सोमवार, 15 मई 2023

16-05-2023 To 22-05-2023(16.01)









 

अंहकार का नाश ही विनम्रता का जनक

डाॅ. वीरेन्द्र भाटी मंगल
वर्तमान दौर में चारों तरफ अंहकार बढता ही जा रहा है, जहां अंहकार है वहां विनम्रता नहीं हो सकती है। भारतीय संस्कृति में विन्रमता का उल्लेख विशिष्टता के साथ मिलता है। विन्रमता के द्वारा अनेक द्वन्द्वों को पाटा जा सकता है। बस आवश्यकता इस बात की है कि विन्रमता को जीवन में धारण किया जाये। जब तक व्यक्ति के आचरण में विनम्र विचारों को समावेश नहीं होता है तब तक अहं विसर्जन की बात सोची भी नहीं जा सकती है। वर्तमान दौर में बढ रहे द्वन्द्वों मंे प्रमुख रूप से अंह का हावी होना ही है। सहिष्णुता का अभाव, अहं का प्रभाव व्यक्ति मंे व्याप्त विन्रमता को खण्डित करने में सहायक होता है। विन्रमता जीवन का सहज एवं आवश्यक गुण है। विन्रमता ही व्यक्ति के जीवन का दर्पण है। जिस व्यक्ति में जितनी विन्रमता होती है लोग उस व्यक्ति की महानता को तत्काल स्वीकार कर लेते है। अंह से पोषित विन्रमता अधूरे ज्ञान की परिचायक होती है।
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन अपनी विशिष्टता के साथ गतिशील होता है। वे ही लोग पथभ्रष्ट होते है जो विन्रमता को सहज गुण न मानकर प्रदर्शन का लबादा मानते है। विन्रमता का प्रदर्शन स्वार्थ का जनक है। स्वार्थी व्यक्ति परिवार एवं समाज में अपनी सफल पहचान नहीं बना पाता है। विनम्रता विकास की जननी है। सही मायने में अंह का विसर्जन एवं विन्रमता को धारण करना ही जीवन विकास का सशक्त माध्यम है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में अंह का विसर्जन कर न्रमता के सूत्र को शिरोधार्य किया है वह व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता के झण्डे गाड सकता है।
भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में गुरू-शिष्य की महत्ता निर्विवाद है। शिष्य का समर्पण, नम्रता ही उसे गुरू से बढकर योग्यता का वाहक बना देती है। वो इसलिये की शिष्य ने अपने अंह का विसर्जन कर अपने आप को समर्पित किया। विन्रमता जीवन का सहज गुण है। सही मायने में व्यक्ति के आंतरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व का दर्पण है विन्रमता। विन्रमता का गुण हर किसी व्यक्ति को अपनी ओर आर्कषित कर लेता है। विन्रम व्यक्ति सब जगह हर किसी से सम्मान पाता है वहीं अपने गुणों के कारण लोगों का आदर्श भी बन जाता है। व्यक्ति के जीवन का आध्यात्मिक गुण है विन्रमता का समावेश। विन्रम व्यक्ति के जीवन में प्रदर्शन नाम मात्र का होता है। प्रदर्शन से परे आत्मा आत्मा के विकास का सूत्र है विन्रम जीवन। वर्तमान में जीवन से विन्रमता का ह्ास तीव्र गति से हुआ है। विन्रमता का स्थान चापलूसी लेती जा रही है। चिकनी चुपडी बातों से अपना कार्य निकलवाने का प्रयास ही विन्रमता बनती जा रही है जबकि विन्रमता में न तो चापलूसी होती है ओर न ही स्वार्थ। विन्रमता जीवन का आवश्यक अंग बन जाता है किसी ने ठीक ही कहा है-
झूकते वे ही है जिनमें जान है, मुर्दा दिल क्या खाक झुकेगें।
सचमुच इस बात में विन्रमता पर करारा आध्यात्मिक पुट मिलता है। झुकते वे ही लोग है। जिनमें कुछ संस्कार है, गुण है। अंह से आपूरित व्यक्ति टूटना पंसद करते है लेकिन झूकना नहीं ओर यह भी सच है कि जो अकडते है वे टूटते ही है। जो व्यक्ति झूकना जानता है संसार उसके सामने स्वयं झूकने लग जाता है। यह है विन्रमता का प्रभाव। विन्रमता जीवन का स्थायी गुण है जिसे अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन को सुरभित कर सकता है। नम्रता व विनय जीवन को अलग ही पहचान देती है। नम्रताहीन व्यक्ति बहुत कुछ पाने से वचित रह जाते है। सदियों से भारतीय संस्कृति में ’’विद्या ददाति विनयम्’’ का समावेश रहा है।
विद्या वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जिसमें विन्रमता हो। विद्या विनय के विद्या अर्थात ज्ञान प्राप्त करना असंभव है। अंह का पूर्ण रूपेण विसर्जन ही विन्रमता का जनक है। अंहकार से मुक्त जीवन को ही विन्रम जीवन की संज्ञा दी जा सकती है। आज जरूरत है कि हमारी पीढी विन्रमता जैेसे गुणों को जीवन में धारण कर जीवन विकास की गति को समझे। आज के दौर में अंहकार युक्त ज्ञान बढा है जो भले ही रोजगार का माध्यम बन सकता है लेकिन आत्मिक शांति एवं जीवन विकास के लिए विन्रमता से युक्त ज्ञान ही परिपूर्ण माना जा सकता है। विन्रमता को धारण करने के लिए व्यक्ति को सहजता, सरलता के साथ धैर्य पूर्वक सहिष्णुता के साथ आध्यात्मिक विकास की अवधारणा को समझना होगा, तभी विन्रम जीवन का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। विन्रमता को जीवन में धारण कर व्यक्ति अपने जीवन के साथ साथ परिवार, समाज एवं राष्ट्र के विकास में आध्यात्मिक चेतना जागरण का वाहक बन सकता है। जीवन में विन्रमता तमाम योग्यताओं की जनक है। विन्रमता के द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र का समावेश कर सकता है।
विन्रमता को धारण करने के लिए व्यक्ति को आध्यात्मिक जीवन का अनुशरण करना होगा। जीवन के विविध चरणों में भिन्न भिन्न स्थितियों के साथ सामन्जस्य एवं सहिष्णुता इसके लिए परम जरूरी है। विन्रमता एक दिन का परिणाम नहीं हो सकता है विन्रमता के लिये धैर्य एवं निरन्तर आध्यात्मिक विचारों का समावेश ही जीवन सुरभित बना सकता है। विन्रमता विकास की जननी है। विन्रम व्यक्ति का जीवन ही सर्वप्रिय व जनप्रिय हो सकता है। सही मायने मंे विन्रमता के संस्कार ही जीवन को नई दिशा देने में सक्षम है।
-राष्ट्रीय संयोजक-अणुव्रत लेखक मंच
लाडनूं (राजस्थान)
 मोबाइल-9413179329



http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/