्षा की शुचिता को भंग करने वालो को सजा दी जाएगी। 

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